अनुक्रम
- ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों के बीच सबसे बड़ा अन्तर दोनो के बीच क्रियात्मक गति विधियों से है। ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ लोगों के कार्यकलापों में प्राथमिक क्रियाएँ प्रमुख होती हैं वहीं नगरीय क्षेत्रो में द्वितीयक एवं तृतीयक क्रियाएँ प्रमुख हैं।
- ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा कम होता है।
मानव अधिवास के प्रकार
- ग्रामीण अधिवास
- नगरीय अधिवास
1. ग्रामीण अधिवास
जहाँ तक ग्रामीण अधिवासों के प्रकार का संबंध है, यह आवासों के वितरण के अंश को दर्शाता है। ग्रामीण अधिवासों के प्रकार भूगोलवेत्ताओं ने अधिवासों को वर्गीकृत करने के लिए अनेकों युक्तियाँ सुझाई हैं। यदि देश में विद्यमान सभी प्रकार के अधिवासों को वर्गीकृत करना चाहें तो इन्हें चार श्रेणियों में बाँटा जा सकता है-
- सघन/संहत केन्द्रित अधिवास
- अर्धसघन/अर्धसंहत/विखंडित अधिवास
- पल्ली-पुरवा अधिवास
- प्रकीर्ण या परिक्षिप्त अधिवास
2. अर्ध-सघन अधिवास – जैसे कि शीर्षक से स्पष्ट है कि आवास पूरी तरह संगठित नहीं होते। इस प्रकार के अधिवास में नाभिकीय रूप से सघन छोटी बसाहट होती है, जिसके चारो ओर पल्ली-पुरवा प्रकीर्ण रूप से बसे रहते हैं। ये संहत अधिवासों की तुलना में ज्यादा स्थान घेरते हैं। ऐसे अधिवास मैदानी एवं पठारी भागो में, स्थानिक पर्यावरणीय स्थितियों के आधार पर पाए जाते हैं।
ऐसे अधिवास मणिपुर में नदियों के सहारे, मध्य प्रदेश के मण्डला एवं बालाघाट जिलों तथा छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में मिलते हैं। विभिन्न जनजातियाँ छोटा नागपुर क्षेत्र में ऐसे अधिवास बनाकर रहती हैं।
सघन अधिवासों के समान अर्ध-सघन अधिवासों के भी कई भिन्न प्रतिरूप होते हैं। कुछ प्रतिरूप हैं- (i) चौक-पट्टी प्रतिरूप, (ii) बढ़ी हुई आयताकार प्रतिरूप, (iii) पंखाकार प्रतिरूप।
- प्राकृतिक कारक- इन कारकों में शामिल हैं- भूमि की बनावट, जलवायु, ढाल की दिशा, मृदा की सामर्थ्य, जलवायु, अपवाह, भू-जल स्तर आदि।
- जातीय और सांस्कृतिक कारक- इनमें शामिल हैं- जाति, समुदाय, जातीयता, धाख्रमक विश्वास इत्यादि। भारत में यह सामान्य रूप से पाया जाता है कि प्रमुख भूमि स्वामी जातियाँ गाँव के नाभिक क्षेत्र में बसती हैं और अन्य सेवा प्रदान करने वाली जातियां ग्राम की परिधि में बसती हैं।
- ऐतिहासिक या प्रतिरक्षात्मक कारक- ऐतिहासिक काल में भारत के उत्तर-पश्चिम मैदानी भागों के अधिकांश भागों में कई बार आक्रान्ताओं ने आक्रमण किया तथा कुछ भागों को कब्जे में भी लिया। इसके पश्चात् एक लम्बे समय तक बाहरी ताकतों के हमलों के अलावा देश के इस भाग में प्रमुख राज्य व साम्राज्य आपस में लड़ते-झगड़ते रहे। इसलिए नाभिकीय प्रारूप के अधिवास सुरक्षा को ध्यान में रखकर बनते रहे।
2. नगरीय अधिवास
भारत की जनगणना के अनुसार शहरी या नगरीय क्षेत्र वे हैं जिनमें स्थितियाँ मिलती हैं- (क) नगरीय क्षेत्रों में या तो नगरपालिका अथवा निगम या फिर छावनी बोर्ड होगा अथवा अधिसूचित शहरी क्षेत्र समिति मौजूद होनी चाहिए (ख) अन्य सभी क्षेत्र जो इन मानकों को पूरा करते हैं-
- कम से कम 5000 जनसंख्या,
- कार्यशील पुरुष जनसंख्या का कम से कम 75 प्रतिशत अकृषि क्षेत्र में लगे हों और
- जनसंख्या का घनत्व कम से कम 4000 व्यक्ति प्रति वर्ग कि.मी. हो।
इसके अतिरिक्त जनगणना कार्य में निख्रदष्ट निर्देशों के अन्तर्गत जब भारत के राज्यों अथवा केन्द्र शासित संघीय राज्यों की सरकारों के सहयोग एवं परामर्श पर तथा भारत के जनगणना आयुक्त के अनुमोदन से कुछ ऐसी भी बसाहटों को जिनके गुण नगरीय क्षेत्रों जैसे होते हैं, किन्तु नगरीय बस्ती की मूलभूत शर्तें जिनका वर्णन अनुच्छेद 29.5 की कण्डिका (ख) में वख्रणत है पूर्णत: लागू नहीं होता हो तो भी उन बसाहटों को नगरीय क्षेत्र में गिना जाता है। उदाहरण के लिए किसी परियोजना की कालोनी के क्षेत्र या फिर पर्यटन विकास के केन्द्र स्थल इत्यादि।
इस प्रकार से, शहरों अथवा नगरीय अधिवासों के दो बड़े वर्ग होते हैं। वे स्थानीय क्षेत्र जो अनुच्छेद 29.5 की कण्डिका (क) में वख्रणत शर्तो के अनुरूप हैं, उन्हें वैधानिक शहर कहा जाता है। दूसरे वर्ग में आने वाले वे नगरीय क्षेत्र हैं जो कण्डिका (ख) में दी गई शर्तों का पूर्णत: पालन करते हैं, इन्हें जनगणना शहर कहा जाता है। नगरीय बसाहट के समूहों में नीचे दिए गए तीन गुणों में से कोई एक गुण हो सकते हैं-
- मुख्य नगर एवं उससे जुड़े शहरी अपवृद्धि वाले क्षेत्र;
- दो या दो से अधिक संलग्न मुख्य नगर (उनके अपवृद्धि क्षेत्र सहित या उसके बिना);
- एक बड़ा शहर और उससे संलग्न एक या एक से अधिक शहरों के अपवृद्धि क्षेत्र इतने सानिध्य में विकसित हो जाते हैं कि कोई लम्बा सा जनसंख्या का वितान फैल गया हो।
नगरीय अपवृद्धि क्षेत्र के उदाहरण हैं- विश्वविद्यालय परिसर, छावनी परिसर, समुद्रतट पर बसे शहरों से सटे बन्दरगाह के परिसर या फिर उड्डयन परिसर, रेलवे कालोनी के परिसर आदि। पर एक बात ध्यान देने योग्य है कि ऐसे शहर कभी भी स्थाई नहीं होते हैं। प्रत्येक जनगणना में इनमें कमोबेश उतार-चढ़ाव होता है, जिससे इन शहरों का अवर्गीकरण या पुनर्वर्गीकरण किया जाता है, क्योंकि जनगणना के समय विद्यमान परिस्थितियाँ निर्णायक होती हैं।
- नगरीय अधिवासों का एक और वर्गीकरण है, जो इस प्रकार है-
- नगर – ऐसे स्थान जिनकी जनसंख्या एक लाख से कम होती है,
- शहर – नगरीय स्थान जहाँ की जनसंख्या एक से 10 लाख के बीच हो,
- महानगर – बड़े नगर जहाँ की जनसंख्या 10 लाख से 50 लाख के बीच हो तथा
- वृहद महानगर – महानगर जहाँ की जनसंख्या 50 लाख से ऊपर हो।
नगरीय अधिवासों का वर्गीकरण
वर्ग | जनसंख्या |
---|---|
वर्ग I | 1,00,000 या इससे अधिक |
वर्ग II | 50,000–99,999 |
वर्ग III | 20,000–49,999 |
वर्ग IV | 10,000–19,999 |
वर्ग V | 5000–9,999 |
वर्ग VI | 5000 से कम |