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दर्शन शब्द संस्कृत की दृश् धातु से बना है- ‘‘दृश्यते यथार्थ तत्वमनेन’’ अर्थात् जिसके द्वारा यथार्थ तत्व की अनुभूति हो वही दर्शन है। अंग्रेजी के शब्द फिलॉसफी का शाब्दिक अर्थ ‘‘ज्ञान के प्रति अनुराग’’ होता है। व्यापक अर्थ में दर्शन वस्तुओं, प्रकृति तथा मनुष्य उसके उद्गम और लक्ष्य के प्रतिवीक्षण का एक तरीका है, जीवन के विषय में एक शक्तिशाली विश्वास है जो उसको धारण करने वाले अन्य से अलग करता है।
दर्शन का अर्थ
दर्शन की परिभाषा
हम यह कह सकते हैं कि दर्शन का संबंध ज्ञान से है और दर्शन ज्ञान को व्यक्त करता है। हम दर्शन के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने हेतु कुछ दर्शन की परिभाषा दे रहे हैं।
प्लेटो के अनुसार- जो सभी प्रकार का ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा रखता है और सीखने के लिये आतुर रहता है कभी भी सन्तोष करके रूकता नहीं, वास्तव में वह दार्शनिक है। उनके ही शब्दों में- ‘‘पदार्थों के सनातन स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करना ही दर्शन है।’’
अरस्तु के अनुसार- ‘‘दर्शन एक ऐसा विज्ञान है जो परम तत्व के यथार्थ स्वरूप की जॉच करता है।’’
कान्ट के अनुसार-’’दर्शन बोध क्रिया का विज्ञान और उसकी आलोचना है।’’ परन्तु आधुनिक युग में पश्चिमी दर्शन में भारी बदलाव आया है, अब वह मूल तत्व की खोज से ज्ञान की विभिन्न शाखाओं की तार्किक विवेचना की ओर प्रवृत्त है। अब दर्शन को विज्ञानों का विज्ञान और आलोचना का विज्ञान माना जाता है।
कामटे के शब्दों में- ‘‘दर्शन विज्ञानों का विज्ञान है।’’
हरबार्ट स्पेन्सर के शब्दो में ‘‘दर्शन विज्ञानों का समन्वय या विश्व व्यापक विज्ञान है।’’
बरटे्रड रसेल- ‘‘अन्य विधाओं के समान दर्शन का मुख्य उद्देश्य-ज्ञान की प्राप्ति है।’’
आर0 डब्लू सेलर्स-’’दर्शन एक व्यवस्थित विचार द्वारा विश्व और मनुष्य की प्रकृति के विषय में ज्ञान प्राप्त करने का निरन्तर प्रयत्न है।’’
जॉन डी0वी0 का कहना है- ‘‘जब कभी दर्शन पर गम्भीरतापवू के विचार किया गया है तो यही निश्चय हुआ कि दर्शन ज्ञान प्राप्ति का महत्व प्रकट करता है जो ज्ञान जीवन के आचरण को प्रभावित करता है।’’
हैन्डर्सन के अनुसार- ‘‘दर्शन कुछ अत्यन्त कठिन समस्याओ का कठारे नियंत्रित तथा सुरक्षित विश्लेषण है जिसका सामना मनुष्य करता है।
ब्राइटमैन ने दर्शन को थोडे़ विस्तृत रूप में परिभाषित किया है – कि दर्शन की परिभाषा एक ऐसे प्रयत्न के रूप में दी जाती है जिसके द्वारा सम्पूर्ण मानव अनुभूतियों के विषय में सत्यता से विचार किया जाता है अथवा जिसके द्वारा हम अपने अनुभवों द्वारा अपने अनुभवों का वास्तविक सार जानते हैं।
दर्शन की आवश्यकता
दर्शन यानी दार्शनिक चिन्तन की बुनियाद, उन बुनियादी प्रश्नों में खोजी जा सकती है, जिसमें जगत की उत्पत्ति के साथ-साथ जीने की उत्कंठा की सार्थकता के तत्वों को ढूंढने का प्रश्न छिपा है। प्रकृति के रहस्यों को ढूंढने से शुरू होकर यह चिन्तन उसके मनुष्य धारा के सामाजिक होने की इच्छा या लक्ष्य की सार्थकता को अपना केन्द्र बिन्दु बनाती है।
दर्शन का विषय क्षेत्र
भारतीय विचारधारा के अनुसार दर्शन एवं जीवन में किसी प्रकार का अन्तर नहीं है। अत: सम्पूर्ण जीवन को दर्शन का विषय क्षेत्र माना गया है। हम दर्शन को मुख्यत: दो रूप में ग्रहण करते हैं- 1. सूक्ष्म तात्विक ज्ञान के रूप में। 2. जीवन की आलोचना और जीवन की क्रियाओं की व्याख्या के रूप में। एक शास्त्र के रूप में दर्शन के अन्तर्गत विषयों को अध्ययन किया जाता है।
दर्शन का उद्देश्य
दर्शन चिन्तन एवं विचार है, जीवन के रहस्यों को जानने का प्रयत्न है। अतएव दर्शन के उद्देश्य कहे जा सकते हैं।