अनुक्रम
आयकर लगाये जाने के उद्देश्य
- किसी भी देश में उसके खर्च पूरा करना, लोक कल्याण के कार्यों तथा राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अधिक मात्रा में धन की आवश्यकता होती है। कर सरकार की आय का सबसे बड़ा श्रोत होता है। सरकार की करों से आय में आयकर का एक बड़ा भाग होता है।
- देश की सरकार अपने कार्यक्रमों का संचालन करने के लिए आयकर का सहारा लेती है। यथा- प्रारम्भिक शिक्षा तथा उच्च शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार द्वारा विशेष उपकर लगाया गया है।
- बचत एवं निवेश दो ऐसे यन्त्र हैं जिनके द्वारा देश की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को नियन्त्रित किया जा सकता है। सरकार अपनी आयकर नीति के द्वारा इन यन्त्रों को इसप्रकार संचालित करती है कि उसे व्यक्तिगत बचतों को प्रोत्साहित करने तथा उसे सुनियोजित स्थान पर निवेशित कराने में सफलता प्राप्त हो जाती है। मुद्रा स्फीति की दशा में बचतों को प्रोत्साहन दिया जाता है जबकि संकुचन की दशा में अधिकाधिक उपभोग को बढ़ावा दिया जाता है।
- सरकार जिन उद्योगों को प्रोत्साहन देना चाहती है उन पर आयकर के अन्तर्गत विशेष रियायतें देती है। कुछ क्षेत्रों के उपभोक्ताओं को भी आकर्षित करने हेतु आयकर का प्रयोग किया जाता है।
- भारत में आयकर की दर प्रगतिगामी रखी गई है। इस व्यवस्था में धनवानों को अधिक कर चुकाना होता है तथा कम धनवानों को अपेक्षाकृत कम कर। निर्धन वर्ग को आयकर से मुक्त रखा गया है। अर्जित आयकर का प्रयोग निर्धनतम वर्ग के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए किया जाता है। आयकर का क्रम अमीर से गरीब की ओर तथा सुविधाओं का क्रम गरीब से अमीर की ओर रखा जाता है। इससे धनवानों के धन को निर्धन वर्ग से जोड़कर सामाजिक विषमताओं को कम किया जाता है।
- आयकर के द्वारा जनता को बचत की अनेक योजनाओं में धन निवेशित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। बचत की यह सूक्ष्म राशि सामूहिक स्तर पर डाकघर, सरकारी बैंकों, जीवन बीमा निगम तथा अन्य संस्थाओं के पास एकत्रित हो जाता है जो वृहद निवेश हेतु पूंजी निर्माण करती है। संस्थाओं द्वारा इसका प्रयोग औद्योगिक व व्यापारिक संस्थाओं को प्रारम्भ करने अथवा उन्हें मजबूत करने के लिए किया जाता है।
- सरकार अर्थव्यवस्था में मूल्यों की स्थिरता लाने के उद्देश्य से भी आयकर को प्रयोग करती है। व्यक्तिगत स्तर पर उपभोग, बचत व निवेश को प्रभावित करने में आयकर की विशिष्ट भूमिका होती है। व्यक्तिगत स्तर का यह प्रभाव वृहद स्तर पर सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है।
भारत में आयकर का इतिहास
भारत में प्रथम बार आयकर सन् 1860 ई. में सर जेम्स विलसन (Sir James Wilson) द्वारा लगाया गया था। सन् 1886 ई. में प्रथम भारतीय आयकर अधिनियम पारित हुआ जो 1917 तक यथावत लागू रहा। सन् 1918 ई. में एक नया आयकर अधिनियम बनाया गया जिसमें यह व्यवस्था थी कि चालू वर्ष की आय पर उसी वर्ष में कर निर्धारण किया जायेगा। यह व्यवस्था आयकर अधिनियम 1922 के द्वारा बदल दी गई और इस नये अधिनियम में यह व्यवस्था की गयी कि आयकर गत वर्ष की आय पर चालू वर्ष (कर निर्धारण वर्ष) में लगाया जावेगा।
आयकर कानून के संघटक
आयकर सम्बन्धी व्यवस्थाओं को समझने के लिए इन कानूनों की जानकारी आवश्यक है-
- पूर्णतया संशोधित आयकर अधिनियम 1961;
- पूर्णतया संशोधित आयकर नियम 1962;
- प्रत्येक वर्ष पारित किया गया वित्त अधिनियमय
- समय-समय पर जारी की गई अधिसूचनाए
- केन्द्रीय प्रत्यक्ष बोर्ड द्वारा समय-समय पर जारी किये गये परिपत्र एवं स्पष्टीकरण तथा
- न्यायिक निर्णय।
1. आयकर अधिनियम 1961 – यह अधिनियम 1 अप्रैल, 1962 से सम्पूर्ण भारत में लागू हुआ, जिसमें कर योग्य आय व उस पर कर के निर्धारण से सम्बन्धित प्रावधान, कर निर्धारण प्रक्रिया, अपील, शासित अपराध एवं अभियोजन के सम्बन्ध में प्रावधान दिये हुये हैं। इस अधिनियम में वार्शिक केन्द्रीय बजट तथा विभिन्न संशोधनों के द्वारा संशोधित प्रावधानों का समावेश किया जाता है। वर्तमान में इस अधिनियम में 298 धाराए तथा 14 अनुसूचियॉ (Schedules) हैं।
- भाग I : इस भाग में चालू कर निर्धारण वर्ष के सम्बन्ध मे आयकर की दरें दी हुई होती है। वित्त अधिनियम 2010 में कर निर्धारण वर्ष 2010-11 के सम्बन्ध में लागू दरें दी हुई हैं।
- भाग II : इस भाग में चालू वित्तीय वर्ष में कमाई गई आयों पर उद्गम स्थान पर कर की कटौती की दरें दी हुई होती है। जैसे- वित्त अधिनियम 2010 में वित्तीय वर्ष 2010-11 में कमाई जाने वाली आयों पर उद्गम स्थान पर कर की कटौती की दरें दी हुई हैं।
- भाग III : इस भाग में वते न शीर्षक में कर योग्य आयों पर उद्गम स्थान पर कर की कटौती करने के लिए दरें दी हुई होती हैं। वित्त अधिनियम 2010 में वित्तीय वर्ष 2010-11 से सम्बन्धित उद्गम स्थान पर कर की कटौती की दरें दी हुई हैं।
- भाग IV : इस भाग में शुद्व कृषि आय की गणना करने के सम्बन्ध में नियम दिये हुये होते है।
सामान्यत : भाग II तथा भाग III की दरें ही अगले वित्त अधिनियम में भाग-I की दरों के रूप में शामिल की जाती हैं।
आयकर की प्रमुख विशेषताएं
आयकर की प्रमुख विशेषताएं हैं-
2. केन्द्रीय कर- करदाता द्वारा आयकर का भुगतान केन्द्र सरकार को करना होता है। इसकी गणना के नियम व परिनियम केन्द्र सरकार द्वारा बनाये जाते हैं तथा केन्द्र सरकार के आयकर विभाग के अधिकारी ही कर निर्धारण व वसूली आदि की कार्यवाही करते हैं।
3. शुद्ध करयोग्य आय के आधार पर गणना- आयकर की गणना शुद्ध करयोग्य आय पर की जाती है। इसके लिए विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होने वाली आयों की पृथक गणना की जाती है तथा प्रत्येक के लिए निर्धारित नियमों के आधार पर आय ज्ञात कर कुल आय तथा तत्पश्चात निर्धारित छूट प्रदान करते हुए शुद्ध करयोग्य आय की गणना की जाती है। इसे कुल आय भी कहा जाता है। सकल आय में से धारा 80सी से लेकर 80यू तक की कटौतियों को घटाने के बाद इसे ज्ञात किया जाता है।
4. गतवर्ष की आय के आधार पर गणना- किसी कर निर्धारण वर्ष के लिए आय की गणना गतवर्ष की आय के आधार पर की जाती है। गतवर्ष से आशय 12 माह की उस अवधि से होता है जो कर निर्धारण वर्ष से ठीक पूर्व होती है। यह वो अवधि होती है जिसमें आय को अर्जित अथवा प्राप्त किया गया होता है। इसकी अवधि 1 अप्रेल से 31 मार्च होती है।
5. आय के विभिन्न श्रोत पर कर की गणना- आयकर की गणना के लिए आय के पाॅंच श्रोत निर्धारित किये गये हैं। ये हैं-1. वेतन से आय, 2. मकान सम्पत्ति से आय, 3. व्यवसाय अथवा पेशे से आय, 4. पूॅंजी लाभ तथा 5. अन्य श्रोतों से आय। वेतन से आय के अन्तर्गत सभी प्रकार के वेतनभोगियों को उनके नियोक्ता से प्राप्त वेतन, भत्ते, अनुलाभ व सुविधाओं के मूल्यों को सम्मिलित किया जाता है। इसके अतिरिक्त उनके अवकाश प्राप्ति, मृत्यु, छॅंटनी आदि अवस्था में पेंशन, अनुग्रह राशि व अन्य भुगतानों को भी सम्मिलित किया जाता है। मकान सम्पत्ति से आय के अन्तर्गत मकान के किराये से प्राप्त राशि को सम्मिलित किया जाता है चाहे यह किराया आवासीय भवन से हो अथवा व्यावसायिक भवन से। व्यवसाय व पेशे से आय की श्रेणी में सभी प्रकार की व्यापारिक व निर्माणी इकाइयों तथा पेशों (अधिवक्ता, सनदी लेखाकार, चिकित्सक आदि) की आय को सम्मिलित किया जाता है।
6. व्यक्ति, फर्म, कम्पनी आदि के लिए आयकर की पृथक गणना- आयकर की गणना के लिए व्यक्ति शब्द के अन्तर्गत किसी व्यक्ति, हिन्दू अविभाजित परिवार, कम्पनी, फर्म, व्यक्तियों के समूह, स्थानीय सत्ता तथा विधि द्वारा सृजित कृत्रिम व्यक्ति सम्मिलित होते हैं। आयकर की गणना के लिए व्यक्तियों, व्यावसायिक संस्थाओं व पेशेवरों तथा कम्पनी के लिए पृथक प्रावधान किये गये हैं तथा उन्हीं के आधार पर उन्हें कतिपय छूट भी प्रदान की गई हैं। अतः आयकर की गणना उनकी प्रास्थिति के आधार पर ही की जाती है।
7. कर की दरों में आय, आयु, लिंग के आधार पर भिन्नता- भारतीय आयकर नियमों में आयकर का निर्धारण करने के लिए भिन्न वर्गों के लिए भिन्न दर निर्धारित की गई हैं। आयकर को इसप्रकार खण्डों में बाॅंटा गया है कि व्यक्तिगत करदाताओं तथा व्यावसायिक करदाताआंें के लिए कर की दरों में भिन्नता रखी गई है। व्यक्तिगत आयकर दाताओं में अधिक आय वाले निर्धारिती को कर का भार अधिक सहना होता है। इसे प्रगतिशील कर की दर के रूप में जाना जाता है। वयोवृद्ध निर्धारिती के लिए कर की दर में रियायत दी गई है। महिला करदाताओं को भी पूर्व में कर की दरों में कमी की गई थी जो वर्तमान में समाप्त कर दी गई है।
