अनुक्रम
मानवीय संसाधन नियोजन के अन्तर्गत कर्मचारियों का प्रभावपूर्ण उपयोग, भविष्य के लिए पूर्वानुमान लगाने की आवश्यकता और इन्हे पूरा करने के लिए उचित नीतियों एवं कार्यक्रमों का विकास तथा समस्त क्रिया की समीक्षा एवं नियन्त्राण करना अवश्य सम्मिलित होना चाहिए।
मानव संसाधन नियोजन की परिभाषा
गोरडन मेकवेथ के शब्दों में ‘‘जनशक्ति नियोजन के दो चरण है (क) जनशक्ति सम्बन्धी आवश्यकताओं का अनुमान लगाना और (ख) जनशक्ति की पूर्ति हेतु आयोजन करना।’’
मानव संसाधन नियोजन की आवश्यकता
मानवीय संसाधनों का सदुपयोग ही प्रबन्ध की कुशलता का मापदण्ड होता है। अत: एक श्रेष्ठ व अच्छा प्रबन्धक कार्य करने की दशाओं व वातावरण की मधुर व आकर्षक बनाकर अधिक उत्पादन प्राप्त करने में सदा सफल होता है। यह आवश्यक नहीं है कि संगठन में अधिक कर्मचारी अधिक उत्पादन कर ही लें। कर्मचारियों की संख्या भले ही कम हो किन्तु यदि वे प्रशिक्षित, योग्य व कुशल हैं तो निश्चय ही उत्पादन अधिक होगा।
मानव संसाधन नियोजन के उद्देश्य
- कर्मचारियों का अधिकतम उपयोग करना ताकि प्रति इकाई श्रम-लागत में कमी हो सके।
- परिवर्तनशील अर्थव्यवस्था के आवश्यकताओं के अनुरूप HRP में आवश्यक संशोधन करना।
- मानव संसाधन विषयक आवश्यकताओं का पूर्वानुमान लगाना।
- HRP से श्रमिकों की अनुपस्थिति दर, श्रम आवर्तन दर एवं अन्य करणों से ली जाने वाली अवकाश की दरें कम हो जाती हैं जिससे HRP के द्वारा उत्पादन स्तर को बनाये रखने में मदद मिलती है।
- HRP के द्वारा कर्मचारी कल्याण कार्यक्रमों को और अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता है।
- औद्योगिक सम्बन्धों को सुदृढ़ बनाना इत्यादि।
- अधिशासी विकास कार्यक्रम आयोजित करना। इस सम्बन्ध में विचार करते हुये फिलिप्पो के अनुसार, ‘‘मानव शक्ति नियोजन का उद्देश्य योग्य व्यक्तियों की निरन्तर पूर्ति द्वारा किसी संगठन के स्थायित्व एवं प्रगति में योगदान करना है।’’ इस उद्देश्य की पूर्ति तभी की जा सकती है जब वर्तमान एवं भावी मानव शक्ति परिस्थितियों का सावधानी पूर्वक विश्लेषण किया जाय।
- स्ट्रास एवं साईल्स (Strauss and Sayles) के अनुसार सावधानी पूर्वक किये गये HRP के उद्देश्य निम्न हैं –
- रिक्त स्थानों की पूर्ति के लिए कर्मचारियों की निरन्तर एवं व्यवस्थित पूर्ति का आश्वासन।
- वाह्य श्रोतों से अथवा वर्तमान कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान कर जिन स्थानों की पूर्ति की जानी है। उनका अनुमान।
- पदोन्नति के लिए प्रत्येक कर्मचारी पर विचार किये जाने का आश्वासन।
- आन्तरिक श्रोतों के अधिकतम उपयोग की सम्भावना ।
मानव संसाधन नियोजन के प्रारूप
मानव संसाधन नियोजन के तीन प्रारूप हैं –
1. अल्प कालीन मानव शक्ति आयोजन
इससे तात्पर्य उस आयोजन से है जो थोड़े समय (दो वर्ष से कम) के लिए किया जाता है। यह आयोजन उन दशाओं में किया जाता है जब संस्था में किसी नई विधि पर प्रयोग किया जा रहा हो या नई तकनीक के अनुसार प्रशिक्षित कर्मचारी उपलब्ध होने की अवधि तक की व्यवस्था करनी हो। यह आयोजन कर्मचारियों के पदस्थापन के लिए अथवा नव सृजित पदों को भरने के लिए किया जाता है ।
2. मध्यकालीन मानव शक्ति आयोजन
इसका आशय उस मानव शक्ति नियोजन से हैं जो मध्यकालीन अवधि के लिए किया जाता है अर्थात यह अवधि 2 से 5 वर्ष तक की होती है। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य मध्यकालीन अवधि के लिए जनशक्ति की व्यवस्था करना है। यह नियोजन पर्यवेक्षकीय स्तर के पदों के लिए किया जाता है क्योंकि निम्नतम वर्ग के श्रमिकों को अधिक प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है। पर्यवेक्षकीय तथा प्रबन्धक स्तर के पदों पर कार्य करने वाले कर्मचारी या तो सीधी भर्ती द्वारा लिये जा सकते हैं या पदोन्नति द्वारा।
3. दीर्घकालीन मानव शक्ति आयोजन
ऐसे आयोजन का आशय ऐसे आयोजन से है जो सामान्यत: पॉंच वर्ष की अधिक की अवधि के लिए किया जाये। इसका उद्देश्य है –
- भविष्य में संस्था के अन्दर ऐसी स्थिति पैदा करने का प्रयास करना जिसमें कि समस्त पदों और सभी पदाधिकारियों में पूर्ण एकरूपता स्थापित हो सके।
- भविष्य के पद रिक्तियों के लिए पहले से ही उपयुक्त कर्मचारियों की व्यवस्था करना।
दीर्घकालीन मानव शक्ति नियोजन हेतु निम्न चरण उठाना आवश्यक होता है-
- भावी आवश्यकताओं के संदर्भ में वर्तमान कर्मचारियों की उपयुक्तता का पता लगाना।
- भावी मानव शक्ति का अनुमान लगाना,
- कर्मचारियों के व्यक्तिगत विकास हेतु योजना बनाना।
- निश्चित समयावधि के बाद HRP की पुनरावलोकन करना।
मानव संसाधन नियोजन प्रक्रिया
आर्थिक दृष्टि से मानव शक्ति का आशय प्रबन्धकीय वैज्ञानिकी, इन्जीनियरिंग, तकनीकी, कुशल व योग्य और अन्य कर्मचारियों से हैं जो उत्पादकीय, आर्थिक और सेवा संगठनों के निर्माण, विकास तथा प्रबन्धकीय कार्यों में लगे हुये हैं। एक निरन्तर परिवर्तनशील व गतिशील अर्थव्यवस्था में व्यवसाय में निरन्तर परिवर्तन होते रहते हैं। अत: भावी मानव शक्ति सम्बन्धी आवश्यकताओं का सही अनुमान लगाना आवश्यक है।
1. मानव शक्ति आवश्यकताओं का निर्धारण
- विक्रय का पूर्वानुुमान लगाना (To Make Sale Forecasting) – प्रत्येक संगठन द्वारा जो विक्रय पूर्वानुमान लगाया जाता है उस पर संगठन का सम्पूर्ण क्रियाकलाप निर्भर करते हैं। यह दीर्घकालीन या अल्पकालीन पूर्वानुमान हो सकते हैं। संगठन के उत्पादन, वित्त कर्मचारी आदि नीतियों के निर्धारण व परिवर्तन को ये पूर्वानुमान विशेष रूप से प्रभावित करते हैं।
- उत्पादन कार्यक्रम का निर्धारण (Determination of Production Programme) :- विक्रय पूर्वानुमान पर उत्पादन का कार्यक्रम निर्भर है। उत्पादन में वृद्धि हेतु मानव संसाधन के अधिकतम उपयोग की व्यवस्था की जाती है और पूर्वानुमान के आधार पर नये भर्ती व चयन प्रक्रिया के कार्यक्रम तैयार किये जाते हैं।
- पदों की आवश्यकता का निर्धारण (Determination of Position Needed) :- उत्पादन कार्यक्रमों के अनुसार मानव शक्ति की आवश्यकता (निश्चित कृत्यों व पर्दो) में परिवर्तन करना आवश्यक है। उत्पादन कार्यक्रम से मानव शक्ति में स्थायी परिवर्तन का आयोजन करने में सहायता प्राप्त होती है।
- पदो की स्वीकृति लेना :- कृत्यों एवं पदों के निर्धारण से विभिन्न विभागों में मानव शक्ति आवश्यकता का सही अनुमान लग जाता है। इसी के आधार पर पदों की स्वकृति उच्च अधिकारियों द्वारा प्रदान की जा सकती है। इस हेतु पे-रोल बजट और मैनिंग तालिकाओं का उपयोग किया जा सकता है। पे-रोल-बजट प्रत्येक विभाग के लिए निर्धारित वेतन की अधिकतम राशि होती है। जिसके अन्तर्गत कर्मचारियों की व्यवस्था की जा सकती है। इसी प्रकार मैनिंग तालिका कर्मचारियों की संख्या एवं पदों का निर्धारण करते समय कर्मचारियों की विभिन्न कारणों से अस्थायी अनुपस्थिति का भी ध्यान रखना चाहिए। साथ ही दो प्रकार के विश्लेषण भी किये जाते हैं।
- कार्यभार विश्लेषण
- कार्यशक्ति विश्लेषण
2. मानव शक्ति आवश्यकताओंं को प्रभावित करने वाले तत्व
- वर्तमान मानव शक्ति की प्रकृृति (Nature of Present work Force) :- किसी भी संगठन की बदलती हुई आवश्यकताओं के संदर्भ में मानव शक्ति की वर्तमान स्थिति का मूल्यांकन करना आवश्यक है ताकि भावी मानव शक्ति की आवश्यकता का मूल्यांकन करना आवश्यक है। ताकि सही अनुमान लगाया जा सके। स्ट्रास एवं साइलस के शब्दों में ‘‘भर्ती सम्बन्धी प्रबन्धकीय दृष्टिकोण में ऐतिहासिक तत्वों का भी योगदान होता है।’’
- कर्मचारी आवर्तन (Employee Turnover) :- कर्मचारी आवर्तन का आशय संस्था में कार्य कर रहे कर्मचारियों के कार्य छोड़कर चले जाने की प्रवृत्ति से है। यह प्रवृत्ति स्थायी रूप से कर्मचारियों की संख्या पर प्रभाव डालती है।
- उपक्रम के विकास की दर (Rate of Growth of The Organisation) :- विकास स्वयं प्रबन्धकीय नीतियों, प्रतिस्पर्धा, देश की अर्थव्यवस्था आदि अनेक कारणों से प्रभावित होता है। अत: संगठन के विकास के संदर्भ में मानव शक्ति की आवश्यकता का अनुमान लगाते समय तकनीकी विकास की गति का ध्यान रखना भी आवश्यक है।
- श्रम बाजार की प्रकृति (Nature of Labour Market) :- श्रम बाजार एक ऐसा भौगोलिक क्षेत्र है जिसमें से नियोक्ता कर्मचारियों की भर्ती करने तथा इच्छुक व्यक्ति रोजगार की खोज करके उसे प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। यह संगठन के लिए यहीं से श्रम की मॉंग एवं उसकी पूर्ति होती है।