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पूर्ति शब्द का अर्थ किसी वस्तु की उस मात्रा से लगाया जाता है, जिसे को विक्रेता ‘एक निश्चित समय’ तथा ‘एक निश्चित कीमत’ पर बाजार में बेचने के लिए तैयार रहते हैं।
पूर्ति की परिभाषा
पूर्ति के प्रकार
पूर्ति के प्रकार – पूर्ति दो प्रकार की होती है।
- व्यक्तिगत पूर्ति
- बाजार पूर्ति।
1. व्यक्तिगत पूर्ति की तालिका- जब किसी निश्चित समय पर किसी बाजार में एक विक्रेता के द्वारा किसी वस्तु की भिन्न-भिन्न कीमतों में बेचा जाता है, तो उसे हम व्यक्तिगत पूर्ति तालिका कह सकते है। इस प्रकार व्यक्तिगत पूर्ति तालिका किसी विक्रेता के अनुमानित कीमतों और उस कीमतों पर पूर्ति की जाने वाली मात्राओं के आधार पर बनायी जाती है।
पूर्ति का नियम
पूर्ति का नियम माँग के नियम के विपरीत है। जैसे कि माँग के नियम में कीमत बढऩे से माँग घटती है और कीमत घटने पर माँग बढ़ती है। यह माँग और कीमत के बीच ऋणात्मक संबंध को व्यक्त करती है, जबकि पूर्ति के नियम में कीमत और पूर्ति का धनात्मक संबंध होता है। जब कभी किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है, तब उस वस्तु की पूर्ति को बढा़या जाता है और की मत में कमी होने पर उसकी पूर्ति को घटा दिया जाता है। दूसरे शब्दों में अन्य बातें समान रहने पर किसी वस्तु की पूर्ति के बढ़ने की प्रवृत्ति तब होती है जब उस वस्तु की कीमत में वृद्धि होती है और पूर्ति में कमी तब होती है, जब वस्तु की कीमत में कमी आती है। इस प्रकार, कीमत आरै पूर्ति के बीच सीधा संबंध है।
वाटसन के अनुसार-“पूर्ति का नियम बताता है कि अन्य बातों के समान रहने पर एक वस्तु की पूर्ति, इनकी कीमत बढऩे से बढ़ जाती है और कीमत के घटने से घट जाती है।” पूर्ति का नियम, माँग के नियम की भाँति एक ‘गुणात्मक कथन’ है न कि ‘परिमाणात्मक कथन’। अर्थात् यह नियम पूर्ति तथा कीमत के बीच किसी प्रकार का गणितात्मक सबंधं स्थापित नहीं करता, बल्कि केवल पूर्ति की मात्रा में होने वाले परिवर्तनों की दिशा की ओर संकेत करता है; तालिका द्वारा स्पष्टीकरण- पूर्ति के नियम को एक काल्पनिक तालिका की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है-
| प्रति इकाई कीमत | पूर्ति की मात्रा (इकाइयाँ |
|---|---|
| 1 | 10 |
| 2 | 15 |
| 3 | 20 |
| 4 | 25 |
| 5 | 30 |
उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि ज्यों- ज्यों वस्तु की कीमत में वृद्धि होती हैं त्यो- त्यों विक्रेता के द्वारा वस्तु की पूर्ति को बढा़या जाता है। जब वस्तु की कीमत सबसे कम 1 रू. प्रति इकाई है तब वस्तु की पूर्ति सबसे कम 10 इकाइयाँ है लेकिन जैसे ही कीमत बढक़र 5 रू. प्रति इकाई हो जाती है, त्यों ही वस्तु की पूर्ति बढ़कर 30 इकाइयाँ हो जाती है।
रेखाचित्र द्वारा स्पष्टीकरण-प्रस्तुत रेखाचित्र में OX आधार रेखा पर वस्तु की मात्रा तथा OY लम्ब रेखा पर वस्तु की कीमत को दिखाया गया है। पूर्ति रेखा है जो यह बताती है कि कीमत बढऩे के साथ-साथ पूर्ति रेखा । बिन्दु से B,C,E,D आदि बिन्दुओं की आरे बढत़ी है, अत: पूर्ति वक्र कीमत तथा पूर्ति के बीच प्रत्यक्ष संबंध को प्रदर्शित करता है और इसके विपरीत, कीमत के गिरने के साथ-साथ SS पूर्ति वक्र E बिन्दु से D,C,B व A बिन्दुओं की ओर सिमटती है।
पूर्ति के नियम के अपवाद
निम्न दशाओं में पूर्ति का नियम लागू नहीं होता है-
पूर्ति में विस्तार तथा संकुचन
पूर्ति को प्रभावित करने वाले तत्वों की कीमत सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। जब अन्य बातें समान रहती हैं तथा केवल कीमत में परिवर्तन होते हैं तो पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन अथार्त् विस्तार या संकुचन होता है। पूर्ति में विस्तार तथा संकचु न होने पर वस्तु विक्रेता का चलन एक ही पूर्ति वक्र होता है। कीमत बढ़ने पर विक्रेता का पूर्ति वक्र पर नीचे की आरे चलन में पूर्ति में संकुचन को बताता है। संक्षेप में कीमत के बढऩे पर उत्पादक अधिकाधिक पूर्ति, की मात्रा प्रस्तुत करता हैं जिसे पूर्ति का संकुचन कहते है।
पूर्ति में वृद्धि या कमी
प्रत्येक वस्तु की पूर्ति अनेक तत्वों पर निर्भर करती है। कीमत के यथास्थिर रहने पर पूर्ति को प्रभावित करने वाले किसी अन्य तत्व में परिवर्तन के कारण जब पूर्ति वक्र परिवर्तित हो जाती है, तो इसे पूर्ति में परिवर्तन कहते है। जैसे- पूर्ति को प्रभावित करने वाले तत्वों में से, उत्पादन की तकनीक में परिवर्तन, उत्पत्ति के साधनों की कीमत में परिवर्तन , विक्रेताओं की आय में परिवर्तन , नये-नये आविष्कारों विक्रेताओं के उद्देश्य में परिवर्तन आदि। इनमें से किसी एक घटक में परिवर्तन होने से वस्तु की पूर्ति में परिवर्तन दो प्रकार से होते हैं-
- पूर्ति में वृद्धि
- पूर्ति में कमी।
1. पूर्ति में वृद्धि –
जब कीमत के अतिरिक्त, किन्हीं अन्य कारणों से उसी कीमत पर वस्तु की अधिक मात्रा अथवा कम कीमत पर वस्तु की उतनी ही मात्रा में पूर्ति की जाती है, तो उसे पूर्ति में वृद्धि कहते है। इसमें हम बायी आरे के पूर्ति वक्र से दायीं आरे के नये पूर्ति वक्र पर गति करते है। पूर्ति में वृद्धि के प्रमुख कारण हो सकते हैं-
- तकनीकी प्रगति,
- सम्बन्धित वस्तुओं की कीमत में कमी,
- उत्पादन के साधनों की कीमतों में कमी,
- फर्म के उद्देश्य में परिवर्तन ,
- उत्पादकों की संख्या में वृद्धि,
- भविष्य में कीमत के कम होने की सम्भावना,
- अप्रत्यक्ष करों में कमी तथा अनुदानों में वृद्धि।
2. पूर्ति में कमी –
जब कीमत के अतिरिक्त, किन्हीं अन्य कारणों से उसी कीमत पर वस्तु की कम मात्रा अथवा ऊँची कीमत पर वस्तु की उतनी ही मात्रा में पूर्ति की जाती है, तो उसे पूर्ति में कमी कहते है। इसमें हम दायीं ओर के पूर्ति वक्र से बायीं ओर के नये पूर्ति वक्र पर गति करते है।
- सम्बन्धित वस्तुओं की कीमत में वृद्धि,
- उत्पादन के साधनों की कीमतों में वृद्धि,
- फर्म के उद्दशेय में परिवतर्न अर्थात् बिक्री को अधिकतम करने के बजाय लाभ को अधिकतम करना,
- उत्पादन तकनीकी का पुराना पड़ जाना,
- भविष्य में कीमत के वृद्धि की सम्भावना,
- उत्पादकों की संख्या में कमी,
- कर की दरों में वृद्धि तथा अनुदानों में कमी।
वस्तु की पूर्ति को प्रभावित करने वाले कारक
पूर्ति को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों में को परिवर्तन नहीं होता है। इस अनुभाग में हम यह अध्ययन करेंगे कि अन्य कारक वस्तु की पूर्ति को कैसे प्रभावित करते हैं। अब हम यह मान्यता करेंगे कि वस्तु की कीमत में को परिवर्तन नहीं होता है। वस्तु की कीमत के अतिरिक्त उसकी पूर्ति को प्रभावित करने वाले अन्य कारक हैं-
1. अन्य वस्तुओं की कीमतें – जब अन्य वस्तुओं की कीमतें बढत़ी है। तो फर्म अपने संसाधनों को उस वस्तु के उत्पादन में लगाएगी जिनकी कीमते बढ़ी है। मान लीजिए, एक किसान अपने खते पर गन्ने की खेती करता हैं और गेंहू की कीमत बढ़ जाती है। अब उस किसान को गन्ने की तुलना में गेंहू की खेती करना अधिक लाभप्रद होगा। इससे गन्ने की पूर्ति कम हो जाएगी हालांकि गन्ने की कीमत में परिवतर्न नहीं हुआ है। आइए, एक और उदाहरण लेते है। मान लीजिए, एक फर्म टेलीविजऩ बनाती हैं क्योंकि इसके उत्पादन में अन्य वस्तुओं की तुलना में उस अधिक लाभ प्राप्त होने की आशा है।
