अनुक्रम
एन0 जी0 ओ0 स्थापना की विधिक की प्रक्रियाएं
न्यास (ट्रस्ट) एवं समिति कि स्थापना प्रक्रिया : भारतीय न्यास अधिनियम 1882 के भाग 3 में न्यास को परिभाषित करते हुए कहा है :- ‘न्यास सम्पित्त के स्वामित्व से जुड़ा हुआ कर्तव्य है ।
- व्यक्ति जो भरोसे या इत्मीनान की घोषणा करता है, न्यास का लेखक कहलाता है ।
- व्यक्ति जो इस भरोसे को स्वीकार करता है – न्यासी कहलाते हैं
- व्यक्ति जिनके फायदे के लिए भरोसा व्यक्त किया जाता है, लाभाथ्र्ाी कहलाते हैं
- न्यास की सम्पित्त्ा या न्यास का धन न्यास का विषय क्षेत्र कहलाता है
- ट्रस्ट की सम्पित्त्ा के स्वामी के तौर पर ट्रस्टियों (न्यासियों) की अपेक्षा लाभार्थियों का हित उनका अधिकार है ।
- ट्रस्ट का लेखपत्र-वह माध्यम है जिसके जरिए ट्रस्ट कि घोषणा की जाती है ।
न्यास के अनिवार्य तत्व
न्यास के लिए निम्न तत्व अनिवार्य है :-
- न्यास का लेखक
- न्यासी
- लाभाथ्र्ाी
- न्यास का विषय क्षेत्र
- न्यास का उद्देश्य
न्यास का पंजीकरण
न्यास का पंजीकरण निम्न तरीकों से किया जा सकता है
- भारतीय पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकरण द्वारा
- लोक न्यास अधिनियम के तहत पंजीकरण द्वारा
- सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकरण द्वारा
- कम्पनी अधिनियम के तहत पंजीकरण
भारतीय पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकरण हेतु न्यास विलेख (ट्रस्ट डीड) या इच्छा पत्र को पंजीकृत किया जाता है जो कि राज्य सरकार के पंजीकरण विभाग के उप-पंजीकरण के द्वारा की जाती है। कुछ राज्यों ने लोक न्यास अधिनियम पारित किया है। इन राज्यों में न्यास विलेख का पंजीकरण लोक न्यास अधिनियम के तहत किया जाता है। कम्पनी अधिनियम के उपभाग-25 के तहत भी न्यास का पंजीकरण किया जा सकता है। इसके अन्तर्गत आवेदन पत्र 1-ए के द्वारा किया जाता है ।
एन0 जी0 ओ0 हेतु विभिन्न अधिनियमों के तहत आयकर में छूट
सामान्यत: न्यास एवं समितियों की स्थापना सामान्य लोगों की सहायता या समाज के किसी विशेष हिस्से के लिए की जाती है । चूंकि सामान्यत: इनका उद्देश्य समाज की भलाई करने का होता है । साथ ही आज हम देखते हैं कि बहुत सारी संस्थाएं एवं न्यास विकास कार्यक्रमों को भी क्रियान्वित कर रहे हैं अत: इन्हें प्रोत्साहित करने के लिए सरकार द्वारा इन्हें विभिन्न कर रियायतें दी जा रही हैं ।
आयकर अधिनियम की धारा (यू/एस) 11 एवं 12 के तहत एन0 जी0 ओ0 को छूट
एन. जी. ओ. उपरोक्त के अन्तर्गत छूट हेतु आवेदन पत्र कमीशनर, आयकर के पास भेजती है । कोलकाता, चेन्नई, दिल्ली एवं मुम्बई में अवस्थित एन. जी. ओ. आवेदन निदेशक, आयकर (छूट) के पास करना होता है । आवेदन पत्र के साथ निम्न दस्तावेज उपलब्ध कराना आवश्यक है :-
- प्रपत्र (फार्म) 10-ए
- मूल लेख पत्र जिसके तहत एन. जी. ओ. का पंजीकरण हुआ हो, या संघ का ज्ञापन पत्र या संस्था के नियम व विनियम
- पिछले तीन वषोर्ं के बही खाते की प्रतियां
80-जी के तहत दाता को आयकर में प्राप्त विशेषाधिकार
80-जी के तहत पंजीकृत संस्था को धन दान में देने पर दाता को उसकी कर योग्य आय में से दिए गए धन के 50 प्रतिशत के बराबर छूट प्राप्त होती है । इससे संस्था लोगों को धन दान में देने को प्रोत्साहित करती है । इसके तहत पंजीकरण हेतु प्रपत्र 10-जी भरकर संस्था को आयकर आयुक्त के पास आवेदन तीन प्रतियों में करना होता है । आवेदन पत्र के साथ निम्न दस्तावेज होने चाहिए :-
- आयकर पंजीकरण प्रामणपत्र
- संस्था द्वारा पिछले तीन वषोर्ं में किए कार्यों का ब्यौरा
- संस्था के पिछले तीन वर्षों की लेखांकित बही खातों की प्रति
80-जी के तहत पंजीकरण हेतु अनिवार्य दशाएं
संस्था की ऐसी कोई आय नहीं होनी चाहिए जिस पर छूट नहीं दी जा सकती जैसे कोई व्यवसायगत आमदनी यदि ऐसा है तो आवश्यक है कि दान में प्राप्त राशियों एवं व्यवसायगत आमदनी के बही खाते अलग-अलग तैयार किए जाएं ।
- संस्था किसी विशेष धर्म, समुदाय एवं जाति के हितों के लिए काम न कर रही हो
- संस्था की प्राप्तियों एवं खर्चों का लेखांकन नियमित कराना आवश्यक है
- संस्था का पंजीकरण (सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट, कम्पनी एक्ट, ट्रस्ट एक्ट) आवश्य होना चाहिए
उपधारा 35- ब के तहत एन. जी. ओ. को मिलने वाली छूट
केन्द्र सरकार कुछ एन. जी. ओ. को उपधारा 35 ।ब् के तहत प्रोजेक्ट या स्कीम के लिए संस्तुति करती है । यदि किसी एन. जी. ओ. को इसके तहत संस्तुति प्राप्त होती है तो वह औद्योगिक घरानों आदि से पैसा इकट्ठा कर सकती है तथा इसके तहत दिया गया पैसा उसके खर्च में शामिल किया जाता है । इसके तहत संस्था अपने प्रोजेक्ट या स्कीम को संस्तुति हेतु आवेदन सचिव, सामाजिक एंव आर्थिक कल्याण हेतु राष्ट्रीय समिति, राजस्व विभाग, भारत सरकार, नोर्थ ब्लॉक, नई दिल्ली के पास भेजना होता है ।
स्वैच्छिक संगठन का पंजीकरण
समान विचार वाले लोगों का कोई भी समूह एक संघ या समिति बना सकते हैं । इसके लिए यह आवश्यक है कि उन्हें वैधानिक पहचान प्राप्त हो जो कि उन्हें देश के कानून के तहत पंजीकरण कराने पर ही प्राप्त होता है । पंजीकरण कराने से उस समूह के सभी सदस्यों की जिम्मेदारी भी तय होती है । साथ ही एन. जी. ओ. को विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन के लिए विित्त्ाय संसाधनों की भी आवश्यकता पड़ती है इसके लिए संस्था का पंजीकृत होना आवश्यक है । यह पंजीकरण समिति पंजीकरण अधिनियम 1860, भारतीय न्यास (ट्रस्ट) अधिनियम-1882, सहकारी समिति अधिनियम-1904, संयुक्त स्टॉक कंपनी अधिनियम 1956 के तहत हो सकता है । ज्यादातर एन. जी. ओ. समिति पंजीकरण अधिनियम 1860 की धारा 21 के तहत पंजीकतृ होती हैं ।
- इससे व्यक्तिगत दायित्व के स्थान पर सामूहिक दायित्व सुनिश्चित होता है
- पंजीकरण के उपरान्त संस्था कानूनी वैधता प्राप्त हो जाती है
- संस्था के नाम पर बैंक खाता खोलने के लिए
- पंजीकृत संस्था के नाम पर सम्पित्त्ायां कानूनन रखी जा सकती हैं
- इससे संस्था संस्थापकों के बिना भी चल सकती है
- आयकर अधिनियम, विदेशी योगदान नियमन अधिनियम के तहत पंजीकरण कराने के लिए भी संस्था का पंजीकत होना आवश्यक है।
संस्था का पंजीकरण
सात या अधिक व्यक्तियों का समूह समिति पंजीकरण अधिनियम 1860 के अन्तर्गत संस्था को पंजीकृत करा सकता है । इसके उपबन्ध-20 में बताया गया है कि किन उद्देश्यों के लिए संस्था को पंजीकृत कराया जा सकता है । साथ ही पंजीकरण हेतु समितियों के पंजीयक (रजिस्ट्रार) को संस्था की नियमावली और नियम-उपनियम देने होते हैं ।
एन0 जी0 ओ0 के पंजीकरण की प्रक्रिया
पंजीकरण हेतु आवेदन करने वाली संस्था को निम्न दस्तावेज राज्य के समितियों के पंजीयक को प्रस्तुत करना होगा :-
- संस्था का नाम एवं पूरा पता
- संस्था के उद्देश्य
- संस्था की प्रचालन समिति/शासी निकाय के सदस्यों के नाम एवं पते की सूची 4) संस्था के नियम एवं विनियम (बाइ-लॉस)
- सामान्य बैठक जिसमें संस्था को पंजीकृत कराने का निर्णय लिया गया है उस मीटिंग की कार्यविधि की प्रति
- संघ के लिए ज्ञापन (मेमोरण्डम ऑफ एसोसिएशन) जिसमें आवेदक एवं अन्य कार्याधिकारियों के दस्तखत हों एवं गवाहों के समक्ष प्रमाणित हों ।
- अध्यक्ष या सचिव की ओर से गैर न्यायिक स्टाम्प पेपर पर शपथ पत्र । यह शपथ पत्र किसी कार्यकारी न्यायाधीश या नोटरी पब्लिक से प्रमाणित हों ।
- पंजीकृत कार्यालय परिसर के सम्बन्ध में दस्तावेज यथा गृह कर या किराये की रसीद ।
- पंजीकरण हेतु तय शुल्क के साथ एक सहपत्र जिसमें पंजीयक से पंजीकरण के लिए आवेदन हों । पंजीकरण शुल्क प्रत्येक राज्य में अलग-अलग है इसकी जानकारी स्थानीय पंजीकरण अधिकारी से कर लेनी चाहिए ।
पंजीकरण प्रमाणपत्र
पंजीकरण हेतु आवेदन करने के उपरान्त समिति पंजीयक या रजिस्ट्रार संस्था द्वारा उपलब्ध कराए गए दस्तावेजों को प्रमाणित करने के पश्चात् एवं संतुष्ट होने पर पंजीकरण प्रमाण पत्र दिया जाता है । संस्था का पंजीकरण प्रमाण पत्र एंव नियम-उपनियम (बाइ-लॉस) पंजीकृत संस्था के प्रथम दृष्टया साक्ष्य होते हैं । इन दोनों दस्तावेजों की प्रमाणित प्रति बनानी चाहिए ताकि कानूनी और प्रशासकीय मामलों में इनका इस्तेमाल किया जा सके ।
न्यास
भारत में दो प्रकार के न्यास मौजूद हैं – सार्वजनिक आरै निजी । निजी न्यास, भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 द्वारा नियंत्रित होते हैं । इस अधिनियम के अन्तर्गत निजी, धार्मिक, सार्वजनिक और धर्मार्थ प्रयोग के लिए धन-सम्पित्त्ा के प्रबंधन के लिए एक न्यास बनाए जाने की व्यवस्था है । न्यासियों से अपेक्षा की जाती है कि वे न्यास को सुचारू रूप से चलाएं किंतु संभवत: वे विश्वास भंग भी कर सकते हैं । विश्वास भंग की स्थिति में न्यास की परिसम्पित्त्ायों का अधिग्रहण किया जा सकता है । न्यासियों को व्यक्तिगत लाभ या मुनाफा कमाने का हक नहीं होता है पर वे न्यास को चलाने के लिए खर्चे का भुगतान मांग सकते हैं । न्यास से त्यागपत्र दिए बगैर अथवा अवकाश प्राप्त किए बगैर न्यासी अपने दायित्वों का परित्याग नहीं कर सकते हैं । आयकर अधिनियम-1961 के तहत न्यास की प्रस्थिति प्राय एक समिति के समान होती है । अधिकतर न्यास धार्मिक, धमार्थ और शैक्षणिक होते हैं । भारत में न्यासों पर नियंत्रण एवं विनियमन रखने वाले विधानों में प्रमुख हैं : धर्माथ वृित्त्ादान अधिनियम 1890, धर्मार्थ और धार्मिक न्यास अधिनियम 1920, सरकारी न्यास अधिनियम 1913 । लोक न्यासों की स्थापना सार्वजनिक धर्मार्थ उद्देश्यों से की जा सकती है । लोक-न्यासों को गठित करने का कोई केन्द्रीय कानून नहीं है । हालांकि कुछ राज्यों ने लोक धर्मार्थ अधिनियम बनाया है, फिर भी अधिकांश राज्यों में ऐसा कोई अधिनियम लागू नहीं है । किसी न्यास को एक राज्य में पंजीकृत किया जा सकता है, परंतु वह अन्य राज्यों में भी कार्य कर सकता है । एन. जी. ओ. को केवल लोक न्यास अधिनियम के तहत ही बनाया जा सकता है ।
भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 के कुछ लाभ हैं । पहला यह बहुत लचीला है, इसमें सरकारी हस्तक्षेप नाम मात्र को ही है । दूसरा यह न्यासियों की संख्या को विनिर्दिष्ट नहीं करता है । तीसरा इसके अन्तर्गत ट्रस्ट को वैधानिक स्वरूप देने की विधि बहुत सरल है । साथ ही इस अधिनियम की कुछ सीमाबद्धता जो अग्रलिखित है : न्यासी अपने न्यास से कोई भी लाभ नहीं कमा सकते हैं जो कि न्यासियों (जो कार्मिक सदस्यों के रूप में काम करते हैं) के लिए समस्यामूलक है । संगठनात्मक सरंचना की बन्द व्यवस्था किसी भी नियुक्त सदस्य की पदच्युति की अनुमति नहीं देती है ।
कम्पनी अधिनियम
कम्पनी अधिनियम, 1956 के अनुच्छेद-25 के तहत बनाई गई कम्पनियों को धर्मार्थ कम्पनियों के रूप में जाना जाता है । इस तरह वे धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए धन-सम्पित्त्ा रख सकते हैं । इस बात का उल्लेख संघ के ज्ञापन पत्र (MOA) में किया जाना आवश्यक है ताकि उन्हें केन्द्र सरकार द्वारा इस आशय का अनुज्ञापत्र (लाईसेंस) प्रदान किया जा सकें । किसी भी धर्मार्थ कम्पनी के मामले में पंजीकरण प्रक्रिया काफी विस्तृत होती है । इसका संबंध कम्पनी रजिस्ट्रार के समक्ष संघ ज्ञापन पत्र और संघ नियम (By Laws) प्रस्तुत किए जाने से जुड़ा होता है ।
विभिन्न अनुच्छेदों के अन्तर्गत कर में छूट
संगठनों की लाभ निरपेक्ष स्थिति और धर्मार्थ अंशदान से संबंधित कानून आयकर अधिनियम, 1961 के अनुच्छेदों 10, 11, 12, 13 व 80-जी में रखे गये हैं । अनुच्छेद 80-जी के तहत कोई व्यक्ति या कंपंनी स्वैच्छिक संगठनों को दान दे कर अपनी कर योग्य कमाई में 50 प्रतिशत की छूट हासिल कर सकती है । इस प्रकार 80-जी छूट प्राप्त एन. जी. ओज दानदाताओं को आकर्षित करते हैं । 80-जी छूट पा्र प्त करने के लिए एन. जी. ओज को आयकर अधिनियम 1961 के अनुच्छेद 10 से 13 द्वारा प्रस्तुत अनिवार्यताओं के तहत कर-छूट प्रस्थिति सुनिश्चित करनी चाहिए । इन अनुच्छेदों के अनुसार एन0 जी0 ओ0 को धार्मिक और धर्मार्थ संगठनों के रूप में परिभाषित किया जाता है ।