अनुक्रम
इस अधिनियम के अन्र्तगत कुल 31 धारायें है प्रत्येक धारा में उपभोक्ता संरक्षण संबंधी अलग-अलग नियम है। यह अधिनियम उपभोक्ता को यह एहसास कराता है कि जिस प्रकार उत्पादक अपनी वस्तुएँ एवं सेवाएँ प्रदान करने में स्वतंत्र है। वह अपनी इच्छानुसार वस्तु का मूल्य निर्धारित कर सकता है तो उपभोक्ता भी उन वस्तुओं को उन मूल्यों पर न खरीदने के लिये स्वतंत्र है।
- उपभोक्ताओं के विभिन्न अधिकारों को मान्यता देकर उपभोक्ताओं के हितों का संरक्षण एवं संवर्द्धन करना।
- जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर त्रि-स्तरीय प्रवर्तन तंत्र की स्थापना करके उपभोक्ताओं की शिकायतों का आसान, तीव्र एवं मितव्ययी समाधान करना।
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| उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अतर्गत विवाद निवारण एजेंसी |
उपभोक्ता की परिभाषा
- कोई भी व्यक्ति जो प्रतिफल के बदले माल को क्रय करता है, इसमें क्रेता की स्वीकृति से माल का उपयोगकर्त्ता भी शामिल है, परन्तु इसमें ऐसा व्यक्ति शामिल नहीं है जो माल को पुन: विक्रय के लिए खरीदता है।
- कोई भी व्यक्ति जो प्रतिफल के बदले सेवा को किराये पर लेता है। इसमें सेवाओं का लाभग्राही भी शामिल है, परन्तु इसमें ऐसा व्यक्ति शामिल नहीं है जो सेवा को वाणिज्यक उद्देश्य से प्राप्त करता है।
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में उपभोक्ता के अधिकार
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के उद्देश्य
उपभोक्ता सुरक्षा अधिनियम 1986 के उद्देश्य है उपभोक्ताओं के हितों को बेहतर सुरक्षा प्रदान करना और उपभोक्ताओं के विवादों और उनसे सम्बंधित मामलों का समाधान करना। यह अधिनियम सभी वस्तुओं और सेवाओं पर लागू होता है, सिवाय उनको छोड़कर जिन्हें केन्द्रीय सरकार ने अधिसूचित किया हुआ है। इस अधिनियम के तहत दी गई परिभाषा के अनुसार ‘उपभोक्ता’ का अर्थ है:-
(a) कोई भी व्यक्ति जो:
- कोई वस्तुएं खरीदता है, या
- कोई सेवा प्रापत करता है, या उसका उपयोग करता है, उसका पूर्ण भुगतान करके या किश्तों में या hire purchase आधार
(b) कोई व्यक्ति बिना किसी भुगतान करके या किश्तों के सामान का प्रयोग करता है या सेवाओं का लाभ उठाता है। इनके अतिरिक्त वे लोग जिन्हें हाउसिंग एण्ड डिवेलपमेंट बोर्ड द्वारा प्लाट अलाट किए गए हैं, सरकारी अस्पतालों/प्रााइवेट नर्सिग होम में इलाज कराने वाले रोगी, स्टाक-ब्रोकर के जरिये शेयर खरीदने/बेचने वाले व्यक्ति, रेलवे यात्री आदि को भी उपभोक्ता माना गया है। इस अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ताओं के निम्नलिखित अधिकारों को प्रचारित करने और उनकी रक्षा करेन के बारे में प्रावधान किया गया है:
- जो वस्तुएं या सेवाएं जीवन या सम्पत्ति के लिए घातक हों, उनकी मार्केटिंग के खिलाफ उपभोक्ता की सुरक्षा का अधिकार;
- वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, शक्ति (potency) शुद्धता, मानक और मूल्य जैसी भी स्थिति हो, की जानकारी प्राप्त करने का अधिकार ताकि अनुचित व्यापारिक प्रथाओं के विरूद्ध उसको बचाया जाए और रक्षा की जाए;
- जहाँ भी संभव हो, वह विभिन्न प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं को प्रतियोगी मूल्यों पर प्राप्त करें, इस आश्वासन का अधिकर:
- यथोचित फोरम पर सुनवाई और उपभोक्ताओं के हितों के प्रति उपयुक्त ध्यान दिया जाएगा, इस आश्वासन का अधिकार ;
- (a) अनुचित व्यापारिक पद्धतियों, या (b) प्रतिबंधी व्यापारिक पद्धतियों, या (c) धोखाधड़ी द्वारा शोषण, के खिलाफ उसकी क्षतिपूर्ति की मांग करने का अधिकार, और
- उभोक्ता को शिक्षित करने का अधिकार।
किसी वस्तु या सेवा के संबंध में शिकायत निम्नलिखित द्वारा की जा सकती है:-
- उपभोक्ता द्वारा स्वयं; या
- किसी मान्यता प्राप्त उपभोक्ता संघ द्वारा; या
- केन्द्रीय या राज्य सरकार द्वारा; या
- एक या एक से अधिक उपभोक्ताओं द्वारा, अगर उनके समान हित हों, या
- उपभोक्ता की मृत्यु होने पर उसके उत्तराधिकारी या प्रतिनिधि द्वारा। यह शिकायत, अगर मुआवजे की रकम की मांग 20 लाख रूपये से अधिक न हो तो डिस्ट्रिक्ट फोरम के समक्ष (जिला स्तर स्थापित) या जब मुआवजे की रकम की मांग 20 लाख रूपये से अधिक हो लेकिन 1 करोड़ रूपये से अधिक न हो, तो राज्य आयोग (राज्य स्तर पर स्थापित) के समक्ष और अन्य मामलो में राष्ट्रीय आयोग के समक्ष प्रस्तुत की जा सकती है। उपर्युक्त प्राधिकारी अगर शिकायत के संबंध में संतुष्ट हों तो दूसरी पार्टी को उपयुक्त आदेश दे सकते हैं जिसमें पीड़ित पार्टी को मुआवजा और खर्च देना शामिल होगा।

