अनुक्रम
यूरोप में नागरिक अधिकार आंदोलन
यूरोप में नागरिक अधिकार आंदोलन की जड़े मूलत: कैथोलिक एवं प्रोटेस्टेण्ट सम्प्रदायों के मध्य संघर्ष में देखी जा सकती है। यह सघर्ष उत्तरी आयरलैण्ड में 60 के दशक में आयरलैण्ड सरकार की भेदभावपूर्ण नीति को लेकर प्रारंभ हुआ और शनै: शनै: नागरिक अधिकार आंदोलन में परिवर्तित हो गया। कैथोलिको ने न केवल सरकार की अन्यायपूर्ण आवास नीति को चुनौती दी बल्कि उन्होंने नागरिक अधिकारों के लिए लड़ाई की ओर भी पहला कदम उठाया। अपने समुदाय की स्थिति को सुधारने हेतु उन्होंने विभिन्न प्रकार के माध्यमों का सहारा लेते हुये एक विशाल ईसाई जन समुदाय को स्थानीय एवं आंतरिक मुद्दों से दूर हटाकर नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष की ओर प्रेरित किया।
जनवरी 1964 में बेलफास्ट में श्सामाजिक न्याय के लिए अभियान(Campaign for Social Justice) की स्थापना की गई। इस संस्था ने सरकार के खिलाफ आवास नीति पर महिलाओं के संघर्ष एवं रोजगार में भेदभाव के मुद्दे को उठाया। उन्होंने सरकार के इस वादे को चुनौती दी की उनका मामला स्ट्रॉसबर्ग में संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार आयोग में उठाया जायेगा। 60 के दशक के अंतिम वर्षों एवं सत्तर के दशक के प्रारंभ में यह आंदोलन एक स्थानीय संघर्ष से परिवर्तित होकर पूर्णतया नागरिक अधिकारों का आंदोलन बन गया। इसी दौरान उत्तरी आयरलैण्ड श्नागरिक अधिकार सभाश् (Northen Ireland Civil Rights Association) का गठन किया गया।
यूरोप में उत्तरी आयरलैण्ड के अलावा कई देशों में अलग-अलग तरीके से नागरिक अधिकार आंदोलन हुये। 1960 के अंत में जर्मनी में नागरिक अधिकार आंदोलन हुआ। मूलत: यह एक श्विरोध प्रदर्शन आंदोलनश् था जो कि उन छात्रों के द्वारा चलाया गया था जिनका, नाजीवाद की पश्चात्वर्ती जर्मन सरकार एवं अन्य पश्चिमी सरकारों के सत्तावाद एवं पाखंड से मोह भंग हो चुका था। इस आंदोलन के दौरान हिंसक प्रदर्शन हुये जिसका कि जर्मन पुलिस ने दमन कर दिया। इस आंदोलन को तत्कालीन विश्वव्यापी आंदोलनो से प्रेरणा प्राप्त हुई तथा इस आंदोलन ने जर्मनी में छात्र राजनीति के महत्व को चिन्हांकित किया।
उपरोक्त नागरिक आंदोलनों के अतिरिक्त यूरोप में फ्रांस का आंदोलन उल्लेखनीय है। मई 1968 में फ्रांस की राजधानी पैरिस में एक आंदोलन भड़क उठा। मुख्यत: इस आंदोलन में हाईस्कूलों, विश्वविद्यालयों के छात्रों ने भाग लिया। छात्रों के साथ-साथ संपूर्ण फ्रांस के लगभग दो-तिहाई मजदूरों ने भी भाग लिया। कतिपय इतिहासकारो और दार्शनिकों ने इस आंदोलन को फ्रांस में बीसवीं सदी की एकमात्र क्रांतिकारी घटना का दर्जा दिया है। इस आंदोलन के तहत लाखो छात्र एवं कामगारो ने अपने अधिकारों के पक्ष में सरकार के विरूध्द सड़कों पर प्रदर्शन किया। इस हड़ताल को फ्रांस की कम्यूनिस्ट पार्टी का समर्थन प्राप्त था। विद्रोही चाहते थे कि तत्कालीन श्दी गालेश् सरकार को बर्खास्त कर दिया जाए।
सरकार ने इस विद्रोह को कठोरता से दबा दिया। सरकार ने कामगारो को आश्वासन देते हुये सुधारो का वादा किया तथा उन्हें वापिस अपने कार्यों पर जाने के लिए कहा। इसके साथ ही श्दी गालेश् की सरकार ने प्रदर्शनकारियों को चेतावनी देते हुये सैन्य बलों तथा पुलिस को आंदोलन दबाने के लिए आदेशित किया। जून 1968 में श्दी गालेश् सरकार ने एक कदम और आगे बढ़ते हुये हड़तालियों को आपातकाल लगाने की धमकी देकर हतोत्साहित करते हुये शांति एवं व्यवस्था बनाने की कोशिश की। सरकारी दमन चक्र चलने के पश्चात् विद्राहियों में हताशा फैल गई और कम्यूनिस्ट पार्टी ने आंदोलन से अपने हाथ खींच लिये। जून 1968 में ही राष्ट्रीय असेम्बली को भंग कर दिया गया और 23 जून 1968 में नये निर्वाचन कराये गये। इन निर्वाचनों में कम्यूनिस्टो को शिकस्त खानी पड़ी और श्दी गालेश् सरकार पुन: अधिक शक्तिशाली बनकर उभरी। यद्यपि यह एक असफल अभियान था किन्तु अपनी न्यायोचित मांगों के कारण इस आंदोलन का नागरिक अधिकारों के आंदोलनो के इतिहास में विशिष्ट स्थान हैं। इन आंदोलनो के अतिरिक्त यूरोप में चैक गणराज्य का श्प्राग-िस्प्रंगश् नामक आंदोलन भी नागरिक आंदोलन के इतिहास में उल्लेखनीय माना जाता है।
अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदोलन
अपेक्षाकृत स्थिर राजनैतिक तंत्र के विकासक्रम में एक ऐसी स्थिति आती है जब प्रत्येक नागरिक को विधि के समक्ष समान अधिकार तो प्राप्त हो जाते है किन्तु भेदभाव एक व्यवहारिक समस्या के रूप में विद्यमान रहते है। यहां तक कि प्रत्येक व्यक्ति के साथ राज्य के द्वारा समानता का व्यवहार किया जाता है किन्तु भेदभाव के कारण समाज में रोजमर्रा की जिंदगी में नागरिक स्वतंत्रता के हनन की संभावना बनी रहती है। 20वीं सदी के आते-आते अमेरिकी लोकतंत्र प्रौढ़ हो चुका था। मगर वो राजनैतिक और सामाजिक समस्याएं पूर्ववत बनी हुई थी जिनके बीज अमेरिका के विगत इतिहास में निहित थे। रंगभेद, नस्लवाद और लैंगिक असमानता आदि वे ऐसे मुद्दे थे, जिनसे अमेरिकी समाज अभी तक पूर्णत: नहीं उबर पाया था।
20वीं सदी के उत्तरार्ध में 1955 से 1968 के बीच अमेरिका में नस्लीय, लैगिंक एवं कानूनी समानता को लक्ष्य में रखकर एक आंदोलन चलाया गया जिसे अमेरिका में श्नागरिक अधिकार आंदोलन की संज्ञा दी गई है। इसे श्द्वितीय-पुर्ननिर्माण’(Second Re-construction) के नाम से भी जाना जाता है। यह आंदोलन अमेरिकी श्सुधारवादी आंदोलनश् का एक हिस्सा भी माना जा सकता है।
19वीं सदी के अंतिम दशक में अमेरिका में नस्लीय भेदभाव वाले कानूनों और प्रजातीय हिंसा का बोलबाला था। अमेरिका के इतिहास में इस काल को श्अमेरिकी प्रजातीय संबंधों का नादिरश् के नाम से भी जाना जाता था। विशेष रूप से टैक्सास, लुसियाना, मिसीसिपी, अलाबामा, जार्जिया, फ्लोरिडा, साउथ, कैरोलिना, नार्थ कैरोलिना, वर्जिनिया, अराकांसस, टैनिसी, ओकलोहामा, और कैसांस ऐसे राज्य थे जिनमें सरकारी एवं गैरसरकारी स्तर पर अफ्रो-अमेरिकी लोगो के साथ प्रत्येक क्षेत्र में भेदभाव किया जाता था। यह भेदभाव लगभग सभी जैसे, मताधिकार, आर्थिक अवसर, स्थानीय राजनीतिक प्रतिनिधित्व, रोजगार के अवसर आदि स्तरों में व्याप्त था। इस भेदभाव पूर्ण नीति से प्रभावित लोगो ने (मुख्यत: अश्वेतों ने) प्रारंभिक अवस्था में श्प्रत्यक्ष-कार्यवाहीश् के साथ श्अहिंसक-प्रतिरोधश् की रणनीति अपनाते हुये 1955 में आंदोलन प्रारंभ कर दिया जो कालांतर में श्नागरिक-अवज्ञाश् के नाम से विख्यात हुआ। आंदोलनकारियों ने अपनी मांगों के समर्थन के लिए विभिन्न प्रकार के श्बहिष्कारों, पैदल मार्च और बैठकों का आयोजन किया।
इस आंदोलन के परिणामस्वरूप आंदोलनकारियों ने अमेरिका में महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल कर ली। यद्यपि इस आंदोलन की सफलता पर इतिहासकारों में मतभेद है किन्तु जो सफलताएं मिली थी वे उस युग में अत्यंत महत्वपूर्ण थी जैसे कि शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलता, 1964 का नागरिक अधिकार अधिनियम जिसके द्वारा रोजगार, जन-आवाास आदि के क्षेत्र में भेदभाव को अवैध घोषित कर दिया गया था। इस आंदोलन की अन्य उपलब्धियों में 1965 का निर्वाचन अधिकार अधिनियम, जिसके द्वारा मताधिकार को सुरक्षित किया गया। इसके अतिरिक्त 1968 का नागरिक अधिकार अधिनियम जिसने आवास के बेचने या किराये से देने में होने वाले भेदभाव का अंत कर दिया था। इस प्रकार अमेरिका के इतिहास में 1955 से 1968 तक का काल अत्यंत विशिष्ट स्थान रखता है। जिसने विश्व के अनेक राष्ट्रों और समाजों को नागरिक अधिकारो की ओर प्रेरित किया। इस तारतम्य की चरम परिणीति सन् 2009 में दिखाई दी जब अमेरिका के प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति बराक ओबामा ने शपथ लेकर अमेरिका में एक नवीन युग का सूत्रपात किया। वास्तव में यह घटना नागरिक अधिकारवादियों के द्वारा अमेरिका में किये गये दीर्घकालिक संघर्ष की एक सुखद परिणीती है।
अन्य नागरिक अधिकार आंदोलन
अमेरिका और यूरोप में हुये नागरिक अधिकार आंदोलनों ने लगभग संपूर्ण विश्व को प्रभावित किया। 1960 में इसकी एक लहर नव-स्वतंत्र अफ्रीका महाद्वीप में भी उठी। इसमें श्अंगोला का स्वतंत्रता संग्रामश्, गिनी-बिस्साउन रिवोल्यूशन, मोजाम्बिक स्वातंत्र्य युध्द, और दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद (Apartheid) के खिलाफ संघर्ष आदि घटनाये प्रमुख रूप से गिनाई जा सकती है। इन संघर्षों के परिणामस्वरूप श्पान-अफ्रीकानिज्मश् को बल प्राप्त हुआ और बाद में 1963 में श्अफ्रीकी एकता संगठन’(Organisation of African Uniti) की स्थापना की गई। अफ्रीका के अलावा 20वीं सदी के उत्तरार्ध में विश्व के अन्य देशों में भी छुटपुट रूप से नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष किया गया। इनमें से कुछ सफल रहें और कुछ असफल, किन्तु इन संघर्षों ने लोकतंत्र और मानवाधिकारों के विकास में निश्चित रूप से योगदान दिया। इनमें मैक्सिको का आंदोलन 2 अक्टूबर 1968, कनाडा का अक्टूबर-संकट 1968, द्वितीय विश्वयुध्द के बाद अमेरिका से संधि के नवीनीकरण के विरोध में जापानी आंदोलन 1960, आदि ऐसी प्रमुख घटनायें है जिन्होंने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नागरिक अधिकारों के महत्व को स्थापित किया है।