आभास लगान का विस्तृत अर्थों में सम्बन्ध किसी विशेष साधन से नहीं है बल्कि इसका सम्बन्ध एक फर्म की कुल लागत से है। अल्पकाल में एक फर्म की कुल लागत दो प्रकार की होती है, बंधी लागत (Fixed Costs) तथा घटती बढ़ती लागत (Variable Costs)। अल्पकाल में एक फर्म, मांग के कम होने पर उस समय तक उत्पादन करती रहेगी जब तक उसे घटती बढ़ती लागतें (Variable Costs) मिलती रहेंगी तथा केवल बंधी लागतों (Fixed Costs) की हानि उठानी पड़ेगी। इस प्रकार एक फर्म अल्पकाल में घटती बढ़ती लागतों से जितनी अधिक आय प्राप्त करेगी, वह आभास लगान (Quasi Rent) कहलाएगा। प्रो. बिलास के अनुसार, ‘‘कुल आय तथा कुल घटती बढ़ती लागतों के अन्तर को आभास लगान कहते हैं
मान लीजिए एक कम्बल बनाने वाली मशीन 10 कम्बल बनाती है, जिनकी कीमत 1,000 रुपये है। यदि इन कम्बलों पर लगाई गई ऊन, मजदूरी आदि घटती-बढ़ती लागतें भी 1,000 रुपये हैं, तो फर्म काो कोई आभास लगान नहीं मिलेगा। मान लीजिए अल्पकाल में कम्बलों की मांग बढ़ने के कारण कीमत बढ़कर 1,200 रुपये हो जाती है परन्तु घटती बढ़ती लागत 1,000 रुपये ही रहती है। इस स्थिति में फर्म को, 1,200 – 1,000=200 रुपये का आधिक्य प्राप्त होगा। यह आभास लगान कहलाएगा। यदि आभास लगान दीर्घकाल में भी मिलता रहे तो नई फर्में कम्बल बनाने लगेंगी अथवा पुरानी फर्में नई मशीनें लगाकर उत्पादन बढ़ा देंगी। इसके फलस्वरूप फर्मों को केवल घटती बढ़ती लागतें ही प्राप्त हो सकेंगी, इसलिए आभास लगान समाप्त हो जाएगा। अतएव आभास लगान दीर्घकाल में नहीं मिलता क्योंकि दीर्घकाल में कीमत तथा घटती बढ़ती लागतें बराबर हो जाती हैं।