अनुक्रम
- संगम वंश,
- सालुव वंश,
- तुलव वंश ।
विजयनगर साम्राज्य का राजनीतिक इतिहास
संगम वंश (1336 से 1485 ई. तक)
1. हरिहर प्रथम (1336 से 1353 ई. तक) – हरिहर प्रथम ने अपने भाई बुककाराय के सहयोग से विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की । उसने धीरे-धीरे साम्राज्य का विस्तार किया । होयसल वंश के राजा बल्लाल की मृत्यु के बाद उसने उसके राज्य को अपने राज्य में मिला लिया। 1353 ई. में हरिहर की मृत्यु हो गई ।
बुक्काराय द्वितीय (1404-06 ई.) देवराय प्रथम (1404-10 ई.), विजय राय (1410-19ई.) देवराय द्वितीय (1419-44 ई), मल्लिकार्जुन (1444-65 ई.) तथा विरूपाक्ष द्वितीय (1465-65 ई.) इस वंश के अन्य शासक थे । देवराज द्वितीय के समय इटली के यात्री निकोलोकोण्टी 1421 ईको विजयनगर आया था । अरब यात्री अब्दुल रज्जाक भी उसी के शासनकाल 1443 ई. में आया था, जिसके विवरणों से विजय नगर राज्य के इतिहास के बारे में पता चलता है ।
अब्दुल रज्जाक के तत्कालीन राजनीतिक स्थितियों का वर्णन करते हुये लिखा है- ‘‘यदि जो कुछ कहा जाता है वह सत्य है जो वर्तमान राजवंश के राज्य में तीन सौ बन्दरगाह हैं, जिनमें प्रत्येक कालिकट के बराबर है, राज्य तीन मास 8 यात्रा की दूरी तक फैला है, देश की अधिकांश जनता खेती करती है । जमीन उपजाऊ है, प्राय: सैनिको की संख्या 11 लाख होती है ।’’ उनका बहमनी सुल्तानों के साथ लम्बा संघर्ष हुआ । विरूपाक्ष की अयोग्यता का लाभ उठाकर नरसिंह सालुव ने नये राजवंश की स्थापना की ।
सालुव वंश (1486 से 1505 ई. तक)
नरसिंह सालुव (1486 ई.) एक सुयोग्य वीर शासक था । इसने राज्य में शांति की स्थापना की तथा सैनिक शक्ति में वृद्धि की । उसके बाद उसके दो पुत्र गद्दी पर बैठे, दोनों दुर्बल शासक थे । 1505 ई. में सेनापति नरस नायक ने नरसिंह सालुव के पुत्र को हराकर गद्दी हथिया ली ।
तुलव वंश (1505 से 1509 ई. तक)-
1. वीरसिंह तुलव (1505 से 1509 ई. तक)- 1505 ई. में सेनापति नरसनायक तुलुव की मृत्यु हो गई । उसे पुत्र वीरसिंह ने सालुव वंश के अन्तिम शासक की हत्या कर स्वयं गद्दी पर अधिकार कर लिया ।
बहमनी राज्य व विजयनगर में संघर्ष रायचूर दोआब की समस्या
भौगोलिक रूप बहमनी राज्य तीन तरफ से मालवा गुजरात उड़ीसा जैसे शक्तिशाली राज्यों से घिरा हुआ था । विजयनगर तीन दिशाओं से समुद्र से घिरा था । वे राज्य विस्तार के लिए केवल तुंगभद्रा क्षत्रे पर हो सकता था । अत: भौगोलिक रूप कटे- फटे होने के कारण बडे – बड़े बन्दरगाह भी इसी भाग में था ।
पुतगालियोंं का आगमन
सल्तनत काल में ही यूरोप के साथ व्यापारिक संबंध कायम हो चुका था 1453 ई. में कुस्तुन्तुनिया पर तुर्को का अधिकार हो जाने के बाद यूरोपीय व्यापारियों को आर्थिक नुकसान होने लगा । तब नवीन व्यापारिक मार्ग की खोज करने लगे । जिससे भारत में मशालों का व्यापार आसानी से हो सके । पुर्तगाल के शासक हेनरी के प्रयास से वास्कोडिगाम भारत आये ।
अपने निजी व्यापार को बढ़ाना चाहते थे व दुसरे पुर्तगाली एशिया और अफ्रीकीयों को इसाई बनाना मुख्य उद्देश्य था व अरब को कम करना मुख्य उद्देश्य था ।
गोआ पुर्तगालियों की व्यापारिक और राजनीतिक गतिविधियों का केन्द्र बना हुआ था । गोआ तथा दक्षिणी शासकों पर नियंत्रण रखा जा सकता था।
विजय नगर साम्राज्य के पतन के कारण
1. पडा़ेसी राज्यों से शत्रुता की नीति- विजयनगर सम्राज्य सदैव पड़ोसी राज्यों से संघर्ष करता रहा । बहमनी राज्य से विजयनगर नरेशों का झगड़ा हमेशा होते रहता था । इससे साम्राज्य की स्थिति शक्तिहीन हो गयी ।