रामकृष्ण परमहंस का जीवन परिचय एवं प्रमुख शिक्षाएं

रामकृष्ण परमहंस का प्रारंभिक जीवन रामकृष्ण का जन्म 18 फरवरी 1836 ई. में बंगाल के हुगली जिले के कामापुकुर ग्राम में हुआ था। रामकृष्ण परमहंस एवं उनका योगदान पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव से भारतीयों को मुक्त कराने के लिये ब्रम्ह समाज एवं आर्य समाज ने महत्वपूर्ण योगदान दिया, लेकिन हिंदू धर्म की आध्यात्मिक भावना को संतुष्ट करने का कार्य रामकृष्ण मिशन ने ही किया और भारत की आत्मा को जागृत किया।

रामकृष्ण परमहंस की प्रमुख शिक्षाएं एवं प्रमुख देन

1. अध्यात्मवाद- रामकृष्ण परमहंस की सबसे बड़ी देन अध्यात्मवाद है, अपने सरल उपदेशों एवं जीवन के यथार्थ उदाहरणों से वेदों और उपनिषदो के जटिल ज्ञान को साधारण व्यक्तियों के निकट कर दिया। वे हिंदू अध्यात्मवाद के जीवित स्वरूप थे। उनका कहना था कि मनुष्य का मुख्य लक्ष्य ईश्वर की प्राप्ति होना चाहिये जो अध्यात्मवाद द्वारा ही संभव है। वे ज्ञान से अधिक चरित्र निर्माण पर जोर देते थे।

2. सभी धर्मो में एकता का विश्वास जागृत करना- रामकृष्ण परमहंस की महत्वपूर्ण देन सभी धर्मों की एकता में विश्वास को जागृत करना था। उन्होंने स्पष्ट किया कि सभी धर्म ईश्वर प्राप्ति के विभिन्न मार्ग है। उनका कहना था कि ‘‘ईश्वर एक है, लेकिन उसके विभिन्न स्वरूप है जैसे एक घर का मालिक एक के लिये पिता, दूसरे के लिये कोई और तीसरे के लिये पति है और विभिन्न व्यक्तियों के द्वारा विभिन्न नामों द्वारा पुकारा जाता है, उसी प्रकार ईश्वर को उन विभिन्न नामों से पुकारा जाता है जिस-जिस प्रकार उसका भक्त उसे देखता है।

3. मानव मात्र की सेवा ओर सेवा ही धर्म – रामकृष्ण परमहंस की तीसरी प्रमुख देन मनुष्य मात्र की सेवा और भलाई को धर्म बनाना था। उनका मानना था कि मनुष्य मात्र की सेवा दया भाव से करनी चाहिये। वे प्रत्येक मनुष्य को भगवान का स्वरूप और मनुष्य की सेवा करना ईश्वर की सेवा करना मानते थे।

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