अनुक्रम
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के कारण
1. शांति एवं सुरक्षा- द्वितीय विश्व युद्ध सन् 1939 से 1945 तक चला इस दौरान होने वाले विध्वंस से तथा इसके पूर्व प्रथम विश्व युद्ध के विनाश से दुनिया के देश तंग आ चुके थे। अत: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ही ऐसा प्रयास किये जाने लगे थे कि भविष्य में इस प्रकार के युद्धों को रोकने एवं शांति सुरक्षा बनाये रखने की दिशा में कोई सार्थक प्रयास किया जाना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्य
- मानव जाति की सन्तति को युद्ध की विभीषिका से बचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा को स्थायी रूप प्रदान करना और इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु शान्ति-विरोधी तत्वों को दण्डित करना।
- समान अधिकार तथा आत्म-निर्णय के सिद्धांतों को मान्यता देते हुए इन सिद्धांतों को आधार पर के आधार पर विभिन्न राष्ट्रों के मध्य संबंधों एवं सहयागे में वृद्धि करने के लिए उचित उपाय करना।
- विश्व की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आदि मानवीय समस्याओं के समाधान हेतु अंतरराष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना।
- शान्ति पूर्ण उपायों से अन्त राष्ट्रीय विवादों को सुलझाना ।
- इस सामान्य उदे्श्यों की पूर्ति में लगें हुए विभिन्न राष्ट्रों के कार्यों में समन्वयकारी केन्द्र के रूप में कार्य करना ।
संयुक्त राष्ट्र संघ के सिद्धांत
- संघ के सभी सदस्य- राष्ट्र प्रभुत्व सम्पन्न और समान हैं।
- संघ के सभी सदस्य- राष्ट्र, संघ के घोषणा-पत्र में वर्णित अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों का निर्वाह निष्ठापूर्वक और पूरी ईमानदारी से करेंगे।
- संघ के सभी सदस्य- राष्ट्र, अंतरराष्ट्रीय संबन्धो के संचालन में किसी राज्य की अखण्डता तथा राजनीतिक स्वतन्त्रता के विरूद्ध धमकी अथवा शक्ति का प्रयोग नहीं करेंगे।
- संघ के सभी सदस्य- राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय विवाद का समाधान शान्तिपूर्ण उपायों से करेंगे, जिससे विश्व-शान्ति, सुरक्षा एवं न्याय की रक्षा हो सके।
- संघ के सभी सदस्य- राष्ट्र, संघ के घोषणा-पत्र में वर्णित संघ के सभी कार्यों में संघ को सहायता प्रदान करेगें तथा वे किसी भी एसे राज्यों को किसी भी प्रकार की सहायता प्रदान नहीं करेंगे, जिसके विरूद्ध संघ द्वारा कोई कार्यवाही की जा रही हो।
- संघ उन राष्ट्रों से भी, जो संघ के सदस्य नहीं हैं, घोषणा-पत्र में वर्णित अंतरराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा वाले सिद्धांतों का पालन कराने प्रयास करेगा।
- संघ किसी सदस्य- राष्ट्र के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देश
| देश | वर्ष |
|---|---|
| अफगानिस्तान अल्बानिया अल्जीरिया एंडोरा अंगोला एंटिगुआ एवं बारबूडा अर्जेंटीना आमोनिया आस्टे्रलिया आस्ट्रिया अजरबैजान बहामास बहरीन बांग्लादेश बारबाडोस बेलारूस बेल्जियम बेलिज बेनिन भूटान बोलीविया बोस्निया-हर्जे्रोविना बोत्सवाना ब्राजील बुन्नी बुल्गारिया बुरकिना फांसो बुरूडी कंबोडिया कैमरून कनाडा केप वर्डे सेन्ट्रलअफ्रीकन चाड चिली चीन कोलबिया कोमोरेस कागो(प्रजा,गण) कांगो(गण,) कोटे-डी-आइवरी कोस्टारिका कोएशिया क्यूबा साइपस्र चेक(गणराज्य) डेनमार्क जिबूती डोमिनिकन डोमिनिकन इकडे वर इजिप्ट अल सल्वाडोर इक्वेटोरियल इिस्ट्रीया एस्टोनिया इथियोपिया ईस्ट तिमोर फिजी फिनलैण्ड फ्रांस गैबन गैम्बिया जॉर्जिया जर्मनी घाना ग्रीस ग्रनेडा ग्वाटेमाला गिनी गिनी-बिसाउ गुयाना हैती होंडूरास हंगरी आइसलैंड इंडिया इंडोनेशिया ईरान इराक आयरलैंड इजराइल इटली जमैका जापान जॉर्डन कजाकिस्तान केन्या किरबाती कोरिया(उ.) कोरिया(द) कुवैत किर्गिस्तान लाओस लाटविया लेबनान लेसोथो लाअबेरिया लीबिया लिक्टेंस्टीन लिथुआनिया लक्जेमबर्ग मेसिडोनिया मेडागास्कर मलावी मलेशिया मालदीव माली माल्टा मार्शल आइलैंड मॉरिटानिया मॉरिशस मैक्सिको माइक्रोनेशिया माल्डोवा मोनाको मंगोलिया मोरक्को मोजांबिक म्यांमार नामीबिया नारूै नेपाल नीदरलैंड न्यूजीलैंड निकारागुआ नाइजर नाइजीरिया नार्वे ओमान पाकिस्तान पलाउ पनामा पापुआ न्यू गिनी परागुए पेरू फिलीपींस पोलैंड पुर्तगाल कतर रोमानिया रूस रवांडा सेंट किट्स नेविन सेंट लुसिया सेंट विसेंट ग्रेनेडिंस समोआ सैन मैरिनो साओ टाम प्रिंसिप सउदी अरब सेनेगल सशेल्स सियरा लियाने सिंगापुर स्लोवाकिया स्लोवेनिया सोलोमन आइलैंड सोमालिया साउथ अफ्रीका स्पेन श्रीलंका सूडान सूरीनाम स्वाजीलैंड स्वीडन सीरिया स्विट्जरलैंड तजिकिस्तान तंजानिया थाइलैंड टोगो टोगा ट्रिनीडाड-टोबैगो टॅयूनीशिया तुर्की तुर्कमेनिस्तान टुवालू युगांडा यूक्रने यूनाइटेड अरब अमीरत यूनाइटेड किंगडम यू.एस.ए. उरूग्वे उज्बेकिस्तान वनाटू वेनेजुएला वियतनाम यमन युगोस्लाविया जामबिया जांबिया मोंटेनग्रो |
1946 1955 1962 1993 1976 1981 1945 1992 1945 1955 1992 1930 1971 1974 1966 1945 1945 1981 1960 1971 1945 1992 1966 1945 1984 1955 1960 1962 1955 1960 1945 1975 1960 1960 1945 1945 1945 1975 1960 1960 1960 1945 1992 1945 1960 1993 1945 1977 1978 1945 1945 1945 1945 1968 1993 1991 1945 2002 1970 1955 1945 1960 1965 1992 1973 1957 1945 1974 1945 1958 1974 1966 1945 1945 1955 1946 1945 1950 1945 1945 1955 1949 1955 1962 1956 1955 1995 1963 1999 1991 1991 1963 1992 1955 1991 1945 1966 1945 1955 1990 1991 1945 1993 1960 1964 1957 1965 1960 1964 1991 1961 1968 1945 1991 1992 1993 1961 1956 1975 1948 1990 1999 1955 1945 1945 1945 1960 1960 1945 1971 1947 1994 1945 1975 1945 1945 1945 1945 1955 1971 1955 1945 1962 1983 1979 1980 1976 1992 1975 1945 1960 1976 1961 1965 1993 1992 1978 1960 1945 1955 1955 1956 1956 1968 1946 1945 2002 1992 1961 1946 1960 1999 1956 1956 1945 1992 2000 1962 1945 1971 1945 1945 1945 1992 1981 1945 1977 1947 1945 1964 1980 2006 |
संयुक्त राष्ट्र संघ के अंग
- महासभा (साधारण सभा)
- सुरक्षा परिषद
- आर्थिक व सामाजिक परिषद
- संरक्षण या न्यास परिषद
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय
- सचिवालय
1. महासभा
संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य देश महासभा के सदस्य होते हैं, प्रत्येक सदस्य देशों को अधिक से अधिक 5 सदस्यों का प्रतिनिधि मण्डल महासभा के लिए भेज सकता हैं, परन्तु प्रत्येक सदस्य देशों का एक ही वोट माना जाएगा। महासभा संयुक्त राष्ट्र की विधायनी संस्था हैं। इसकी बैठक वर्ष में एक बार एवं विशेष सुरक्षा परिषद अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय संरक्षण या न्याय परिषद सचिवालय आर्थिक और सामाजिक परिषद महासभा परिस्थितियों में सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर विशेष बैठक बुलायें जाने का प्रावधान है। शांति, सुरक्षा और मानव अधिकारों से संबंधित संभी मामलों पर विचार करना महासभा का मुख्य कार्य हैं।
- राजनीतिक एवं सुरक्षा समिति।
- आर्थिक एवं वित्तीय समिति।
- सामाजिक एवं मानवीय समिति।
- संरक्षण समिति।
- प्रशासनिक एवं बजट संबंधी समिति।
- कानूनी समिति।
- विशेष राजनीतिक समिति।
महासभा के कार्य एवं शक्तियाँ- महासभा की शक्तियों का वर्णन चाटर्र की धारा 10 से लेकर 17 तक में किया गया हैं। इन धाराओं के अनुसार महासभा की कार्य एवं शक्तियॉ हैं-
i. अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा पर विचार- ‘विश्व-शांति एवं सुरक्षा संबंधी’ दायित्व यद्यपि सुरक्षा परिषद पर हैं, परन्तु महासभा भी इन समस्याओं पर विचार कर सकती है। नि:शस्त्रीकरण तथा शस्त्रों के नियम संबंधी मामलों पर विचार करना तथा अपने सुझाव आरै सिफारिशें सुरक्षा परिषद को भेजनी हैं वास्तव में परिषद ही महासभा से प्रार्थना करती हैं कि इस विषय पर विचार करें। सदस्य राष्ट्रों को भी यह अधिकार दिया जाता है कि वे अपने प्रतिनिधियों द्वारा शांति एवं सुरक्षा सबंधीं प्रस्ताव रखें। ऐसा एक प्रस्ताव 3 नवम्बर सन् 1950 में शांति के लिये एकता प्रस्ताव उसके पास भेंजा गया था।
- सुरक्षा परिषद के 10 अस्थायी सदस्य।
- आर्थिक एवं सामाजिक परिषद के 8 सदस्य।
- संरक्षण परिषद के निर्वाचित होने वाले सदस्य।
- अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों के न्यायाधीशों के चयन में भाग लेना।
- सुरक्षा परिषद की सिफारिश से महा सचिव की नियुक्ति करना।
iv. चार्टर में संशोधन- महासभा संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में 2/3 बहुमत के आधार पर संशोधन करने का कार्य भी करती है। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र संघ के विभिन्न अंगों की शक्तियों एवं कार्यों पर नियंत्रण रखना, अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार श्रमिक कल्याण को प्रोत्साहन देना, अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एवं सामाजिक सहयोग आदि कार्य भी महासभा द्वारा किया जाता हैं। यद्यपि महासभा के निर्णय, सुझावों के रूप में होते हैं, वे बाध्यकारी शक्तियॉ नहीं रखते तथापि उन निर्णयों के पीछे विश्व जनमत की नैतिक शक्ति होती हैं।
2. सुरक्षा परिषद
सुरक्षा परिषद के महत्व के संबध में प्रकाश डालते हुए ई पी.चजे ने सुरक्षा परिषद को ‘‘संयुक्त राष्ट्र संघ का हृदय कहा हैं।’’ सुरक्षा परिषद की स्थापना विश्व शांति के मुख्य संरक्षक के रूप में की गई थी। सुरक्षा परिषद् एक छोटी सी संस्था हैं, किंतु इसे संयुक्त राष्ट्र की सर्वाधिक शक्तिशाली संस्था माना जाता हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के मूल चार्टर में सुरक्षा परिषद की सदस्य संख्या 11 थी, किन्तु बाद में संशोधन कर उसकी सदस्य संख्या 15 कर दी गइर्। पूर्व में 5 स्थायी सदस्य आरै 6 अस्थायी सदस्य होते थें, किंतु संशोधन के बाद अस्थायी सदस्यों की संख्या 10 कर दी गई।
सुरक्षा परिषद के मुख्य कार्य व अधिकार – सुरक्षा परिषद का मुख्य कार्य अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा बनाये रखना है। इसके लिए वह उन मामलों व परिस्थितियों पर तुरंत विचार करती है जो शांति हते ु खतरा पैदा कर रही है। चार्टर की धारा 33 से 38 तक धाराए अंतर्राष्ट्रीय झगड़ो के शांतिपूर्ण निपटारे के संबंध में 39 से 51 तक की धाराएं शांति को संकट में डालने, भंग करने एवं आक्रमण को रोकने की कार्यवाही के बारे में विस्तार से वर्णन करती है।
- केवल सुरक्षा परिषद ही शांति भंग करने वाले के विरूद्ध कठोर कार्यवाही कर सकती हैं। यदि सुरक्षा परिषद इस निर्णय पर पहुंचती हैं कि किसी परिस्थिति से विश्व शांति एवं सुरक्षा को खतरा उत्पन्न हो गया है।, तो उसे कुटनीतिक, आर्थिक एवं सैनिक कार्यवाही करने का अधिकार हैं। सदस्य राष्ट्र चार्टर की इच्छानुसार उक्त निर्णय को मानने एवं लागू करने के लिये बाध्य हैं।
- सुरक्षा परिषद के महासभा की अपेक्षा नये सदस्यों को सदस्यता प्रदान करने के क्षेत्र में निर्णयात्मक अधिकार प्राप्त हैं। सुरक्षा परिषद सदस्यता प्रदान करने से संबंधित अपनी समिति की राय पर स्वयं उक्त देश की सदस्यता की पात्रता पर विचार करती है जिसमें बहुत ही विशिष्ट परिस्थितियों में संतुष्ट होकर महासभा के पास अपनी सिफारिश भेज देती हैं।
- राष्ट्र संघ के महा सचिव की नियुक्ति सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर की जाती हैं।
- सुरक्षा परिषद अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों के निर्वाचन का कार्य भी करती हैं।
- संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में अंतर्राष्ट्रीय विवादों के समाधान के विषय में कई धाराएँ हैं। जब कोई विवाद सुरक्षा परिषद् के समक्ष निपटाने के लिये आता हैं तो परिषद विवादित राज्यों को यह परामर्श देती हैं कि वे अपने विवादों को बिना शक्ति प्रयोग के शांतिपूर्ण ढंग से निपटा लें।
- संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद द्वारा कुछ पयर्वेक्षयणात्मक कार्य भी सम्पन्न किये जाते हें। लेकिन सुरक्षा परिषद के पर्यवेक्षणात्मक कार्य महासभा के समान व्यापक नही हैं। सुरक्षा परिषद अप्रत्यक्ष रूप से संयुक्त राष्ट्र के इस प्रकार के कार्यों का सम्पादन करती है। चार्टर के अनुच्छेद 108 के अनुसार चार्टर में संशोधन के लिये यह जरूरी हैं कि महासभा के दो तिहाई सदस्य इसे स्वीकार करें तथा तत्पश्चात इन सदस्यों की सरकारें इसक अनुसमर्थन करें, किंतु यह आवश्यक है कि इन दो तिहाई सदस्यों में सुरक्षा परिषद के पांचों स्थाई सदस्य भी शामिल हों
3. आर्थिक एवं सामाजिक परिषद
आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् के कार्य आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् के कार्य 2 प्रकार के होते हैं- (अ) सामान्य कार्य । (ब) विशिष्ट कार्य ।
- विश्व का एक बडा भाग आर्थिक दृष्टि से पिछडा हुआ हैं, जहाँ न ठीक से खेती हो पाती हैं और न ही उद्योग-धन्धों की स्थापना। वहाँ सर्वत्र गरीबी, बेकारी तथा भुखमरी फैली हुई हैं। साम्राज्यवादी शक्तियाँ इन क्षेत्रों का भरपूर शोषण कर रही हैं। इन क्षेत्रों के संबंध में इस परिषद को यह कार्य सोपा गया हैं कि इन पिछडे़ क्षेत्रों के लोगों का जीवन स्तर ऊंचा उठायें तथा गरीबी और बेकारी का निवारण कर लोगों की दशा को उन्नत बनाए। कृषि का विकास एवं उधोग-धंधो की स्थापना कर वहौ स्वस्थ हाथों को काम दिलवाये।
- अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक तथा स्वास्थ्य सबंधीं समस्याओं का अध्ययन करना तथा उनका समाधान करने का प्रयास करना। शिक्षा एवं संस्कृति के विकास के लिये आपस में सहयोग को प्रोत्साहन देना तथा राष्ट्रों के मध्य सहानुभूति उत्पन्न करना आदि।
- विश्व के सभी मानवों में जाति. रंग, भाषा, धर्म, वंश तथा लिंग के भेद को मिटाकर समानता स्थापित करना। समस्त मानवों को मानव अधिकार, मौलिक स्वतंत्रता समानताएं प्राप्त हों इसके लिये प्रयत्न करना।
ii. आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् के विशिष्ट कार्य –
- अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक तथा सम्बधीं समस्याओं का अध्ययन करना तथा इस संबंध में सदस्य राष्ट्रों को एवं समितियों को परामर्श देना ताकि समस्या का समाधान हो सकें।
- सुरक्षा परिषद की प्रर्थना पर उसे सबंधित विषयों की सहायता प्रदान करना।
- विभिन्न समस्याओं के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन बलु ाना।
- अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले महत्वपूर्ण विषयों पर प्रतिवेदन तैयार कर महासभा के सामने प्रस्तुत करना।
- न्याय क्षेत्रों के विकास में सहयोग देना।
- महासभा की स्वीकृति से सदस्यों के अनुरोध पर उन्हें अपनी सेवाओं से सहायता प्रदान करना।
- आर्थिक एवं सामाजिक क्षेत्रों की उन्नति के लिये आयोग नियुक्त करना।
इस प्रकार स्पष्ट है कि पिछड़े एवं अविकसित देशों के आर्थिक विकास के लिए इस संस्था द्वारा आर्थिक एवं प्राविधिक सहायता योजनाओं का विकास किया गया हैं। यह अर्द्ध-विकसित देशों को विशेषज्ञ भेजती हैं और उन्हें मशीनों, यंत्रों, उपकरणों आदि की पूर्ति के लिये आर्थिक सहायता प्रदान करती हैं।
3. संरक्षण परिषद (न्यास परिषद) –
न्यास परिषद के उद्देश्य- न्यास परिषद् का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा की वृद्धि में सहयोग करना तथा न्यास क्षेत्र के लोगों को राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक दृष्टि से विकसित कर उनमें स्वशासन एवं स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना न्याय परिषद का मूल उद्देश्य है।
- प्रशासनिक अधिकारी द्वारा प्रषित प्रतिवेदनों पर विचार करना। प्रशासी अधिकारी प्रति वर्ष अपना प्रतिवेदन परिषद् के सामने प्रस्तुत, करते है। जिंन पर आवश्यक विचार-विमर्श करने पश्चात महासभा तथा सुरक्षा परिषद् को अपनी सिफारिशें भेजती हैं।
- याचिकाएॅ स्वीकार करके प्रशासी अधिकारी के साथ विचार-विमर्श करते हुए उनका परीक्षण करना।
- प्रशासी अधिकारी के साथ तिथि निश्चित करके समय-समय पर न्यास प्रदेशों का भ्रमण करना तथा वहॉ की स्थिति का जायजा लेना।
- न्यास समझौता के अनुसार उपयुक्त तथा अन्य कार्य करना।
5. अतंराष्ट्रीय न्यायालय –
iv. अंतरराष्ट्रीय न्यायालय द्वारा लागू किये जाने वाले कानून – निर्णय देते समय अंतरराष्ट्रीय न्यायालय निम्नलिखित बातों का अश्रय लेता है-
- अंतरराष्ट्रीय परम्पराएँ तथा रीति-रिवाज जिन्हें प्राय: कानून के रूप में व्यवहार में लाया जाता हैं।
- न्यायिक निर्णयों तथा विद्वानों की टीकाए, ?
- सभ्य राष्ट्रों द्वारा स्वीकृत कानून के सामान्य सिद्धांत,
- सामान्य अथवा विशेष अंतर्राष्ट्रीय अभियान जिससे उन नियमों की स्थापना होती हैं, जिन्हें विवादी राष्ट्र स्पष्ट रूप से स्वीकार कर चुके है।
v. न्यायालय के निर्णयों को क्रिय्रान्वित करने की विधि – अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के निर्णय अंतिम होते है। इसके निर्णय के विरूद्ध कहीं अपील नहीं की जा सकती। न्यायालय के निर्णयों को क्रियान्वित किये जाने की व्यवस्था चाटर्र के अनुच्छेद 94 के खण्ड 2 में की गई हैं- ‘‘यदि विवाद से संबंधित कोई पक्ष न्यायालय के निर्णय के अनुसार अपने दायित्व को पूरा न करें तो विपक्षी को सुरक्षा परिषद की शरण लेनी चाहिए जो कि न्यायालय के निर्णय की लागू करने के लिये आवश्यक सिफारिश करेगी। ‘‘सुरक्षा परिषद इन निर्णयों को मनवाने के बाहय नही है वह चाहे तो संबंधित से इस निर्णय को मानने की सिफारिश कर सकती है अथवा विशेषाधिकार का प्रयोग कर सकती हैं।
6. सचिवालय
सचिवालय के कार्य –
- संयुक्त राष्ट्र संघ के विभिन्न अंगों, अभिकरणों एवं एजेन्सियों द्वारा लिये गये निर्णयों को कार्यान्वित करना
- संयुक्त राष्ट्र संघ की विभिन्न समितियों की बैठकों का आयोजन करना।
- सुरक्षा परिषद् को विभिन्न जानकारी एवं सूचनाएँ उपलब्ध कराना।
1. उपनिवेश एवं जातिवाद के विरूद्ध संघर्ष में संयुक्त राष्ट्र संघ का योगदान:- जैसा कि हम जानते है। 1947 में स्वतंत्र होने से पहले भारत ब्रिटेन का उपनिवेश था। केवल भारत अकेला उपनिवेश नहीं बना था। जब 1945 में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की गई तों, उस समय एशिया एवं अफ्रीका के अनेक देश स्वतंत्र नहीं थे। उपनिवेशवाद की समाप्ति संयुक्त राष्ट्र के लिए शांति एवं प्रगति लाने हेतु एक महत्वपूर्ण लक्ष्य बन गया।

