अनुक्रम
आजादी के उपरान्त भारत में प्रजातन्त्रीय शासन प्रणाली लागू की गई है। प्रजातन्त्र को ‘लोगों का, लोगों के लिए, लोगों द्वारा शासन’ कहा गया है। अगर प्रजातन्त्र का अर्थ “एक आम आदमी की प्रशासन में सहभागिता है” तो विकेन्द्रीकरण का कानून विकास की प्रथम इकाई के स्तर से ही लागू होना चाहिये। किसी भी देश के विकास के लिए यह आवश्यक है कि विकास नीतियां, योजनाएं व कार्यक्रम एक जगह केन्द्रीय स्तर पर न बनकर शासन की विभिन्न इकाइयों के स्तर पर बनें एवं वहीं से क्रियान्वित किये जाएं। यही नहीं मूल्यांकन व अनुश्रवण भी उन्हीं स्तरों पर किया जाये।
विकेन्द्रीकरण का अर्थ
- विकेन्द्रीकरण वह व्यवस्था है जिसमें विभिन्न स्तरों पर सत्ता, अधिकार एवं शक्तियों का बंटवारा होता है। अर्थात केन्द्र से लेकर गांव की इकाई तक सत्ता, शक्ति व संसाधनों का बंटवारा। साथ ही हर स्तर अपनी गतिविधियों के लिए स्वयं जवाबदेह होता ह। हर इकाई अपनी जगह स्वतन्त्र होते हुये केन्द्र तक एक सूत्र से जुड़ी रहती है।
- विकेन्द्रीकरण का अर्थ है विकास हेतु नियोजन, क्रियान्वयन एवं कार्यक्रम की निगरानी में स्थानीय लोगों की विभिन्न स्तरों में भागीदारी सुनिश्चित हो। स्थानीय इकाईयों व समुदाय को ज्यादा से ज्यादा अधिकार व संसाधनों से युक्त करना ही वास्तविक विकेन्द्रीकरण करना है।
- विकेन्द्रीकरण वह व्यवस्था है जिसमें सत्ता जनता के हाथ में हो और सरकार लोगों के विकास के लिए कार्य करे।
विकेन्द्रीकृत शासन व्यवस्था में शासन को हर इकाई स्वायत्त होती है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं होता कि वह इकाई अपने मनमाने ढंग से कार्य करे अपितु प्रत्येक इकाई अपने से ऊपर की इकाई द्वारा बनाये गये नियमों व कानूनों के अन्र्तगत कार्य करती है। उदाहरण के लिए भारत में राज्य सरकारें अपने राज्य के लोगों के विकास के लिए नियम-कानून, नीतियां एंव कार्यक्रम बनाने के लिए स्वतन्त्र है लेकिन वे केन्द्रीय संविधान के प्रावधानों के अन्र्तगत ही यह कार्य करती हैं। कोई भी राज्य सरकार स्वतन्त्र होते हुए भी संविधान के नियमों से बाहर रह कर कार्य नहीं कर सकती।
विकेन्द्रीकरण कोई नई व्यवस्था नहीं
सदियों से हमारे देश में विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था किसी न किसी रूप में विद्यमान थी। पुराने समय में अधिकांश राज्य छोटे थे जो जनपद कहलाते थे। राजा इन राज्यों का शासन, प्रशासन-सभा व परिषद की सहायता से चलाता था। स्थानीय स्तर पर पंचायतें, समितियों के रूप में कार्य करती थीं जो गांवों की व्यवस्था सम्बन्धी नियम एवं कानून बनाने व लागू करने के कार्य में संलग्न रहती थीं। इन गांवों से सम्बन्धित निर्णय लेने में राजा हमेशा पंचायतों को बराबर का भागीदार बनाता था। यही व्यवस्था विकेन्द्रीकरण हैं। इतने बड़े भारत देश को एक ही केन्द्र से संचालित नहीं किया जा सकता था अत: राजाओं को विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था लागू करनी पड़ी। परन्तु धीरे-धीरे यह व्यवस्था कमजोर होती गई। मुस्लिम व ब्रिटिश हुकुमत के समय इस व्यवस्था 29 को अधिक धक्का लगा।
विकेन्द्रीकरण की आवश्यकता व महत्व
शासन व सत्ता में आम जन की भागीदारी सुशासन की पहली शर्त हैं। जनता की भागीदारी को सत्ता में सुनिश्चित करने के लिए विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था ही एक कारगर उपाय है। विश्व स्तर पर इस तथ्य को माना जा रहा है कि लोगों की सक्रिय भागीदारी के बिना किसी भी प्रकार के विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती। विकेन्द्रीकृत व्यवस्था ही ऐसी व्यवस्था है जो कार्यों के समुचित संचालन व कार्यो को करने में पारदर्शिता, गुणवत्ता एवं जबाबदेही को हर स्तर पर सुनिश्चित करने के रास्ते खोलती है। प्रत्येक स्तर पर लोग अपने अधिकारों एवं शक्तियों का सही व संविधान के दायरे में रह कर प्रयोग कर सकें इस के लिए विकेन्द्रीकरण की आवश्यकता महसूस की गई है इस व्यवस्था में अलग-अलग स्तरों पर लोग अपनी भूमिका एवं जिम्मेदारियों को समझकर उनका निर्वाहन करते हैं।
विकेन्द्रीकरण का महत्व इसलिए भी है कि इस व्यवस्था द्वारा सामाजिक न्याय व आर्थिक विकास की योजनायें लोगों की सम्पूर्ण भागीदारी के साथ स्थानीय स्तर पर ही बनेंगी व स्थानीय स्तर से ही लागू होंगी। पहले केन्द्र में योजना बनती थी और वहां से राज्य में आती थीं व राज्य द्वारा जिला, ब्लाक व गांव में आती थी। लेकिन भारत में अब नये पंचायती राज में विकेन्द्रीकरण की पूर्ण व्यवस्था की गई है। जिसके अनुसार ग्राम स्तर पर योजना बनेगी व ब्लाक, जिला, राज्य से होती हुई केन्द्र तक पहुँचेगी। योजनाओं का क्रियान्वयन भी ग्राम स्तर पर स्थानीय शासन द्वारा होगा।
विकेन्द्रीकरण के आयाम
1. कार्यात्मक स्वायतता- इसका अर्थ है सत्ता के विभिन्न स्तरों पर कार्योे का बंटवारा। अर्थात हर स्तर अपने अपने स्तर पर कार्यो से सम्बन्धित जिम्मदारियों के लिए जवाब देह होर्गा
विकेन्द्रीकरण के लाभ
- स्थानीय स्तर पर स्थानीय समस्याओं को समझकर उनका समाधान आसानी से किया जा सकता है। स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने से कार्य तेजी से होंगे। कार्यो के क्रियान्वयन में अनावश्यक बिलम्ब नहीं होगा। साथ ही विकास कार्यो के लिए उपलब्ध धनराशि का उपयोग स्थानीय स्तर पर स्थानीय लोगों की निगरानी में होगा, इससे पैसे का दुरूपयोग कम होगा।
- विकेन्द्रीकृत शासन व्यवस्था से विकास योजनाओं के नियोजन एवं क्रियान्वयन में स्थानीय लोगों की सक्रिय भागेदारी सुनिश्चित होती है। विकास कार्यो की प्राथमिकता स्थानीय स्तर स्थानीय लोगों द्वारा स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप तय की जायेगी। व विकास कार्यक्रम ऊपर से थोपने के बजाय स्थानीय स्तर पर तय किये जायेंगें।
- विकास कार्यो का स्थानीय स्तर पर नियोजन एवं क्रियान्वयन किये जाने से उनका प्रभावी निरीक्षण होगा। नियोजन में स्थानीय समुदाय की भागीदारी होने से कार्यों के क्रियान्वयन व निगरानी में भी उनकी सक्रिय भागीदारी बढे़गी। इससे से कार्य समय पर पूरे होंगे तथा उनकी गुणवत्ता में सुधार होगा।
- स्थानीय स्तर पर स्थानीय साधनों के उपयोग से अपना कोष विकसित होने व कार्य करने से कार्य की लागत भी कम आयेगी।
विकेन्द्रीकृत की सोच स्थानीय स्तर पर लोकतान्त्रिक तरीके से चयनित सरकार पर जोर देती है एवं यह भी सुनिश्चित करती है कि स्थानीय इकाई को सभी अधिकार शक्तियां व संसाधन प्राप्त हो ताकि वे स्वतन्त्र रूप से कार्य कर सकें व अपने क्षेत्र की आवश्यकताओं एवं प्राथमिकताओं के अनुरूप विकास कर सके।