सृजनात्मकता से क्या अभिप्राय है?

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पहले यह माना जाता था कि केवल लेखक, कवि, चित्रकार, संगीतकार आदि व्यक्ति ही सृजनात्मक होते हैं परन्तु अब माना जाने लगा है कि मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सृजनात्मकता की अभिव्यक्ति हो सकती है। वास्तव में संसार के समस्त प्राणियों में सृजनात्मकता पाई जाती है-किसी में कम मात्रा में सृजनात्मकता होती है तथा किसी में अधिक मात्रा में सृजनात्मकता होती है। मानवीय जीवन को सुखमय बनाने के लिए नवीन आविष्कार करने तथा समस्याओं का समाधान खोजने के कार्य में सृजनात्मकता महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। आज के समस्याग्रस्त जटिल समाज तथा प्रतियोगितापूर्ण संसार में सृजनात्मकता व्यक्तियों की माँग है। वैज्ञानिक तथा तकनीकी उपलध्यिों को अर्जित करने के लिए सृजनात्मक व्यक्तियों को खोजना एक राष्ट्रीय आवश्यकता बन गई है। 

सृजनात्मकता क्या है ?

सृजनात्कमता का सम्बन्ध् प्रमुख रूप से मौलिकता या नवीनता से है। सृजनात्मकता समस्या पर नये ढंग से साचने तथा समाधान खोजने के प्रयास से परिलक्षित होती है दूसरे शब्दों में सृजनात्मकता वह योग्यता है जो व्यक्ति को किसी समस्या का विद्वतापूर्ण समाधन खोजने के लिए नवीन ढंग से सोचने व विचार करने में समर्थ बनाती है। प्रचलित ढंग से हटकर किसी नये ढंग से चिन्तन करने तथा कार्य करने की योग्यता ही सृजनात्मकता है। 

सृजनात्मकता की परिभाषा

मनोवैज्ञानिकों ने सृजनात्मकता को भिन्न-भिन्न ढंग से परिभाषित किया है। सृजनात्मकता की कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नवत् हैं- 
डीहान तथा हेविंगहस्र्ट के अनुसार सृजनात्मकता वह विशेषता है जो किसी नवीन व वांछित वस्तु के उत्पादन की ओर प्रवृत्त करे। यह नवीन वस्तु सम्पूर्ण समाज के लिए नवीन हो सकती है अथवा केवल उत्पादक व्यक्ति के लिए नवीन हो सकती है।
वहल के शब्दों में, सृजनात्मकता वह मानवीय योग्यता है जिसके द्वारा वह किसी रचना या विचारों को प्रस्तुत करता है।
क्रो एवं क्रो के अनुसार, सृजनात्मकता मौलिक परिणामों को अभिव्यक्त करने की मानसिक प्रक्रिया है।
कोल और ब्रूस के शब्दों में फ्सृजनात्मकता मौलिक उत्पाद के रूप में मानव मस्तिष्क को समझने व्यक्त करने तथा सराहना करने की योग्यता व क्रिया है। 

सृजनात्मकता की विशेषताएं

  1. सृजनात्मकता सार्वभौमिक होती है। प्रत्येक व्यक्ति में सृजनात्मकता का गुण कुछ न कुछ अवश्य विद्यमान रहता है।
  2. सृजनात्मकता का गुण ईश्वर द्वारा प्रदत्त होता है परन्तु शिक्षा एवं उचित वातावरण के द्वारा सृजनात्मक योग्यता का विकास किया जा सकता है।
  3. सृजनात्मकता एक बाध्य प्रक्रिया नहीं है, इसमें व्यक्ति को इच्छित कार्य प्रणाली को चुनने की पूर्ण रूप से स्वतंत्रता होती है।
  4. सृजनात्मकता अभिव्यक्ति का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक होता है।

सृजनात्मक व्यक्ति की विशेषताएं

  1. सृजनात्मक व्यक्ति की स्मरण शक्ति अत्यन्त तीव्र होती है।
  2. सृजनात्मक व्यक्ति विचारों एवं अपने द्वारा किये गये कार्यों में मौलिकता को प्रदर्शित करते है।
  3. सृजनात्मक व्यक्ति अन्य व्यक्तियों की तरह जीवन न जी कर, एक नये ढंग से जीवन को जीने की कोषिष करते हैं।
  4. सृजनात्मक व्यक्ति की प्रवृत्ति अधिक जिज्ञासापूर्ण होती है।
  5. सृजनात्मक व्यक्ति का समायोजन अच्छा होता है।
  6. सृजनात्मक व्यक्ति में ध्यान एवं एकाग्रता गुण अधिक विद्यमान रहता है।
  7. सृजनात्मक व्यक्ति प्राय: आषावान एवं दूर की सोच रखने वाले होते हैं।
  8. सृजनात्मक व्यक्ति किसी भी निर्णय को लेने में संकोच नहीं करते एवं आत्मविश्वास के साथ निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं।
  9. सृजनात्मक व्यक्ति में विचार अभिव्यक्ति का गुण अत्यधिक विद्यमान रहता है।
  10. सृजनात्मक व्यक्ति का व्यवहार अत्यधिक लचीला होता है। परिस्थितियों के अनुसार जल्दी ही परिवर्तित हो जाता है।
  11. सृजनात्मक व्यक्ति में कल्पनाषक्ति तीव्र होती है।
  12. सृजनात्मक व्यक्ति में किसी भी विशय पर अपने विचारों की अभिव्यक्ति एवं उस अभिव्यक्ति पर विस्तारण का गुण अधिक होता है।
  13. सृजनात्मक व्यक्ति किसी भी समस्या का समाधान नये तरीके से करना चाहता है।
  14. सृजनात्मक व्यक्ति अपने व्यवहार एवं सृजनात्मक उत्पादन में आनन्द एवं हर्श का अनुभव करता है।
  15. सृजनात्मक व्यक्ति अपने उत्तरदायित्व के प्रति अधिक सतर्क रहते हैं।

सृजनात्मकता को विकसित करने के उपाय

  1. व्यक्ति को उत्तर देने की स्वतंत्रता दी जाये।
  2. व्यक्ति में मौलिकता एवं लचीलेपन के गुणों को विकसित करने का प्रयास किया जाये।
  3. व्यक्ति को स्वयं की अभिव्यक्ति के लिए अवसर प्रदान किये जाये।
  4. व्यक्ति के डर एवं झिझक को दूर करने का प्रयास किया जाये।
  5. व्यक्ति को उचित वातावरण दिया जाये।
  6. व्यक्ति में अच्छी आदतों का विकास किया जाये।
  7. व्यक्ति के लिए सृजनात्मकता को विकसित करने वाले उपकरणों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  8. व्यक्ति मे सृजनात्मकता को विकसित करने के लिए विशेष प्रकार की तकनीकी का प्रयोग करना चाहिए। जैसे:- मस्तिश्क विप्लव, किसी वस्तु के असाधारण प्रयोग, षिक्षण प्रतिमानों का प्रयोग, खेल विधि आदि।
  9. व्यक्ति के लिए सृजनात्मकता को विकसित करने के लिए पाठ्यक्रम में सृजनात्मक विशय वस्तुओं का समावेश किया जाना चाहिए।

सृजनात्मकता के तत्व

सृजनात्मकता के निम्न तत्व होते हैं- 

1. धाराप्रवाहिता – धाराप्रवाहिता से तात्पर्य अनेक तरह के विचारो की खुली अभिव्यक्ति से है। जा े व्यक्ति किसी भी विशय पर अपने विचारो की खुली अभिव्यक्ति को पूर्ण रूप से प्रकट करता है वह उतना ही सृजनात्मक कहलाता है। धाराप्रवाहिता का सम्बन्ध शब्द, साहचर्य स्थापित करने तथा शब्दों कीे अभिव्यक्ति करने से सम्बन्धित होता है।


2. लचीलापन – लचीलापन से तात्पर्य समस्या के समाधान के लिए विभिन्न प्रकार के तरीकों को अपनाये जाने से है। जो व्यक्ति किसी भी समस्या के समाधान हेतु अनेक नये-नये रास्ते अपनाता है वह उतना ही सृजनात्मक कहलाता है। लचीलेपन से यह ज्ञात होता है कि व्यक्ति समस्या को कितने तरीकों से समाधान कर सकता है।

3. मौलिकता – मौलिकता से तात्पर्य समस्या के समाधान के लिए व्यक्ति द्वारा दी गई अनुक्रियाओं के अनोखेपन से है। जो व्यक्ति किसी भी विशय पर अपने विचारों की खुली अभिव्यक्ति को पूर्ण रूप स े नये ढंग से करता है उसमें मौलिकता का गुण अधिक होता है। वह उतना ही सृजनात्मक कहलाता है। जब व्यक्ति समस्या के समाधान के रूप में एक बिल्कुल ही नई अनुक्रिया करता है तो ऐसा माना जाता है कि उसमें मौलिकता का गुण विद्यमान है।

4. विस्तारण – विचारो को बढ़ा-चढा़ कर विस्तार करने की क्षमता को विस्तारण कहा जाता है। जो व्यक्ति किसी भी विशय पर अपने विचारो की खुली अभिव्यक्ति को पूर्ण रूप से बढ़ा-चढ़ाकर एवं विस्तार के साथ प्रकट करता है उसमें विस्तारण का गुण अधिक होता है। वह उतना ही सृजनात्मक कहलाता है। इसमें व्यक्ति बड़े विचारों को एक साथ संगठित कर उसका अर्थपूर्ण ढंग से विस्तार करता है तथा पुन: नये विचारों को जन्म देता है।

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