अनुक्रम
लखनऊ समझौता क्या है?
- केन्द्रीय व प्रांतीय विधान सभाओं में 80 प्रतिशत सदस्य निर्वाचित और 20 प्रतिशत सदस्य मनोनित होने चाहिए।
- केन्द्रीय विधान सभा की सदस्य संख्या 150 मुख्य प्रांतो की विधान सभाओं की सदस्य संख्या कम से कम 125 और अन्य प्रांतो की विधान सभाओं की सदस्य संख्या 50 से 75 तक हो।
- विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों को जनता द्वारा चुना जाए।
- विधानसभाओं में मुसलमानों को पृथक प्रतिनिधित्व दिया जाए।
- केन्द्रीय सरकार का शासन गर्वनर जनरल कार्यकारिणी परिषद की सहायता से करे जिसके आधे सदस्य भारतीय हो।
- अल्पसंख्यक को किसी विधेयक निविद्ध करने का अधिकार दिया जाए।
- भारत मंत्री की परिषद को समाप्त कर दिया जाए और भारत सरकार के साथ उसके वही संबंध रहे जो औपनिविशक सरकार के साथ है।
इस तरह लखनऊ समझौते के समापन पर कांग्रेस खुशी के कारण एक भुल कर देती है। वह मुसलमानो को उनकी भारी जनसंख्या से अधिक प्रतिनिधित्व देने के लिए तैयार हो जाती है। इसके अलावा लीग की भारात्मक प्रतिनिधित्व एवं पृथक निर्वाचन प्रणाली भी स्वीकृत कर लेती है। इसके बदले में मुस्लिम लीग भी कांग्रेस की स्वशासन की मांग को स्वीकृति दे देती है।
लखनऊ समझौता सभी को कांग्रेस की महान विजय लग रहा था। कालांतर में लेकिन लीग भारात्मक प्रतिनिधित्व को लेकर कांग्रेस को दबाने लगती है।
लखनऊ समझौते की मुख्य बातें
- प्रान्तों पर से केन्द्रीय नियन्त्रण का अन्त कर उन्हें अधिकाधिक स्वायत्तता देना, प्रान्तीय व्यवस्थापिकाओं का स्थानीय महत्व के सभी विषयों पर कानून बनाने का अधिकार प्रदान करना। यह भी मांग रखी गई कि प्रान्तीय कार्यकारिणी परिषद के आधे सदस्य प्रान्तीय व्यवस्थापिकाओं द्वारा निर्वाचित है।
- केन्द्रीय व्यवस्थापिका के सदस्यों की संख्या में वृद्धि हो और उनके कम-से-कम आधे सदस्यों का निर्वाचन हो। केन्द्रीय कार्यकारिणी परिषद मे व्यवस्थापिका द्वारा निर्वाचित सदस्य हो। केवल विदेश-विभाग और प्रतिरक्षा-विभाग वायसराय के अधीन रहे।
लखनऊ समझौता के उपबंध
1914 में महात्मा गांधी जी और जिन्ना के प्रभाव के कारण कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने अपना अपना अधिवेशन एक ही दिन बंबई में आयोजित किया। मुस्लिम लीग ने काँग्रेस के नेताओं को सम्मेलन में आमंत्रित भी किया। काँग्रेसी नेताओं ने अपने भाषण में राष्ट्रीय एकता पर विशेष बल दिया। काँग्रेस और लीग की एक संयुक्त कमेठी गठित की गई। जिसमें दोनों दलो के बीच सौहार्द और सहयोग उत्पन्न करने के लिये एक योजना प्रस्तुत की, जिसे ’’काँग्रेस लीग योजना’’ कहते हैं।
प्रथम- मुसलमानों के प्रतिनिधित्व के संबंध में काँग्रेस ने सांप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली एवं अधिक प्रतिनिधित्व की मांग को स्वीकार कर लिया।
- मुसलमानों के निर्वाचित सदस्यों की संख्या पंजाब में 50 प्रतिशत, बंगाल में 40 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में प्रतिशत में 30 प्रतिशत, बंबई में 33 प्रतिशत, मध्य प्रांत में 15 प्रतिशत और बिहार में 25 प्रतिशत सुरक्षित कर दिया गया।
- केन्द्रीय व्यवस्थापिका सभा में मुसलमानों के लिये निर्वाचित सदस्यों की संख्या का 1/3 भाग निश्चित कर दिया गया।
- यह भी व्यवस्था की गई कि समस्त निर्वाचन सांप्रदायिक निर्वाचित क्षेत्रों के आधार पर होंगे।
- ब्रिटिश सरकार भारत को शीघ्र ही अधिराज्य का दर्जा देने की घोषणा करें।
- केन्द्रीय और प्रांतीय सरकारों को कम से कम 1/2 सदस्य अपनी-अपनी व्यवस्थापिका सभा द्वारा निर्वाचित होना चाहिये।
- केन्द्रीय और प्रांतीय व्यवस्थापिका सभाओं में कम से कम 80 प्रतिशत सदस्य निर्वाचित एवं 20 प्रतिशत सदस्य मनोंनीत होने चाहिये।
- प्रशासन और वित्त का अधिक से अधिक विकेन्द्रीकरण होना चाहिये।
- भारतीय सेवा पर भारतीयों की नियुक्ति होनी चाहिये।
- कार्यपालिका और न्यायपालिका की शक्तियों का पृथ्क्कीकरण होना चाहिए।
- भारत की सचिव परिषद समाप्त कर दी जानी चाहिये और उसका वेतन भारतीय कोष से नहीं दिया जाना चाहिये। भारत सरकार पर उसका नियंत्रण समाप्त कर देना चाहिये।