अनुक्रम
1905 की रूसी क्रांति का प्रत्यक्ष रूप से अंत कर दिया गया था, लेकिन परोक्षरूप में वह भूमिगत हो गयी और 1917 में उसका एक भयंकर विस्फोट के रूप में प्रादुर्भाव हुआ, जिसने मनुष्य मात्र के इतिहास को ही मोड़ दिया
1917 की रूसी क्रांति के कारण
1917 की रूसी क्रांति के प्रभाव
यद्यपि 1905 की रूसी क्रांति प्रत्यक्ष रूप में असफल हो गयी थी । किन्तु असफल होकर भी इसने रूसी जनता को किसी न किसी रूप में अवश्य प्रभावित किया । इस क्रांति ने जनता में राजनीतिक जागरूकता उत्पन्न कर दी । अर्थात् इसने जनता को राजनीतिक अधिकारों से परिचित करा दिया। अब उसे जनतांत्रिक शासन और मताधिकार का ज्ञान हो गया । अत: उसने रूस मे लोकतंत्रात्मक शासन स्थापित कर सत्ता अपने हाथों में लेना चाहा। जिसके लिए उसने एक बार पुन: क्रांति करने का मन बनाया ।
यद्यपि वास्तविकता यह थी कि बाजार में वस्तुओं का इतना अधिक अभाव नहीं था, जितना कि दिखाई दे रहा था। इसके पीछे मूल कारण यह था कि मुनाफाखोर पूँजीपतियों ने प्राथमिक उपयोग की वस्तुओं को बाजार से लोप करवाकर अधिक कीमतों पर चोरबाजारी में वस्तुओं की बिक्री कर रहे थे । यदि जारशाही की नौकरशाही भ्रष्ट न होती तो स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता था । लेकिन जारशाही की सरकार इस दिशा में सर्वथा असफल रही । ऐसी हालत में जनता का आक्रोशित होना स्वाभाविक था । अत: आक्रोशित जनता ने निरंकुश जारशाही के तख्ते को उखाड़ फेंकने के लिए दृढ़ संकल्प हो उठी ।
मार्च की क्रांति का श्रीगणेश और जारशाही का पतन
7 मार्च 1917 को रूसी क्रांति का पहला विस्फोट प्रेट्रोग्रेड में हुआ । यहाँ के निर्धन किसान-मजदूरों ने भूख से व्याकुल होकर सड़कों पर जुलूस निकाला और होटलों एवं दुकानों को लूटने लगे । इससे स्थिति बेकाबू होने लगी । अत: सरकार ने स्थिति पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए इन पर गोली चलाने का आदेश दिया । किन्तु सैनिकों ने गोली चलाने से इन्कार कर दिया । क्योंकि अब तक सेना भी क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित हो चुकी थी।
अगले दिन 8 मार्च को कपड़ा मिलों की ‘मजदूर स्त्रियाँ’ भी रोटी की माँग करती हुई हड़ताल शुरू कर दीं । दूसरे दिन अन्य कई मजदूर भी उनके साथ आ मिले । उस दिन पूरे पेट्रोग्रेड में आम हड़ताल की गयी । हड़तालियों द्वारा ‘रोटी दो’ ‘युद्ध बन्द करो’, ‘निरंकुश जारशाही का अंत हो’ आदि नारे लगाये जाने लगे । 10 मार्च को देशव्यापी हड़ताल की गयी। 11 मार्च को जार ने मजदूरों को काम पर लौटने का आदेश दिया, किन्तु उन्होंने अपनी हड़ताल जारी रक्खी । तब जार ने सैनिकों को उन पर गोलीबारी करने का आदेश दिया । लेकिन सैनिकों ने गोली चलाने से सिर्फ मना ही नहीं किया, बल्कि 25000 सैनिक हड़तालियों से जा मिले ।
इस प्रकार मार्च 1917 की क्रांति के परिणामस्वरूप रूस से निरंकुश जारशाही के शासन का अंत हो गया ।
उत्तरदायी अस्थायी सरकार की स्थापना एवं उपलब्धियां
जिस समय पेट्रोगे्रड में क्रांति हो रही थी, उस समय जार निकोलस द्वितीय युद्ध स्थल पर था । वह पेट्रोग्रेड की अराजकता का अन्त करने के उद्देश्य से राजधानी जाना चाहा । लेकिन विप्लवकारी सैनिकों ने उसे राजधानी के बजाय विस्साव नगर भेज दिया। जहाँ उसे बन्दी बना लिया गया । जार के बन्दी हो जाने पर ड्यूमा ही एक ऐसी संस्था थी, जो देश का शासन संचालित करती । अत: पेट्रोग्रेड की सोवियत और ड्यूमा के अध्यक्ष रोजियान्को के बीच एक समझौता हुआ । जिसके तहत 18 मार्च 1917 को एक उदारवादी नेता जॉर्ज ल्वाव के नेतृत्व में एक उत्तरदायी सरकार की स्थापना की गयी ।
यद्यपि क्रांति मजदूर वर्ग ने की थी, लेकिन शासन सत्ता मध्यम वर्ग के हाथ में चली गयी। इसका प्रमुख कारण यही था कि मजदूर वर्ग देश का शासन चालने में अभी अपने आपको असमर्थ महसूश कर रहा था । साथ ही सेना का रूख भी निश्चित नहीं था और ड्यूमा द्वारा स्थापित सरकार के शासन से दूसरी क्रांति का भय भी नहीं था ।
अस्थायी सरकार का गठन एवं उसके सुधार
अस्थायी सरकार में प्रिन्स ल्वाव प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त हुआ । इस सरकार में अन्य मंत्री बहुत योग्य थे । मिल्यूकॉव को विदेश मंत्री, करेन्सकी को न्याय मंत्री और युद्ध मंत्री गुचकॉव को बनाया गया । यह मंत्रिमण्डल संवैधानिकता पर विश्वास करता था। अत: इसी आधार पर इसने निम्नलिखित सुधार किये –
- देश के लिए नवीन संविधान निर्मित करने हेतु एक संविधान सभा की घोषणा की गयी।
- राजनीतिक बन्दियों को मुक्त कर दिया गया और जिन्हें देश से निर्वासित कर दिया गया था, उन्हें वापस स्वदेश आने की अनुमति प्रदान की गयी ।
- यहूदी विरोधी समस्त कानूनों को समाप्त कर दिया गया ।
- प्रेसों को स्वतंत्रता प्रदान कर दी गयी ।
- भाषण और सभा करने की स्वतंत्रता दे दी गयी ।
- संघों के गठन की अनुमति प्रदान कर दी गयी ।
- पुलिस को मनमाने ढ़ंग से किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार समाप्त कर दिया गया ।
- फिनलैण्ड और पोलैण्ड को स्वायत्तता प्रदान करने का आश्वासन दिया गया ।
- मृत्यु दण्ड निषिद्ध कर दिया गया ।
- सभी को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की गयी और चर्च के विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया गया ।
- वयस्क मताधिकार के आधार पर एक विधान सभा के निर्वाचन की घोषणा की गयी।
सरकार की कठिनाईयाँ
इस सरकार का गठन लोकतांत्रिक सिद्धान्तों के आधार पर हुआ था । इसलिए इसकी स्थिति प्रारंभ से ही डाँवाडोल रही । इसे कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ा, जिनका बिन्दुवार विवरण निम्नलिखित है :-
- सरकार युद्ध जारी रखना चाहती थी, जबकि लगातार पराजय के कारण रूसी सैनिक युद्ध नहीं करना चाहते थे ।
- मजदूर वर्ग इस सरकार पर विश्वास नहीं करता था। इसलिए ग्रामीण स्तर पर मजदूर वर्ग ने कई स्वतंत्र सोवियतें स्थापित कर ली थीं । यें सोवियतें साम्यवादी सिद्धान्तों को कार्यान्वित करना चाहती थीं । इसलिए सरकार और इन सोंवियतों के मध्य परस्पर मतभेद था। जिससे सरकार की स्थिति दुर्बल थी ।
- किसान और मजदूर चाहते थे कि जागीरदारों की भूमि बिना मुआवजा के कृषकों में बाँट दी जाय ।
- मजदूर वर्ग देश के महत्वपूर्ण उद्योगों का राष्ट्रीकरण करना चाहता था ।
- मजदूर वर्ग अपनी माँगों को पूरा करवाने के लिए हड़तालों का सहारा लिया और जगह-जगह आतंकवादी कार्य शुरू कर दिये ।
इस प्रकार स्पष्ट है कि किसान, मजदूर और सैनिक इस सरकार के सुधारों से संतुष्ट नहीं हुए । क्योंकि इसने न तो जनता की रोटी की समस्या का समाधान कर पायी और न ही युद्ध विराम करके शान्ति ही स्थापित कर सकी । वास्तव में यह सरकार देश की वास्तविक समस्या को हल कर पाने में प्राय: असफल रही। इसलिए इसकी भी वही गति हुई जो जारशाही की हुई थी । फलत: इस सरकार का पतन हो गया।
करेन्सकी की सरकार
ल्वाव की सरकार के पतन के पश्चात् करेन्सकी को प्रधानमंत्री के पद पर आसीन किया गया। करेन्सकी मेन्शेविक दल का नेता था । वह क्रांति और रक्तपात को पसन्द नहीं करता था । वह वैधानिक तरीके से सुधार करके रूस में समाजवाद की स्थापना करना चाहता था । वह युद्ध को जारी रखना चाहता था, किन्तु प्रतिष्ठा के साथ युद्ध विराम की इच्छा रखता था। उसने रूसी सेना में उत्साह और जोश उत्पन्न करना चाहता था, परन्तु इस दिशा में उसे सफलता न मिल सकी । दूसरी तरफ बोलशेविक दल करेन्सकी की सरकार का निरन्तर विरोध कर रहा था और शांति, भूमि और रोटी (Peace, Land, Bread) के नारे लगा रहा था।
केडेट दल (क्रांतिकारी समाजवादी दल) और मेन्शेविक दल के मंत्री करेन्सकी की नीतियों से असंतुष्ट होकर मंत्रीमण्डल से त्यागपत्र दे दिये । जिससे करेन्सकी को बड़ी कठिनाई के साथ पाँच सदस्यीय नया मंत्रीमण्डल का गठन करना पड़ा । यद्यपि इस मंत्रीमण्डल में कोई प्रभावशाली व्यक्ति नहीं था । लगभग इसी दरम्यान वामपन्थी समाजवादी दल भी करेन्सकी का विरोधी हो गया । फलत: परिस्थिति का लाभ उठाने के लिए वोलशेविक दल सशस्त्र क्रांति करके सत्ता हथियाने की योजना बनाने लगा । इससे स्पष्ट हो गया कि करेन्सकी सरकार भी अधिक दिनों तक टिकने वाली नहीं है ।
बोल्शेविक क्रांति
वास्तव में मार्च 1917 की रूसी क्रांति को असंतुष्ट कृषक और मजदूर वर्ग ने ही संभव बनाया था। लेकिन उन्हें क्रांति का कोई लाभ नहीं मिला । क्योंकि उस क्रांति से जारशाही के शासन का अंत अवश्य हो गया, लेकिन सत्ता अस्थायी सरकार के रूप में मध्यम वर्ग के हाथों में चली गयी । तात्कालिक सरकार ने भी युद्ध बन्द करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया । युद्ध में भागीदारी भी यथावत रखी गयी । इसके अतिरिक्त इस सरकार द्वारा न तो सामन्ती व्यवस्था का अन्त किया गया और न ही भूमि का समान रूप से कृषकों में वितरण किया गया । बल्कि उसने पूँजीपति वर्ग और मजदूर वर्ग के बीच अन्तर बनाये रखने का प्रयास किया तथा मजदूरों पर वही पुराने औद्योगिक कानून लादना चाहा । अत: रूस का कृषक और मजदूर वर्ग भड़क गया और उसके जमींदारों को लूटना मारना शुरू कर दिया । मजदूर वर्ग ने काम के घण्टे कम करने तथा वेतन बढ़ाने के लिए हड़ताल शुरू कर दी । सैनिक विद्रोही रूख अपनाकर रणक्षेत्र से वापस लौटने लगे।
करेन्सकी की सरकार के पतन के पश्चात् रूस की सत्ता वोल्शेविक नेता लेनिन तथा ट्रॉटस्की के हाथों में आ गयी । इन्होंने एक अस्थायी सरकार का गठन किया । जिसमें लेनिन चेयरमैन और ट्रॉटस्की विदेश मंत्री बना । लेनिन ने रूस में पूर्णतया सर्वहारा वर्ग का अस्थिानायकत्व स्थापित किया ।
इस प्रकार 1917 की वोल्शेविक क्रांति ने सच्चे अर्थों में रूस में मजदूर सरकार की स्थापना की । जिसने रूस में एक ऐसी नवीन व्यवस्था स्थापित की जिसमें न तो कोई शोषक था और न कोई शोषित ।
