अनुक्रम
फासी दल का गठन
युद्ध-काल में इटली की जनता रूस की बोल्शेविक क्रांति से प्रभावित हुई थी। इटली के कम्यूनिस्टों ने भी अपने देश में रूस जैसी क्रांति करने की योजना बनायी। मुसोलिनी साम्यवादियों तथा बोल्शेविकों से घृणा करता था। अत: उसने बोल्शेविकों के विरूद्ध संघर्ष करने तथा सामाजिक अधिकारों को पुन: स्थापित करने के लिए नवीन दल का गठन करने का निश्चय किया। इसी निश्चय के आधार पर मार्च 1919 ई. में फासिस्ट दल की स्थापना की गयी।
फासिस्ट दल का प्रथम अधिवेशन मिलान नामक नगर में आयोजित किया गया था। इस अधिवेशन में दल के कार्यक्रम की घोषणा के साथ-साथ एक मांग-पत्र भी तैयार किया गया। इसमें अग्रलिखित मांगों को प्रमुखता दी गयी थी :
- युद्ध-सामग्री को बनाने वाले कारखानों का राष्ट्रीयकरण किया जाय।
- युद्ध-काल में पूजीपतियों द्वारा कमाये गये धन के 85 प्रतिशत भाग को जब्त किया जाय।
- कुछ उद्योगों पर श्रमिकों का नियंत्रण स्थापित किया जाय।
- सार्वजनिक मताधिकार को लागू किया जाय।
- इटली को राष्ट्र-संघ की सदस्यता प्रदान की जाय।
- चर्च की सम्पत्ति को जब्त किया जाय।
- श्रमिकों को अधिकतम आठ घण्टे प्रतिदिन कार्य करने की सुविधान प्रदान की जाय।
- पूजींवादी भावना का विरोध किया जाय।
- देश के नवीन संविधान का निर्माण करने हेतु एक असेम्बली का गठन किया जाय।
मुसोलिनी की सफलता
फासिस्ट दल का कार्यक्रम और मांगपत्र इटली की जनता में शीघ्र ही लोकप्रिय हो गया और इस दल की सदस्य-संख्या तीव्र गति से बढ़ने लगी। सन् 1919 में फासिस्ट दल की सदस्य-संख्या सत्रह हजार थी, किन्तु यह संख्या सन् 1920 में बढ़कर तीस हजार तथा सन् 1922 में तीन लाख हो गयी। इस उल्लेखनीय लोकप्रियता को प्राप्त करने के बाद फासिस्टवादियों ने इटली में समाजवादियों एवं साम्यवादियों के कार्यालयों पर कब्जा करना प्रारंभ कर दिया। किन्तु तत्कालीन सरकार फासिस्टवादियों की आक्रामक व आतंकवादी नीति पर काबू पाने में सफल नहीं हो सकी। इसी मध्य अक्टूबर 1922 ई. में फासिस्ट दल का अधिवेशन नेपिल्स में आयोजित किया गया। इस अधिवेशन में लगभग पचास हजार कायर्क र्ताओं ने भाग लिया। उन्होनें सर्वसम्मति से एक मांगपत्र पारित किया जिसमें मागें थीं :
- फासी दल के कम से कम पांच सदस्यों को मंत्रिमंडल में स्थान दिया जाय।
- नवीन चुनावों की घोषणा की जाय।
- सरकार प्रभावी विदेश-नीति का पालन करे।
इस अधिवेशन में लिये गये निर्णय के अनुसार फासिस्ट दल ने सरकार को उपर्युक्त मांगें स्वीकार करने के लिए 27 अक्टूबर तक का समय दिया तथा यह चेतावनी दे दी कि उक्त तिथि तक मांगें स्वीकार न होने की स्थिति में फासिस्ट दल के स्वयंसवे क इटली की राजधानी रोम पर आक्रमण कर देगें । सरकार द्वारा उपर्युक्त मांगों को स्वीकार करने से इन्कार करने के फलस्वरूप फासिस्टवादियों ने मुसोलिनी के नेतृत्व में रामे की तरफ बढ़ना प्रारभ कर दिया। उन्होंने रेलवे स्टेशनो, डाकघरों व सरकारी कार्यालयों पर अधिकार कर लिया।
मुसोलिनी-इटली का तानाशाह
मुसोलिनी जनतंत्र और बहुमत के सिद्धांतों से घृणा करता था। राज्य की सर्वोच्चता में उसे अगाध विश्वास था। राज्य के सम्मुख उसने व्यक्तिगत अधिकारों को कभी स्वीकार नहीं किया। अपनी स्थिति को अधिक सुदृढ़ करने के लिए मुसोलिनी ने प्रशासनिक क्षेत्र में तीन अंगों का गठन किया- (1) मंत्रि-परिषद, (2) फासिस्ट दल की वृहद परिषद, (3) संसद।
मंत्रि-परिषद के सभी सदस्य मुसोलिनी के कट्टर समर्थक थे। वृहद् परिषद फासिस्ट दल की प्रबंध समिति थी जिसका नेता मुसोलिनी था। इसकी सदस्य संख्या 25 थी। संसद के दो सदस्य बनाये गये-सीनेट तथा चेम्बर ऑफ डेपुटीज। सीनेट के सदस्यों को स्वयं मुसोलिनी मनोनीत करता था, जबकि चेम्बर ऑफ डेपुटीज के सदस्यों को मंत्रि-परिषद एवं वृहद् परिषद द्वारा नियुक्त किया जाता था। इस प्रकार नवीन व्यवस्था के द्वारा मुसोलिनी ने शासन की सम्पूर्ण शक्ति पर पूरा अधिकार कर लिया। देश की जनता ने मुसोलिनी के इन कार्यों का भी भरपूर समर्थन किया क्योंकि मुसोलिनी ने गणतंत्रीय सरकार के अधूरे कार्यों को पूरा करने का आश्वासन जनता को दिया था। इस प्रकार मुसोलिनी अन्तत: इटली का वास्तविक स्वामी बन गया तथा उसने देश में अपनी तानाशाही को स्थापित करने में सफलता प्राप्त की।
मुसोलिनी की गृह नीति
1. सुदृढ़ केन्द्रीय सरकार की स्थापना – मुसोलिनी अत्यंत महत्वाकांक्षी व्यक्ति था। प्रधानमंत्री पद ग्रहण करने के पश्चात् उसने धीरे-धीरे अपनी शक्ति में वृद्धि करना प्रारंभ कर दिया था। इस संबंध में उसने दोहरी नीति को अपनाया। उसका विचार था कि केन्द्र में मजबूत सरकार के अभाव में देश उन्नति कर सकता। इस दृष्टि से मुसोलिनी ने निम्नलिखित कदम उठाये :
- प्रधानमंत्री बनने के पश्चात् उसने संसद-सदस्य को डरा-धमकाकर संसदीय अधिकारों को एक वर्ष के लिए अपने हाथों में ले लिया।
- सन् 1923 में एक कानून बनाकर यह व्यवस्था कर दी गयी कि चुनावों में स्पष्ट बहुमत अथवा सर्वाधिक स्थानों पर विजय प्राप्त करने वाले दल को संसद में दो- तिहाई बहुमत प्राप्त करने का अधिकार होगा। इस व्यवस्था के अनुसार सन् 1924 में फासिस्ट दल को संसद में दा-े तिहाई बहुमत प्राप्त करने में सफलता मिल गयी।
- सन् 1926 में सभी विरोधी दलों को अवैध घोषित कर दिया गया। प्रमुख विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार करके अनिश्चित काल के लिए जेल में बंद कर दिया गया।
- सरकार की आलोचना करना राजनीतिक अपराध घोषित कर दिया गया।
- प्रेस पर कठोर सरकारी नियंत्रण स्थापित किया गया। समाचार-पत्रों की संख्या कम कर दी गयी।
- जनता की स्वतंत्रता को समाप्त करने के लिए विभिन्न कदम उठाये गय।े राजनीतिक अपराधियों के मामलों को निपटाने के लिए विशेष अदालतों का गठन किया गया। स्थानीय निकायों को समाप्त कर दिया गया।
- सन् 1928 में चुनाव प्रणाली में पुन: परिवर्तन किया गया। मतदाता सूची को फासिस्ट दल द्वारा तैयार किया गया। जिसके फलस्वरूप संसद पर फासिस्ट दल का एकाधिकार स्थापित हो गया।
इस प्रकार मुसोलिनी ने सुदृढ़ केन्द्रीय सरकार की स्थापना की जिसमें कोई विपक्ष नहीं था, कोई प्रजातांत्रिक संस्था नहीं थी, कोई स्थानीय स्वशासी संस्था नहीं थी, कोई जनमत नहीं था तथा बहुमत का कोई प्रश्न ही नहीं था।
- जिस समय मुसोलिनी ने सत्ता संभाली, उस समय जनता की आर्थिक दशा शोचनीय थी। राष्ट्रीय बजट पिछले कई वर्षों से घाटे में चल रहा था। मुद्रा का मूल्य दिन-प्रतिदिन गिर रहा था। जबकि वस्तुओं की कीमतों में निरंतर वृद्धि हो रही थी। इस समस्या को हल करने के लिए मुसोलिनी ने राज्य के व्यय को कम किया तथा धनवानों पर अधिक कर लगाय।े इस व्यवस्था के फलस्वरूप सन् 1925 में मुसोलिनी ने देश के बजट को संतुलित कर दिया। बजट का घाटा पूरा हो गया तथा वस्तुओं की बढ़ती हुई कीमतों पर भी काबू पा लिया गया।
- प्रथम विश्वयुद्ध के बाद इटली में बेरोजगार व्यक्तियों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई थी। मुसोलिनी ने इस समस्या को अत्यंत गंभीर मानकर इसका समाधान करने के उद्देश्य से सार्वजनिक निर्माण कार्यों तथा स्कूल-कॉलेजों के भवनों के निर्माण को प्रोत्साहित किया। देश में विभिन्न सड़कों, पुलों व विश्रामघरों का निर्माण कराया गया। पुरानी इमारतों की मरम्मत करायी गयी। कुछ बंदरगाहों का भी निर्माण हुआ। इस निर्माण कार्य के फलस्वरूप हजारों बेरोजगारों को रोजगार प्राप्त हुआ।
- उस समय देश की रेल व्यवस्था भी निरंतर पतन की ओर अग्रसर हो रही थी। इसका बजट भी घाटे में चल रहा था। मुसोलिनी ने रेलवे की आर्थिक स्थिति को सुधारने की ओर अपना पूरा ध्यान लगा दिया। उसके प्रयत्नों से रेलवे बजट के घाटे को शीघ्र ही पूरा कर दिया गया।
- खजिन पदार्थ एवं कच्चे माल की दृष्टि से इटली एक गरीब देश था। इटली का लगभग दा-े तिहाई भाग पहाड़ियों से घिरा हुआ था। कोयला, लोहा तांबा, तेल आदि के अभाव के कारण देश के औद्योगिक विकास एवं आर्थिक उत्थान में बहुत बड़ी बाधा उत्पन्न हो गयी थी। किन्तु मुसोलिनी अपने देश को साधन-सम्पन्न एवं स्वावलम्बी बनाने के लिए कृत-संकल्प था। उसने देश में कच्चे माल एवं खनिज पदार्थों के संसाधनों का पता लगाने के लिए योग्य वैज्ञानिकों एवं इंजीनियरों से परामर्श किया तथा इस दिशा में उसे काफी सीमा तक सफलता भी प्राप्त हो गयी किन्तु कच्चे माल एवं खनिज पदार्थो के क्षेत्र में इटली को स्वावलम्बी बनाने का मुसोलिनी का स्वप्न पूरा नहीं हो सका।
- मुसोलिनी की गृह-नीति का मुख्य उद्देश्य उत्पादन में वृद्धि करना था। उस समय कृषि की दशा चिन्ताजनक थी। अत: मुसोलिनी ने कृषि की स्थिति को सुधारने की ओर पूरा ध्यान लगाया। बंजर भूमि को कृषि-योग्य बनाया गया। कृषकों को सरकार की ओर से पुरस्कार देने की व्यवस्था की गयी ताकि उनमें अधिकतम उत्पादन करने की प्रतियोगी भावना उत्पन्न हो सके। किसानों को कृषि करने के नवीन और वैज्ञानिक तरीकों की शिक्षा दी गयी। मुसोलिनी के इन कार्यों के फलस्वरूप कृषि-क्षेत्र में उत्पादन पहले की अपेक्षा बहुत अधिक बढ़ गया।
मुसोलिनी की शिक्षा संबंधी नीति
अपने दल को सुदृढ़ बनाने के उद्देश्य से मुसोलिनी ने इटली की शिक्षा-प्रणाली में कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन किये। देश के युवा वगर् को फासिस्ट दल के सिद्धांतों से होने वाले लाभों की शिक्षा देने के लिए एक ‘फासिस्ट युवा फेडरेशन’ का गठन किया गया। प्राइमरी तथा माध्यमिक स्तर तक फासिज्म के सिद्धांतों की शिक्षा को अनिवार्य कर दिया गया। नवीन शिक्षा-नीति के अंतर्गत शिक्षण-संस्थाओं को विद्यार्थियों की आयु के आधार पर पांच विभिन्न वर्गों में विभाजित किया गया। सभी शिक्षण-संस्थाओं को फासिज्म के सिद्धांतों के साथ सम्बद्ध कर दिया गया। इसके अतिरिक्त लड़कियों को फासिज्म की शिक्षा देने की भी पृथक व्यवस्था की गयी।
1. पोप के साथ समझौता- मुसोलिनी के प्रयासों से 11 फरवरी, 1929 को एक समझौता सम्पन्न हुआ। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित निर्णय लिये गये :
- पोप ने रोम से अपना अधिकार त्याग दिया और रोम को इटली की राजनीतिक के रूप में स्वीकार कर लिया।
- मुसोलिनी ने पोप को कैथोलिक जगत का सार्वभौमिक स्वामी स्वीकार किया।
- पापे को विदेशों के साथ संबंध स्थापित करने, विदेशों में अपने राजदतू नियुक्त करने तथा विदेशी राजदूतों का स्वागत करने का अधिकार दे दिया गया। वह अपनी निजी डाक टिकट एवं मुद्रा जारी कर सकता था।
- सरकार ने पोप को प्रति वर्ष दस करोड़ डालर की धनराशि देने का वचन दिया।
- रोमन कैथोलिक धर्म को इटली का राजधर्म घोषित किया गया।
- रोमन कैथोलिकों द्वारा संचालित शिक्षण-संस्थाओं को मुसोलिनी ने फासिस्ट दल के विद्यालयों में विलीन कर दिया। चौदह वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक रोमन कैथोलिक को फासिस्ट दल के नेता के प्रति स्वामिभक्त रहने की घोषणा करना अनिवार्य कर दिया गया। मुसोलिनी ने धीरे-धीरे शिक्षा के क्षेत्र में चर्च के प्रभाव को बिल्कुल समाप्त कर दिया।
मुसोलिनी की विदेश नीति
इटली यद्यपि विश्वयुद्ध में विजयी हुआ था किंतु मित्रराष्ट्रों ने उससे जो भी वायदे किये थे, पूरने नहीं किये थे। मुसोलिनी का विचार था कि यह इटली का अपमान है। वह चाहता था कि इस अपमान का बदला मित्र राष्ट्रों पर भरोसे की नीति छोड़ कर साम्राज्यवादिता की नीति अपनाकर लिया जा सकता है। उसका मानना था कि मित्र राष्ट्रों द्वारा बनाई गई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ किसी देश के निवासियों की भावुकता एवं सिद्धांतों से धराशायी हो जाती है। इनका अस्तित्व देशवासियों की भावनाओं तक ही सीमित है।
- फ्रांस के 44500 वर्ग मील अफ्रीकी क्षेत्र इटली को प्राप्त हो गये।
- दोनों देशों में प्रतिद्विन्द्वता समाप्त हो गई।
- आस्ट्रिया पर संकट आने पर दोनों देश परस्पर विचार-विमर्श करेगेंं
- यूरोप की स्थिति यथावत् रहेगी।
7. स्ट्रेसा की संधि – यह संधि भी हिटलर के भय से 1935 ई. में स्ट्रेसा नामक स्थान पर इंग्लैण्ड से की गई। इसका महत्व इस बात से है कि इंग्लैण्ड इटली और फ्रांस के गठबंधन ने हिटलर के विरोध में एक मोर्चे का कार्य किया।
- दोनों देश समाजवादी व्यवस्था का विरोध करेगेंं
- स्पने की रक्षा की जायगे ी।
- दोनों देश समय-समय पर वार्ता करेगें।
- जर्मनी का आस्ट्रिया तथा चेकस्लोवाकिया पर मौन अधिकार स्वीकार कर लिया गया। शीघ्र ही इस संधि में जापान को शामिल कर लिया गया और रोम-बर्लिन टोक्यो धुरी का निर्माण हो गया।
11. अल्बानिया पर अधिकार – इटली का अल्बानिया के लिए विशेष महत्व था। अल्बानिया आर्थिक दृष्टि से अत्यंत पिछड़ा था। अत: 27 नवम्बर, 1926 ई. को अल्बानिया ने इटली की संधि की। इस संधि की धाराएँ निम्नवत थीं –
- अल्बानिया के सैनिकों को इटलीके सैनिक पदाधिकारी प्रशिक्षित करेगेंं
- अल्बानिया इटली के अहित में किसी अन्य देश से संधि नहीं करेगा।
- दोनों देश बाह्य आक्रमणकारी का सामना मिलकर करेगेंं यह शर्त 20 वर्ष तक रहगे ी। तत्पश्चात मुसोलिनी ने अल्बानिया में उसकी सहायता के बहाने अपनी सेनाएँ भेज दीं और 1936 ई. में आक्रमण कर इटली में मिला लिया।
12. इटली व जर्मनी का समझौता 22 मई, 1939 ई. – 22 मई, 1939 ई. को इटली ने जर्मनी के साथ राजनैतिक समझौता किया। इस समझौते को फौलादी समझौते भी कहा जाता है। इसके अनुसार दोनों एक-दूसरे की सैन्य सहायता करेगेंं
इस प्रकार अंतत: कहा जा सकता है मुसोलिनी ने इटली को चरम उत्कर्ष तक तो उठाया किंतु उसके फासीवाद की संवर्धन की महत्वकांक्षा उसके वध का कारण बनी।
