शिक्षा के प्रमुख अनौपचारिक अभिकरणों की संक्षिप्त विवेचना कीजिये

शिक्षा के अनौपचारिक अभिकरण

शिक्षा के अनौपचारिक साधन शिक्षा को जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया के रूप में देखते है। इनका मानना है कि लिखना, पढ़ना या अक्षर ज्ञान प्राप्त कर लेना ही शिक्षा नहीं है। शिक्षा इससे बहुत अधिक व्यापक तथा विस्तृत संप्रत्यय है। शिक्षा वास्तव में वह है जो हम अपने जीवन के अच्छे-बुरे अनुभवों से सीखते हैं और यह अनुभव व्यक्ति जीवन पर्यन्त प्राप्त करता रहता है।

जे.एस.रॉस (J.S.Ross) ने इस संबंध में लिखा है, “अनौपचारिक शिक्षा बालक द्वारा सभी प्रभाव ग्रहण करना और उसे अपनी प्रकृति से उत्तेजित कर पूर्णतया विकसित करना सिखाती है।” वास्तव में देखा जाए तो अनौपचारिक शिक्षा जीवन से सम्बन्धित वे अनुभव हैं जिन्हें हम बिना किसी व्यवस्थित प्रयास, संस्था तथा साधन के स्वाभाविक स्थिति से प्राप्त करते हैं। इस प्रकार की शिक्षा प्रत्यक्ष रूप से जीवन से सम्बन्धित होती है। यह शिक्षा स्वाभाविक रूप में होती है। इसकी न तो कोई निश्चित योजना होती है और न ही कोई निश्चित नियमावली। यह बालक के आचरण का रूपान्तरण करती हैं परन्तु इस की प्रक्रिया अज्ञात, अप्रत्यक्ष तथा अनौपचारिक होती है।

इन अभिकरणों में घर या परिवार, समुदाय, राज्य धर्म या धार्मिक संस्थाएं एवं जन- संचार के साधन यथा रेडियो, टीवी, चलचित्र आदि की गणना की जाती है।

घर या परिवार

घर या परिवार प्राचीनकाल से ही मानव के सामाजिक जीवन का आधार रहा है। घर या परिवार में ही बालक प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण करता है। वह बालक की आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक और शैक्षिक सभी प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। बालक अपने परिवारजनों को देखकर अनुकरण द्वारा अथवा घर के कार्यों में हाथ बंटाकर अनेक चारित्रिक गुणों को सीखते है। अतः घर या परिवार का कर्तव्य है कि वह बच्चों की अप्रत्यक्ष शिक्षा द्वारा उनके प्रति प्रेम. स्नेह व सहानुभूति का व्यवहार कर उनके व्यक्तित्व का विकास करें। विद्यालय अथवा औपचारिक शिक्षा की सफलता में भी घर तथा परिवार का सहयोग अपेक्षित है।

समुदाय

स्थानीय समाज या समुदाय में रहकर बालक रीति-रिवाज, परम्पराएँ, धारणाएँ तथा जीवन पद्धति का अप्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करता है। समुदाय सामाजिक जीवन का क्षेत्र है। विद्यालय अर्थात् औपचारिक अभिकरण की कार्यकुशलता एवं प्रभावोत्पादकता समुदाय पर ही निर्भर होती है। स्थानीय समुदाय के सहयोग, सद्भावना एवं जन सहयोग द्वारा ही शिक्षा के औपचारिक अभिकरणों या संस्थाओं की स्थापना होती है एवं उनका शिक्षण कार्य उच्च स्तरीय बन पाता है।

राज्य

अनौपचारिक शिक्षा अभिकरणों में राज्य का प्रभाव आज की स्थिति में सर्वोपरि है। बालक की समुचित शिक्षा-दीक्षा हेतु पर्याप्त धनराशि आवंटित कर उपयुक्त शिक्षा संस्थाओं की स्थापना करने एवं शिक्षा के समान अवसर सभी बालकों को उपलब्ध कराने में राज्य का योगदान ही निर्णायक सिद्ध होता है। राज्य की राजनैतिक गतिविधियाँ भी बालक की शिक्षा पर अप्रत्यक्ष किन्तु निर्णायक प्रभाव डालती है। भारत जैसे लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के देश में विधायकों एवं सांसदों के व्यवहार एवं लोकतान्त्रिक संस्थाओं की कार्य प्रणाली बालक को प्रभावित करती है तथा उन्हे भावी नागरिक की भूमिका निभाने हेतु तैयार करती है। अत: राज्य का यह कर्तव्य है कि वह शिक्षा के प्रति अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करें।

धर्म अथवा धार्मिक संस्थाएँ

धर्म अथवा धार्मिक संस्थानों (मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारा, चर्च आदि) का बालक के व्यक्तित्व पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। यद्यपि भारत एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक राष्ट्र है किन्तु धर्म का भारतीय जनमानस पर सदैव से ही गहरा प्रभाव बना रहा है। अत: इन धार्मिक संस्थाओं का यह कर्तव्य है कि वे बच्चों में धर्म-सहिष्णुता तथा दूसरों के धर्म के प्रति आदर की भावना विकसित करें जिससे साम्प्रदायिक भेदभाव के कारण राष्ट्रीय एकता स्थापित करने में कोई बाधा न आये।

जनसंचार के साधन

जनसंचार के साधनों में समाचार पत्र, चलचित्र, टी.वी. आदि का शिक्षा के अनौपचारिक अभिकरणों के रूप में प्रभाव अत्यधिक दृष्टिगत होता है। ये अप्रत्यक्ष रूप से बालक के मानस पर प्रभाव डालते हैं। शिक्षा संस्थाओं में विद्यार्थी असंतोष, अनुशासनहीनता, अपराधवृत्ति, अश्लील व्यवहार आदि अनेक असामाजिक तत्वों का समावेश जनसंचार के साधनों का दुष्प्रभाव है। अत: इन साधनों का दुरूपयोग न होकर बालक की अप्रत्यक्ष शिक्षा हेतु सदुपयोग किया जाना आवश्यक है।

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