जापान में मेजी पुनर्स्थापना के कारण
जापान के विभिन्न सत्ता केन्द्रों को समझ लें तो मेईजी पुर्नस्थापना को समझना अधिक सरल हो जाएगा। बारहवीं सदी में जापान में शोगून व्यवस्था का प्रारंभ हुआ था। जापान का सम्राट क्योटो में एकान्तवास करता था। उसका प्रशासनिक कार्यो में कोई भूमिका नहीं थी। वह पवित्र, देवतुल्य एवं पूज्यनीय मात्र था। सम्राट शक्तिशाली सामन्तों को शोगून की उपाधि प्रदान करता था जिसका अभिप्राय ‘बर्बरों का दमन करने वाला’ सर्वोच्च सैनिक अधिकारी होता था। सबसे अधिक शक्तिशाली ‘शोगून’ परिवार को शासन सत्ता सौंपी जाती थी और उसकी राजधानी येडो में थी। उसके अधीन दाइम्यों (सामन्त) होते थे, उनके अधीन समुराई वर्ग होता था जो सैनिक अधिकारी होते थे और राष्ट्र पर मर मिटने के लिये सदैव तैयार रहते थे। इनके अतिरिक्त सामान्य जनता का राज्य अथवा प्रशासन कार्य में कोई भूमिका नहीं थी। 1603 ई. से तोकुगावा वंश का शोगून व्यवस्था पर वर्चस्व चला आ रहा था।
सम्राट राष्ट्र की एकता का प्रतीक था और जनता की श्रद्धा और भक्ति का केन्द्र था। राज्य के प्रशासनिक कार्यों की समस्त जिम्मेदारी शोगून पर थी। वह युद्ध करने, सन्धि करने, अधिकारियों की नियुक्ति करने, कर लगाने, वसूल करने, दण्ड देने आदि का कार्य उसी के द्वारा सम्पन्न होता था। सम्राट से नाममात्र के लिये स्वीकृति प्राप्त कर ली जाती थी। इस द्वैध शासन -प्रणाली में अनेक दुर्बलताएं आ गई थी जिनका विरोध अन्य शोगून, सामन्त तथा सामान्य जन कर रहे थे।
जापान का पूर्ण पश्चिमीकरण और आधुनिकीकरण पर जोर देने वाला वर्ग अधिक सशक्त था। इस वर्ग का कहना था कि जापान में अपने-आपको समय के अनुकूल ढालने और पाश्चात्य देशों के बराबर आ जाने के गुण हैं। वे विरोधाभासी स्थिति से निकलकर एक तरफा खेल खेलना चाहते थे। अन्त में, इसी वर्ग की विचारधारा के पक्ष में जापान होता गया जिसमें शोगून व्यवस्था के अन्त और सम्राट की पुर्नस्थापना के बीज छिपे थे।
राज्य के उच्च एवं महत्वपूर्ण पदों पर भी तोकुगावा परिवार के लोगो को ही नियुक्त किया जाता था। प्रमुख सामन्त परिवार चोशू, सातसूमा और तोसा प्रमुख शोगून की इस व्यवस्था से खासे नाराज थे। प्रमुख शोगून की सामन्त विरोधी नीति के कारण सामन्तों को अपने खर्चो में कटोती करनी पड़ी, उन्हें अपने सैनिकों की संख्या कम करनी पड़ी, जिससे सामुराई वर्ग में भी असन्तोष फैल गया। वे अपनी इस स्थिति के लिए तोकुगावा परिवार को जिम्मेदार मान रहे थे।
19 वीं शताब्दी में व्यापारिक उन्नति के कारण समाज में एक उन्नत धनी वर्ग का उदय हुआ। यह वर्ग पर्याप्त रूप में धन सम्पन्न था। सामन्त अपनी आवश्यकताओं के लिए इनसे कर्ज लेते थे तथापि समाज में व्यापारियों का स्थान सामन्तों से निम्न था। परिवर्तित परिस्थितियों में व्यापारी वर्ग सामाजिक परिवर्तन के लिए जोर लगा रहा था।
सामन्ती व्यवस्था का समस्त बोझ किसानों के कन्धों पर था। वे करो के भार से दबे जा रहे थे, उनमें भी राजनीतिक- सामाजिक जागरण आ रहा था और वे सामन्त एवं शोगून व्यवस्था के स्थान पर सम्राट की व्यवस्था के पक्षधर थे।
जापान में सैनिक कार्य केवल समुराई वर्ग के लोग ही कर सकते थे, सामान्य जन को सैनिक कार्यों से दूर रखा जाता था। समाज का प्रत्येक वर्ग किसी न किसी कारण से शोगून व्यवस्था से नाराज था और विदेशियों के आगमन ने उनके असन्तोष में पर्याप्त मात्रा में वृद्धि कर दी।
एक अन्य घटना ने भी जापान विदेशी संर्घर्ष में वृद्धि की। सातसूमा के सामन्त का एक जुलूस निकला रहा था। जापान में नियम था कि जब किसी सामन्त का जुलूस निकले तो लोग रास्ते से हट जाएँ और सम्मान प्रकट करें। रिचर्डसन नामक अग्रेंज अपने तीन घुड़सवारों के साथ उसी रास्ते से निकल रहा था। उसने सातसूमा के सामन्त के लिए न तो रास्ता छोड़ा और न ही उसके प्रति सम्मान प्रकट किया जिसके कारण सामन्त के साथ चल रहे सामूराई क्रोद्धिात हो उठे और रिचर्डसन की हत्या कर दी। ब्रिटिश सरकार ने जापान सरकार तथा सातसूमा के सामन्त को हर्जाना देने के लिए कहा। सात अग्रेजी जहाज हर्जाना वसूल करने के लिए कागोशीमा पहुँचे और गोलीबारी करके एक जहाज डूबों दिया। इस घटना से जापान में विदेश विरोधी घृणा और तीव्र हो गई जिसका अन्त सम्राट की बहाली से ही सम्भव था।
- साम्राज्य के संगठन एवं उसको सुदृढ़ बनाने के लिए किसी भी देश के ज्ञान- विज्ञान, बुद्धि, विवेक को स्वीकार किया जाएगा।
- जनता के सभी वर्गो को चाहे वह किसी भी स्थिति के हों, राष्ट्र की प्रगति में भागीदार बनाया जाएगा।
- सभी को स्वेच्छा एवं स्वतन्त्रता से अपने व्यवसाय अपनाने का अधिकार होगा।
- निरर्थक रीति रिवाज और रूढ़ियों को समाप्त किया जाएगा। सभी के साथ समान न्याय एवं निष्पक्षता का व्यवहार किया जाएगा।
- एक परामर्श दात्री नियुक्त की जाएगी। सभी निर्णय परामर्श से ही किए जाएगे। अप्रेल 1868 ई. में सभी सामन्तों ने इस पर अपनी स्वीकृति की मोहरें लगा दी।
जापान में मेईजी पुनर्स्थापना का महत्व एवं परिणाम
जापान के इतिहास में मेईजी पुन: स्थापना का महत्व व्यापक अर्थो में लिया जाता है। लगभग 650 वर्षो से चली आ रही शोगून व्यवस्था का अन्त करके सम्राट के पद की पुर्नस्थापना आसान कार्य नहीं था। किन्तु यह सत्य है कि एक क्रान्ति हुई और वह भी रक्तहीन, जिसमें सामन्तों ने अपने अधिकार छोड़े और सम्राट के प्रति अपनी सद्भावना प्रकट की। 1789 की फ्रांस की क्रान्ति के बाद सामन्तों और कुलीनों ने अपने अधिकार आमजन के पक्ष में छोड़े थे। मगर यहाँ सम्राट की पुर्नस्थापना के लिए सामन्त एकजुट हुए थे।
सम्राट की पुर्नस्थापना से सामन्तवादी व्यवस्था का अन्त हुआ। 650 वर्षो से एकान्तवास में रहा सम्राट का पद जनता के सम्मुख जीवन्त हो उठा। सामान्य जन ने अपने सम्राट के प्रति भक्ति भावना एवं आस्था प्रकट की।
सामन्ती सोच के पतन के साथ ही नवीन सम्राट, युवा सम्राट, युवा नेतृत्व और नवीन सोच, जापान के लिए एक नये युग का सन्देश लेकर आई।
नये ‘‘सम्राट मूतसुहीतो (मेईजी) ने क्योता के स्थान पर येदों को राजधानी बनाया जिसका नया नाम टोकियो रखा गया। यहाँ स्थित शोगून का दुर्ग सम्राट का महल बन गया। नयी राजधानी भौगोलिक दृष्टि से देश के केन्द्र में थी। सम्राट द्वारा केन्द्र में रहने से उसका एकान्तिक, पृथक और अधिकार विहीन जीवन समाप्त हुआ। अब वह आमजन की पहुँच में था। मेईजी पुन: स्थापना के कारण जापान साम्राज्यपाद के चँगुल में फँसने से बच गया।
यदि सामन्त रहते तो वे विदेशियों के आगे घुटने टेकने को विवश हो जाते मगर अब सभी सामन्त विदेशी विरोधी भावना को लेकर समा्रट के साथ थे, जापान में अभूतपूर्व राष्ट्रीयता का उदय हुआ और देश साम्राज्यवादियों के हाथों में जाने से बच गया।
मेईजी पुर्नस्थापना के कारण और जापान से विदेशी छाप हटाने के लिए आमजन संगठित हुए। देश के सैन्यबल को पुन राष्ट्रीय स्तर पर संगठित किया गया। आर्थिक क्षेत्र में औधोगिकरण के तीव्र विकास को अपनाया गया। शासन-प्रशासन को व्यवस्थित किया गया। ससंद की स्थापना की गई।
पुर्नस्थापना ने जापान की चहुँमुखी विकास की प्रगति का मार्ग प्रशास्त कर दिया। विदेशियों के ज्ञान- विज्ञान को अपनाकर उसका उपयोग जापानी संस्कृति के अनुरूप किया गया। पश्चिमी देशों के समकक्ष पहुँचने के लिए पाश्चात्य ढंग के कल-कारखाने, उद्योग, शिक्षा, उच्चशिक्षा, सेना आदि में सुधार किए गए।
विनाके ने लिखा, ‘‘पुनर्स्थापना आन्दाले न की सफलता ने र्परम्पराओ एवं सस्थाओं को स्थापित किया तथा यूरोपिय नवीन विचारों के आधार पर देश का पुन: संगठन किया गया।’’
सामन्तवादी व्यवस्था में आम जनता की कोई भूमिका नहीं थी मगर सम्राट की पुर्नस्थापना ने आम नागरिकों को समान अधिकार प्रदान किए।
1869ई. में दक्षिण-पश्चिम के चार बड़े दाइम्यों (सामन्तों)ने स्थानीय प्रशासन को सम्राट के हाथों में सौंप दिया। तीन सौ के लगभग सामन्तों में से अधिकांश ने स्वेच्छा से अपनी जागीरें सम्राट को सौंप दी। इस प्रकार, पश्चिमी देशों के सम्पर्क ने एक बार फिर देश भक्ति की उस भावना को उद्बोधित किया जिसका निर्माण तोकुगावा प्रशासन के अन्तर्गत शताब्दियों तक स्थिर एकता तथा बूशीदों द्वारा विकसित राज्य निष्ठा ने किया था। राष्ट्र पे्रम की इस भावना के कारण ही सम्राट के अधीन एक सुसंगन्ति प्रशासन सम्भव हुआ। मेईजी पुर्नस्थापना के कारण जापान के इतिहास में एक नये युग का सूत्रपात हुआ। नवीन जापान का जन्म हुआ जिसने विकास के पथ पर तेजी से कदम बढ़ाए। द्रुतगति से औद्योगिकीकरण हुआ एवं सैन्यवाल में पर्याप्त वृद्धि की गई जिसके परिणामस्वरूप जापान शीघ्र ही साम्राज्यवाद की राह पर चल निकला।