अनुक्रम
राजनीति का अस्तित्व, सत्ता से है। राजनीतिक सत्ता का अंतरंग भाग नौकरशाही है, सत्ता का महत्व उसके पद से आँका जाता है। क्षमता तथा दायित्व के निर्वाह के लिए एक सत्ता को ऐसे द्वितीयक समूह का निर्माण करना पड़ता है जो सत्ता की रीति-नीति का क्रियान्वयन कर सके। सत्ता का अस्तित्व तभी तक है जब तक वह अधिकारों का उपयोग करती है। सत्ता के अधिकार सामूहिक रूप से प्रभाव डालते हैं। सत्ता के अधिकारों का क्रियान्वयन राजसत्ता के तंत्र अर्थात् नौकरशाही के बिना नहीं हो सकता।
राजनीतिक समाजशास्त्री यह जानने के लिए अधिक उत्सुक रहे हैं कि सत्ता तथा नौकरशाही किस प्रकार इनको प्रभावित करती है। नौकरशाही, सरकार को प्रभावित करती है या नौकरशाही को निर्देशित करती है।
नौकरशाही का अर्थ
नौकरशाही की परिभाषा
1. मैक्स वेबर के अनुसार-”नौकरशाही प्रशासन प्रशासन की ऐसी व्यवस्था है जिसमें विशेषज्ञता, निष्पक्षता तथा मानवता का अभाव होता है।”
10. ग्लैडन के अनुसार-”नौकरशाही एक ऐसा विनियमित प्रशासकीय तन्त्र है जो अन्तर सम्बन्धित पदों की शृंखला के रूप में संगठित होता है।”
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि नौकरशाही शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में किया जाता है। साधारण रूप में कहा जा सकता है कि नौकरशाही स्थायी कर्मचारियों का शासन है जो न तो जनता द्वारा चुने जाते हैं और न ही इस कारण जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं, लेकिन देश की निर्णय-प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
- एक विशेष प्रकार के संगठन में
- अच्छे प्रबन्धक में बाधक एक व्याधि के रूप में
- एक बड़ी सरकार के रूप में
- स्वतन्त्रता विरोधी के रूप में।
नौकरशाही का उदय
नौकरशाही का उदय बहुत पहले हुआ था। प्राचीन मिश्र, प्राचीन रोम, चीन के प्रशासन, तेहरवीं सदी में रोमन कैथोलिक चर्च में नौकरशाही के बीज मिलते हैं। किन्तु यह नौकरशाही सीमित प्रकृति की थी। 18वीं सदी में यह पश्चिमी यूरोप के देशों में विकसित रूप में उभरी। औद्योगिक क्रान्ति तथा आधुनिकरण के दौर में इसका बहुत तेज गति से विकास हुआ। धीरे-धीरे नौकरशाही चर्च, विश्वविद्यालय, आर्थिक संस्थानों, राजनीतिक दलों तक भी फैल गई। आज नौकरशाही पूरे विश्व में अपना अस्तित्व कायम कर चुकी है। इसके उदय व विकास के प्रमुख कारण हैं-
- सर्वप्रथम इसका जन्म कुलीनतन्त्र में सक्रिय सरकार की रुचि के अभाव के कारण हुआ और धीरे-धीरे सत्ता स्थायी अधिकारियों के हाथों में चली गई। सम्राट की यह इच्छा थी कि कुलीन वर्ग में शक्ति की बढ़ती लालसा को रोकने के लिए एक अधीनस्थ कर्मचारी तन्त्र का होना बहुत जरूरी है।
- लोकतन्त्र के उदय के कारण कुलीनतन्त्र को गहरा आघात पहुंचा। बदलती परिस्थितियों ने विशिष्ट सेवा का कार्य करने के लिए विशेषज्ञोंं की आवश्यकता महसूस की और राज्यों के कल्याणकारी स्वरूप ने इसे अपरिहार्य बना दिया।
- पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के उदय ने भी नौकरशाही को बढ़ावा दिया है। पूंजीवाद में अपने हितों की पूर्ति के लिए एक शक्तिशाली और सुव्यवस्थित सरकार की आवश्यकता महसूस हुई। इन सरकारों को नौकरशाही सिद्धान्तों का अनुकरण करना आवश्यक हो गया। इसी कारण पूंजीवादी अर्थव्यवस्था ने नौकरशाही सरकार को जन्म दिया।
- पश्चिमी समाज में बुद्धिवाद के विकास ने भी सभी क्षेत्रों में लाभ प्राप्त के लिए संगठित कर्मचारी वर्ग की आवश्यकता अनुभव हुई। इसी से नौकरशाही का विकास हुआ। धीरे धीरे नौकरशाही विश्व के अन्य देशों में भी पहुंच गई।
- जनसंख्या वृद्धि ने भी प्रशासनिक कार्यों में वृद्धि कर दी। विश्व में सभी सरकारें अपनी जनता की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए बड़े-बड़े संगठनों को स्थापित करने लगी। इस प्रशासनिक वर्ग के लिए सरकारों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कार्य करना जरूरी हो गया। इसी कारण धीरे धीरे नौकरशाही का आधार मजबूत होता गया।
- जटिल प्रशासनिक समस्याओं की उत्पत्ति ने अलग स्थाई कर्मचारी वर्ग की आवश्यकता महसूस कराई। औद्योगिक क्रांति के बाद आई जटिल प्रशासनिक समस्याओं ने नौकरशाही के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सभी सरकारों के लिए जटिल प्रशासनिक कार्यों को निष्पादित करने के लिए नियमित संगठनों की स्थापना करना जरूरी हो गया।
इस प्रकार नौकरशाही का उदय एक शासन के सामने आई बहुत प्रशासनिक समस्याओं से निपटने के लिए हुआ। आज नौकरशाही एक ऐसे संगठन के रूप में अपना स्थान बना चुकी है कि इसके बिना किसी देश की सरकार अपने प्रशासनिक कार्यों का निष्पादन नहीं कर सकती। आधुनिक संचार के साधनों ने प्रशासनिक समस्याओं को और अधिक जटिल बना दिया है। नौकरशाही के वर्तमान उत्तरदायित्वों का अभी भविष्य में और अधिक विकसित होना अपरिहार्य है। इसी कारण नौकरशाही का विकास भी अवश्यम्भावी है।
नौकरशाही की विशेषताएं
- कार्यों का तर्कपूर्ण विभाजन – नौकरशाही में प्रत्येक पद पर योग्य व्यक्ति को ही बिठाया जाता है ताकि वह अपने कार्यों व लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त कर सके। अपने कार्यों को पूरा करने के लिए उसे कानूनी सत्ता प्रदान की जाती है। उसे अपने कार्यों को पूरा करने के लिए अपनी सत्ता का पूर्ण प्रयोग करने की छूट होती है।
- तकनीकी विशेषज्ञता – नौकरशाही का जन्म ही तकनीकी आवश्यकता के कारण होता है। नौकरशाही में प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने कार्यों में दक्ष होता है। तकनीकी दक्षता के अनुसार ही प्रत्येक व्यक्ति को अलग-अलग कार्य सौंपे जाते हैं।
- कानूनी सत्ता – प्रत्येक व्यक्ति को अपने कार्यों के निष्पादन के लिए अधिकारियों व कर्मचारियों को कानूनी शक्ति का प्रयोग करने की स्वतन्त्रता होती है।
- पद-सोपान का सिद्धान्त – नौकरशाही में कार्यों के निष्पादन व प्रकृति के अनुसार कर्मचारियों के कई स्तर बना दिए जाते हैं। सबसे ऊपर महत्वपूर्ण अधिकारी होते हैं। कर्मचारी वर्ग सबसे निम्न स्तर पर होता है। इस सिद्धान्त के द्वारा सभी को ‘आदेश की एकता’ के सूत्र में बांधा जाता है।
- कानूनी रूप से कार्यों का संचालन – नौकरशााही में सरकारी अधिकारी कानून व नियमों की मर्यादा में ही अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हैं। इससे प्रशासन में कठोरता आ जाती है। नौकरशाही का संचालन ‘कानून के शासन’ के द्वारा ही होता है। इसलिए उन्हें कानूनी सीमाओं में बंधकर ही अपना कार्य करना पड़ता है। इससे प्रशासन में लोचहीनता भी पैदा हो जाती है।
- राजनीतिक तटस्थता – नौकरशाही में राजनीतिक तटस्थता का महत्वपूर्ण गुण पाया जाता है। इसमें अधिकारियों को राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं होते। प्रशासनिक अधिकारियों को मत देने का तो अधिकार प्राप्त होता है, लेकिन सक्रिय राजनीतिक सहभागिता से बचना पड़ता है।
- योग्यता-प्रणाली – नौकरशाही में प्रशासनिक अधिकारियों व कर्मचारियों का चयन योग्यता के आधार पर होता है, सिफारिश के आधार पर नहीं। उनकी नियुक्ति के लिए निश्चित योग्यताएं रखी जाती हैं और प्रतियोगिता परीक्षाओं का संचालन एक उच्च सेवा आयोग के माध्यम से होता है।
- निश्चित वेतन तथा भत्ते – नौकरशाही के अन्तर्गत सभी कर्मचारियों व अधिकारियों को निश्चित वेतन व भत्ते मिलते हैं। नौकरी से रिटायर होने के बाद पैंशन का भी प्रावधान है।
- पदोन्नति के अवसर – नौकरशाही में सभी कर्मचारियों व अधिकारियों को अपनी योग्यता व प्रतिभा विकसित करने के पूरे अवसर प्राप्त होते हैं। इसमें लोकसेवकों को परिश्रम व मेहनत के बल पर अपना पद विकसित करने के पूरे अवसर मिलते हैं।
- निष्पक्षता – नौकरशाही में लोकसेवकों को अपना कार्य बिना भेदभाव के करना पड़ता है। उनकी दृष्टि में सभी लोग चाहे वे अधिक प्रभावशाली हों या कम, बराबर होते हैं।
- व्यवसायिक वर्ग – नौकरशाही में लोकसेवकों का वर्ग एक व्यवसायिक वर्ग होता है। वह अपने कार्यों का निष्पादन जन सेवा के लिए न करके व्यवसाय समझकर ही करता है।
- लालफीताशाही – नौकरशाही में आवश्यकता से अधिक औपचारिकता को अपनाया जाता है। इससे प्रशासनिक निर्णयों में देरी होती है और इसी कारण नौकरशाही को बदनामी सहनी पड़ती है। इसमें अनौपचारिक सम्बन्धों का कोई स्थान नहीं होता। समस्त कार्य नियमानुसार परम्परा के अनुसार ही किया जाता है। इसमें कार्य-अनुशासन पर अधिक जोर देने के कारण लाल-फीताशाही को बढ़ावा मिलता है।
नौकरशाही के प्रकार
नौकरशाही के ये चार प्रकार हैं :-
- अभिभावक नौकरशाही
- जातीय नौकरशाही
- प्रश्रय या संरक्षक नौकरशाही
- योग्यता पर आधारित नौकरशाही
1. अभिभावक नौकरशाही
अभिभावक नौकरशाही में नौकरशाहों द्वारा जनता के साथ एक अिभाभावक जैसा आचरण अमल में लाया जाता है।यह नौकरशाही सदैव जन-साधारण के हितों के लिए चिन्तित रहती है। इसके समस्त क्रिया-कलाप जनहित पर ही आधारित होते हैं। इस नौकरशाही में नौकरशाहों को समुदाय के न्याय तथा जनहित का संरक्षक माना जाता है। इस प्रकार की नौकरशाही प्लेटों के आदर्श राज्य में प्रकट होती है। 960 ई0 में चीन में, प्रशा में 1640 तक अभिभावक नौकरशाही का ही प्रचलन था। प्रशा की नौकरशाही की विशेषताएं थी :-
- राज्य के हित का समर्पित।
- एकीकृत एवं संतुलित प्रशासनिक व्यवस्था।
- शिक्षित व योगय प्रशासक।
- राजतन्त्र के साथ साथ मध्यवर्गीय गुणों का समन्वय।
- सजग राजतन्त्र के मूल्यों का पोषण।
- अन-भावादेशों के प्रति उत्तरदायित्व का अभाव।
इस प्रकार प्रशा की नौकरशाहेी एक श्रेष्ठ नौकरशाही थी। मार्क्स के अनुसार-”राजा की पक्षपाती एवं उसी के माध्यम से जनता की सेवा करने वाली प्रशा की प्रारम्भिक नौकरशाही इस बात पर गर्व कर सकती है कि यह अपने उद्देश्य में अलोचशील, ईमानदार, जनता के साथ सम्बन्धों में सत्तावादी एवं सद्भावपूर्ण तथा बाहरी आलोचनाओं से अप्रभावित बनी रही।” इस नौकरशाही में अधिकारियों का प्रमुख कर्तव्य लोगों के सामने एक आदर्श जीवन का उदाहरण प्रस्तुत करना था। इसी कारण उनका चुनाव योग्यता के आधार पर ही होता था और उन्हें शास्त्रीय पद्धति के अनुसार प्रशिक्षण दिया जाता था। लेकिन इस नौकरशाही में प्रमुख दोष यह आ गया कि निरंकुशता को ही अपना आदर्श मानने लगी और परम्परावादी व रुढ़िवादी बन गई। आज इस नौकरशाही का प्रमुख दोष इसका निरंकुश आचरण ही है।
2. जातीय नौकरशाही
यह नौकरशाही जातीय पद्-क्रम पर आधारित होती है। इस नौकरशाही का जन्म तब होता है, जब प्रशासकीय तथा सत्ता शक्ति एक ही वर्ग के हाथों में होती है। इस प्रकार की नौकरशाही में वे व्यक्ति ही उच्च प्रशासनिक पदों को प्राप्त कर लेते हैं जो उच्च जाति या शासक-वर्ग से सम्बन्ध रखते हैं। इस नौकरशाही में ऐसी योग्यताओं का निर्धारण किया जाता है जो उच्च वर्ग या जाति में ही पाई जाती हैं। विलोकी ने इसे कुलीनतन्त्रीय नौकरशाही कहा है। इसमें उच्च पदों के लिए योग्यताओं को जातिगत प्राथमिकताओं से जोड़ दिया जाता है।
इस प्रकार की नौकरशाही प्राचीन समय में रोमन साम्राज्य तथा आधुनिक युग में जापान के मेजी संविधान के अन्तर्गत कार्यरत नौकरशाही का रूप है। 1950 में फ्रांस में भी इसी तरह की नौकरशाही का विकसित रूप था। इस नौकरशाही की प्रमुख विशेषताएं हैं :-
- शैक्षिक योग्यताओं की अनिवार्यता।
- पद और जाति में अन्तर्सम्बन्ध।
- सेवा या पद का परिवार से जुड़ जाना।
- दोषपूर्ण समाज व्यवस्था के प्रतीक।
इस प्रकार की नौकरशाही का विकसित रूप प्राचीन भारत में भी प्रचलित था। प्राचीन काल में ब्राह्मणों व क्षत्रियों को उच्च प्रशासनिक पद सौंपे जाते थे। इस नौकरशाही ने सामाजिक वर्ग विभेद को जन्म दिया है। यह वर्ग विशेष के हितों की पोषक होने के कारण सामाजिक विषमताओं की जननी मानी जाती है।
3. संरक्षक या प्रश्रय नौकरशाही
इस नौकरशाही का दूसरा नाम लूट प्रणाली (Spoil System) भी है। इस प्रकार की नौकरशाही को राजनीतिक लाभ पर आधारित माना जाता है। चुनाव में विजयी राजनीतिज्ञ अपने समर्थकों को उच्च राजनीतिक व प्रशासनिक पदों पर नियुक्त करके प्रश्रय नौकरशाही को जन्म देते हैं। इस नौकरशाही में नियुक्ति का आधार योग्यता की बजाय राजनीतिक सम्बन्ध होते हैं। अमेरिका को इस नौकरशाही का जनक माना जाता है। वहां पर प्रत्येक नवनिर्चाचित राष्ट्रपति पुराने पदाधिकारियों को सेवामुक्त करके उच्च पदों पर राजनीतिज्ञ समर्थकों को नियुक्त करता था।
यह नौकरशाही लम्बे समय तक अमेरिका में अपना प्रभाव बनाए रही। राष्ट्रपति जैक्सन ने भी इसी नौकरशाही का पोषण किया था। 19वीं सदी से पहले ब्रिटेन में भी यह नौकरशाही प्रचलित थी। आगे चलकर इसमें अनेक दोष उत्पन्न हो गए। इसके कारण अमेरिका व ब्रिटेन ने इसका त्याग कर दिया।
संरक्षक नौकरशाही की विशेषताएं
- इसमें कार्मिकों को भर्ती के समय शैक्षिक व व्यावसायिक योग्यताओं का कोई महत्व नहींं होता।
- यह नौकरशाही सत्ताधारी दल के प्रति प्रतिबद्धता का पालन करती है।
- यह नौकरशाही जनहित की अपेक्षा राजनीतिक नेतृत्व का समर्थन करती है।
- इसमें राजनीतिक तटस्थता का अभाव पाया जाता है।
- यह पक्षपातपूर्ण, भ्रष्ट, भाई-भतीजावाद पर आधारित होती है।
- इसमें लोकसेवकों का कार्यकाल अनिश्चित होता है। वे अपने पद पर सत्तारूढ़ दल के सरंक्षण तक ही रह सकते हैं। सत्तारूढ दल के शासन छोड़ते ही उन्हें भी अपना पद त्यागना पड़ता है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि संरक्षक नौकरशाही राजनीतिक तटस्थता का त्याग करके शासक वर्ग के हितों की पोषक बनकर कार्य करती है। इसलिए इसमें अनेक दोष उत्पन्न हो जाते हैं जैसे – योग्यता का अभाव, अनुशासनहीनता, अधिकारियों का लालचीपन, पक्षपातपूर्ण, सेवाभाव का अभाव, राजनीतिक तटस्थता का अभाव आदि।
4. योग्यता पर आधारित
उपरोक्त तीनों नौकरशाहियों की कमियों के परिणामस्वरूप जिस नई नौकरशाही का उदय हुआ, वह योग्यता पर आधारित नौकरशाही ही है। इसमें लोकसेवकों की नियुक्ति योग्यता व मेरिट के हिसाब से की जाती है। इसमें लोकसेवकों के चयन के लिए निष्पक्ष भर्ती परीक्षाओं का आयोजन किया जाता है। इसमें लोकसेवकों पर शासक-वर्ग का कोई दबाव नहीं रहता। इसमें सदैव जन-कल्याण को ही महत्व दिया जाता है। इसी कारण आज विश्व के अधिकांश देशों में इसी प्रकार की नौकरशाही का प्रचलन है। इस नौकरशाही की प्रमुख विशेषता हैं :-
- योग्यता के आधार पर नियुक्तियां तथा नियुक्तियों के लिए लिखित परीक्षाएं।
- कार्यकाल का निश्चित होना।
- निर्धारित वेतन व भत्ते।
- कानून के शासन पर आधारित।
- निष्पक्ष व निर्भयतापूर्ण कार्य-सम्पादन।
- राजनीतिक तटस्थता।
- संविधान व अपने कर्तव्यों के प्रति वचनबद्धता।
- जन-हितों की पोषक।
भारत में नौकरशाही का यही रूप प्रचलित है।
नौकरशाही की भूमिका
आज के लोकतन्त्रीय युग में शासन को चलाने के लिए नौकरशाही की अहम् भूमिका है। कल्याणकारी राज्य के रूप में आज सरकार के कार्य इतने अधिक हो गए हैं कि नौकरशाही की मदद के बिना उन्हें पूरा करना कठिन ही नहीं, बल्कि असम्भव सा भी है। जौसेफ चैम्बरलेन का कहना सत्य है कि लोकसेवकों के बिना सरकार का काम नहीं चल सकता। राजनीतिक कार्यपालिका को इतना ज्ञान नहीं हो सकता कि वह कानून बनाकर उन्हें लागू भी कर दे। राजनीतिक कार्यपालिका को प्रशासन चलाने के लिए नौकरशाही की सहायता अवश्य लेनी पड़ती है। यह सत्य है कि नौकरशाही के विकास के बाद प्रशासन अधिक कार्यकुशल, विवेकशील और संगत बना है।
शासनतन्त्र की सफलता कुशल प्रशासन-तन्त्र पर ही निर्भर काती है। इसलिए आज आवश्यकता इस बात की है कि नौकरशाही को जनसेवक की भूमिका अधिक से अधिक अदा करनी चाहिए। उसे राजनीतिक तटस्थता को बरकरार रखकर ही संविधानिक आदर्शों के प्रति समर्पित होकर कार्य करने रहना चाहिए। इसी में उसकी भूमिका का औचित्य है।
नौकरशाही की आलोचना
यद्यपि नौकरशाही सामाजिक विकास को गति देने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है, लेकिन फिर भी इसको आलोचना का शिकार होना पड़ा है। इसकी आलोचना के प्रमुख आधार हैं :-
- नौकरशाही में औपचारिकता पर अधिक ध्यान दिया जाता है। इससे अधिकारी गण मशीनी मानव बनकर रह जाते हैं और उनकी आत्म-निर्णय की शक्ति का ह्रास हो जाता है।
- अनावश्यक व लम्बी औपचारिकता के कारण लालफीताशाही का जन्म होता है। इसका अर्थ होता है -कार्य में विलम्ब। कई बार तो जब निर्णय प्रभावी होते हैं, उनके पीछे मूल निहितार्थ ही बदल चुका होता है।
- नौकरशाही साधारणत: जनसाधारण की मांगों की उपेक्षा ही करती है। जनसाधारण परिवर्तन का पक्षधर होता है, जबकि नौकरशाही परिवर्तन की विरोधी होने के कारण परम्परावादी होती है।
- नौकरशाही में अपने कार्य के प्रति अनुत्तरदायित्व की भावना पाई जाती है, क्योंकि नीतियों के क्रियान्वयन की सफलता व असफलता का सारा श्रेय राजनीतिक कार्यपालिका को ही जाता है।
- नौकरशाही से एक ऐसे शक्तिशाली विशिष्ट वर्ग का जन्म होता है हो शक्ति प्रेम का भूखा होता है और निरंकुशता की प्रवृत्ति को जन्म देता है।
- नौकरशाही प्रशासनिक कार्य-व्यवहार को अधिक जटिल बना देती है। इसमें जानबूझकर नियमों की तोड़- मरोड़ कर व्याख्या की जाती है।
- नौकरशाही लकीर के फकीर के रूप में ही रूढ़िवाद का समर्थन करती है।
- नौकरशाही का रूप अमानवीय होता है क्योंकि यह कानून के शासन के सिद्धान्त के आधार पर ही कार्य करती है। इसमें अधिकारियों के व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों के लिए कोई स्थान नहीं होता है।
