भारत में लेखा प्रणाली एवं लेखा परीक्षा प्रणाली
लेखा-शास्त्र एक विषय है, जो आंकड़ों का अभिलेखन, वर्गीकरण एवं संक्षेपण करता है और इन्हें आसान रूप में प्रस्तुत करता है जिससे एक संगठन के प्रबंध के विभिन्न स्तरों को निर्णय लेने के कामों में मदद मिल सके। यह प्रबंधकों को उनकी बजट योजनाएं यथार्थता से बनाने में मदद करता है ताकि व्यय एवं बजट विनियोजन में ताल-मेल बैठ सके और जहां जरूरी हो शोधक कार्यवाही की जा सके। यह व्यवसाय संघ की गतिविधियों, लाभ एवं हानि एवं इसके परिसम्पत्तियों तथा उत्तरदायित्वों के बारे में आंकड़े प्रस्तुत कर तथा बाहरी व्यक्तियों जैसे अंशधारियों एवं साथ ही सरकारी की भी तथा व्यवसाय संघ की कार्यप्रणाली के बारे में भी जानकारी प्राप्त करने में मदद करता है।
शासन में लेखा-शास्त्र वार्षिक बजटों के आयोजन के लिये जानकारी प्रदान करता है। यह बजट आयोजकों को पहले से ही यह निर्धारित करने में मदद करता है कि प्रतिबद्ध व्यय को पूरा करने के लिए कौन से कर लगाने हैं अथवा जहां कहीं भी संभव हो वहां व्यय को कम करना है। यह प्रबंधकों को वेतन भत्ता, सामग्री आदि पर वार्षिक सम्बद्ध व्यय एवं योजना कार्यक्रमों पर होने वाले व्यय संबंधी जानकारी भी प्रदान करना है। यह प्रकार्यों, कार्यक्रमों, गतिविधियों पर होने वाले व्यय के बारे में जानकारी प्रदान करता है। जिससे सरकारी विभागों में बजट के निष्पादन कार्यों में तीव्र प्रगति हो सके। इसके अतिरिक्त यह उचित वित्तीय नियंत्रण का पालन करने में तथा विभिन्न अधिकारी-वर्गों द्वारा नियमों एवं अधिनियमों के अनुपालन में मदद करता है। इसका मुख्य उद्देश्य प्रबंध के विभिन्न स्तरों को समय-समय पर जानकारी देना है जिससे वह अपने कार्यक्षेत्र सम्बन्धी बातों में उचित निर्णय ले सके ताकि गतिविधियों के अनुपालन का उनके भौतिक लक्ष्यों के अनुकूल और व्यय का बजट के अनुकूल संचालन हो सके जिससे सरकार जहां आवश्यक समझे वहां संशोधित कर सके।
शासकीय लेखा-शास्त्र के सिद्धांत एवं विधियां
वाणिज्य एवं शासकीय लेखा-शास्त्र कुछ मुख्य मुद्दों पर एक दूसरे से भिन्न है। एक व्यापारिक संस्था का मुख्य कार्य वस्तुओं का उत्पादन एवं उनको बेचकर मुनाफा कमाना है। दूसरी ओर सरकार का मुख्य कार्य मुनाफा कमाना ही नहीं बल्कि देश में प्रशासन एवं विभिन्न कार्यों का संचालन भी इस प्रकार करना है जिससे कि पूरे समाज को सामान्य रूप से लाभ हो सके। एक व्यापारिक संस्था मुख्यत: लाभ के उद्देश्य से पूंजी का प्रयोग करती है। ऐसी संस्था समयान्तराल में यह जानने में रुचि रखती है कि वह अपने देनदार एवं लेनदार के साथ किस प्रकार के सम्बन्ध में हैं। क्या उसे लाभ हो रहा है या हानि, इस लाभ एवं हानि का òोत क्या है। इन सब सवालों के तत्काल जवाबों की प्राप्ति के लिए इस संस्था को लेखा की विस्तृत प्रणाली रखनी पड़ती है। हर व्यक्ति जिससे व्यापार सम्बन्ध हैं और इसकी गतिविविधयों के साथ जुड़े हर विभाग को ध्यान में रखते हुए व्यापारिक संस्था एक विशेष लेखा रखती है जिससे कि हर स्थिति में कार्यविवरण के परिणाम का अनुमान लगाया जा सके। उत्पादन, व्यापार और लाभ एवं हानि का हिसाब तथा तुलन-पत्र तैयार करने से संस्था वार्षिक उपार्जित लाभ अथवा हानि के बारे में सफल होती है। व्यापारिक दुनिया की यह एक सामान्य स्वीकृत प्रथा है कि लेखा-बही दोहरी लेखा प्रणाली पर कायम रहती है। दोहरी लेखा प्रणाली इस वास्तविकता पर आधारित है कि हर सौदे में दो पक्ष शामिल होते हैंµएक देने वाला और एक पाने वाला। इस प्रणाली के अन्तर्गत हर सौदे के लिये बही में दो लेखा होता है एक उस पक्ष या हिसाब के लिए जिसमें से दिया जा रहा है और दूसरा पक्ष या हिसाब के लिये जिसे दिया जा रहा है।
दूसरी ओर सरकार की गतिविधियों का निर्धारण देश की आवश्यकताओं पर निर्भर करता है। अगर आने वाले सालों में कार्यान्वित की जाने वाली गतिविधियों के बारे में पता चल जाए तो इनको पूरा करने के लिये आवश्यक निधि का निर्धारण करना आसान हो जाता है। इस प्रकार शासकीय परिकलन की अभिकल्पना सरकार को यह निर्धारित करने में मदद करती है कि अपनी गतिविधियों को कायम रखने के लिये उसे करदाता से कितना धन एकत्र करने की आवश्यकता है। शासकीय या सरकारी (government) लेखा में कार्यविवरण का वर्गीकरण दो बातों पर निर्भर करता हैµपहली, गतिविधियों का प्रशासनिक वर्गीकरण एवं दूसरी, कार्य विवरण के स्वरूप का वर्गीकरण। इस प्रकार शासकीय लेखा-शास्त्र काफी विस्तृत है और एक लेखा प्रणाली पर चलता है।