औपचारिक अभिकरणों के गुण व दोषों के बारे में बताइए ?

शिक्षा के औपचारिक अभिकरण का अर्थ, गुण, दोष एवं विशेषताएं

इन अभिकरणों के अन्तर्गत वे संस्थाएँ आती हैं जिनके द्वारा किसी पूर्व निश्चित योजना के अनुसार बालक को नियन्त्रित वातावरण में रखकर शिक्षा के निश्चित उद्देश्य को निश्चित समय में निश्चित स्थान पर प्राप्त किया जाता है। इन अभिकरणों की शैक्षिक प्रक्रिया सुव्यवस्थित होती है। इस प्रकार के शैक्षिक अभिकरण सीमित होते हैं तथा ये कृत्रिम वातावरण में शिक्षा प्रदान करते हैं। इन अभिकरणों के अन्तर्गत समस्त श्रेणी के विद्यालय, संग्रहालय, अजायबघर पुस्तकालय, मनोरंजन केन्द्र आदि संस्थाएं आती हैं।

औपचारिक अभिकरणों के गुण (Merits)

औपचारिक अभिकरणों द्वारा संस्कृति का हस्तान्तरण, संरक्षण तथा परिशोधन होता है तथा इन अभिकरणों द्वारा मानव समाज के अनुभवों तथा गुणों को निश्चित समय में प्राप्त किया जाता है ताकि वे निश्चित स्थान पर ही होते हैं।

औपचारिक अभिकरणों के दोष (Demerits)

औपचारिक अभिकरणों का वातावरण नियन्त्रित तथा कृत्रिम होता है। अत: इनके द्वारा प्रदान की गई शिक्षा निर्जीव, अस्पष्ट तथा पुस्तकीय होती है। प्राप्त ज्ञान प्राय: अव्यावहारिक होती है।

औपचारिक शिक्षा की विशेषतायें

औपचारिक शिक्षा में निम्नांकित विशेषताएं पाई जाती हैं
1. औपचारिक शिक्षा कृत्रिम, जटिल तथा अप्राकृतिक होती है, जिसे प्राप्त तथा प्रदान करने के लिए सुनियोजित क्रियाएं तथा कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।
2. यह शिक्षा मूलतः विद्यालयों द्वारा प्रदान की जाती है।
3. औपचारिक शिक्षा का एक सुनिश्चित पाठ्यक्रम होता है, जिसे एक सुनियोजित समय में पूरा करना होता है।
4. इस प्रकार की शिक्षा जीवन पर्यन्त नहीं चलती है। जब तक बालक विद्यालय जाता है, यह शिक्षा तभी तक चलती है।
5. औपचारिक शिक्षा प्रमुखतः भौतिक होती है, जो हमें भौतिक साधन जुटाने को योग्यता प्रदान करती है।
6. औपचारिक शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बालक को इस योग्य बनाना है कि वह एक निश्चित परीक्षा उत्तीर्ण कर कोई प्रमाण पत्र प्राप्त कर ले या किन्हीं निश्चित विषयों की विषयवस्तु का ज्ञान प्राप्त कर ले।
7. औपचारिक शिक्षा के सुनिश्चित उद्देश्य होते है।

शिक्षा के औपचारिक अभिकरण के रूप में विद्यालय

प्राचीनकाल में ग्रीक में बालक जिस स्थान पर अपने आत्मा के विकास हेतु जाता था उन्हें स्कूल कहते थे। धीरे-धीरे इन संस्थाओं का विकास शिक्षा देने के एक पूर्व नियोजित स्थान के रूप में हुआ जो बालक को निश्चित काल में निश्चित समय में निश्चित प्रकार की शिक्षा प्रदान करने का कार्य करते थे।
भारतीय दर्शन के अनुसार विद्या-आलय अर्थात् विद्यालय वह स्थान हैं जहाँ शिक्षा का आदान-प्रदान होता है। वास्तविकता में देखा जाए तो विद्यालय औपचारिक शिक्षा प्रदान करने का सक्रिय साधन है।

(1) विद्यालय की परिभाषा

जॉन डिवी के अनुसार, ‘स्कूल एक ऐसा विशिष्ट वातावरण है जहाँ बालक के वांछित विकास की दृष्टि से विशिष्ट क्रियाओं तथा व्यवसायों की शिक्षा दी जाती है।’
“School is a special environment where a certain of quality of life and certain type of activities and occupation are provided with the object of securing the child’s development along desirable lines.”
रॉस (Ross) के अनुसार, “विद्यालय वे संस्थाएँ हैं जिनको सभ्य मनुष्यों ने इस उद्देश्य से स्थापित किया है कि समाज में सुव्यवस्थित तथा योग्य सदस्यता के लिए बालकों को तैयार करने में सहायता मिले।”
“School are institutions desired by civilized man for the purpose of aiding in the preparation of the young for well adjusted members of society.”

विद्यालय की अवधारणा की चर्चा हम दो रूपों में कर सकते हैं
-विद्यालय की परम्परागत अवधारणा
-विद्यालय की आधुनिक अवधारणा

विद्यालय की परम्परागत अवधारणा में विद्यालय को ज्ञान प्रदान करने के एक साधन के रूप में देखते है। इनकी मान्यता है कि विद्यालय में ज्ञान का क्रय एवं विक्रय होता है। अध्यापक ज्ञान को बेचते है और बालक ज्ञान खरीदते हैं। यह विचारधारा शिक्षा की प्रक्रिया को नीरस व निर्जीव बनाती है एवं स्कूल के वातावरण को भी कृत्रिम बनाकर वास्तविकता से दूर ले जाती है।
विद्यालय की आधुनिक अवधारणा के अन्तर्गत समाज विद्यालय से कुछ अधिक अपेक्षाएं करता है। अब विद्यालय सूचना तथा ज्ञान प्रदान करने के केन्द्र मात्र नहीं रहे हैं। आज के विद्यालय का उद्देश्य लोकतंत्रात्मक शासन प्रणाली के लिए एक कुशल व सफल नागरिक का निर्माण करना भी है।

(2) आधुनिक विद्यालय की प्रमुख विशेषताएं

i)छात्रों के प्रति नवीन दृष्टिकोण
ii)शिक्षा में क्रिया के सिद्धान्त पर बल
iii)सामुदायिक भावना का विकास
iv)सक्रिय वातावरण होना
v)राष्ट्र तथा विश्व के प्रति स्वरूप दृष्टिकोण का निर्माण

(3) विद्यालय के कार्य (Forms of Education)

विभिन्न विद्वानों ने विद्यालय के कार्य के सम्बन्ध में अपने-अपने विचार व्यक्त किये हैं जिनमें से प्रमुख है:-
ब्रूबेकर (Brubacher) ने विद्यालय के कार्यों को तीन श्रेणियों में विभक्त किया है .
i) संरक्षणात्मक कार्य
ii) प्रगतिशील कार्य
iii) निष्पक्ष कार्य

थामसन (Thompson ) ने विद्यालय के कार्यों को इस प्रकार विभक्त किया है .
i) बौद्धिक प्रशिक्षण
ii)सामुदायिक जीवन
iii)स्वास्थ्य व सफाई प्रशिक्षण
iv)चारित्रिक प्रशिक्षण
v) देशभक्ति की भावना का विकास

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