भारतीय निर्वाचन प्रणाली के दोष \\ भारतीय निर्वाचन प्रणाली के गुण

भारतीय निर्वाचन प्रणाली के गुण
निर्वाचन प्रक्रिया से तात्पर्य संविधान में वर्णित अवधि के पश्चात पदों एवं संस्थाओं के लिए होने वाले निर्वाचनों की प्रारंभ से अंत तक की प्रक्रिया से है। निर्वाचन प्रक्रिया की प्रकृति भारतीय संविधान के इस उपबंध द्वारा निर्धारित हुई है कि लोकसभा और प्रत्येक राज्य की विधानसभा के लिए निर्वाचन 1951, राज्य पुनर्गठन अधिनियम सन 1956 और निर्वाचन आयोजन नियम सन 1960-61 के द्वारा भी निवार्चन प्रक्रिया की प्रकृति को निर्धारित किया गया है।

भारतीय निर्वाचन प्रणाली के गुण 

    1. वयस्क मताधिकार- भारत में प्रत्येक 18 वर्ष में नागरिक को जो भारत का नागरिक हो, पागल दिवालिया या अपराधी न हो उसे वयस्क मताधिकारी राज्य की ओर से बिना किसी भेदभाव के दिया गया है जिससे कि यह शासन व्यवस्था के संचालन में सक्रिय भाग लेकर लोकतंत्र प्रणाली को साकार करें।

    2. संयुक्त निर्वाचन पद्धति के आधार पर निर्वाचन किए जाते है समाज के पिछडे वर्गो अनुसूचित जातियों व जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था तो है और उन क्षेत्रों में उन्हीं जाति या वर्गो के प्रत्याशी ही चुनाव लड सकतें है। किंतु मतदान में उसी क्षेत्र के रहने वाले सभी मतदाता भले ही वह किसी भी जाति वर्ग या धर्म के मतदाता ही भाग लेते है। इस प्रकार संपूर्ण जनता का प्रतिनिधित्व वे प्रत्याशी करते है।

    3. गुप्त मतदान प्रणाली – चुनाव में मतदान गुप्त रीति से होता है तथा मतदाता बिना किसी दबाव के मत दे सकता है।

    4. एक सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र- भारत में निर्वाचन के लिए एक सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्रों की व्यवस्था है। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाला प्रतिनिधि निर्वाचित घोषित किया जाता है। जो उस क्षेत्र की जनता का प्रतिनिधित्व करता है।

    5. स्थानों का आरक्षण- भारत में समाज के पिछडे वर्गों को सुविधा देने के लिए संसद विधानसभाओं नगरपालिकाओं और पंचायतों में स्थान उनके लिए आरक्षित रखे जाते है।

    6. निर्वाचन की प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष प्रणाली – भारत में निर्वाचन की प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनो प्रणालियों को अपनाया गया है। लोकसभा, राज्यों व संघ क्षेत्रों की विधानसभाओं के चुनाव प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली तथा राज्यसभा व राज्यों की विधान परिषदों, राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के चुनाव अप्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली द्वारा होते है।

    7. राजनीतिक दलो का संबद्धता- चुनाव में राजनीतिक दलो का संबद्ध होना निर्वाचन प्रणाली की विशेषता है। सभी स्तरों के चुनाव दलो के आधार पर निश्चित चुनाव चिन्ह को लेकर लडे जाते है। लेकिन जो प्रत्याशी निर्धारित योग्यता रखता है तथा किसी दल का प्रत्याशी नहीं होता फिर भी वह स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड सकता है।

    8. स्वतंत्र चुनाव की व्यवस्था- चुनाव निष्पक्ष हो सके इसके लिए चुनाव संचालन के लिए एक स्वतंत्र चुनाव आयोग की व्यवस्था की ग है।

    9. चुनाव याचिकाओं की व्यवस्था- चुनाव की अनियमितताओं तथा विवादों के समाधान के लिए मतदाता या प्रत्याशी उच्चन्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है। यदि चुनाव अनियमितता या भ्रष्ट तरीकों से जीता गया हो तो उसे निरस्त किया जा सकता है तथा भविष्य में चुनाव लडने के अयोग्य घोषित किया जा सकता है। 
    इसके अतिरिक्त ऐच्छिक मतदान, चुनाव प्रचार की स्वतंत्रता, जनसंख्या के आधार पर चुनाव क्षेत्र आदि भी भारतीय निर्वाचन प्रकिया की मुख्य विशेषताएँ या गुण है।

    भारतीय निर्वाचन प्रणाली के दोष

    1. निवार्चन प्रणाली बहुत खर्चीली है। अत: योग्य व अनुभवी प्रत्याशी धन की कमी के कारण चुनाव लडने में असमर्थ होते है। 
    2. भारत में प्रतिनिधित्व दोषपूर्ण है। सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाला प्रत्याशी विजयी घोषित किया जाता है भले ही उसे 25 या 30 प्रतिशत मत मिले हो। 
    3. अधिकांश मतदाता मताधिकार के प्रयोग में उदासीन रहते है। मतदाताओं के उदासीनता के कारण अयोग्य प्रत्याशी चुने जाते है सच्चा प्रतिनिधित्व नही होता। 
    4. निर्दलीय प्रत्याशी किसी के प्रति उत्तरदायी नही होते। पद की लालसा में वे दल बदल कर सत्तारूढ़ दल पैसा भ्रष्टाचार को बढावा देते है। 
    5. राजनीतिक दल आचार संहिता का उल्लंघन एक दूसरे पर लांछन चरित्र हनन, झूठी अफवाहों का सहारा लेकर गंदी राजनीति करते है। 
    6. जातीय व सांप्रदायिक भावना का दुष्प्रभाव : भारत की निर्वाचन प्रक्रिया पर पडता है। लागे राजनीतिक दलो अथवा प्रतिनिधियों की अच्छा-बुरा को ध्यान में रखकर मतदान नहीं करते। वरन वे जातिवाद व सांप्रदायिक भेदभाव के आधार पर मतदान करते है। 
    7. चुनाव याचिकाओं का निर्णय अत्यधिक विलंब से होता है। अत: वे को अर्थ नहीं रखती। 
    8. चुनाव जीतने के लिए लोग विचारों के प्रचार का नहीं वरन आतंक का सहारा लेते है। अनेक वार उम्मीदवार व उनके समर्थकों को मार डाला जाता है। चुनाव आचार संहिता के विपरीत उम्मीदवार एक दूसरे पर दोषारेापण करने से भी नहीं चूकते । 

    इसके अतिरिक्त शासकीय साधनों का दुरुपयोग, बोगस मतदान, मतदान केंद्रों पर कब्जा आदि भारत में निवार्चन प्रणाली के दोष है।

    भारतीय निर्वाचन प्रणाली के विभिन्न सोपान 

    1. मतदाता सूचियों की तैयारी, मुद्रण और प्रकाशन- निर्वाचन प्रक्रिया प्रारंभ होने से पूर्व मतदाता सूचियों में संशोधन किया जाता है। उन मतदाताओं, जिनकी मृत्यु हो चुकी है उनके नाम मतदाता सूचियों से काट दिए जाते है अज्ञैर मतदाता बनने की योग्यताएं रखने वाले नये मतदाताओं के नाम सूचियों में अंकित कर दिए जाते है। इस प्रकार मतदाता सूचियों का नवीनीकरण किया जाता है।

    2. चुनाव की घोषणा-चुनाव का प्रारंभ चुनाव की अधिसूचना से होता है। लोकसभा व राज्यसभा के लिए राष्ट्रपति, विधानसभाओं के लिए राज्यपाल, केन्द्र शासित प्रदेशों में उप राज्यपाल मतदाताओं को चुनाव के बारे में सूचना देते है। इस अधिसूचना का प्रकाशन चुनाव आयोग से विचार विमर्श करने के बाद सरकारी गजट में होता है।
    3. नामांकन पत्र-आम चुनाव की अधिसूचना प्रकाशित होने के पश्चात चुनाव आयोग द्वारा नामांकित पत्र भरे जाने की अंतिम तिथि नामाकंन पत्रों की जांच की तिथि व नाम वापस लिए जाने की तिथि की घोषणा की जाती है। चुनाव प्रत्येक चुनाव के लिए नामांकन की एक अंतिम तिथि निश्चित करता है। नामांकन पत्रो की जांच की जाती है। इस समय अधिकारी गण इस बात की जांच करते है कि नामांकन पत्रो में सभी जानकारी या सूचनाएं ठीक है या नहीं। यदि नामांकन पत्र की किसी प्रविष्टि में शंका हो या को उम्मीदवार उस स्थान के लिए योग्य न हो तो चुनाव अधिकारी नामांकन पत्र को अस्वीकार कर सकती है। जांच पूरी होने के 2-3 दिन पश्चात नामांकन वापस करने की अंतिम तिथि होती है। कोई भी उम्मीदवार यदि चुनाव न लडने का निर्णय करे वह अपना नामांकन वापस ले सकता है।
    4. चुनाव चिन्ह-प्रत्येक राजनीतिक दल का एक विशिष्ट और सरलता से पहचानने योग्य चुनाव चिन्ह होता है। यह चिन्ह ऐसा होता है जिसको मतदाता आसानी से पहचान कर अपनी पसंद के उम्मीदवार के पक्ष में मतदान कर सके। मतपत्र पर उम्मीदवारो के नामो के आगे उनका चुनाव चिन्ह छपा रहता है। इससे निरक्षर मतदाता भी आसानी से अपनी पसंद के उम्मीदवार का चयन कर सकता है। निर्वाचन आयागे प्रत्येक दल के लिए चनु ाव चिन्ह निश्चित करता है। जहां तक संभव हो आयोग दल की पसंद का चिन्ह भी स्वीकार कर लेता है। परंतु ऐसा करते समय निर्वाचन आयागे यह भी सुनिश्चित कर लेता है कि विभिन्न दलो के चुनाव चिन्ह मिलते जुलते तथा भ्रमात्मक न हो।
    5. चुनाव प्रचार-राष्ट्रपति ने 19 जनवरी 1992 को एक अध्यादेश निर्गत करके लोकसभा चुनाव तथा विधानसभा के निर्वाचनों में चुनाव प्रचार की न्यूनतम अवधि 20 दिन से घटाकर 14 दिन कर दी है। इस अवधि में प्रत्याशियों को अपने अपने पक्ष में प्रचार करने का समुचित अवसर मिलता है। यद्यपि चुनाव होने की संभावना के साथ ही विभिन्न राजनीतिक दल अपना प्रचार करना आरंभ कर देते है परंतु नाम वापसी की तिथि के पश्चात विभिन्न राजनीतिक दलो के प्रत्याशियों के सामने आ जाने पर चुनाव पच्र ार में गंभीरता और तीव्रता आ जाती है। इस अवधि में राजनीतिक दलो के द्वारा अपने अपने चुनाव घोषणा पत्र (Election manifesto) जारी किये जाते है जिनमें वे अपनी अपनी नीतियों एवं कार्यक्रमों को स्पष्ट करते है। चुनाव प्रचार में प्रत्येक उम्मीदवार अपने समर्थन में सभाएं करके, भाषण देकर, जुलुस निकालकर, पोस्टर लगाकर और वीडियो फिल्म दिखाकर अपना प्रचार करता है। मतदान समाप्त होने के 48 घटें पूर्व चुनाव पच्रार समाप्त हो जाता है।
    6.मतदान-मतदान के लिए निश्चित की ग तिथि को मतदान होता है। मतदान के दिन मतदाता मतदान कक्ष में जाते है और गुप्त मतदान की प्रक्रिया से अपने मताधिकार का प्रयोग करते है। जो मतदाता असावधान होते है वह मतपत्र पर गलत मोहर लगाकर या को भी मोहर लगाकर अपना मतपत्र बेकार कर देते है। यदि मतपत्र पर सही स्थान पर मोहर न लगाया हो तो वह मतपत्र जिन पर नियमानुसार मोहर न लगा ग हो निरस्त कर दिया जाता है। जब मतदान समाप्त हो जाता है तो मतपेटियो को मोहरबंद करके मतगणना केन्द्रों तक पहुंचा दिया जाता है। अब चुनावो में इलेक्ट्रॉनिक वोंटिग मशीन का प्रयोग होता है। इसमें मतदाता अपने पसंद के प्रतिनिधि के नाम व चुनाव चिन्ह के सामने बटन दबाकर मत दते ा है।
    7. मतगणना-मतगणना जिलाधीश के नियंत्रण में जिला केन्द्रों पर की जाती है। मतगणना के समय प्रत्याशी या उनके प्रतिनिधि या उनके प्रतिनिधि उपस्थित रहते है। मतगणना के परिणामस्वरूप जिस प्रत्याशी को सबसे अधिक मत मिलते है उसी को निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। ऐसे मतपत्र जिन पर नियमानुसार मोहर न लगा ग हो निरस्त कर दिये जाते है। मतगणना अधिकारी परिणाम की घोषणा करता है। फिर निर्वाचन अधिकारी परिणाम संबंधी जानकारीयाँ निर्वाचन आयोग को भेजता है। परिणाम की सूचना शासकीय गजट में भी प्रकाशित की जाती है। निर्वाचन अधिकारी विजयी उम्मीदवार को उसके संबंधित क्षेत्र से विजयी होने का प्रमाण पत्र देता है, जिसके आधार पर वह अपने पद की शपथ ग्रहण करता है। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से मतदान होने पर को भी मत अवैद्य नहीं होता है। तथा मतगणना कार्य भी जल्द संपन्न हो जाता है।
    8. चुनाव संबंधी अन्य प्रक्रिया-चुनाव के बाद प्रत्येक उम्मीदवार को 45 दिनो के अंदर अपने चुनाव खर्चे हिसाब किताब चुनाव आयोग को भेजना पडता है। इसके अतिरिक्त यदि को उम्मीदवार निर्वाचन की निष्पक्षता या किसी और कारण से संतुष्ट न हो तो वह निर्वाचन के विरूद्ध निर्वाचन आयोग या न्यायालयों में अपील कर सकता है।

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