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प्रोटीन जन्तु तथा वनस्पति दोनों साधनों से प्राप्त होता है। प्रोटीन का निर्माण प्रारम्भिक रूप से वनस्पति में ही होता है। वनस्पति भूमि से नाइट्रोजन, जल, हवा आदि लेकर प्रोटीन का निर्माण करते हैं तथा अपने बीजों में संग्रह करते हैं। मनुष्य जन्तु एवं वनस्पति दोनों माध्यम से प्रोटीन का उपयोग करता है, परन्तु जन्तु प्रोटीन अधिक उपयोगी होती है। जैसे- मांस, मछली, अण्डा, पक्षी, दूध, पनीर, खोआ आदि।
कुछ वनस्पति प्रोटीन भी हमारे शरीर के लिए बहुत उपयेागी होती है। जैसे- सोयाबीन, सूखे मेवे, मूंगफली, सेम आदि। दूसरे वनस्पति पदार्थ जिनकी प्रोटीन अधिक उपयोगी नहीं होती है अन्य भोज्य पदार्थ के साथ मिलकर उपयोगिता बढ़ा देती है। जैसे- दालें, मटर विभिन्न अनाज आदि। फल व सब्जियों में प्रोटीन नगण्य व अत्यंत निम्न कोटि की होती है।
प्रोटीन की कमी से होने वाले रोग
प्रोटीन ऊर्जा कुपोषण लक्षणों की एक लंबी श्रृंखला है जिसके एक तरफ मरास्मस है जो किसी ऊर्जा प्रोटीन व अन्य पौष्टिक तत्वों की कमी से उत्पन्न होता है तथा दूसरी ओर क्वाषियोरकर है जो की प्रोटीन की कमी से होता है। इन दोनों के मध्य अनेक ऐसे लक्षण देखे जा सकते हैं जो प्रोटीन तथा ऊर्जा की कमी से होते हैं।
1. क्वाशियोरकर
क्वाशियोरकर के लक्षण
- सामान्य लक्षण – सामान्य रूप से वृद्धि रूक जाती है। सांस लेने में कश्ट, ऑक्सीजन की कमी, इडीमा तथा एक सामान्य उदासीनता पाई जाती है।
- वृद्धि का झुकाव – एडीमा तथा वसा के कारण भार में हीनता कम प्रतीत होती है। भार तथा लम्बाई दोनों की वृद्धि रुक जाती है तथा मांसपेशियां कमजोर हो जाती है।
- एडीमा – यह प्रोटीन की मात्रा में कमी के अनुसार ज्यादा या कम अंष में पाया जाता है परन्तु भोजन में उपस्थित पानी तथा नमक की मात्रा पर निर्भर करता है। यह संपूर्ण शरीर के साथ-साथ चेहरे पर परन्तु मुख्यत: टांगों में पाया जाता है।
- त्वचा – त्वचा में चर्म रोग हो जाता है, जिसके प्रमुख लक्षण त्वचा पर चकत्ते पड़ना तथा Pigmentation है। त्वचा का रंग गहरा होने लगता है तथा किरेटिन के अलग होने से त्वचा परतदार हो जाती है। शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है परन्तु मुख्यत: पैरों में, नितंब पर तथा शरीर के बाहरी भागों पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है।
- बालों पर प्रभाव – बाल पतले, कम कड़े एवं सीधे हो जाते हैं। बालों के रंग में भी परिवर्तन होने लगता है तथा भूरे रंग लाल रंग के चकत्तो के रूप में बदल जाता है। यह नीग्रो बालकों में एषियन बालकों की अपेक्षा ज्यादा पाया जाता है।
- म्यूकस झिल्ली – होठों के किनारे कट जाते हैं, सूख जाते हैं तथा चिलोसिस (होठों का कटना तथा पकना), जीभ की सतह चिकनी हो जाती है, गुर्दा के चारों ओर भी नासूर हो जाते हैं।
- पाचन तंत्र – डायरिया यकृत दबाने पर कड़ा महसूस होता है। कभी-कभी यकृत बढ़ा हुआ भी पाया जाता है।
- मांसपेशियाँ – मांसपेशियों का क्षय होने लगता है जिसके परिणामस्वरूप बच्चों का शारीरिक विकास रूक जाता है।
- रक्तअल्पता – प्रोटीन की कमी के कारण रक्त अल्पता हो जाती है, परन्तु बच्चों के भोजन में फोलिक अम्ल तथा आयरन की कमी भी पायी जाती है तथा पोशक तत्व पाचन नली द्वारा शोशित नहीं हो पाते।
- मानसिक परिवर्तन– हीन-संवेदनशीलता एक मुख्य लक्षण है तथा बच्चा निराष दिखाई पड़ता है। कुछ बच्चों में कपकपाहट पाई जाती है।
- हृदय – रक्त संचार व्यवस्था बिगड़ जाती है, हाथ, पैर ठण्डे तथा सुन्न हो जाते हैं तथा नाड़ी की गति कम हो जाती है।
- शरीर में प्रतिरक्षी कोशिकाओं, एन्जाइम्स तथा हार्मोन्स की कमी से चयापचय सम्बन्धी क्रियाओं में बाधा उत्पन्न हो जाती है।
2. मरास्मस
मरास्मस के लक्षण
- सामान्य लक्षण – इसमें प्रमुख रूप से वृद्धि रूक जाती है। जलना चिड़चिड़ाहट, क्रमिकहीन संवेदनशील, उल्टी-दस्त आदि मुख्य हैं। कुछ बच्चों की भूख बढ़ जाती है, परन्तु कुछ में भूख कम लगती है।
- सामान्य तथा भार – बच्चा दिन-प्रतिदिन सूखता जाता है तथा त्वचा पर वसा की मात्रा नगण्य हो जाती है, पानी की कमी हो जाती है। शारीरिक भार उम्र के अनुसार बहुत कम हो जाता है तथा बीमारी लम्बे समय तक रहने पर लम्बाई में वृद्धि रूक जाती है।
- पाचन तंत्र – पानी के समान पतले दस्त, उल्टी या अर्द्ध ठोस दस्त हो जाते हैं। यदि संक्रमित हो जाती है तो दस्त कष्टदायक हो जाते हैं। पेट सिकुड़न या गैस के कारण फूला रहता है।
- मांसपेशी तंत्र – मांसपेशियां कमजोर हो जाती है तथा क्षय होने लगती है। इसके साथ-साथ त्वचीय वसा की कमी होने के कारण हाथ-पैर पर खाली हड्डियाँ तथा त्वचाहीन होने का आभास होने लगता है।
- त्वचा तथा श्लेभिक झिल्ली – इनका सूखकर क्षय होने लगता है, परन्तु क्वाषियोकर में पाए जाने वाले परिवर्तन नहीं पाए जाते हैं।
प्रोटीन की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले तत्व
- प्रोटीन शरीर के सभी ऊतकों का निर्माण करता है और उनकी मरम्मत व क्षतिपूर्ति करता है।
- ग्रंथियों के स्रावों, हार्मोनों, पाचक अन्य एंजाइमों का निर्माण करता है।
- रोग निरोधक पदार्थों को बनाता है।
- शरीर को ऊर्जा व ताप भी प्रदान करता है। इससे 1 ग्राम से 4 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है।
- प्रोटीन कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन से बनता है। कभी-कभी इसमें गंधक, लोहा या फॉस्फोरस भी पाया जाता है।
- एमिनो एसिड प्रोटीन की रासायनिक इकाईयाँ हैं।
- जिस प्रोटीन में आवष्यक एमीनो एसिड पाए जाते हैं वह उत्तम वर्ग का है, पषुजन्य प्रोटीन उत्तम वर्ग का प्रोटीन है, वनस्पतिक प्रोटीन उससे कम महत्वपूर्ण का है।
- दोनों प्रकार के प्रोटीन के साथ-साथ खाने से घटिया प्रोटीनों की कमी उत्तम प्रोटीन के एमीनो एसिडो से पूर्ण हो जाती है।
- पर्याप्त प्रोटीनों से लाभ – सुगठित, सुविकसित व स्फूर्तिवान शरीर उत्तम स्वास्थ्य रोगों से बचाव शीघ्र मुक्ति, घाव का शीघ्र भरना, शल्य चिकित्सा में लाभ।
- आहार नियोजन में प्रोटीन की मात्रा निर्धारित करने की आयु विषेश परिस्थितियों, शरीर विकास की अवस्था, कैलरी की पर्याप्तता तथा प्रोटीन के प्रकार को भी ध्यान में रखना होगा। आहार में 50 प्रतिषत उत्तम वर्ग की होनी चाहिए।
प्रोटीन के मुख्य कार्य
1. प्रोटीन का प्रमुख कार्य शरीर का निर्माण करना है। मात्रा की दृष्टि से पानी के बाद प्रोटीन की उपस्थिति शरीर में सबसे अधिक होती है। शरीर के सभी अंग जैसे- बाल, नाखून, त्वचा, ग्रंथियों, अस्थियों व मांसपेशियों आदि में प्रोटीन उपस्थित रहता है। वृद्धि के अवस्थाओं, जैसे- शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था,गर्भावस्था आदि में विषेश रूप से प्रोटीन अधिक आवश्यक होती है क्योंकि इन अवस्थाओं में नए ऊतकों का तेजी से निर्माण होता है।
प्रोटीन के गुण
कुछ प्रकार की प्रोटीन जल में घुलनशील होती है। जैसे- दूध की केसीन, अण्डे की एल्बूमिन, रक्त की पलाज्मा प्रोटीन। पर कुछ प्रकार की प्रोटीन पानी में घुलनशील नहीं होती है। जैसे- विभिन्न वनस्पति प्रोटीन, मांस का प्रोटीन आदि। प्रोटीन गर्म करने पर अथवा अम्ल की क्रिया से जम जाती है।

