मानव विकास की विभिन्न अवस्थाएं
- पूर्वप्रसूतिकाल – यह अवस्था गर्भधारण से प्रारम्भ होकर जन्म तक की होती है।
- शैशवावस्था –यह अवस्था जन्म से प्रथम 10-14 दिनों तक की है।
- बचपनावस्था – यह अवस्था जन्म के दो सप्ताह से प्रारंभ होकर दो साल तक की होती है।
- बाल्यावस्था – यह अवस्था 2 साल से प्रारम्भ होकर 10 या 12 साल तक की होती है।
- किशोरावस्था – लड़कियों में यह अवस्था 11 वर्ष से 13 की तथा लड़कों में यह अवस्था 12 साल 14 की होती है। इस अवस्था में बालिका का शरीर एक वयस्क के शरीर का रूप ले लेता है।
- वयस्कता – यह अवस्था 21 साल से 40 साल की होती है। इस अवस्था में व्यक्ति शादी कर अपनी घर-परिवार बसाता है और किसी व्यवसाय में लग जाता है तथा आने आत्मविकास को मजबूत कर आगे बढ़ता है।
- मध्यावस्था – यह अवस्था 40-60 साल की होती है । इसमें व्यक्ति द्वारा अपनी पूर्वप्राप्त उपलब्धि तथा आकांक्षाओं को काफी सुदृढ़ किया जाता है।
- बुढ़ापा या सठियावस्था – यह अवस्था 60 साल से मृत्यु तक की होती है। इस अवस्था में शरीरिक तथा मानसिक शक्ति धीरे-धीरे क्षीण होती है और सामाजिक कार्याे में व्यक्ति का लगाव कम होता है चला जाता है।
1. पूर्वप्रसूतिकाल – शुक्राणु एवं अंडाणु कोशिका के मिलते ही जाइगोट का निर्माण शुरू हो जाता है एवं जन्म से पूर्व तक इसका अलग-अलग आकारों में विभिन्न अवस्थाओं में विकास होता रहता है इन्हें सारणी के माध्यम से भली प्रकार जाना जा सकता है।
पूर्वप्रसूतिकाल की अवस्थाएं
अवस्था | गर्भधारणोपरान्त समय | अवस्था की प्रमुख गतिविधियॉं |
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जाइगोट (zygote) का काल | एक से दो सप्ताह | जाइगोट यूटेरस से जुड़ जाता है। एवं दो हफ्तों में यह इस वाक्य के अंतिम बिन्दु के बराबर हो जाता है। |
एम्ब्रियो (embryo) का काल | 3 से 8 सप्ताह | शरीर की संरचना एवं अंगो का के निर्माण का संकेत मिलने लगता है। पहली अस्थि को शिकादिखलाई पड़ने के साथ ही इस काल का अन्त हो जाता है। आठ हफ्तों के उपरान्त एम्ब्रियो एक इंच के बराबर लम्बा हो जाता है, एवं वनज 4 ग्राम। |
भ्रूण(fetus)काल | 9 सप्ताह से लेकर जन्म तक (38 सप्ताह) |
इस दौरान अंगों का विकास जैसे हाथ, पैर, सिर एवं धड़ आदि का विकास तीव्रता से होता है, वजन एवं लम्बाई बढ़ती जाती है। |
3. शैशवावस्था – आइये अब शैशवावस्था में शिशुओं के क्रमबद्ध विकास के बारे में जानें।
शिशु की आयु | शिशु का पेशीय विकास |
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2 माह | इस आयु में शिशु अपना सिर ऊपर उठाना शुरू कर देते हैं। |
3 माह | करवट बदलना एवं तकिये की सहायता प्रदान करने पर बैठना शुरू कर देते हैं। |
6 माह | छ: माह की आयु में शिशु बिना तकिये की अवलम्बन के हर बैठने लगते हैं। |
7 माह | सात माह की आयु में शिशु सहारा लेकर खड़े होना सीख लेते हैं। |
9 माह | 9 माह आते आते ये शिशु सहारे के साथ चलना शुरू कर देते हैं। |
10 माह | दस माह की आयु में शिशु कभी-कभी बिना सहारे खड़े होने लगते हैं। |
11 माह | ग्यारह माह की आयु में शिशु बिना सहारे के खडे़ होने में समर्थ हो जाते हैं। |
12 माह | बारह महीने की अवस्था में शिशु बिना अवलम्बन के अकेले चलने में समर्थ हो जाते हैं। |
14 माह | 14 महीने की आयु में ये इतने कुशल हो जाते हैं कि बिना पीछे देखे ही उल्टा चलने में भी समर्थ हो जाते हैं। |
17 माह | इस आयु में शिशु सीढ़ियों पर चढ़ने लगते हैं। |
18 माह | इस आयु में शिशु गेंद को अपने सामने की दिशा में किक करने में समर्थ हो जाते हैं। |
वहीं जिन बच्चों में किशोरावस्था देर से आती है वे बच्चे अपने साथी बच्चों की दृष्टि में पिछड़े एवं कमजोर पड़ जाते हैं जिसके कारण उनमें आत्मविश्वास की कमी एवं पढ़ाई में पिछड़ापन दिखलाई देने लगता है। पियाजे के संज्ञानात्मक सिद्धान्त के अनुसार किशोरावस्था, औपचारिक संक्रिया की अवस्था होती है। इस अवस्था में किशोर तार्किक सोच के नियमों को समझने लगता है वह जटिल समस्याओं का समाधान, परिकल्पित रूप से करने में सक्षम होने लगता है।
6. मध्यावस्था – यह अवस्था 40-60 साल की होती है । इसमें व्यक्ति द्वारा अपनी पूर्वप्राप्त उपलब्धि तथा आकांक्षाओं को काफी सुदृढ़ किया जाता है।