अनुक्रम
संसद के कार्य एवं शक्तियां
1. संसद के विधायी कार्य
संसद कानून बनाने वाली संख्या है । केन्द्र और राज्यों में शक्ति विभाजन किया गया है जिसके लिए तीन सूचियां है- संघसूची राज्य सूची एवं समवर्ती सूची। संघ सूची में 97 विषय हैं और संघ सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल संसद को है। राज्य सूची में वर्णित विषय पर कानून राज्यों की ब्यवस्थापिका बनाती है समवर्ती सूची के विषयों पर दोनों, राज्य एवं केन्द्र की व्यवस्थापिका कानून बना सकती है। परन्तु समवर्ती सूची के किसी विषय पर संसद तथा राज्य दोनों कानून बनाते है ओैर दोनों द्वारा बनाए कानून में अंत विरोध है, तो केन्द्र द्वारा बनाए गए कानून को मान्यता दी जायेगी। ऐसा कोई विषय जिसका उल्लेख किसी भी सूची में नहीं किया गया हो तो ऐसी अविशिष्ट शक्तियां संसद के पास है कि वह उस विषय पर कानून बना सकेगी।
2. संसद के कार्य पालिका संबंधी कार्य
संसद कई प्रकार से कार्यकालिका पर अपना नियंत्रण बनाए रखती है। उनमें से कुछ इस प्रकार है :-
3. संसद के वित्तीय कार्य
संसद महत्वपूर्ण वित्तीय कार्य करती है। इसे सरकारी धन का संरक्षक माना जाता है। यह केन्द्रीय सरकार की सम्पूर्ण आय पर नियंत्रण बनाए रखती है। बिना संसद की आज्ञा के कोई धन राशि व्यय नहीं की जा सकती। यह स्वीकृति वास्तविक व्यय से पूर्व या फिर किसी असाधारण स्थिति में व्यय के पश्चात ली जा सकती है। संसद हर वषर्ं सरकार के आय-व्यय अर्थात बजट को स्वीकृति प्रदान करती है।
4. संसद के निर्वाचन संबंधी कार्य
संसद के सभी निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव हेतु निर्वाचक मडंल के सदस्य होते है। इसलिए, राष्ट्रपति के निर्वाचन में वे भाग लेते है द्यै वे उपराष्ट्रपति का भी चुनाव करते है। लोक सभा अपने अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष का तथा राज्य सभा अपने उपसाभापति का निर्वाचन करती हैं।
5. अपदस्थ करने की शक्ति
संसद की पहल पर कई महत्वपूर्ण उच्चस्तरीय अधिकारियों को उनके पद से हटाया जा सकता है। भारत के राष्ट्रपति को महाभियोग की प्रकिया से अपदस्थ किया जा सकता है। यदि संसद के दोनो सदन विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित करे तो सर्वोच्च न्यायालय अथवा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को राष्ट्रपति द्वारा पदच्युत कराया जा सकता है।
6. संसद के संविधान संशोधन संबंधी कार्य
संविधान के अधिकांश भागों में संशोधन विशेष बहुमत द्वारा किया जा सकता है। परन्तु कुछ प्रावधान ऐसे है। जिनमें संसद द्वारा संशाोधन के लिए राज्यों का समर्थन भी आवश्यक है। भारत एक संघ राज्य होने के नाते संसद की संशोधन सबंधी शक्तियां अत्यंत सीमित रखी गई हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में यह कहा है कि संसद संविधान संविधान का मूल ढांचा नहीं बदल सकती। आप एक अन्य पाठ में संविधान संबंधी संशोधन प्रक्रिया को पहले ही पढ चुके है।
7. संसद के विविध कार्य
उपरोक्त कार्यों के अतिरिक्त संसद कई अन्य कार्य भी करती है जो इस प्रकार है:-
- यघपि आपातकाल की घोषणा करने की शक्ति राष्ट्रपति की है तथापि आपातकाल की सभी ऐसी घोषणाओं को स्वीकृति की है। लोक सभा तथा राज्य सभा दोनों की स्वीकृति संसद ही प्रदान करती आवश्यक है।
- किसी राज्य से कुछ क्षेत्र अलग करके दो या दो से अधिक राज्यों को मिलाकर संसद किसी नए राज्य का निर्माण कर सकती हैं। यह किसी राज्य की सीमाएं अथवा नाम में भी परिवर्तन कर सकती है । कुछ वर्ष पूर्व (2002) में छत्तीसगढ, झारखण्ड तथा उत्तरांचल (अब उत्तराखंड ) नए राज्य बनाए गये।
- संसद किसी नए राज्य का विलय भारतीय संध में कर सकती है। जैसे 1975 में सिक्किम को भारत में विलय किया गया। घ. संसद राज्य विधान परिषद् को समाप्त कर सकती हैं अथवा इसका निर्माण भी कर सकती है ।
परन्तु यह केवल सबंधित राज्य के अनुरोध पर ही किया जाता हैं। हमारी राजनीतिक व्यवस्था की संधात्मक प्रकृति के कारण यघपि संसद की शक्तियां सीमित हैं, तथापि इसे अनेक कार्य करने होते है। अपना दायित्व निभाते समय, इसे जनता की आकांक्षाओं तथा आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखता पड़ता है। देश में सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक संघर्षो को हल करने का माध्यम संसद है।
संसद की भूमिका
भारतीय संसद का गठन सर्वोच्च विधायी निकाय के रूप में किया गया है। यह एक बहुआयामी संस्था हे, जो विभिन्न प्रकार की भूमिकाओं का निर्वहन करती हे। इन भूमिकाओं की व्याख्या निम्न प्रकार की गयी हेः
विधायी भूमिका
संसद का प्राथमिक कार्य कानून निर्माण है। ये कानून बनाने की प्रक्रिया संसद को सर्वोपरि निकाय बनाती है।
संसद का निचला सदन धन विधेयक के सम्बन्ध में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। धन विधेयक केवल लोकसभा में ही पहले प्रस्तत किया जा सकता है, राज्य सभा में इसे पहले प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। निचले सदन में विधेयक पास होने के बाद, उसे राज्यसभा में विचार के लिए भेजा जाता हे। राज्य सभा को विधेयक पर कार्रवाई करने के लिए चोदह दिन का समय दिया जाता है। राज्यसभा विधेयक को पारित, संशोधित, या अस्वीकार भी कर सकता हे। यदि विधेयक राज्यसभा द्वारा पारित हो जाता है, तब इसे राष्ट्रपति के पास उनकी अनुमति के लिए भेजा जाता है। यदि इसमें संशोधन किया जाना है, तब यह लोकसभा में पुनर्विचार के लिए वापस भेजा जाता है और फिर, साधारण बहुमत से मतदान होता है, जिसके बाद इसे राष्ट्रपति को अनुमति के लिए भेजा जाता है।
साधारण बिल के मामलों में, दोनों सदनों के पास समान अधिकार हैं। साधारण विधेयक लोकसभा या राज्यसभा दोनों में से किसी में भी पेश किए जा सकते हैं। राज्यसभा, लोकसभा द्वारा पारित विधेयक को संशोधित या अस्वीकार कर सकती है। यदि लोकसभा राज्यसभा की कार्रवाई से असहमत होती हे, तब यह मामला दोनों सदनों की संयुक्त बैठक के सामने प्रस्तुत किया जाता है और फिर उसे साधारण बहुमत से पारित कर दिया जाता है। संयुक्त बैठक में पारित विधेयक राष्ट्रपति को उनकी अनुमति के लिए भेजा जाता हे। संवैधानिक संशोधन के संबंध में भी, दोनों सदनों के पास समान अधिकार होता हे। संविधान में तब तक संशोधन नहीं किया जा सकता, जब तक राज्यसभा भी इस तरह के संशोधनों को करने के लिए सहमत न हो।
कार्यपालिका पर नियंत्रण
विधायिका की एक महत्वपूर्ण भूमिका कार्यपालिका का नियंत्रण है। संविधान के अनुसार, मंत्रीपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होता हे। निचले सदन को सरकार की नीतियों ओर कार्यक्रमों से संबंधित जानकारी लेने का अधिकार के साथ यह देखने का भी अधिकार हे कि मंत्री परिषद ने अपने दायित्वों के अनुरूप कार्य किया है या नहीं। विधायिका का कार्यपालिका पर नियंत्रण उसे सभी सार्वजनिक हितों के मामलों में प्रेरित व प्रशासनिक रूप से प्रात्साहित करना है। यह कार्यपालिका को सार्वजनिक हित में काम करने के लिए निरन्तर सतर्क बनाए रखता है।
ऐसी कइ्र प्रक्रियाएँ हें, जिनके द्वारा निम्न सदन कार्यपालिका पर नियंत्रण रखता है। राष्ट्रपति के अभिभाषण, बजटीय मामलों, ओर अन्य गतियाँ पर धन्यवाद प्रस्ताव, संसदीय नियंत्रण के कुछ पद्धतियाँ हैं। मंत्रियों के लिए संसदीय प्रश्न, स्थगन गतियाँ, और काॅल अटेन्षन ( call attention) आधारित गतियाँ, वे प्रक्रियाऐं हैं, जो सदस्यों को विशिष्ट शिकायतों या म ुद्दों पर सरकार का ध्यान आकर्षित करके उन पर सरकार की अनुक्रिया को प्राप्त करने में सक्षम बनाती हें। साथ ही, निचले सदन को सरकार के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित करने का अधिकार भी देती हैं (यह अधिकार राज्य सभा के पास नहीं है)। इसके अतिरिक्त, अल्प अवधि चर्चाओं, निजी सदस्यों के प्रस्तावों, संवैधानिक कानन के संशोधन के लिए निवेदन, तथा विभागों व सार्वजनिक उपक्रमों द्वारा रिपोर्टिंग प्रशासनिक कमियों पर दृष्टि रखते हैं।
कार्यपालिका की मनमानी को रोकने के लिए विधायिका के पास कुछ महत्वपूर्ण नियंत्रण शक्तियाँ होती हें, जैसे कि, सार्वजनिक धन पर संसद का नियंत्रण, कर लगाने और संशोधित करने का अधिकार, ओर आपूर्ति और अनुदान के लिए मतदान आदि। संविधान के प्रावधानों के अनुसार, संसद की अनुमति के बिना न तो कोइ्र कर लगाया जा सकता है और न ही संचित निधि से कोई भी खर्च किया जा सकता है।
प्रतिनिधि भूमिका
संसद एक ऐसा निकाय है, जो जनता का प्रतिनिधित्व करता है। इसके सदस्य देश के प्रत्येक हिस्से से होते हें और वे विभिन्न हितों का प्रतिनिधित्व करते हें। संसद एक मंच का कार्य करती हे, जहाँ विभिन्न दलों और विभिन्न हितों के सदस्य एक साझा मंच के तहत एक साथ आते हैं। यह वह जगह है, जहाँ चर्चा और बातचीत से सहमति जन्य राजनीति होती है।
एक मंच होने के नाते भी जनता की जरूरतों और आकांक्षाओं और यहाँ तक कि उनकी चिंताओं और परेशानियों को व्यक्त करता हे। यह जनता को एक मंच प्रदान करता हे, जिससे वे अपनी समस्याओं ओर उस होने वाली कार्रवाई को व्यक्त कर सकते हैं। कश्यप के शब्दों में ’’संसद लोगों की बदलती आवश्यकताओं का प्रतिनिधित्व करता है। यह न केवल एक सूक्ष्म जगत और लोगों का दप्रण हे, साथ में, यह उनकी मनोदशा ओर नाड़ी का मापदंड भी है।’’
संसद, लोगों की एक संस्था के रूप में और उसके सदस्य लोगों के प्रतिनिधियों के रूप में, ने हर समय जनसमर्थन किया है। संसद सभी के लिए एक निकाय है, जो जनहित के मामलों में उत्साहपूर्वक अन ुक्रिया देता है, और सदन में सार्वजनिक महत्व के मामलों को उठाता है। इसने देश के लोगों की शिकायतों के लिये एक लोकपाल की भूमिका निभाई है।
राज्यसभा की विशेष शक्तियाँ
संविधान ने कुछ विशेष शक्तियाँ राज्यसभा को ही सोंपी है, जो उसके अकेले अस्तित्व को उजागर करती हैं कि वह राज्यों की परिषद है। अनुच्छेद 249 के अंतर्गत संविधान राज्य सभा को किसी भी ऐसे मामले में प्रस्ताव पारित करने का अधिकार देता है, जो राष्ट्र हित के परिप्रेक्ष्य में राज्य सूची के अंतर्गत आते हैं। इसी तरह, अनुच्छेद 312 के तहत, राज्य सभा को एक अखिल भारतीय सेवा की स्थापना के बारे में दो-तिहाई बहुमत द्वारा समर्पित एक प्रस्ताव द्वारा निर्णय लेने का अधिकार हे। लोकसभा इस सम्बन्ध में बाद में आती है। जब राज्यसभा इन सभी मामलों में संबंधित कानूनों को पारित कर चुकी होती हे।
इस प्रकार हम देखते हैं कि संसद के दोनों सदनों का अलग रूप से गठन किया जाता है। दोनों सदनों के पास कुछ समान अथवा विशेष आधार पर कुछ शक्तियाँ होती हैं, फिर भी ये समन्वित सदन होते हैं। कुछ मामलों में दोनों सदनों को समान अधिकार प्राप्त हैं, जैसे राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाना, उपराष्ट्रपति को हटाना, संवैधानिक संशोधनों, ओर उच्च न्यायालय व सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया में। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रपति द्वारा जारी किया गया प्रत्येक अध्यादेश, आपातकाल की घोषणा, ओर किसी भी राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता की घोषणा दोनों सदनों के समक्ष रखी जानी हैं। हालांकि, दोनों सदनों को विशेष क्षेत्र में आने वाली विशेष शक्तियाँ प्राप्त हें।
