नंद किशोर त्रिखा ने जिस घटना के साथ लोगों की रूचि हो उसे समाचार माना है। संजीव भवावत ने भी घटना की असाधारण की सूचना को समाचार माना है।
नवीन चंद्र पंत:- किसी घटना की नई सूचना समाचार है।
नंद किशोर त्रिखा:- किसी घटना या विचार जिसे जानने की अधिकाधिक लोगों की रुचि हो समाचार है।
संजीव भवावत:- किसी घटना की असाधारणता की सूचना समाचार है
रामचंद्र वर्मा:- ऐसी ताजा या हाल की घटना की सूचना जिसके संबंध में लोगों को जानकारी न हो समाचार है।
सुभाष धूलिआ:- समाचार ऐसी सम सामयिक घटनाओं, समस्याओं और विचारों पर आधारित होते हैं जिन्हें जानने की अधिक से अधिक लोगों में दिलचस्पी होती है और जिनका अधिक से अधिक लोगों पर प्रभाव पड़ता है।
मनुकोडां चेलापति राव:- समाचार की नवीनता इसी में है कि वह परिवर्तन की जानकारी दे। वह जानकारी चाहे राजनीतिक, सामाजिक अथवा आर्थिक कोई भी हो। परिवर्तन में भी उत्तेजना होती है।
रामचंद्र वर्मा ने घटना की सूचना जिसका लोगों से संबंधित हो को समाचार माना है। सुभाष धूलिआ ने सामयिक घटना, विचार जिसका अधिक से अधिक लोगों से संबंधित हो तो मनुकोडां चेलापति राव ने नवीनता लिए कोई भी विषय हो समाचार माना है जो परिवर्तन को सूचित करता है।
केपी नारायणन ने निष्पक्ष होकर किसी सामयिक घटना को पाठकों की रूचि अनुसार पेश करना ही समाचार है। इस तरह विभिन्न विद्वानों ने समाचार की परिभाषा अपने हिसाब से दिया है।
समाचार के तत्व
समाचार के मूल में सूचनाएं होती है। और यह सूचनाएं समसामयिक घटनाओं की होती है। पत्रकार उस घटित सूचनाओं को एकत्रित कर समाचार के प्रारूप में ढालकर पाठकों की जिज्ञासा को पूर्ति करने लायक बनाता है। पाठकों की जिज्ञासा हमेशा ही कौन, क्या, कब, कहां, क्यों और कैसे प्रश्नों का उत्तर उस समाचार में ढूंढने की कोशिश करता है। ले
किन समाचार लिखते समय इन्हीं प्रश्नों का उत्तर तलाशना आरै पाठकों तक उसके संपूर्ण अर्थ में पहुंचाना सबसे बड़ी चुनौती का कार्य होता है।
छ ‘क’ कार
समाचार के अर्थ में हमने देखा समाचार का स्वरूप क्या है। उसके प्रमुख तत्वों को आसानी से समझा जा सकता है। शुष्क तथ्य समाचार नहीं बन सकते पर जो तथ्य आम आदमी के जीवन आरै विचारों पर प्रभाव डालते हैं उसे पसंद आते हैं और आंदोलित करते हैं, वे ही समाचार बनते हैं। समाचार के इस आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए समाचार में छह तत्वों का समावेश अनिवार्य माना जाता है । ये हैं-क्या, कहां, कब, कौन, क्यो और कैसे।
अंग्रेजी में इन्हें पांच ‘डब्ल्यू’, हू, वट, व्हेन, व्हाइ वºे अर और एक ‘एच’ हाउ कहा जाता है। इन छह सवालों के जवाब में किसी घटना का हर पक्ष सामने आ जाता है लेकिन समाचार लिखते वक्त इन्हीं प्रश्नों का उत्तर तलाशना आरै पाठको तक उसे उसके संपूर्ण अर्थ में पहुंचाना सबसे बड़ी चुनौती का कार्य है। यह एक जटिल प्रक्रिया है।
- क्या – क्या हुआ? जिसके संबंध में समाचार लिखा जा रहा है।
- कहां – कहां? ‘समाचार’ में दी गई घटना का संबंध किस स्थान, नगर, गांव प्रदेश या देश से है।
- कब – ‘समाचार’ किस समय, किस दिन, किस अवसर का है।
- कौन – ‘समाचार’ के विषय (घटना, वृत्तांत आदि) से कौन लोग संबंधित हैं।
- क्यों – ‘समाचार’ की पृष्ठभूमि।
- कैसे – ‘समाचार’ का पूरा ब्योरा।
यह छह ककार (’’क’’ अक्षर से शुरू होनेवाले छ प्रश्न) समाचार की आत्मा है। समाचार में इन तत्वो का समावेश अनिवार्य है।
समाचार लेखन की प्रक्रिया
उल्टा पिरामिड सिद्धांत समाचार लेखन का बुनियादी सिद्धांत है। यह समाचार लेखन का सबसे सरल, उपयोगी और व्यावहारिक सिद्धांत है। समाचार लेखन का यह सिद्धांत कथा या कहनी लेखन की प्रक्रिया के ठीक उलट है। इसमें किसी घटना, विचार या समस्या के सबसे महत्वपूर्ण तथ्यों या जानकारी को सबसे पहले बताया जाता है, जबकि कहनी या उपन्यास में क्लाइमेक्स सबसे अंत में आता है। इसे उल्टा पिरामिड इसलिये कहा जाता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना सबसे पहले आती है जबकि पिरामिड के निचले हिस्से में महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना होती है। इस शैली में पिरामिड को उल्टा कर दिया जाता है।
इसमें सबसे महत्वपूर्ण सूचना पिरामिड के सबसे उपरी हिस्से में होती है आरै घटते हुये क्रम में सबसे कम महत्व की सूचनाये सबसे निचले हिस्से में होती है।
समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड शैली के तहत लिखे गये समाचारो के सुविधा की दृष्टि से मुख्यत: तीन हिस्सों में विभाजित किया जाता है-मुखड़ा या इंट्रो या लीड, बाडी और निष्कर्ष या समापन। इसमें मुखड़ा या इटं्रो समाचार के पहले आरै कभी-कभी पहले और दूसरे दोनों पैरागा्रफ को कहा जाता है। मुखड़ा किसी भी समाचार का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है क्योंकि इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्यों आरै सूचनाओं को लिखा जाता है। इसके बाद समाचार की बाडी आती है, जिसमें महत्व के अनुसार घटते हुये क्रम में सूचनाओं और ब्यौरा देने के अलावा उसकी पृष्ठभूमि का भी जिक्र किया जाता है। सबसे अंत में निष्कर्ष या समापन आता है।
समाचार लेखन में निष्कर्ष जैसी कोई चीज नहीं होती है और न ही समाचार के अंत में यह बताया जाता है कि यहां समाचार का समापन हो गया है।
मुखड़ा या इंट्रो या लीड
उल्टा पिरामिड शैली में समाचार लेखन का सबसे महत्वपूर्ण पहलू मुखड़ा लेखन या इंट्रो या लीड लेखन है। मुखड़ा समाचार का पहला पैराग्राफ होता है जहां से कोई समाचार शुरु होता है। मुखड़े के आधार पर ही समाचार की गुणवत्ता का निर्धारण होता है।
एक आदर्श मुखड़ा में किसी समाचार की सबसे महत्वपूर्ण सूचना आ जानी चाहिये आरै उसे किसी भी हालत में 35 से 50 शब्दो से अधिक नहीं होना चाहिये किसी मुखड़े में मुख्यत: छह सवाल का जवाब देने की कोशिश की जाती है – क्या हुआ, किसके साथ हुआ, कहां हुआ, कब हुआ, क्यों और कैसे हुआ है। आमतौर पर माना जाता है कि एक आदर्श मुखड़े में सभी छह ककार का जवाब देने के बजाये किसी एक मुखड़े को प्राथमिकता देनी चाहिये। उस एक ककार के साथ एक-दो ककार दिये जा सकते हैं।
बाडी
समाचार लेखन की उल्टा पिरामिड लेखन शैली में मुखड़े में उल्लिखित तथ्यों की व्याख्या और विश्लेषण समाचार की बाडी में होती है। किसी समाचार लेखन का आदर्श नियम यह है कि किसी समाचार को ऐसे लिखा जाना चाहिये, जिससे अगर वह किसी भी बिन्दु पर समाप्त हो जाये तो उसके बाद के पैराग्राफ में एसे ा कोई तथ्य नहीं रहना चाहिये जो उस समाचार के बचे हुऐ हिस्से की तुलना में ज्यादा महत्वपूर्ण हो। अपने किसी भी समापन बिन्दु पर समाचार को पूर्ण, पठनीय और प्रभावशाली होना चाहिये।
समाचार की बाडी में छह ककारो में से दो क्यो और कैसे का जवाब देने की कोशिश की जाती है। कोई घटना कैसे और क्यो हुई, यह जानने के लिये उसकी पृष्ठभूमि, परिपेक्ष्य और उसके व्यापक संदभेर्ं को खंगालने की कोशिश की जाती है। इसके जरिये ही किसी समाचार के वास्तविक अर्थ और असर को स्पष्ट किया जा सकता है।
निष्कर्ष या समापन
समाचार का समापन करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि न सिर्फ उस समाचार के प्रमुख तथ्य आ गये हैं बल्कि समाचार के मुखड़े और समापन के बीच एक तारतम्यता भी होनी चाहिये समाचार में तथ्यो और उसके विभिन्न पहलुओं को इस तरह से पेश करना चाहिये कि उससे पाठक को किसी निर्णय या निष्कर्ष पर पहुंचने में मदद मिले।
भाषा और शैली
पत्रकार के लिए समाचार लेखन और संपादन के बारे में जानकारी होना तो आवश्यक है। इस जानकारी को पाठक तक पहुंचाने के लिए एक भाषा की जरूरत होती है। आमतौर पर समाचार लोग पढ़ते हैं या सुनते-देखते हैं वे इनका अध्ययन नहीं करते। हाथ में शब्दकोश लेकर समाचारपत्र नहीं पढ़े जाते। इसलिए समाचारों की भाषा बोलचाल की होनी चाहिए। सरल भाषा, छोटे वाक्य और संक्षिप्त पैराग्राफ। एक पत्रकार को समाचार लिखते वक्त इस बात का हमेशा ध्यान रखना होगा कि भले ही इस समाचार के पाठक/उपभोक्ता लाखों हों लेकिन वास्तविक रूप से एक व्यक्ति अकले े ही इस समाचार का उपयोग करेगा।