अनुक्रम
अनुवाद की यह प्रक्रिया एकतरफा नहीं है। हिंदी इलाकों की बहुत सी ऐसी खबरें होती है जिनका हिंदी से अंग्रेजी में प्रतिदिन अनुवाद किया जाता है। अगर हिंदी एजेंसियां अंग्रेजी अनुवाद करती हैं तो अंग्रेजी एजेंसियां भी हिंदी इलाकों की खबरों का हिंदी से अंग्रेजी में अनुवाद करती हैं। हिंदी एजेंसियों को अनुवाद करना इसलिए मजबूरी है कि हिंदी एजेंसियों के संवाददाता गैर हिंदी इलाको में नहीं हैं और विदेशों में भी नहीं हैं। किसी इलाके की खबरें सिफ इसलिए हम देने से मना नहीं कर सकते कि वहां हमारा अपना यानि हिंदी का संवाददाता नहीं है। इसलिए उन इलाकों से अंग्रेजी में आनेवाली खबरों का हिंदी में अनुवाद करना पड़ता है।
पत्रकारिता में अनुवाद की समस्याएँ
पत्रकारिता के क्षेत्र में अनुवाद प्रत्येक समय आवश्यकता होती है। किंतु यह विडंबना ही है कि हमारे हिंदी अनुवादकों के पास अनुवाद के लिए अधिक समय नहीं होता है। उन्हें तो दी गई सामग्री का तुरंत अनुवाद और प्रकाशन करना होता है। यह भी चिंतनीय है कि यह समाचार किसी भी विषय से संबद्ध हो सकता है। यह आवश्यक नहीं कि अनुवादक को उस विषय की पूर्ण जानकारी ही हो।
भाषा की समस्या
पत्रकारिता के क्षेत्र में अनुवाद करते समय सबसे पहले भाषा संरचना की समस्या देखने को मिलते हैं। भाषा के संदर्भ में दो-तीन प्रश्न हमारे सामने उठते हैं- एक पत्रकारिता की भाषा स्वरूप क्या है? क्या पत्रकारिता की भाषा स्वरूप विशिष्ट है? हाँ, अवश्य पर विज्ञान और आयुर्विज्ञान की भाषा के समान न तकनीकी है और न तो अधिक साहित्यिक ही है और न ही सामान्य बोलचाल की भाषा। इसे हम किसी सीमा तक लिखित और औपचारिक भाषा के समकक्ष तथा निश्चित प्रयोजनमूलक स्तर पर से संबद्ध भाषा मान सकते हैं। हम इसे संपादित शैली में प्रस्तुत भाषा मान सकते हैं, जहां प्रत्येक विषय सुविचरित है, प्रत्येक विषय के लिए निश्चित स्थान, स्तंभ और पृष्ठ हैं। कभी कभी स्थिति विशेष में पारिभाषिक शब्दों का प्रयागे करना पड़ता है। प्राय: पत्र की भाषा में लोक व्यवहार में प्रयुक्त होने वाली शब्दावाली का प्रायुर्य रहता है। पत्रकारिता की भाषा में सर्वजन सुबोधता तथा प्रयोगधर्मिता का गुण होना आवश्यक है।
प्रत्येक भाषा की निजी संरचना होती है। अनुवादक को इस ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।स उसे हिंदी की प्रकृति के अनुकूल और उपर्युक्त पत्रकारिता की भाषा की विशेषताओं को ध्यान में रखकर अनुवाद करने की चेष्टा करनी चाहिए। जिससे सहजता और स्वाभाविकता बनी रहे। हिंदी में अनुवाद करते समय अंगे्रजी वाक्य रचना का अनुसरण करने की अपेक्षा वाक्य को जटिल तथा अस्पष्ट न बनाकर, उसे दो-तीन छोटे वाक्यों में ताडे ़ना अच्छा रहता है।
उपर्युक्त उदाहरण में एक दीर्घ वाक्य को दो वाक्यों में तोडऩे से कथन में सौंदर्य और आक्रामकता का समावेश हुआ है।
मुहावरे, शैली, लाक्षणिक पदबंधों की समस्या
प्राय: अनुवादक अंग्रेजी मुहावरो, शैली, लाक्षणिक पदबंधों आदि के समानांतर हिंदी में मुहावरें आदि नहीं ढूंढते। शाब्दिक भ्रष्ट अनुवाद करने के कारण एक अस्वाभाविकता का भाव बना रहता है। उदाहरण के लिए-
- Put him behind the bars – उसे जेल के सीखंचों के पीछे भेज दिया जाए।
- We were stunned with astonishment- हम आश्चर्य से स्तब्ध रह।
उपर्युक्त उदाहरणों में हिंदी की स्वाभाविक प्रवृत्ति का हनन करते हुए अंग्रेजी का शब्द-प्रति-शब्द अनुवाद प्रस्तुत किया गया है। इससे एक फालतूपन का आभास होता है।
पत्रकारिता में साधारण ज्ञान, तुरंत निर्णय की समस्या
उप संपादको आदि को रात-भर बैठकर प्राप्त होने वाले समाचारो को साथ-साथ हिंदी में अनूदित करके देना होता है। समय के एक-एक मिनट का इतना हिसाब होता है कि अंग्रेजी में प्राप्त सामग्री में कोई शब्द/अभिव्यक्त समझ न आने पर शब्दकोश/ज्ञानकोश आदि देखने या सोचने का वक्त भी प्राय: नहीं होता। किंतु पत्रकार बहुत कुशल अनुवादक होते हैं एकदम नए शब्द का भाव समझकर ही वे काफी अच्छे हिंदी समानक दे देते हैं और वही हिंदी समानक या प्रतिशब्द जनता में, पाठकों में चल भी पड़ते हैं। लेकिन कभी कभी पत्रकार की असावधानी या उसके अज्ञान से अनुवाद में भयकंर भूलें हो जाती है, जैसे-एक बार एक उपसंपादक ने (salt) का अनुवाद ‘नमक समझौता’ कर दिया जबकि वहां ‘साल्ट’ का अर्थ ‘नमक’ नहीं बल्कि Strategic Arms Limitation Treaty था।
शब्द-प्रति-शब्द अनुवाद की समस्या
समाचार पत्रों के अनुवाद में स्वाभाविकता और बोधगम्यता होना बहुत आवश्यक है। यहां अनुवादक के तकनीकी रूप से सही होने से भी काम नहीं चलता-उसका सरल और जानदार होना भी जरूरी है। इस संदर्भ में नवभारत टाइम्स मुंबई के मुख्य संवाददाता श्रीलाल मिश्र का कहना है- प्राय: यह देखा गया है कि कुछ उप संपादक अनुवाद का ढांचा तैयार करते हैं।
- Twentieth Century Fox- बीसवीं शताब्दी की लोमडी एक विदेशी फिल्म कंपनी का नाम
- Topless Dress-शिखरहीन पोशाक(नग्न वक्ष)
- Call Money- मंगनी का रुपया(शीघ्रावधि राशि)
- Informal visit- गैर रस्मी मुलाकात(अनौपचारिक भेटं )
- Railway Gard- रेलवे के पहरेदार
- Flowery Language- मुस्कुराती हुई भाषा(सजीली भाषा/औपचारिक भाषा)
यहां एक बात और उल्लेखनीय है कि जहां तक हो सके अप्रचलित शब्दों के व्यवहार से बचना चाहिए जैसे absass के लिए ‘विद्रधि’ के स्थान पर ‘फोड़ा’ ही ठीक है, appendix को ‘उडुकपुछ’ करने के बदल अप्रचलित शब्द लाने की अपेक्षा इन्हें हिंदी में ध्वनि अनुकूल द्वारा भी राखा जा सकता है।
शैली की समस्या
समाचार पत्रों में विषय के अनुसार समाचारों की पृथक-पृथक शैलियां होना स्वाभाविक है जैसे कि अंग्रेजी पत्रो में होता ही है। किंतु भारतीय भाषाओं के पत्रों का पाठक विषय के अनुसार भाषा की गूढता को प्राय: अस्वीकार करके सरल भाषा को ही स्वीकार करता है। अत: पत्रकारों को गूढ़ -से- गूढ़ विषय के समाचार फीचर आदि भी सरलतम भाषा में अनूदित करने पड़त े हैं। यह कुछ वैसा ही हो जाता है जैसे किसी 8-10 साल के बच्चे को उसकी भाषा में न्यूक्लीयर विखंडन की पूर्ण प्रक्रिया समझाना पड़।े अत: सरल शैली की समस्या भी अनुवाद की एक प्रमुख समस्या बन जाती है।
शीर्षक-उपशीर्षकों आदि की समस्या
शीर्षकों के अनुवाद में कई तरह की बाधाएँ हैं, जैसे शीर्षक में उसके लिए पृष्ठ पर रखी गई जगह के अनुसार शब्दों की संख्या का चयन करना पड़ता है। शीर्षक का रोचक/आकर्षक होना तथा विषय की प्रतीति कराने वाला होना आवश्यक है। अतएव शीर्षकों के मामले में शब्दानुवाद या भावानुवाद से भी काम नहीं चलता, बल्कि उनका छायानुवाद का या पुन: सृजन ही करना पड़ता है।