अनुक्रम
पाश्चात्य देशों में औद्योगिक क्रांति (जिसका बाद में पूर्वात्य देशों में भी विस्तार हुआ) के पश्चात् लम्बे समय तक मानव को भी मशीन के समान समझा गया व मानवीय भावनाओं, संभावनाओं एवं सम्बन्धों की अवहेलना तथा श्रमिक वर्ग के हितों की अनदेखी की जाती रही। फलस्वष्प, वैश्विक स्तर पर औद्योगिक अशांति फैली एवं अनेक देशों में साम्यवादी क्रांति का सूत्रपात हुआ। कालान्तर में सुधारवादी प्रबन्धकों एवं व्यवहारवादी प्रबन्ध वैज्ञानिकों ने श्रम समस्याओं पर नये सिरे से चिन्तन किया तथा औद्योगिक सम्बन्धों को उत्तम बनाने के लिए प्रबन्धन, प्रशासन, श्रमिक एवं श्रम संघों के सम्मिलित प्रयासों को महत्व दिया जाने लगा।
औद्योगिक शांति के वातावरण में कार्य उपलब्धि सुगम होती है व संगठन की सुचारू प्रगति व उद्देश्यों की प्राप्ति सुनिश्चित होने की संभावना बढ़ जाती है। औद्योगिक शांति श्रमिक-नियोक्ता के मध्य सम्बन्धों में समुचित सुधार के द्वारा ही हासिल की जा सकती है। इस प्रकार औद्योगिक सम्बन्धों के अन्तर्गत श्रमिक वर्ग व नियोक्ता (प्रबन्धन) वर्ग के मध्य स्थापित होने वाले सामूहिक सम्बन्धों को सम्मिलित किया जाता है। इसमें विभिन्न लोगों के मध्य पनपने वाले व्यक्तिगत सम्बन्ध शामिल नहीं है। किन्तु प्रसिद्ध प्रबन्ध शास्त्री डेल योडर के विचार से औद्योगिक सम्बन्ध वे सम्बन्ध है जो नियोजन की दशाओं में तथा रोजगार के क्षेत्र में ही पाये जाते हैं। इसके अन्तर्गत व्यक्तियों के बीच सम्बन्धों का बृहत् क्षेत्र तथा मानवीय सम्बन्ध सम्मिलित किए जाते हैं, जो आधुनिक उद्योग में स्त्रियों व पुरुषों के सम्मिलित कार्य करने की प्रक्रिया में उत्पन्न होते हैं।’
औद्योगिक सम्बन्ध की परिभाषा
विभिन्न विद्वानों ने औद्योगिक सम्बन्ध की अवधारणा को निम्न प्रकार परिभाषित किया है :
औद्योगिक संबंध के भागीदार
जॉन डनलप (1951) के विचार से, ‘‘औद्योगिक समाज निश्चित रूप से औद्योगिक सम्बन्धों को जन्म देता है, जिन्हें श्रमिकों, प्रबन्धकों तथा सरकार के अन्तसंर्बध कहा जाता है।’’ ये तीनों ही पक्ष एक दूसरे को प्रभावित करते हैं तथा औद्योगिक सम्बन्धों का ढांचा निर्मित करते हैं। तीनों भागीदारों का विवरण निम्न प्रकार है :
इस प्रकार, श्रमिकों व उनकी कार्यदशाओं में सुधार एवं उनके हितों की रक्षा करने में राजकीय सहयोग, नियमन व नियंत्रण तथा सरकारी हस्तक्षेप का औद्योगिक सम्बन्ध के क्षेत्र में बड़ा महत्व होता है। विधि व्यवस्था, पंच निर्णय, न्यायाधिकरणों व न्यायालयों के निर्णय, समझौतों,रीतियों व परम्पराओं का अनपु ालन सामूहिक रूप से आद्यै ोगिक व्यवस्था को दिशा देते हैं। इसी पक्र ार सार्वजनिक उपक्रमों में श्रमिक कल्याण के विभिन्न उपायों को लागू करके तथा विभिन्न कानूनी प्रावधानों को अमली जामा पहनाकर राज्य निजी क्षेत्र के समक्ष औद्योगिक वातावरण को बेहतर बनाने के लिए उदाहरण प्रस्तुत करता है।
औद्योगिक सम्बन्ध के उद्देश्य
कुछ अमेरिकी विद्वानों का मत है कि औद्योगिक सम्बन्धों का उद्देश्य व्यक्ति का अधिकतम विकास करना, श्रमिकों व नियोक्ताओं के मध्य वांछित कार्यकारी संबंध स्थापित करना तथा भौतिक संसाधनों की अपेक्षा मानव संसाधनों को इच्छित गति प्रदान करना है। वैसे, औद्योगिक सम्बन्धों का मूल उद्देश्य दो पक्षों, अर्थात् श्रमिकों एवं प्रबन्धकों, के मध्य अच्छे तथा स्वस्थ सम्बन्धों का विकास करना है ताकि औद्योगिक शांति एवं उत्पादकता को बढ़ावा दिया जा सके। औद्योगिक सम्बन्धों के विशिष्ट उद्देश्य निम्न प्रकार है :
- श्रमिक तथा नियोक्ता दोनों के हितों की रक्षा करना; इसके लिए दोनों पक्षों में एक दूसरे के दृष्टिकोण के प्रति समझ व आदर भाव उत्पन्न करना।
- औद्योगिक विवादों की रोकथाम करना ताकि अधिक उत्पादन के राष्ट्रीय लक्ष्यों की पूर्ति हो सके।
- पूर्ण रोजगार की स्थिति उत्पन्न करने के लिए अधिकतम रोजगार एवं अधिकतम उत्पादन का लक्ष्य हासिल करना।
- श्रम बदली व अनुपस्थिति की दर में कमी करना।
- औद्योगिक प्रजातंत्र की स्थापना करना; इसके लिए नीति निर्धारण व प्रबन्धन में श्रमिक वर्ग की सहभागिता सुनिश्चित करना।
- श्रमिकों को सिविल सोसायटी का अंग बनाना, ताकि उनका व्यवहार तर्क आधारित तथा राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप हो सके।
- हड़ताल, तालाबन्दी, घेराव आदि में कमी लाने का प्रयास करना; इसके लिए श्रमिकों को उपयुक्त मजदूरी, अच्छी कार्य दशाएँ, अच्छी रहन सहन की दशाएँ तथा अन्य अनुषंगी लाभ सुनिश्चित कराना। साथ ही, श्रमिकों को कार्य के प्रति अधिक समर्पित बनाना।
- औद्योगीकरण के फलस्वरूप उत्पन्न सामाजिक असन्तुलन को दूर करना तथा आस-पास के वातावरण को शांतिपूर्ण बनाना। इसमें औद्योगिक सम्बन्धों की महत्वपूर्ण भूमिका होता है; इसके लिए राज्य को भी आवश्यक हस्तक्षेप करना चाहिए।
- कुल सामाजिक लाभ में बढ़ोत्तरी करना।
- श्रमिकों व प्रबन्धकों के बीच अविश्वास की खाइंर् पाटकर उनमें सम्पकर् सेतु कायम करना।
- औद्योगिक विवादों को यथासम्भव टालना व मधुर सम्बन्ध बनाना।
- उत्पादन प्रक्रिया में श्रमिकों की अधिकतम भागीदारी सुनिश्चित कर देश के विकास को बढ़ावा देना।
इस प्रकार, औद्योगिक सम्बन्धों का उद्देश्य औद्योगिक व्यवस्था में स्पर्धा, संघर्ष व हितों का टकराव टालकर प्रबन्धन व श्रमिक वर्ग के मध्य परस्पर हित का संरक्षण करने वाली कार्यकारी व सही समझ उत्पन्न करना है, ताकि उनमें सहयोगात्मक व विश्वसनीय सम्बन्धों का विकास किया जा सके।
औद्योगिक संबंधों के निर्धारक कारक
औद्योगिक सम्बन्ध शून्य में विकसित नहीं होते। ये उस वातावरण से प्रभावित होते रहते हैं, जिसमें श्रमिक रहते व कार्य करते हैं। इन कारकों को दो वर्गों में विभक्त कर सकते हैं : – (अ) संस्थागत कारक (ब) आर्थिक कारक
आर0 ए0 लेस्टर ने श्रम व प्रबन्धन के मध्य सम्बन्धों को प्रदर्शित करने के लिए तीन घटक बताए हैं :
- आर्थिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक व राजनीतिक शक्तियाँ, जो एक ओर नीति निर्धारण तथा प्रबन्ध की कार्यवाही की तथा दूसरी ओर श्रम संघ के पदाधिकारियों व सदस्यों की कार्यवाही को प्रभावित करती है ;
- प्रबन्धकों व श्रमिकों के बीच शक्ति सम्बन्धों का ढाँचा, तथा
- श्रम एवं प्रबन्धन के बीच शक्ति का संतुलन। लेस्टर प्रथम प्रकार के कारकों को मूल कार्य घटक तथा शेष दो प्रकार के कारकों को शकित ढाँचा घटक कहते हैं।
इन सभी घटकों में समन्वय इस प्रकार स्थापित किए जाने की आवश्यकता है कि औद्योगिक शांति को आगे बढ़ाया जा सके, ताकि उद्योगों में मानवीय सम्बन्धों में सुधार के द्वारा पूर्ण रोजगार की स्थिति, औद्योगिक प्रजातंत्र का विकास तथा लाभ एवं निर्णय में श्रम एवं प्रबन्धन की सहभागिता के बृहत्तर लक्ष्यों को हासिल किया जा सके।
औद्योगिक सम्बन्धों का विषय क्षेत्र
औद्योगिक सम्बन्ध कोई असाधारण सम्बन्ध नहीं हैं, बल्कि यह एक क्रियात्मक अंतनिर्भिरता है, जिसमें ऐतिहासिक, आर्थिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, जैविक, तकनीकी, व्यावसायिक, राजनैतिक, वैधानिक तथा अन्य चरणों का अध्ययन किया जाता है।
वी0 पी0 माइकल ( 1984 : 5 ) के शब्दों में, ‘‘यदि हम औद्योगिक विवादों (अर्थात् अच्छे औद्योगिक सम्बन्धों का अभाव) को किसी वृत्त का केन्द्र बिन्दु मानें तो वह वृत्त विभिन्न भागों में बँट जाएगा। उदाहरणार्थ, कार्य की दशाओं का अध्ययन मुख्यत: मजदूरी के स्तर तथा रोजगार की सुरक्षा आदि के सम्बन्ध में किया जाता है, जोकि आर्थिक क्षेत्र में आती हैं। विवादों का उदग् म तथा विकास इतिहास के क्षेत्र में आता है; उससे होने वाला सामाजिक विघटन समाजशास्त्र के क्षेत्र में ; श्रमिकों, नियोक्ताओं एवं सरकार तथा समाचार पत्रों आदि के विचार समाज मनोविज्ञान के क्षेत्र में ; उनकी सांस्कृतिक अंतक्रियाएँ सांस्कृतिक नृगत्व शास्त्र के क्षेत्र में ; सरकार की नीति जो विवादों के मामलों में अपनाई जाती है, राजनीतिशास्त्र के क्षेत्र में ; विवाद के वैधानिक तत्व विधि के क्षेत्र में ; श्रमिकों एवं नियोक्ताओं के मध्य सम्बन्ध के बारे में अंतराष्ट्रीय सहयोग एवं संधियाँ अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध के क्षेत्र में ; विवादों के प्रभाव (जिनमें श्रम नीति पर प्रशासन शामिल हो) लोक प्रशासन के क्षेत्र में ; और तकनीकी विषय (जैसे ताप नियंत्रण तथा विवेकीकरण की विधियों का उपयोग) तकनीकी क्षेत्र में ; तथा लाभ अथवा हानि का ऑकलन गणित के क्षेत्र में आता है।
उपरोक्त तथ्य से स्पष्ट हो जाता है कि औद्योगिक सम्बन्धों का विषय क्षेत्र विभिन्न विज्ञानों एवं ज्ञान क्षेत्रों की अंतर्निभरता का प्रमाण है। ये सम्बन्ध आर्थिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, राजनीतिक, व्यवसायिक तकनीकी आदि कई प्रकार के कारकों से प्रभावित होते हैं।
- औद्योगिक सम्बन्ध मानवीय धारणाओं और कार्य प्रक्रियाओं का मिश्रण होते हैं। सम्बन्ध अच्छे होंगे या बुरे, यह व्यक्तिगत भावनाओं और कार्य प्रक्रियाओं पर निर्भर करता है।
- धारणाओं के अन्तर्गत विश्वास एवं पहचान, भावुकता, एवं कार्यपरिणति के लिए संकल्प भावना सम्मिलित होती है। इन्हें समझना मनोवैज्ञानिक अध्ययन का विषय है।
- कार्य प्रक्रियाओं में, प्राथमिकता निर्धारण, चयन प्रक्रिया, निर्णय, आदेश पालन, सुझाव एवं सुधार प्रक्रिया, कार्य गहनता, अनुसंधान प्रक्रिया आदि सम्मिलित हैं। इनमें सुधार से संगठन एवं उसके सामाजिक दायित्व की पूर्ति होती है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने ‘सहयोग की स्वतंत्रता तथा सहयोग के अधिकार की रक्षा, संगठित होने के सिद्धान्त की क्रियान्विति, सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार, सामूहिक समझौता, मध्यस्थता, पंचनिर्णय, तथा अधिकारियों एवं व्यापारियों के संगठनों के बीच सहयोग को श्रम सम्बन्धों के अन्तर्गत सम्मिलित किया है।’
डेल योडर के विचार से, ‘‘औद्योगिक सम्बन्धों के अन्तर्गत भर्ती, चयन, श्रमिकों का शक्षण सेविवर्गीय प्रबन्ध, सामूहिक सौदेबाजी सम्बन्धी नीतियाँ सम्मिलित की जाती।’’ इस प्रकार, औद्योगिक सम्बन्धों का क्षेत्र काफी व्यापक है। इसके विषय क्षेत्र के अन्तर्गत उपरोक्त के साथ ही, निम्न बातों को भी सम्मिलित किया जाता है :-
- औद्योगिक क्षेत्र से जुड़े सभी व्यक्तियों के बीच अच्छे सम्बन्धों का निर्माण एवं उनका संधारण।
- मानवीय विकास को प्रोत्साहन
- कर्मचारियों में टीम भावना का निर्माण एवं उनमें संगठन के प्रतिनिष्ठा उत्पन्न करना।
- आपसी सम्मान, भाईचारा एवं औद्योगिक संस्थान में कौटुम्बिक सम्बन्धों का विकास।
- औद्योगिक संस्थान में शांति का वातावरण निर्मित करना।
- औद्योगिक उत्पादन एवं राष्ट्रीय विकास को प्रोत्साहन।
- समाज कल्याण को बढ़ावा।
- परिष्कृत नियमावली एवं कार्य प्रणाली का निर्धारण।
- उत्पादक – उपभोक्ता – सरकार के मध्य विश्वास व सद्भाव का वातावरण निर्मित करना।
स्कॉट क्लोदियर व स्प्रीगल (1977) के अनुसार, ‘‘औद्योगिक सम्बन्धों के अच्छे होने पर (अ) व्यक्ति का अधिकतम विकास (ब) कर्मचारी-नियोक्ता सम्बन्धों का अधिकतम विकास (स) कर्मचारियों के मध्य आपसी भाईचारा, तथा (द) भौतिक साधनों के अधिकतम उपयोग के लिए मानव संसाधनों का अधिकतम विकास होता है।’’