निश्चित चरण, वर्ण, मात्रा, गति, यति, तुक और गण आदि के द्वारा नियोजित पद्य रचना को छंद कहते हैं।
1. मात्रिक छंद – जिन छंदों की रचना मात्राओं की गणना के आधार पर होती हैं, उन्हें मात्रिक छंद कहते है। जैसे-दोहा, चौपाई, रोला आदि। मात्रिक छंद तीन प्रकार के होते हैं-
- वर्णिक छंद- जिन छंदों की रचना वर्णों की गणना के आधार पर होती है, उसे वर्णिक छंद कहते है उदाहरण-दुर्मिल सवैया
- वर्णिक वृत्त-इसमें वर्णों की गणना होती है। इसमें चार समान चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में आने वाले लघु-गुरू का क्रम सुनिश्चित होता है। उदाहरण-मत्तगयंद सवैया।
- मुक्त छंद- चरणों की अनियमित, असमान, स्वच्छंद गति और भाव के अनुकूल यतिविधान ही मुक्त छंद की विशेषता है। इसे रबर या केंचुआ छंद भी कहते है।
2. दोहा – यह अर्धसममात्रिक छंद है। यह सोरठा का विपरीत होता है। इसमें चार चरण होते है इसके विषम चरणों (पहले और तीसरे) में 13, 13 मात्राएं होती है। सम चरणों (दूसरे ओर चौथे) में 11, 11 मात्राएँ होती हैं। सम चरणों के अन्त में लघु पड़ना आवश्यक है एवं तुक भी मिलना चाहिए।
उदाहरण-
कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर।
समय पाय तरूवर फरै, केतक सींचो नीर ।।
उदाहरण-
कहै जु पावै कौन, विद्या धन उद्यम बिना ।
ज्यों पंखे की पौन, बिना डुलाए न मिलें।
उदाहरण-
नीलांबर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है।
सूर्य चन्द्र युग-मुकुट मेखला रत्नाकर है।
नदियां प्रेम-प्रवाह, फूल तारे मंडन है।
बन्दी जन खग-वृन्द, शेष फन सिंहासन है।
उदाहरण-
हे प्रभो आनन्ददाता ज्ञान हमको दीजिये।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिये।
लीजिए हमको शरण में, हम सदाचारी बनें।
ब्रहमचारी, धर्मरक्षक वीर व्रतधारी बनें।
उदाहरण-
कहती हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गये।
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गये पंकज नये।।
उदाहरण के लिए यह बरवै देखें:-
बाहर लैके दियवा वारन जाय।
S।। S S।।S S।। S।
(पहला चरण (12 मात्राएं) (दूसरा चरण (7 मात्राएं)
सासु ननद ढ़िग पहुंचत देत बुझाय ।।
S । ।।। ।। ।।।। S।। S।।
(तीसरा चरण (12 मात्राएं) (दूसरा चरण (7 मात्राएं)
छंद के अंग
1. चरण या पाद –चरण को पाद भी कहते हैं। एक छंद में प्राय: चार चरण होते हैं। चरण छंद का चौथा हिस्सा होता है। प्रत्येक पाद में वर्णों या मात्राओं की संख्या निश्चित होती हैं। चरण दो प्रकार के होते हैं।
- समचरण-दूसरे और चौथे चरण को समचरण कहते हैं।
- विषमचरण-पहले और तीसरे चरण को विषम चरण कहते है।
2. वर्ण और मात्रा – वर्णों के उच्चारण में जो समय लगता है, उसे मात्रा कहते हैंं। वर्ण की दृष्टि से दो प्रकार के होते हैं-
- ह्रस्व (लघु) वर्ण तथा
- दीर्घ वर्ण। लघु वर्ण में एक मात्रा होती है, और दीर्घ वर्ण में दो मात्राएं होती हैं। लघु का चिन्ह ‘।’ एवं गुरू का चिहृ ‘S’ है।
3. यति – किसी छंद को पढ़ते समय पाठक जहां रूकता या विराम लेता है, उसे यति कहते हैं।
जिस गण को जानना हो उस गण के पहले अक्षर को लेकर आगे के दो अक्षरों को मिलाकर वह गण बन जाता हैं।
जैसे-यमाता । S S लघु गुरू गुरू यगण
