अनुक्रम
कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम 1923 क्या है?
- दोनों हाथों की हानि या उच्चतर स्थानों पर विच्छेदन;
- एक हाथ और एक पांव की हानि;
- टाँग या जंघा से दोहरा विच्छेदन या एक टँाग या जघा से विच्छेदन और दूसरे पाँव की हानि;
- आँखों की रोषनी की इस मात्रा तक हानि कि कर्मकार ऐसा कोई काम करने में असमर्थ हो जाता है जिसके लिए आँखों की रोषनी आवश्यक है;
- चेहरे की बहुत गंभीर विद्रूपता; या
- पूर्ण बधिरता। अधिनियम की अनुसूची 1 के भाग 2 में उन क्षतियों का उल्लेख किया गया है, जिनके परिणामस्वरूप स्थायी आंशिक अशक्तता उत्पन्न समझी जाती है। अनुसूची के इस भाग में विभिन्न प्रकार के विच्छेदनों तथा अन्य क्षतियों से होने वाली उपार्जन-क्षमता की प्रतिशत हानि का भी उल्लेख किया गया है। अगर किसी दुर्घटना के कारण कई प्रकार की आंशिक अशक्ताएं एक साथ उत्पन्न होती है और उनके कारण उपार्जन-क्षमता की हानि 100 प्रतिशत या इससे अधिक होती है तो उसे भी स्थायी पूर्ण अशक्तता का मामला समझा जाता है।
v. मजदूरी – अधिनियम के प्रयोजन के लिए ‘मजदूरी’ से ऐसी सुविधा या लाभ का बोध होता है, जिसे धन के रूप में प्राक्कलित किया जा सकता है, लेकिन इसके अंतर्गत निम्नलिखित सम्मिलित नही होते –
- यात्रा-भत्ता;
- यात्रा-संबंधी रियायत का मूल्य;
- कर्मकार के लिए नियोजक द्वारा पेंशन या भविष्य-निधि में दिया गया अंशदान; या
- कर्मकार के नियोजन की प्रकृति के कारण उस पर हुए विशेष खर्च के लिए उसे दी गई राशि।
vii. आश्रित – आश्रित से मृत कर्मकार के निम्नलिखित नातेदारों में किसी का बोध होता है –
- विधवा, नाबालिग धर्मज पुत्र, अविवाहिता धर्मज पुत्री या विधवा माता;
- अठारह वर्ष से अधिक उम्र का विकलांग पुत्र या पुत्री अगर वह कर्मकार की मृत्यु के समय उसके उपार्जनों पर पूरी तरह आश्रित था या थी;
- कर्मकार की मृत्यु के समय उसके उपार्जनों पर पूरी तरह या आंशिक रूप से यथानिर्दिष्ट आश्रित- 1. विधुर, 2. विधवा माता को छोड़कर माता-पिता, 3. नाबालिग अधर्मज पुत्र, अविवाहिता अधर्मज पुत्री, नाबालिग विवाहिता धर्मज या अधर्मज पुत्री, या नाबालिग विधवा पुत्री चाहे वह धर्मज हो या अधर्मज, 4. नाबालिग भाई या अविवाहिता बहन या नाबालिग विधवा बहन, 5. विधवा पुत्रवधू, 6. पूर्वमृत पुत्र की नाबालिग संतान, 7. पूर्वमृत पुत्री की नाबालिग संतान अगर उस संतान के माता-पिता में से कोई भी जीवित नही है, या 8. जहां कर्मकार के माता-पिता में से कोई भी जीवित नही है, वहाँ पितामह और पितामही।
क्षतिपूर्ति के लिए नियोजक का दायित्व
1. दायित्व के लिए आवश्यक शर्ते – अगर किसी कर्मकार की नियोजन के दौरान तथा नियोजन से उत्पन्न होनेवाली दुर्घटना से व्यक्तिगत क्षति होती हो, तो उसका नियोजक क्षतिपूर्ति के लिए दायी होता है। इस तरह, क्षतिपूर्ति के दायी होने के लिए निम्नलिखित दशाओं का होना आवश्यक है –
- दुर्घटना का नियोजन के दौरान होना;
- दुर्घटना का नियोजन के कारण या उससे उत्पन्न होना; तथा
- दुर्घटना के फलस्वरूप कर्मकार का व्यक्तिगत रूप से क्षतिग्रस्त होना। उपर्युक्त तीनों दशाओं के बारे में प्राय: विवाद उठ खड़े होते हैं। इस कारण इनकी व्याख्या आवश्यक है।
2. नियोजन के दौरान दुर्घटना का होना – नियोजन के दौरान से दुर्घटना होने के समय का बोध होता है। नियोजक दुर्घटना के लिए तभी जिम्मेदार होता है, जब वह कार्यस्थल में समुचित समय और स्थान की सीमाओं में हुई हो। साधारणत:, 166 जब दुर्घटना कर्मकार की निर्धारित कार्यविधियों के अंदर कार्यस्थल या नियोजक के परिसर में हुई हो, तो उसे नियोजन के दौरान समझा जाता है। लेकिन, कुछ स्थितियों में यह साबित करना कठिन होता है कि दुर्घटना नियोजन के दौरान हुई है। पहला, काम में अस्थायी व्यतिरेक की अवधियों को नियोजन के दौरान तभी सम्मिलित समझा जाता है, जब व्यतिरेक नियोजक के लिए समुचित रूप से आवश्यक या आनुवांगिक हो। अगर कर्मकार अपने व्यक्तिगत काम के लिए काम छोड़ता है, तो उसे नियोजन के दौरान नहीं समझा जाता। मान्यता प्राप्त अंतरालों, जैसे विश्राम-अंतराल को नियोजन के दौरान समझा जाता है। उपर्युक्त सभी अवधियों में अगर कर्मकार नियोजक या उसके प्रतिनिधि के आदेशानुसार काम करता है, तो उसे नियोजन के दौरान समझा जाता है।
- अगर कर्मकार अपने नियोजन से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से संबद्ध कार्यो को छोड़कर अपना व्यक्तिगत काम करता हो;
- अगर कर्मकार अपना काम असावधानी से ही नही, बल्कि उतावलेपन से करता हो;
- अगर कर्मकार को अन्य कामगारों के साथ बाहरी खतरों का सामना करना पड़ा हो; जैसे – बिजली गिरना भूकंप आदि;
- अगर कर्मकार को अपनी शारीरिक दशा, जैसे मिरगी के आक्रमण के कारण दुर्घटना का सामना करना पड़ा हो;
- घातक दुर्घटनाओं को छोड़कर अन्य दुर्घटनाओं की स्थिति में अगर कर्मकार को उसकी मतावस्था के कारण दुर्घटना का सामना करना पड़ा हो;
- अगर कर्मकार को ऐसी जगह दुर्घटना का सामना करना पड़ा हो, जहाँ उसकी उपस्थिति आवश्यक नही थी; या
- अगर काम पर लगा कर्मकार दूसरे के पहले से दुर्घटनाग्रस्त हो जाता हो।
4. दुर्घटना से कर्मकार का व्यक्तिगत रूप से क्षतिगस्त होना – दुर्घटना के फलस्वरूप कर्मकार का व्यक्तिगत रूप से क्षतिग्रस्त होना आवश्यक है। अगर दुर्घटना से उसे किसी तरह की व्यक्तिगत क्षति नहीं पहुंचती हो तो वह क्षतिपूर्ति होना आवश्यक है। अगर दुर्घटना से उसे किसी तरह की व्यक्तिगत क्षति नहीं पहंचु ती हो तो वह क्षतिपूर्ति के लिए दावेदार नही हो सकता। अधिनियम के अंतर्गत क्षतिपूर्ति कर्मकार की मृत्यु, उसकी अस्थायी आंशिक और पूर्ण अशक्तता तथा स्थायी आंशिक और पूर्ण अशक्तता की स्थितियों में ही देय होती है।
- ऐसी क्षति की स्थिति में, जिसके परिणामस्वरूप कर्मकार की अशक्तता पूर्ण या आंशिक रूप से तीन दिनों से अधिक अवधि के लिए नही होती;
- कर्मकार की मृत्यु या उसकी स्थायी पूर्ण अशक्तता की स्थिति को छोड़कर दुर्घटना द्वारा ऐसी क्षति के लिए, जो कर्मकार पर मदिरा या औशधियों के असर के कारण हुई हो;
- कर्मकार की मृत्यु या उसकी स्थायी पूर्ण अशक्तता की स्थिति को छोड़कर दुर्घटना द्वारा ऐसी क्षति के लिए, जो कर्मकार पर मदिरा या औशधियों के असर के कारण हुई हो;
- कर्मकार की मृत्यु या उसकी स्थायी पूर्ण अशक्तता की स्थिति को छोड़कर दुर्घटना द्वारा ऐसी क्षति के लिए जो कर्मकार को सुरक्षा के लिए उपाय या युक्ति को उसके द्वारा जान-बूझकर हटाए जाने या उसकी अवहेलना के कारण हुई हो।
6. व्यावसायिक रोगों के लिए क्षतिपूर्ति का दायित्व – अधिनियम की अनुसूची III में कई ऐसे व्यावसायिक रोगों का उल्लेख किया गया है, जिन्हें नियोजन के दौरान और नियोजन से उत्पन्न दुर्घटना के फलस्वरूप हुई क्षति समझा जाता है और नियोजक के लिए इन रोगों के शिकार कर्मकारों को क्षतिपूर्ति देना आवश्यक है। अधिनियम में इन व्यावसायिक रोगों को तीन श्रेणियों में रखा गया है –
- अनुसूची ‘III’ के भाग ‘A’ में कुछ विशेष प्रकार के नियोजनों में हो सकने वाले व्यावसायिक रोगों का उल्लेख किया गया है। अगर कोई कर्मकार ऐसे किसी नियोजन में काम करते रहने के फलस्वरूप उससे संबद्ध व्यावसायिक रोग से ग्रस्त हो जाता है, तो उसे नियोजन के दौरान और नियोजन से उत्पन्न दुर्घटना से होने वाली क्षति समझा जाता है, और नियोजक के लिए इन रोगों से ग्रस्त कर्मकारों को क्षतिपूर्ति देना आवश्यक है।
- अनुसूची ‘III’ के भाग ‘B’ में कुछ ऐसे व्यावसायिक रोगों का उल्लेख किया गया है, जो कुछ विशेष नियोजनों में कर्मकार के लगातार 6 महीने से अधिक अवधि तक काम करते रहने के कारण हो सकते है। अगर कर्मकार ऐसे किसी नियोजन में लगातार 6 महीने से अधिक अवधि तक काम करने के बाद उससे संबद्ध व्यावसायिक रोग से ग्रस्त हो जाता है, तो उसे भी नियोजन के दौरान और नियोजन से उत्पन्न दुर्घटना के फलस्वरूप होने वाली क्षति समझा जाता है और उसके लिए क्षतिपूर्ण देय होती है।
- अनुसूची ‘III’ के भाग ‘C’ में ऐसे व्यावसायिक रोगों का उल्लेख किया गया है, जिनसे कर्मकार एक या अधिक नियोजकों के यहां केन्द्र सरकार द्वारा विहित अवधि तक उल्लिखित नियोजनों में काम कर चुकने के बाद ग्रस्त हो सकते हैं। केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित अवधि से कम अवधि तक काम करने पर भी कर्मकार क्षतिपूर्ति का दावेदार हो सकता है, यदि यह सिद्ध हो जाए कि रोग नियोजन के दौरान और नियोजन से उत्पन्न हुआ है। केन्द्र एवं राज्य सरकारों को अनुसूची अनुसूची ‘III’ में अन्य व्यावसायिक रोगों को जोड़ने या शामिल करने की शक्ति प्राप्त है।
7. वे स्थितियाँ जिनमें कर्मकार को दावे का अधिकार नही होता- यदि कर्मकार ने नियोजक या किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध किसी सिविल न्यायालय में किसी क्षति के लिए नुकसानी का कोई वाद चला दिया है, तो उसे इस अधिनियम क अंतर्गत क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार नहीं होता। इसी तरह, अगर किसी क्षति के बारे में क्षतिपूर्ति का कोई दावा कर्मकार क्षतिपूर्ति आयुक्त के समक्ष रखा गया हो या इस अधिनियम के अनुसार क्षतिपूर्ति के लिए कर्मकार और नियोजक के बीच कोई समझौता हो चुका हो, तो कर्मकार द्वारा नुकसानी के लिए किसी न्यायालय में वाद नही चलाया जा सकता।
- मृत्यु की स्थिति में क्षतिपूर्ति की रकम- दुर्घटना के फलस्वरूप होने वाले मृत्यु की स्थिति में क्षतिपूर्ति की रकम मृत कर्मकार की मजदूरी के 50 प्रतिशत को तालिका 5 में दिए गए सुसंगत कारक से गुणा करने पर आने वाली राशि या 80000 रुपये, जो भी अधिक है, होती है, अगर किसी कर्मकार की मजदूरी 4000 रुपये प्रतिमाह से अधिक है, तो क्षतिपूर्ति की राशि की गणना 4000 रुपये की मजदूरी पर ही की जाएगी।
- स्थायी पूर्ण अशक्तता की स्थिति में क्षतिपूर्ति की रकम- दुर्घटना के फलस्वरूप होने वाली स्थायी पूर्ण अशक्तता की स्थिति में क्षतिपूर्ति की रकम कर्मकार की मजदूरी के 60 प्रतिशत को तालिका 5 में दिए गए सुसंगत कारक से गुणा करने पर आने वाली राशि या 90000 रुपये, जो भी अधिक है, होती है। अगर किसी कर्मकार की मजदूरी 4000 रुपये प्रतिमाह से अधिक है तो क्षतिपूर्ति की गणना 4000 रुपये की मजदूरी पर ही की जाएगी।
- स्थायी पूर्ण अशक्तता की स्थिति में क्षतिपूर्ति की रकम – स्थायी आंशिक अशक्तता की स्थिति में क्षतिपूर्ति की राशि स्थायी पूर्ण अशक्तता के लिए देय राशि का वह अनुपात होती है, जिस अनुपात में कर्मकार की उपार्जन क्षमता की हानि होती है। उदाहरणार्थ, अगर किसी कर्मकार को देय स्थायी पूर्ण अशक्तता के लिए क्षतिपूर्ति की राशि 30000 रुपये है और स्थायी आंशिक अशक्तता से उसकी उपार्जन-क्षमता में 50 प्रतिशत की हानि हुई है, तो स्थायी आंशिक अशक्तता के लिए क्षतिपूर्ति की राशि 15000 रुपये होगी।
- अस्थायी आंशिक या पूर्ण अशक्तता के लिए क्षतिपूर्ति की रकम – अस्थायी आंशिक या पूर्ण अशक्तता के लिए क्षतिपूर्ति की अधिकतम राशि कर्मकार की मजदूरी का 25 प्रतिशत अर्द्धमासिक भुगतान के रूप में दी जाने वाली राशि होती है। जहाँ अशक्तता 28 दिनों से अधिक अवधि के लिए होती है, वहाँ अस्थायी अशक्तता के लिए अर्द्धमासिक भुगतान दुर्घटना के दिन के सोलहवें दिन प्रारंभ हो जाता है। जहां अशक्तता 28 दिनों से कम अवधि के लिए होती है, वहाँ अर्द्धमासिक भुगतान 3 दिनों की प्रतीक्षा-अवधि की समाप्ति के बाद सोलहवें दिन प्रारंभ होता है। अर्द्धमासिक भुगतान अशक्तता की अवधि तक या पाँच वर्षो के लिए, जो भी अधिक हो, किया जाता है।
अगर कोई दुर्घटनाग्रस्त कामगार अस्थायी अशक्तता की अवधि में कुछ अर्जित करता है, तो अर्द्धमासिक भुगतान की रकम उसके द्वारा दुर्घटना के पहले और बाद में उस अवधि के लिए अर्जित मजदूरी के अंतर से अधिक नहीं हो सकती। उदाहरणार्थ, अगर कामगार के अर्द्धमासिक भुगतान की रकम 1000 रुपये है और वह दुर्घटना के बाद 400 रुपये अर्द्धमासिक मजदूरी अर्जित कर लेता है, तो उसे क्षतिपूर्ति के रूप में 60 रू0 अर्द्धमासिक से अधिक का भुगतान नहीं किया जाएगा। अगर कामगार नियोजक से क्षतिपूर्ति के रूप में कोई भुगतान या भत्ता प्राप्त करता है, तो उस राशि को अधिनियम के अंतर्गत देय क्षतिपूर्ति की रकम से काट लिया जाएगा। अगर अर्द्धमासिक भुगतान की किसी अवधि के पूरा होने के पहले ही दुर्घटनाग्रस्त कामगार की अशक्तता समाप्त हो जाती है, तो क्षतिपूर्ति की राशि उसी अनुपात में कम कर दी जाएगी।
क्षतिपूर्ति का भुगतान और वितरण
1. क्षतिपूर्ति के भुगतान का समय – नियोजक के लिए क्षतिपूर्ति का भुगतान उस समय करना आवश्यक है, जिस समय वह देय हो जाती है। अगर नियोजक क्षतिपूर्ति की पूरी राशि का दायित्व स्वीकार नही करता, तो वह कामगार को उस रकम का भुगतान कर देगा, जिसका दायित्व वह स्वीकार करता है। इस रकम को कामगार को दे दिया जा सकता है या उसे कर्मकार क्षतिपूर्ति आयुक्त के पास जमा किया जा सकता है। अगर नियोजक क्षतिपूर्ति की राशि का भुगतान उसके बकाए होने के एक महीने के अन्दर नहीं करता, तो आयुक्त बकाए की राशि को 12 प्रतिशत के साधारण ब्याज के साथ देने का आदेश दे सकता है। अगर आयुक्त नियोजक द्वारा क्षतिपूर्ति की राशि देने में देरी को अनुचित समझता है, तो वह उस राशि का 50 प्रतिशत जुर्माने के रूप में 170 जमा करने का आदेश दे सकता है। ब्याज या जुर्माने की राशि कर्मकार या उसके आश्रित को देय होती है।
कर्मकार क्षतिपूर्ति आयुक्त –
संविदाएं और समझौते
- संविदा करना- अगर कोई दुर्घटनाग्रस्त कामगार क्षतिपूर्ति के लिए विधिक रूप से दायी व्यक्ति की जगह किसी अन्य व्यक्ति से क्षतिपूर्ति प्राप्त करता है, तो क्षतिपूर्ति देने वाले व्यक्ति को उसके विधिक रूप से दायी व्यक्ति से क्षतिपूर्ति की राशि वसूल करने का अधिकार होता है।
- संविदा द्वारा त्याग – इस अधिनियम के प्रारंभ होने के पहले या बाद में किया गया कोई भी करार या समझौता, जिसके अनुसार दुर्घटना के फलस्वरूप होने वाली व्यक्तिगत क्षति के लिए नियोजक से मिलने वाली क्षतिपूर्ति का अधिकार त्याग देता है या जिससे अधिनियम के अधीन क्षतिपूर्ति का दायित्व हटाया जाता है या कम किया जाता है, तो वह वालित या शून्य या प्रभावहीन होता है।
- समझौतों का पंजीकरण – अगर क्षतिपूर्ति के रूप में देय किसी एकमुश्त रकम या अर्द्धमासिक भुगतान के बारे में कोई समझौता हुआ हो, तो नियोजक उसके ज्ञापन को आयुक्त के पास पंजीकरण के लिए भेजेगा। अगर आयुक्त इस बात से संतुश्ठ है कि समझौता असली है, तो वह उसे विहित तरीके से पंजीकृत कर देगा। जहाँ आयुक्त समझता है कि किसी स्त्री या विधिक निर्योग्यता के अधीन किसी व्यक्ति को देय रकम अपर्याप्त है या समझौता कपट, दबाव या अन्य अनुचित तरीके से कराया गया है, तो वह उसे पंजीकृत करने से इन्कार कर देगा। पंजीकृत समझौता अधिनियम के अंतर्गत कानूनी रूप से मान्य समझा जाता है।
जहाँ नियोजक किसी समझौते के ज्ञापन को आयुक्त के पास नही भेजता है, वहाँ नियोजक अधिनियम के अधीन निर्धारित क्षतिपूर्ति की पूरी रकम के भुगतान का दायी होता है।