संसद में कानून बनाने की प्रक्रिया

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संसद में कानून बनाने की प्रक्रिया

संसद मुख्यता कानून बनाने वाली संस्था है। को भी प्रस्तावित कानून, संसद में एक विधेयक के रूप में प्रतिस्थापित किया जाता है। संसद में पारित होने तथा राष्ट्रपति की स्वीकृति के पश्चात यह कानून बन जाता है। अब हम यह अध्ययन करेंगे कि संसद किस प्रकार कानून बनाती है । 
संसद में कानून बनाने की प्रक्रिया
संसद के समक्ष आने वाले विधेयक दो प्रकार के होते है।
  1. साधारण विधेयक
  2. धन अथवा वित्त विधेयक ।

1. साधारण विधेयक 

संसद के प्रत्येक सदस्य को साधारण विधेयक प्रस्ताविक करने का अधिकार है प्रस्तावित करने के आधार पर विधेयक दो प्रकार के होते है -सरकारी विधेयक और गैर -सरकारी विधेयक मंत्री सरकारी विधेयक प्रस्तावित करते है और जो विधेयक किसी मंत्री द्वारा पेश नहीं किया जाता है। वह गैर-सरकारी विधेयक होता है। जिसका अर्थ यह है कि गैर सरकारी विधेयक किसी सांसद द्वारा प्रस्तावित किया गया होता है न कि किसी मंत्री द्वारा। संसद का अधिकतर समय सरकारी विधेयकों को निपटाने में लग जाता है। विधेयक को क अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है।

प्रथम वाचन – विधेयक की प्रतिस्थापना के साथ साथ विधेयक का प्रथम वाचन प्रारम्भ हो जाता है। यह अवस्था बडी सरल होती है। जिस मंत्री को विधेयक प्रस्तावित करना होता है वह अध्यक्ष को सूचित करता है। अध्यक्ष यह प्रश्न सदन के समक्ष रखता है। जब स्वीकृति प्राप्त हो जाती है, जो सामान्यता ध्वनि मत से हो जाती हैं, तो संबंधित मंत्री को विधेयक को प्रतिस्थापित करने के लिए बुलाया जाता है।
द्वितीय वाचन – यह सबसे महत्वपूर्ण अवस्था है। सामान्य चर्चा के पश्चात सदन के पास चार विकल्प होते है :

  1. सदन स्वयं विधेयक पर विस्तृत धारावार चर्चा करें।
  2. विधेयक सदन की प्रवर समिति को भेज दे ।
  3. दोनों सदनों की संयुक्त समिति को भेज दे ।
  4. जनमत जानने के लिए जनता में वितरित करें ।

यदि विधेयक प्रवर समिति को सौंपा जाता है। तो संबंधित समिति विधेयक का विस्तृत निरीक्षण करती प्रत्येक धारा का निरीक्षण किया जाता है। समिति चाहे तो वह विषय विशेषज्ञों तथा विधिवेताओं से भी उनकी राय ले सकती है। पूरे विचार विमर्श के पश्चात समिति अपनी रिपोर्ट सदन को भेज देती है।

 
तृतीय वाचन – द्वितीय वाचन पूरा हो जाने के पश्चात, मंत्री विधेयक को पारित करने के लिए सदन से अनुरोध करता है। इस अवस्था में प्राय: को चर्चा नहीं की जाती। सदस्य केवल विधेयक विरोध या पारित करने के लिए विधेयक का समर्थन अथवा उसका विरोध कर सकते हैं। इसके लिए उपस्थित तथा मतदान करने वाल सदस्यों का साधारण बहुमत आवश्यक है।
द्वितीय सदन में विधेयक किसी एक सदन से विधेयक पारित हो जाने के पश्चात उसे दूसरे सदन में भेज दिया जाता है । यहां पर भी वही तीन वाचनों वाली प्रक्रिया अपना जाती है। जिस का परिणाम इस प्रकार हो सकता है :-

  1. विधेयक पारित कर दिया जाए और फिर उसे राष्ट्रपति के लिए भेज दिया जाता है।
  2. विधेयक में कुछ संशोधन करके उसे पारित किये जाए। संशोधन की दशा में विधेयक पहले पारित करने वाले सदन को वापस भेज दिया जाता है। इस दशा में पहला सदन संशोधनों पर विचार करेगा और यदि उन्हें स्वीकार कर लेता है तो विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता हैं यदि पहला सदन संशोधनों को मानने से मना कर दे तब इसे गतिरोध माना जाता है।
  3. दूसरा सदन विधेयक को अस्वीकार कर सकता है जिसका अर्थ गतिरोध है। दोनो सदनों में इस गतिरोध को समाप्त करने के लिए राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है। राष्ट्रपति के पास भी कुछ विकल्प होते है। 
    1. वह अपनी स्वीकृति प्रदान करें जिसके साथ ही विधेयक कानून बन जाता है।
    2. राष्ट्रपति स्वीकृति देने से पूर्व परिवर्तन हेतु सदन को कुछ सुझाव दे। 

इस दशा में विधेयक इसी सदन को वापिस भेजा जाता है वहां प्रारम्भ हुआ था। परन्तु यदि दोनों सदन राष्ट्रपति के सुझाव मान लें या न मानें और विधेयक पुन: पारित करके राष्ट्रपति को भेज दे तो राष्ट्रपति के पास स्वीकृति प्रदान करने के अतिरिक्त और को विकल्प नहीं है।

2. धन विधेयक/वित्त विधेयक 

वे विधेयक जिनका संबंध वित्त या धन से होता है जैसे टैक्स लगाना, सरकारी व्यय करना, ऋण प्राप्त करना आदि, धन विधेयक कहलाते है । यदि निर्णय न हो पाए कि को विधेयक धन विधेयक है या नहीं, तो अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता है । साधारण विधेयक की तरह, धन विधेयक को पारित करने के लिए भी उन्ही तीन अवस्थाओं से गजु राना पडत़ा है। परन्तु इसमें कुछ अन्य शर्तें जुड़ी है । वे हैं-

  1. धन विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है। राज्यसभा में नहीं और वह भी राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति से
  2. लोक सभा से पारित होने के पश्चात इसे राज्यसभा को भेजा जाता है। राज्य सभा के पास इस पर विचार करने तथा पारित करने के लिए केवल 14 दिन का समय होता है ।
  3. राज्य सभा धन विधेयक को अस्वीकार नहीं कर सकती है । इसे या तो विधेयक पारित करना होता या फिर कुछ सुझाव देने होता है ।
  4. यदि राज्य सभा कुछ सुझाव देती है तो विधेयक लोक सभा के पास वापिस आ जाता है। लोक सभा इन सुझावों को मान भी सकता है और नहीं भी। किसी भी परिस्थिति में, विधयेक राज्य सभा में वापिस नहीं भेजा जाएगा बल्कि इसे सीधा राष्ट्रपति के पास उसकी स्वीकृति के लिए भजे दिया जाएगा 
  5. यदि राज्य सभा 14 दिन तक विधेयक को वापस नहीं भेजती तो यह माना जाता है कि विधेयक दोनो सदनों द्वारा पारित हो गया है । इसलिए राष्ट्रपति को हस्ताक्षर के लिए भेज दिया जात है ।

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