हम इसे विशिष्ट भाषागत प्रकृति कह सकते हैं। यहाँ मुख्यत: ऐसी प्रकृति के विषय में विचार किया जा रहा है, जो विश्व की समस्त भाषाओं में पाई जाती है-
- भाषा सामाजिक संपत्ति है।
- भाषा पैतृक संपत्ति नहीं है।
- भाषा व्यक्तिगत संपत्ति नहीं है।
- भाषा अर्जित संपत्ति है।
- भाषा व्यवहार-भाषा सामाजिक स्तर पर आधारित होती है।
- भाषा सर्वव्यापक है।
- भाषा सतत प्रवाहमयी है।
- भाषा संप्रेषण मूलत: वाचिक है।
- भाषा चिरपरिवर्तनशील है।
- भाषा का प्रारंभिक रूप उच्चरित होता है।
- भाषा का आरंभ वाक्य से हुआ है।
- भाषा मानकीकरण पर आधरित होती है।
- भाषा संयोगावस्था से वियोगावस्था की ओर बढ़ती है।
- भाषा का अंतिम रूप नहीं है।
- भाषा का प्रवाह कठिन से सरलता की ओर होता है।
- भाषा नैसर्गिक क्रिया है।
- भाषा की निश्चित सीमाएँ होती हैं।
भाषा की उत्पत्ति के सिद्धांत
भाषा वैज्ञानिकों ने भाषा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विभिन्न मतों का उल्लेख किया है। जिनमें प्रमुख इस प्रकार हैं –
- दिव्य उत्पत्ति का सिद्धांत
- धातु सिद्धांत
- संकेत सिद्धांत
- अनुकरण सिद्धांत
- अनुसरण सिद्धांत
- श्रम परिहरण सिद्धांत
- मनोभावसूचक सिद्धांत
1. दिव्य उत्पत्ति का सिद्धांत – भाषा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में यह सबसे प्राचीन सिद्धांत है। इस सिद्धांत को मानने वाले भाषा को ईश्वर की देन मानते है। इस प्रकार न तो वे भाषा को परम्परागत मानते है और न मनुष्यों द्वारा अर्जित। इन विद्वानों के अनुसार भाषा की शक्ति मनुष्य अपने जन्म के साथ लाया है और इसे सीखने का उसे प्रयत्न करना नहीं पड़ा है। इस सिद्धांत को मानने वाले विभिन्न धर्म ग्रन्थों का उदाहरण अपने सिद्धांत के समर्थन में देते है।
हिन्दू धर्म मानने वाले वेदों को, इस्लाम धर्मावलम्बी कुरान शरीफ को, ईसाई बाइबिल को। वे भाषा को मनुष्यों की गति न मानकर ईश्वर निर्मित मानते है और इन ग्रन्थों में प्रयुक्त भाषाओं को संसार की विभिन्न भाषाओं की आदि भाषायें मानते है।
इसी प्रकार बौद्ध अपने धर्मग्रन्थों की भाषा पाली को मूल भाषा मानते है।
2. धातु सिद्धांत – भाषा की उत्पत्ति सम्बन्धी दूसरा प्रमुख सिद्धांत धातु सिद्धांत है। सर्वप्रथम प्लेटो ने इस ओर संकेत किया था। परन्तु इसकी स्पष्ट विवेचना करने का श्रेय जर्मन विद्वान प्रो0 हेस को है। इस सिद्धांत के अनुसार विभिन्न वस्तुओं की ध्वन्यात्मक अभिव्यक्ति प्रारम्भ में धातुओं से होती थी। इनकी संख्या आरम्भ में बहुत बडी थी परन्तु धीरे धीरे लुप्त होकर कुछ सौ ही धातुऐं रही। प्रो. हेस का कथन है कि इन्ही से भाषा की उत्पत्ति हुई है।
3. संकेत सिद्धांत – यह सिद्धांत अधिक लोकप्रिय नही हुआ क्योकि इसका आधार काल्पनिक है और यह कल्पना भी आधार रहित है। इस सिद्धांत के अनुसार सर्वप्रथम मनुष्य बन्दर आदि जानवरों की भॉति अपनी इच्छाओं की अभिव्यक्ति भावबोधक ध्वनियों के अनुकरण पर शब्द बनायें होगें। तत्पष्चात उसने अपने संकेतों के अंगो के द्वारा उन ध्वनियों का अनुकरण किया होगा। इस स्थिति में स्थूल पदार्थो की अभिव्यक्ति के लिए शब्द बने होगे।
संकेत सिद्धांत भाषा के विकास के लिए इस स्थिति को महत्वपूर्ण मानता है। उदाहरण के लिए पत्ते के गिरने से जो ध्वनि होती है। उसी आधार पर “पत्ता” शब्द बन गया।
4. अनुकरण सिद्धांत – भाषा उत्पत्ति के इस सिद्धांत के अनुसार भाषा की उत्पत्ति अनुकरण के आधार पर हुई है। इस सिद्धांत के मानने वाले विद्वानों का तर्क है कि मनुष्य ने पहले अपने आसपास के जीवों और पदार्थो की ध्वनियों का अनुकरण किया होगा। और फिर उसी आधार पर शब्दों का निर्माण किया होगा।
उदाहरण के लिए काऊॅं-काऊॅं ध्वनि निकालने वाले पक्षी का नाम इसी ध्वनि के आधार पर संस्कृत में काक, हिन्दी में कौआ तथा अंगेजी में crow पडा। इसी प्रकार बिल्ली की “म्याऊॅ” ध्वनि के आधार पर चीनी भाषा में बिल्ली को “मियाऊ” कहा जाने लगा।
इस प्रकार यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया है कि भाषा की उत्पत्ति अनुकरण सिद्वान्त पर हुई है।
5. अनुसरण सिद्धांत – यह सिद्धांत भी अनुकरण सिद्धांत से मिलता है। इस सिद्धांत के मानने वालों का भी यही तर्क है कि मनुष्यों ने अपने आस-पास की वस्तुओं की ध्वनियों के आधार पर शब्दों का निर्माण किया है। इन दोनों सिद्धान्तों में अन्तर इतना है कि जहॉ अनुकरण सिद्धांत में चेतन जीवों की अनुकरण की बात थी, वहीं इस सिद्धांत में निर्जीव वस्तुओं के अनुकरण की बात है। उदाहरण के लिए नदी की कल-कल ध्वनि के आधार पर उसका नाम कल्लोलिनी पड गया। इस प्रकार हवा से हिलते दरवाजे की ध्वनि के आधार पर लड़खड़ाना,बड़बड़ाना जैसे शब्द बने।
अंगे्रजी के Murmur, Thunder जैसे शब्द भी इसी अनुसरण सिद्धांत के आधार पर बनें।
6. श्रम परिहरण सिद्धांत – मनुष्य सामाजिक प्राणी है और परिश्रम करना उसकी स्वाभाविक विषेषता है। श्रम करते समय जब थकने लगता है तब उस थकान को दूर करने के लिए कुछ ध्वनियों का उच्चारण करता है। न्वायर (Noire) नामक विद्वान ने इन्ही ध्वनियों को भाषा उत्पत्ति का आधार मान लिया है। उसके अनुसार कार्य करते समय जब मनुष्य थकता है तब उसकी सांसे तेज हो जाती है। सॉसों की इस तीव्र गति के आने जाने के परिणामस्वरूप मनुष्य के वाग्यंत्र की स्वर -तन्त्रियॉ कम्पित होने लगती है और अनेक अनुकूल ध्वनियां निकलने लगती है फलस्वरूप मनुष्य के श्रम से उत्पन्न थकान बहुत कुछ दूर हो जाती है। इसी प्रकार ठेला खींचने वाले मजदूर हइया ध्वनि का उच्चारण करते है। इस सिद्धांत के मानने वाले इन्ही ध्वनियों के आधार पर भाषा की उत्पत्ति मानते है।
7. मनोभावसूचक सिद्धांत – भाषा उत्पत्ति का यह सिद्धांत मनुष्य की विभिन्न भावनाओं की सूचक ध्वनियों पर आधारित है। प्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक मैक्समूलर ने इसे पूह-पूह सिद्धांत कहा है। इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य विचारशील होने के साथ साथ भावनाप्रधान प्राणी भी है। उसके मन में दुःख, हर्ष, आश्चर्य आदि अनेक भाव उठते है। वह भावों को विभिन्न ध्वनियों के उच्चारण के द्वारा प्रकट करता है जैसे प्रसन्न होने पर अहा । दुखी: होने पर आह । आश्चर्य में पडने पर अरे । जैसी ध्वनियों का उच्चारण करता है ।, इन्ही ध्वनियों के आधार पर यह सिद्धांत भाषा की उत्पत्ति मानता है।