रंगभेद की नीति
सन् 1948 के आम चुनाव में नेशनल पार्टी को अत्यंत साधारण बहुमत प्राप्त हुआ। उसने एक अन्य राजनैतिक पार्टी के साथ गठबंधन करके सरकार का गठन किया। नेशनल पार्टी ने सत्ता में आते ही रंगभेद की नीति को प्रस्तुत किया और अमलीजामा पहनाना प्रारंभ कर दिया। वर्नर ऐसेलीन नामक व्यक्ति को इस प्रणाली का ढ़ांचा तैयार करने के लिए नियुक्त किया गया। जिसने पूर्व में श्वेत-श्रेष्ठता के निमित्त दक्षिण अफ्रीका के राजनैतिक विभाजन का सुझाव दिया था। इस तरह यह नीति अपने प्रारंभिक काल में ही विवादास्पद हो गई थी। रंगभेद नीति के विकास में सर्वाधिक योगदान हैन्ड्रिक फ्रैंच वरवोएर्ड का माना जाता है जो कि उस समय सर्वोच्च प्रभावशाली नेता था।
जिसके द्वारा अलग-अलग वर्णों के लोगों के लिए अलग-अलग व्यवहार क्षेत्र आरक्षित कर दिये गये। इस कानून ने खेल के मैदानों, बसों, अस्पतालों, स्कूलों, विश्वविद्यालयों यहां तक कि पार्क की बैंचों और समुद्र तटों का भी वर्गीकरण कर दिया। सार्वजनिक स्थानों पर ‘Only for Whites’ अथवा ‘Only for Blacks’ के नोटिस बोर्ड लगे रहना एक अत्यन्त सामान्य बात हो गई थी। श्वेत लोगो के क्षेत्र की ओर पलायन रोकने के लिए अश्वेतो एवं अन्य नस्ल के लोगो के लिए विशेष पहचान पत्र आवश्यक कर दिये गये। मिश्रित वर्ण के लोगों को मताधिकार से वंचित करने के लिए 1951 में संसद में एक अधिनियम प्रस्तुत किया गया। किन्तु कतिपय लोगों के द्वारा इसे न्यायालय में चुनौती देने एवं न्यायालय द्वारा इसे अवैध घोषित करने के उपरांत आनन-फानन में नेशनलिस्ट सरकार के द्वारा न्यायपालिका एवं विधायिका की सदस्य संख्याओं में फेर बदल कर दिया गया। इस तरह उच्चतम न्यायालय और संसद में नेशनलिस्टो का बहुमत होते ही 1956 में पृथक मतदाता प्रतिनिधित्व अधिनियम (Separate Representation of Voters Act)’ पारित किया गया जिसमें मिश्रित वर्ण के लोगो को सामान्य मताधिकार से वंचित कर दिया।
उक्त कानूनों के अलावा भी तत्कालीन सरकार ने रंगभेद नीति के समर्थन में अनेक कानून बनाये जिनमें मिश्रित-विवाह प्रतिषेध अधिनियम जो कि विभिन्न प्रकार की नस्लों के लोगों के बीच विवाह को प्रतिबंधित करता था, अनैतिकता अधिनियम (Immortality Act-1950)’ जो कि दो नस्लों के लोगों के मध्य शारीरिक संबंधों को अपराध ठहराता था, ‘जनसंख्या पंजीकरण अधिनियम(Population Registration Act-1950)’, जिसके द्वारा नस्लीय आधार पर पहचान पत्र जारी किये जाते थे, साम्यवाद उन्मूलन अधिनियम(Suppression of Communism Act-1950)’, जिसके द्वारा दक्षिण अफ्रीकी कम्युनिस्ट पार्टी को प्रतिबंधित किया गया था या अन्य कोई भी पार्टी जिसे सरकार कम्यूनिस्ट विचारधारा से प्रेरित घोषित करें को, प्रतिबंधित किया जा सकता था, और श् बन्टू शिक्षा अधिनियम (Bantu Education Act-1953)’ जिसके द्वारा अलग-अलग नस्ल के अफ्रीकी छात्रों के लिए अलग-अलग शिक्षा संस्थानों की स्थापना की गई थी, आदि ऐसे कानून थे जिन्होंने सम्पूर्ण दक्षिण अफ्रीका की राजनैतिक और भौगोलिक एकता को नष्ट कर ड़ाला।
रंगभेद की नीति के परिणाम स्वरूप अश्वेतों के लिए निर्धारित 10 स्वशासी प्रक्षेत्रों की स्थापना की गई। इसे तथाकथित रूप से ‘मातृभूमि (Homelands) कहा गया। 1970 में अश्वेत मातृभूमि अधिनियम (Black Home land Citizenship Act)’ बनाया गया जिसके द्वारा अश्वेतों की नागरिकता को होमलैण्ड विशेÓह्मतक सीमित कर दिया गया। इस कानून के द्वारा अश्वेतों का श्वेतों के क्षेत्रों में प्रव्रजन प्रतिबंधित कर दिया गया। इस नीति का निकृष्टतम रूप तब उभरकर सामने आया जब विभिन्न प्रजातियों के पति-पत्नियों को आपस में तथा बच्चों को मां-बाप से जुदा कर दिया गया। अश्वेतों के इलाके में नगरीकरण की प्रक्रिया को रोककर संपूर्ण दक्षिणी अफ्रीका को कई राज्यों में बांटने के प्रयास किये गये।
दक्षिणी अफ्रीका में उपनिवेशवाद और रंगभेद नीति का महिलाओं पर गहरा प्रभाव पड़ा। महिलाओं के दृष्टिकोण से रंगभेद नीति के बड़े विध्वंसक परिणाम हुये। इस समय वास्तव में महिलायें दोहरे शोषण का शिकार हुई। पहला नस्लीय भेदभाव एवं दूसरा था लैंगिक भेदभाव। इस नीति के अंतर्गत महिलाओं को शिक्षा के लिए किसी भी प्रकार के कानूनी रक्षोपाय प्राप्त नहीं थे न ही उन्हें सम्पत्ति पर किसी प्रकार का अधिकार प्राप्त था। रोजगार के अवसर अत्यन्त कम थे और यदि वे कृषि क्षेत्र में काम भी करती थी तो उन्हें अत्यल्प मजदूरी प्राप्त होती थी। महिलाओं के अलावा अन्य अल्पसंख्यक समूह जो कि जोहान्सबर्ग के आसपास की सोने की खानों में काम करने के लिए आये थे, वे अपनी स्थिति को लेकर भ्रमपूर्ण स्थिति में थे क्योंकि रंगभेद नीति के तहत् वर्गीकृत चारों वर्गों में से वे किसी वर्ग का भी प्रतिनिधित्व नहीं करते थे। यहां यह उल्लेखनीय है कि इनमें से ताईवान, दक्षिण कोरिया, जापान आदि देशों से, जिनसे कि दक्षिण अफ्रीका के राजनयिक संबंध थे को श्ऑनरैरी व्हाइट्सश् का दर्जा प्राप्त था और इस तरह उन्हें सभी सुविधायें प्राप्त थी जो श्वेत लोगों को प्राप्त थी। हालांकि इसके बावजूद कालांतर में अन्तर्राष्ट्रीय बिरादरी में दक्षिण अफ्रीका अपनी रंगभेद नीति के कारण अकेला पड़ता चला गया।
रंगभेद नीति ने दक्षिण अफ्रीका के निवासियों पर सूक्ष्म रूप से सकारात्मक प्रभाव भी ड़ाला। नेशनल पार्टी के श्समाजिक संरक्षणवादश् के अंतर्गत अश्लीलता, जुआ, गर्भपात और यौन शिक्षा आदि पर प्रतिबंध लगा दिया गया। शराब बेचने वाली दुकानों और सिनेमा घरों पर नियंत्रण लगाया गया। रंगभेदवादियों ने ‘स्वशासी होमलैण्डस’ में विभिन्न धार्मिक सांस्कृतिक समूहो की आत्मनिर्भरता एवं स्वायत्तता पर जोर दिया। विभिन्न वर्गों के लोगों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्रदान की गई जिसके कारण इन वर्गों के लिए शिक्षा प्राप्त करना सुलभ हो गया और इन वर्गों में शिक्षा का प्रसार एवं प्रचार हुआ। यह एक अत्यन्त दुर्लभ घटना थी क्योंकि उस समय आमतौर पर दक्षिण अफ्रीका में केवल फ्रैंच, अंग्रेजी आदि उपनिवेशी भाषाओं में ही शिक्षा देने का प्रचलन था। वास्तव में स्थानीय भाषाओं के द्वारा शिक्षा प्रदान किया जाना रंगभेदवादियों के अनुसार विभाजन को बढ़ावा देने के लिए किया गया था, लेकिन इसके कई सकारात्मक परिणाम भी सामने आये। 70 के दशक तक रंगभेद नीति अपने चरम पर पहुंच चुकी थी। यद्यपि इस नीति का विरोध दक्षिण अफ्रीका के अंदर और बाहर दोनो ओर से प्रारंभ में ही शुरू हो गया था किन्तु इसका सक्रिय विरोध 70 के दशक के आते-आते प्रारंभ हो गया।
मई 1961 में, जबकि दक्षिण अफ्रीका को गणराज्य घोषित किया जाना था, अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस ने विभिन्न वर्गों, समूहों एवं पार्टीयों को एकत्रित करके आम सहमति बनाने का प्रयास किया और सरकार को चेतावनी दी कि यदि उनकी अनदेखी की गई तो गणराज्य के शुभारंभ समारोह का विरोध किया जाएगा। लेकिन सरकार अपनी जिद पर अड़ी रही और उसने दक्षिण अफ्रीका को गणराज्य घोषित करने के अवसर पर विद्रोहियों की अनदेखी की। परिणामस्वरूप विद्राहियों ने (जिसमें 42 वार्षिक नेल्सन मंडेला भी शामिल थे) जगह-जगह आंदोलन और धरना प्रदर्शन आरंभ कर दिया। प्रत्युत्तर में सरकार ने आंदोलन को बलपूर्वक दबाने का प्रयास किया। सरकार की इस प्रतिक्रिया से अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस कुपित हो गई और उसने सशस्त्र संघर्ष की तैयारी के लिए अपने प्रयास प्रारंभ किये। इसके लिए उसने सैन्य-शाखा(Militry wing)’ की स्थापना कर ड़ाली।
छात्रों के अतिरिक्त रंगभेद के खिलाफ कामगारों और महिलाओं ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1973-74 में मजदूरों के द्वारा रंगभेद के खिलाफ पहली प्रतिक्रिया व्यक्त की गई। समय बीतने के साथ धीरे-धीरे मजदूरों का विरोध बढ़ता गया। 1976 तक कामगारों और मजदूरो को यह बात समझ में आ चुकी थी कि रंगभेद की नीति उनके हितों के लिए हानिकारक है। अब वे रंगभेद के खिलाफ एकजुट होकर इसके उन्मूलन में महत्वपूर्ण योगदान देना चाहते थे। इसके अलावा स्वयं श्वेतों में भी एक छोटा वर्ग था जो रंगभेद के खिलाफ था। इस वर्ग का नेतृत्व हैलेन सुजमेन, कोलिन एगलिन और हेरी श्वार्ज जैसे श्वेत नेताओं ने किया। मुख्य रूप से इनका योगदान अश्वेतों की समस्याओं को संसद में उठाने के लिए जाना जाता है। इस व्यापक विरोध के अलावा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी अनेक राष्ट्रों द्वारा दबाव बनाया गया। दक्षिण अफ्रीका पर आर्थिक, राजनैतिक प्रतिबंध लगाये गये। खेल एवं सांस्कृतिक गतिविधियों के बहिष्कार के कारण दक्षिण अफ्रीका लगभग एकाकी राष्ट्र बन गया।