अनुक्रम
‘कथक’ शब्द व्युत्पत्ति- ‘कथक अथवा ‘कत्थक’ दोनों शब्दों का आशय एक ही प्रकार की शास्त्रीय नृत्य शैली से है। कथक संस्कृत व्याकरण की दशमगण की ‘कथ्’ धातु से (कथनकत्र्तरिबूल) विनिर्मित एक कृदन्त शब्द है। इसकी उत्पत्ति निम्नांकित प्रकार से की गई है। ‘कथयति य: स कथन’ अर्थात् जो कथन करे वह कथक है।
कथक नृत्य की उत्पत्ति एवं विकास
डॉ. माया टाक के अनुसार – कथक का आरम्भ ही मंदिरों से माना जाता है। कथाओ को प्रस्तुत करने वाला और मंदिरों में कथा वाचकों कों ही कथक की उत्पत्ति से जोड़ कर देखा जाता है।
कथक नृत्य की उत्पत्ति के सम्बंध में एक मत स्वामी हरिदास जी से सम्बंधित है। कहा जाता है कि स्वामी हरिदास जी ने जिन शिष्यों को गायन की शिक्षा दी वह गायक बने जिनको वादन की शिक्षा दी वह किन्नर बनें और जिनको नृत्य सिखाया वे कथक बने।
डॉ. प्रेम दवे के अनुसार – ‘‘वैष्णव भक्त स्वामी हरिदास के सम्मुख नृत्य किया करते थे’’। स्वामीजी के जिन शिष्यों ने उनसे नृत्य की शिक्षा प्राप्त की वे कथक बने। आज भी वृन्दावन में रास के बीच-बीच में कथक के बोलों का प्रयोग किया जाता है जैसे-तकिट-तकिट, धिलांग, गदिगंन, तादीम-तादीम, तत तथा थे आदि।
डॉ. माया टाक के अनुसार – वैष्णव साहित्य में ऐसा उल्लेख मिलता है कि प्रसिद्ध सन्त स्वामी हरिदास जी हरीकीर्तन के समय भावविभोर होकर नृत्य करने में लग जाते थे। धीरे-धीरे यह नृत्य मंदिरों से दरबारों की ओर बढ़ा।
डॉ. प्रवीन आर्या जी के अनुसार – कथक नृत्य की जो उत्पत्ति हुई है वह भगवान कृष्ण के रास से मानी जाती है और उस समय रास के साथ प्राचीन काल से ही पखावज बजता आया है उसके बाद तबला आया। कहने का तात्पर्य है कि नृत्य की शुरूआत ही पखावज के साथ हुई है और कथक के साथ जो सर्वप्रथम अवनद्ध वाद्य बजा वह पखावज ही था। कथक नृत्य द्वापर युग लगभग 5000 वर्ष भगवान कृष्ण के समय से ही प्रचलन में है और अवनद्ध वाद्यों का सम्बन्ध तभी से चला आ रहा है।
कथक नृत्य का इतिहास
1. वैदिक काल में कथक नृत्य
2. महाकाव्य काल में कथक नृत्य
3. पौराणिक काल में कथक नृत्य
- ‘शिव पुराण’ में शिव के मन्दिर में पूजन करते समय नृत्य एवं संगीत में पारंगत सौ कन्याओं द्वारा पूजन का विधान मिलता है।
- ‘अग्नि पुराण’ में नृत्य करते समय शरीर के विभिन्न अंग संचालन के प्रयोग के बारे में एक अलग अध्याय लिखा गया है।
- भागवत की ‘रास-पंचाध्यायी’ एवं ‘विष्णु पुराण’ में रास का उत्कृष्ट रूप देखने को मिलता है।
4. ऐतिहासिक काल में कथक नृत्य
5. मध्य काल में कथक नृत्य
कथक नृत्य के घराने
‘घराना’ एक सामान्य शब्द है घराना शब्द की उत्पत्ति घर से हुई है। साधारण रूप से घराना शब्द का अर्थ है वर्ग, सम्प्रदाय, परिवार, कुटुम्ब, वंश परम्परा, कुनबा, घर इत्यादि। घराने का अर्थ उस विशेष वंश परम्परा से है जो एक पीढ़ी में हस्तांतरित होती है। संगीत के क्षेत्र में परम्परा का अर्थ सामान्य रूप से कला का पीढ़ी दर पीढ़ी उसी रूप में आगे बढ़ने जाने से होता है।
1. जयपुर कथक घराना
2. लखनऊ कथक घराना
3. बनारस कथक घराना
4. रायगढ़ कथक घराना
- मेसी एण्ड मेसी, दी डांसेस ऑफ इण्डिया, पृ. 11
- पं. तीर्थराम आजाद, कथक ज्ञानेश्वरी पृ. 18
- गीता रघुवीर, कथक के प्राचीन नृत्तांग, पृ. 3
- यजुर्वेद सांतवलेकर, पुरुषसूक्त, अध्याय-30, मंत्र संख्या-6, पृ. 126
- अथर्व वेद सांतवलेकर, 12-1-41द्ध पृ. 272
- पं. तीर्थराम आजाद, कथक दर्पण, पृ. 12
- गीता रघुवीर कथक के प्राचीन नृत्तांग, पृ. 4
- वाल्मिकी रामायण, सांतवलेकर (2-69-4)
- वेदव्यासप्रणीत महाभारत (विराट-पर्व श्लोक-53) पृ. 324
- गीता रघुवीर, कथक नृत्य के प्राचीन नृत्तांग, पृ. 4
- V.S. Agarwala, India as Known to Panini, Pg. 338.339
- गीता रघुवीर, कथक नृत्य के प्राचीन नृत्तांग, पृ. 5
