अनुक्रम
प्रत्यक्षवाद की अवधारणा की व्याख्या
प्रत्यक्षवाद की वैज्ञानिक व्याख्या सर्वप्रथम ऑगस्ट कॉम्टे ने की है। कॉम्टे ने अपनी रचनाओं ‘Course of Positive Philosophy’ (1842) में तथा ‘The system of Positive Polity’ (1851) में इस अवधारणा की व्याख्या की है। इसी कारण कॉम्टे को प्रत्यक्षवाद का प्रवर्तक माना जाता है। कॉम्टे ने मानव इतिहास का अध्ययन करके तथा उसमें औद्योगिक व वैज्ञानिक प्रगति का स्थान निश्चित करके यह दावा किया कि उसने मानव समाज के आधारभूत नियमों का ज्ञान प्राप्त कर लिया है और उसने विश्वास व्यक्त किया कि यदि इन नियमों को सही ढंग से कार्य रूप प्रदान कर दिया जाए तो मानव प्रगति एक वैज्ञानिक तरीके से विकसित होकर अपने पूर्णत्व को प्राप्त हो सकती है।
कॉम्टे ने मानवीय ज्ञान की प्रत्येक शाखा को अपनी प्रौढ़ावस्था तक पहुंचने के लिए तीन चरणों से होकर गुजरना स्वीकार किया है। कॉम्टे का कहना है कि समाज का विकास मानव बुद्धि के द्वारा ही होता है और इसकी तीन अवस्थाएं हैं-I. धर्मभी: या मिथ्यापूर्ण अवस्था। II. अधिभौतिक अवस्था तथा III. वैज्ञानिक या प्रत्यक्षवादी अवस्था।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि कॉम्टे ने वैज्ञानिक पद्धति के अन्तर्गत प्रत्यक्षवाद के विचार का पोषण किया है। कॉम्टे ने इसी बात पर जोर दिया है कि इन्द्रि ज्ञान से परे कुछ भी वास्तविक नहीं है। वास्तविक वही है जो हम देखते हैं व सुनते हैं तथा अपने जीवन में प्रयुक्त करते हैं। सभी मनुष्यों में निरीक्षण की एक जैसी क्षमता पाई जाती है। इसलिए हम अपने अनुभव को दूसरों के अनुभव से मिलाकर उसकी पुष्टि व सत्यापन कर सकते हैं। इसके बाद अनुभववात्मक कथन तार्किक कथन बन जाते हैं क्योंकि हम प्रत्येक कथन को तर्क की कसौटी पर रखते हैं।
प्रत्यक्षवाद की परिभाषा
प्रत्यक्षवाद की मूल मान्यताएं
प्रत्यक्षवाद के अर्थ से आपको स्पष्ट होता है कि कौंत प्रत्यक्षवाद को अध्ययन की एक विशिष्ट पद्धति के रूप में विकसित करना चाहते थे जिसका मूल उद्देश्य सामाजिक घटनाओं के अध्ययन को अधिक आनुभाविक तथा यर्थाथ बनाना है। प्रत्यक्षवाद को समझने हेतु आपको इसकी मूल मान्यताओं को जानना जरूरी है जो है:
- जिस प्रकार प्राकृतिक घटनाएं निश्चित नियमों पर आधारित होती हैं, उसी प्रकार सामाजिक घटनाएं भी व्यवस्थित नियमों के द्वारा संचालित होती हैं।
- अवलोकन, विश्लेषण, वर्गीकरण तथा परीक्षण के द्वारा संकलित सामाजिक तथ्यों के माध्यम से यर्थाथ व वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है।
- प्रत्यक्षवाद कोई अवधारणा या सिद्धान्त नहीं है अपितु यह अध्ययन की एक विशिष्ट तथा वैज्ञानिक पद्धति है जिसमें तार्किकता को महत्वपूर्ण माना जाता है।
- इसमें सम्पूर्ण मानव समाज का भौतिक, बौद्धिक तथा नैतिक विकास करते हुए सामाजिक प्रगति की दिशा में आगे बढ़ना है।
कौंत का यह मानना था कि जिस प्रकार प्राकृतिक घटनायें आकस्मिक ढंग से नहीं होती हैं अपितु निश्चित नियमों तथा क्रमबद्धता पर आधारित होती हैं, उसी तरह से सामाजिक घटनाएं भी कुछ निश्चित तार्किकता तथा नियमों से घटित होती हैं। प्राकृतिक विज्ञान में घटनाओं के घटित होने के नियमों को अवलोकन, परीक्षण तथा वर्गीकरण के आधार पर प्राप्त किया जाता है। उनका विश्वास था कि सामाजिक घटनाओं को संचालित करने वाले नियमों को प्रत्यक्षवाद की पद्धति के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
कौंत के अनुसार प्रत्यक्षवाद किसी अनुमानिक तथ्यों पर आधारित न होकर एक ऐसे यथार्थ तथा वास्तविक ज्ञान से सम्बन्धित है जिसे अवलोकन, वर्गीकरण तथा परीक्षण के द्वारा प्राप्त किया जाता है। इसीलिये इसके द्वारा प्राप्त अध्ययन तथा निष्कर्ष अत्यधिक विश्वसनीय तथा अनुभाविक होते हैं। प्रत्यक्षवाद में प्रत्यक्ष प्रमाणों के आधार पर अपनी स्थापनाओं अथवा उपकल्पनाओं को सिद्ध किया जाता है।
कौंत का विश्वास था कि प्रत्यक्षवाद कोई सामाजिक सिद्धान्त नहीं है बल्कि यह सामाजिक घटनाओं के विश्लेषण की एक वैज्ञानिक पद्धति है। यह वह पद्धति है जिसमें सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करने के लिए उनका निष्पक्ष अवलोकन किया जाता है, उसके उपरान्त अवलोकन किये गये तथ्यों का परीक्षण करके सामान्य घटनाओं का वर्गीकरण इस प्रकार किया जाता है जिससे विभिन्न समानताओं तथा विविधता का विश्लेषण करके सामान्य नियमों को समझा जा सके।
कौंत की मान्यता है कि सामाजिक घटनाओं के सह-सम्बन्धों को समझने में तर्क एक महत्वपूर्ण भूमिका रखता है। उन्होंने प्रत्यक्षवाद में बौद्धिक क्रियाओं को अधिक महत्व देते हुए मानव मस्तिष्क की तार्किकता की विस्तृत विवेचना की। प्रत्यक्षवादी स्तर पर मानव की बौद्धिक क्षमता इतनी विकसित हो जायेगी कि वह सामाजिक घटनाओं के कारण और परिणाम को समझने के लिए अनुमानों के स्थान पर तर्कपूर्ण विचारों का महत्व देने लगेगा।
कौंत प्रत्यक्षवाद के आधार पर समाज का पुर्ननिर्माण अथवा पुनर्गठन करना चाहता था। उनका मानना था कि विज्ञान की खोजों के आधार पर एक नये समाज का निर्माण हो सकता है। प्रत्यक्षवाद को सामाजिक पुर्ननिर्माण का एक प्रभावशाली साधन बनाने के लिए कौंत ने एक प्रत्यक्षवादी समाज के विकास पर भी बल दिया, जिसमें असुरक्षा को अव्यक्तिवादता की जगह सद्भावना और परोपकार का अधिक महत्व हो। उन्होंने ऐसे समाज को ‘परार्थवादी समाज’ (दूसरों के हित के लिए जीवन व्यतीत करने वाले लोगों के समाज) का नाम दिया।
अगस्त कौंत ने प्रत्यक्षवाद के आधार पर समाज का आधारभूत परिवर्तन नहीं करना था। उनका मानना था कि नवीन प्रौद्योगिकी, उद्योग और व्यापार आगे थमने वाला नहीं है, इसी कारण इन्हें मानवीय, नैतिक एवं धर्मसंगत बनाने की जरूरत है। कौन्त धर्म से अत्यधिक प्रभावित थे। वह सामाजिक जीवन में नैतिकता को ही धर्म के लिए आवश्यक मानते थे। प्रत्यक्षवाद के द्वारा समाज में धर्म को वह वैज्ञानिक धर्म बनाना चाहते थे।
बोटोमोर (1978) के अनुसार अगस्त कौंत संरक्षणवादी थे। उनके संरक्षणवादी विचारों के कारण प्रारम्भिक समाजशास्त्र को संरक्षणवादी कहा गया। वैज्ञानिक आधार पर विश्लेषण द्वारा समाज का पुर्ननिर्माण करने की रूपरेखा तैयार करके उन्होंने एक काल्पनिक समाज की परियोजना बनायी।
प्रत्यक्षवाद की आलोचना
प्रत्यक्षवाद के परवर्ती समर्थकों ने कॉम्टे द्वारा दी गई प्रत्यक्षवादी व्याख्या को अस्वीकार कर दिया। इन विद्वानों ने मैक्स वेबर, विएना सर्किल, टी0डी0 वैल्डन, मोरिट्ज श्लिक, लुड्विख विट्जेंस्टाइन तथा ए0जे0 एयर शामिल हैं। इन विद्वानों को नव-प्रत्यक्षवादी या तार्किक प्रत्यक्षवादी कहा जाता है।
आगे चलकर उत्तरव्यवहारवादियों ने भी राजनीति-विज्ञान में प्रत्यक्षवाद की आलोचना की है क्योंकि यह मूल्य-निरपेक्ष दृष्टिकोण का समर्थक है। समकालीन चिन्तन में आलोचनात्मक सिद्धान्त के अन्तर्गत प्रत्यक्षवाद पर जो प्रहार हुआ है, वह ध्यान देने योग्य है।
कुछ आलोचकों का कहना है कि यदि कॉम्टे की प्रत्यक्षवाद की योजना सफल हो जाए तो वह नई तरह की पोपशाही को जन्म देगी जिसमें स्वर्ण, सुरा और सुन्दरी तीनों को जोड़कर लोगों को मौज मस्ती के लिए खुला छोड़ दिया जाएगा। इससे स्पष्ट है कि कॉम्टे का प्रत्यक्षवाद ‘Laissezfaire’ के सिद्धान्त का समर्थक है।
उपरोक्त विवेचन से हमें यह निष्कर्ष नहीं निकालना लेना चाहिए कि कॉम्टे का प्रत्यक्षवाद कोरी कल्पना या कोरा आदर्शवाद है। सत्य तो यह है कि आगे चलकर जे0 एस0 मिल जैसे विचारक भी कॉम्टे के प्रत्यक्षवाद का प्रभाव पड़ा। रिचर्ड कान्ग्रीव तथा हरबर्ट स्पेन्सर जैसे विचारक भी कॉम्टे से प्रभावित हुए।