जनसंचार का अर्थ एवं परिभाषा, प्रकृति

जनसंचार शब्द अंग्रेजी भाषा के Mass Communication का हिन्दी पर्यायवाची है । इसका अभिप्राय: बहुल मात्रा में या भारी मात्रा में या भारी आकार में बिखरे लोगों या अधिक मात्रा में लोगों तक संचार माध्यम से सूचना या सन्देश पहुंचाना है । जनसंचार में जन शब्द जनसमूह, भीड व जनता को बताता है । परन्तु वास्तविकता में इन तीनों के विभिन्न अर्थ हैं । जनसमूह तो समान हित, मूल्यों की पूर्ति के लिए संगठित होता है । भीड़ किसी स्थान विशेष पर आकस्मिक रूप से जमा होती है । जैसे किसी घटना घटित होने पर भावुक या तमाशमीन भीड़ तथा जनता का आकार विशाल होता है । इसका सामाजिक जीवन होता है तथा जनता अपने मत, रूचि, राजनीति के विषय में स्वतंत्र पहचान रखती है ।

इसके अतिरिक्त जनसंचार में ‘संचार’ शब्द अंग्रेजी भाषा के Communication का पर्यायवाची है । यह शब्द लेटिन भाषा के Communis से लिया गया है जिसका अर्थ है to make common, to share, to impart, to transit अर्थात् सामान्यीकरण, सामान्य भागीदारी, मुक्त सूचना व सम्प्रेषण । किसी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को अथवा किसी एक व्यक्ति से कई व्यक्तियों को कुछ सार्थक चिन्हों, संकेतों या प्रतीकों के सम्प्रेषण से सूचना, जानकारी, ज्ञान या मनोभाव का आदान प्रदान करना संचार है । कुछ संचार विशेषज्ञों का कहना है कि संचार, अर्थ का संप्रेषण है, सामाजिक मान्यताओं का संचारण है, या अनुभव का बांटना है ।

संचार एक गतिशील प्रक्रिया है जो संबंधों पर आधारित है यह संबंध जोड़ने का एक बड़ा हथियार है – एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से एक समूह को दूसरे समूह से और एक देश को दूसरे देश से जोड़ना संचार का काम है । अत: संचार सामाजिक पारस्परिक क्रिया की प्रक्रिया है संचार का सामान्य अर्थ लोगों का आपस में विचार, आचार, ज्ञान तथा भावनाओं का संकेतों द्वारा आदान-प्रदान है । इस प्रकार कहा जा सकता है कि ‘संचार ही विकास है’ ।

सूचना, विचारों और अभिवृत्तियों को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक सम्प्रेषित करने की कला का नाम संचार है । जो पत्राकार एवं जनसम्पर्ककर्मी इस संचार कला को नहीं जानते वह कितने भी सशक्त जनसंचार माध्यम से क्यों न जुड़े हों उन्हें सफल नहीं कहा जा सकता ।

इस प्रकार जनसंचार से अभिप्राय: एक बड़े मिश्रित जनसमूह को एक साथ सन्देश पहुंचाना है । अत: जनसंचार एक विशेष प्रकार का संचार है जो यंत्रचालित है और सन्देश को दुगुना तिगुना कर दूर-दूर तक भेजता है । जनसंचार का प्रवाह असीमित एवं अति व्यापक है ।

    जनसंचार की परिभाषाएं 

    1.एशले मौंटुग तथा फलोएड मैटसन – वह असंख्य ढंग जिनसे मानवता से सम्बन्ध रखा जा सकता है। केवल शब्दों या संगीत, चित्रों या मुद्रण द्वारा इशारों या अंग-प्रदर्शन, शारीरिक मुद्रा या पक्षियों के परों से  – सभी की ऑंखों तथा कानों तक संदेश पहुंचाना ही जनसंचार है ।’

    2.डेविड ह्यूम – जनसंचार का अर्थ सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाना है । जनसंचार ही बताता है कि राजसत्ता या शासन की व्यवस्था का आधार क्या हो? सरकार का रूप कैसा हो, स्वेच्छाचारी राजा या सैनिक अधिकारियों का शासन हो या स्वतंत्र और लोकप्रिय सरकार हो – जनसंचार माध्यम से ही यह पता चलता है ।

      नये ज्ञान के सम्बन्ध में अधिकाधिक लोगों को मालूम होना प्रसार है । प्रसार फैलने या व्याप्त होने की क्रिया है । सम्प्रेषण में सन्देश भेजने का कार्य सम्मिलित है । किसी तथ्य, सूचना, ज्ञान, विचार और मनोरंजन को व्यापक ढंग से जन सामान्य तक पहुॅंचाने की प्रक्रिया जनसंचार है । समान लक्ष्य की प्राप्ति और पारस्परिक मेल-जोल के लिए इसकी अपरिहार्यता स्वयंसिद्ध है । जनसंचार एक सहज प्रवृत्ति है । संचार ही जीवन है । संचार-शून्यता मृत्यु है । आधुनिक जनजीवन और सांस्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक व्यवस्था का ताना-बाना जनसंचार साधनों द्वारा सुव्यवस्थित है । वे ही जनता, समाज, राष्ट्र के सजग प्रहरी है । संचार व्यवस्था समाज की प्रगति, सभ्यता और संस्कृति के विकास का माध्यम है । असभ्य को सभ्य, संकीर्ण को उदार तथा नर को नारायण बनाने की अभूतपूर्व शक्ति संचार में निहित है । इसके बिना मानव-गरिमा की कल्पना नहीं हो सकती । संचार ही तथ्यों और विचारधाराओं के विनिमय का विस्तृत क्षेत्र है ।

      जनसंचार के माध्यम 

      1. रेडियो, 
      2. सिनेमा, 
      3. समाचारपत्र,
      4. किताबें 

      जनसंचार की प्रकृति

      1. संचारक की प्रकृति – जनसंचार एक संगठित संचार है । जनसंचार प्रक्रिया में एक सन्देश का निर्माण करने वाला एक अकेला लेखक व कलाकार नहीं होता है बल्कि एक बड़ा संगठन होता है जो कि भारी खर्च व व्यापक श्रम विभाजन से कार्य करता है । जनसंचारक पर जनमाध्यमों की जटिलता भी प्रभाव डालती है । जनसंचार में एक अकेला व्यक्ति स्वतन्त्र रूप से काम नहीं कर सकता क्योंकि यंत्रचालित संचार माध्यम में संदेश सामूहिक प्रयास से संप्रेषित होता है । उदाहरण के लिए समाचारपत्र में समाचार देने में संपादक, सहायक संपादक, सह-संपादक, रिर्पोटर, फोटोग्राफर, प्रिंटर आदि कई लोगों का योगदान होता है और एक समाचारपत्र के पीछे हजारों पेशेवर और तकनीशियन सम्मिलित हैं । यही बात रेडियो, टी.वी. किताबों तथा फिल्मों पर भी लागू होती है । इस तरह जन माध्यम में बहुत सारे संचारक हो सकते हैं ।

      2. संदेश की प्रकृति- जनसंचार में संदेश एक बड़े जनसमूह को एक साथ संबोधित करने के लिए होता है । इसलिए इसकी विषय वस्तु का चयन आम प्रापक को ध्यान में रखकर किया जाता है । इसी कारण संदेश व्यक्तिगत नहीं होता। इसके अलावा जन माध् यमों से जितनी तेजी से सन्देश प्रापक तक पहुंचाया जाता है उतनी ही जल्दी इसकी खपत भी होती है । इस विशेषता के कारण संदेश अस्थायी है यानि प्रापक सन्देश प्राप्त तो कर लेता है पर उसका रिकार्ड नहीं रखता । इसी कारण जनसंचार में सन्देश कम व्यक्तिगत, कम विशेष, ज्यादा शीघ्र और ज्यादा अस्थायी होता है ।

      3.प्रापक की प्रकृति – जनसंचार के विभिन्न माध्यमों के कारण इसके प्रापक भी अलग-अलग हैं । जनसंचार में प्रापक में माध्यमों के अनुसार तीन भागों में बांटा गया है । (a) सुनने वाले (b) देखने वाले (c) पढ़ने वाले

      1. प्रापक समरूप न होकर मिश्रित है यानि वे विभिन्न सामाजिक वर्ग के हैं उनकी संस्कृति, भाषा, रूचि आदि भिन्न हैं ।
      2. प्रापक अपेक्षाकृत गुमनाम है । संचारक सामान्यत: विशिष्ट व्यक्ति को जिससे वह संप्रेषण कर रहा है नहीं जानता हालांकि उसे सामान्य प्रापक की विशेषताओं के बारे में जानकारी होती है ।
      3. प्रापक की संख्या बहुत बड़ी है जो कि बहुत थोड़े समय के लिए मीडिया के प्रभाव में आता है । फलस्वरूप संचारक सदस्यों से पारस्परिक क्रिया नहीं कर सकता जैसे कि आमने-सामने ।
      4. अपनी आदत तथा रूचि के अनुसार ही प्रापक मीडिया की रचनाओं को चुनता है और स्वयं को इसके प्रभाव में लाता है । बाकी रचनाएं छोड़ देता है जो व्यर्थ हो जाती हैं ।
      5. प्रापक शारीरिक तौर पर संचारक से पृथक है । यह दूरी दिक्काल तथा समय के सन्दर्भ में भौतिक है ।

      4. फीडबैक – जनसंचार में फीडबैक की अहम् भूमिका है । इसमें फीडबैक धीरे मिलता है या फिर देरी से मिलता है । उदाहरण के लिए टी.वी. या रेडियो प्रोग्राम में प्रस्तुतकर्ता यह नहीं जान पाता है कि प्रापक ने प्रोग्राम को पूरा देखा है या फिर आधा ही छोड़ दिया है । संपादक अपने समाचारपत्र के बारे में लोगों की प्रतिक्रिया नहीं जान पाता, हालांकि कुछ प्रापकों के पत्र उसे मिलते हैं । लेकिन उनकी संख्या प्रापकों की संख्या से बहुत कम होती है । इसके अतिरिक्त जनसंचार में अधिक फीडबैक प्राप्त करने के लिए समय-समय पर प्रापक सर्वे होना आवश्यक है जिसकी मीडिया कार्यकर्त्ता अक्सर कर देते हैं । फलस्वरूप फीडबैक के अभाव में संचार मीडिया बहुत प्रभावशाली नहीं हो पाता ।

      5. शोर – जनसंचार में शोर की संभावनाएं अधिक हैं जो माध्यम में ही नहीं जनसंचार प्रक्रिया के किसी भी बिन्दु पर प्रविष्ट हो सकती है । उदाहरण के लिए टी.वी. व रेडियो में वायुवैद्युत क्षोभ, बेकार छपा समाचारपत्र, फिल्म का घिसा पिटा प्रिंट, पढ़ते सुनते समय घर या बाहर से शोर आदि का आना । ये सब रूकावटें हैं जिनसे सन्देश प्रदूषित होता है तथा प्रापक तक नहीं पहुंच पाता । यदि संदेश विकृत अवस्था में पहुंच भी जाता है तो प्रापक की समझ में नहीं आता । अत: सारा संचार प्रयास विफल हो जाता है ।

      जनसंचार प्रक्रिया

      जनसंचार की प्रक्रिया मूल रूप से संचार की प्रक्रिया ही है, लेकिन इसकी कुछ बेजोड़ विशेषताओं के कारण कई मॉडल विकसित हुए जिनमें सबसे लोकप्रिय है हेरॉल्ड लासवैल का क्लासिक मॉडल – कौन कहता हैं,
      क्या कहता हैं, किस माध्यम में, किसको और क्या प्रभाव पड़ता है । यह मॉडल कुछ सीमित है । इसमें कई खास तत्वों को जो जनसंचार प्रक्रिया को समझने के लिए जरूरी है, जैसे फीडबैक, शोर आदि को छोड़ दिया गया है ।

      एक दूसरा मॉडल है मेल्विन डी फ्लूयर (Melvin De Fleur) का जो सम्पूर्ण जनसंचार प्रक्रिया की रूपरेखा प्रस्तुत करता है । यह मॉडल इस प्रकार है — इस मॉडल में स्त्रोत तथा ट्रांसमीटर को जनसंचार कार्य की भिन्न अवस्थाओं के रूप में देखा गया है जो स्त्रोत द्वारा क्रियान्वित हुआ है । माध्यम जन माध्यम है जिससे सूचना व जानकारी भेजी जाती है । रिसीवर जानकारी प्राप्त कर मतलब (Decode) निकालता है तथा उसे संदेश का रूप देता है । गन्तव्य (Destination) में बदलता है, व्याख्या करता है । दिमाग की भी यही क्रिया है। फीडबैक स्त्रोत के प्रति गन्तव्य की प्रतिक्रिया है । यह मॉडल इस बात की पुष्टि करता है कि ‘शोर’ जनसंचार प्रक्रिया में किसी भी बिन्दु पर दखल दे सकता है और यह सिर्फ माध्यम से ही संबंधित नहीं है जैसा कि संचार के मॉडलों में दिखाया गया है ।

      जनसंचार का एक और महत्वपूर्ण मॉडल ब्रुस वेस्ले तथा मैल्कम मैक्लीन (Bruce Wesley and Malcom Maclean) ने विकसित किया जिससे जनसंचार में ‘गेटकीपर’ (Gatekeeper) यानी चौकीदार की भूमिका को महत्व दिया । यह इस प्रकार दर्शाया गया है :-

      ऊपर दिए गए मॉडल में उन रास्तों की कल्पना की गई है जिनमें मीडिया व्यवस्था में व्यक्ति तथा संगठन यह तय करते हैं कि क्या संदेश संप्रेषित किया जाएगा तथा क्या विषय वस्तु रूपांतरित की जाएगी या निकाली जाएगी । ‘गेटकीपर’ इस ऊपर के चित्र में प्रापक ब के एजेंट का काम करता है जो सूचना को चुनता है तथा उसे स्त्रोत से प्रापक तक पहुंचाता है । संचारक का संदेश प्रापक तक पहुंचाने से पहले ‘गेटकीपर’ संदेश का विस्तार करता है या उसमें दखल दे सकता है। उसे इतना अधिकार है कि वह संदेश की विषयवस्तु में हेर-फेर कर सकता है । इस तरह मीडिया में कई स्तर पर ‘गेटकीपर’ होते हैं । वे कई तरह के कार्य करते हैं और तरह-तरह की भूमिकाएं निभाते हैं । वे सहज में ही संदेश को रोक सकते हैं । ‘गेटकीपर’ कुछ अंश को काटकर संदेश में रद्दोबदल कर सकते हैं । 

      उदाहरण के लिए समाचार संपादक रिपोर्टर के संदेश में अपनी तरफ से तथा अन्य स्त्रोत से आई जानकारी जोड़कर समाचार को नया रूप दे सकता है । पत्रिका का लेआउट संपादक अधिक चित्र डालकर कहानी या फीचर का प्रभाव बढ़ा सकता है । इसी तरह फिल्मों में प्रोडयूसर और सीन जोड़ने के लिए प्रिंट को संपादक के पास भेज सकता है ।

      जनसंचार का एक और महत्वपूर्ण मॉडल है, द्वीचरणीय सूचना प्रवाह (Twostep flow of information or communication) । यह धारणा लेजरफेल्ड (Lazerfeld) तथा उनके सहयोगियों द्वारा अमरीका में हुए राष्ट्रपति अध्यक्षीय चुनाव (1949) के एक क्लासिक अध्ययन (The Peoples Choice 1949) से उत्पन्न हुआ । परिणामों से पता चला कि एक भी मतदाता जनमाध्यम से सीधा प्रभावित नहीं हुआ बल्कि परिणाम यह बताता है कि विचारों का महत्व अक्सर रेडियो या प्रिंट से ओपनियन लीडरो (Opinion Leaders) तक सीमित है और वहां से फिर कम सक्रिय रूप में जनता तक पहुंचता है । यानी मीडिया से सूचना व जानकारी, जो वास्तव में जन समूह के लिए है, पहले ओपिनियन लीडर के पास पहुंचती है, जिसे वह आगे प्रसारित करते हैं । होता यूॅं है कि ‘ओपिनियन लीडर’ सूचना पहले प्राप्त करते हैं, क्योंकि ये आम लोगों की तुलना में ज्यादा पढे़-लिखे, प्रभावशाली तथा सम्पन्न होते हैं तथा सूचना को अपनाकर फिर से व्याख्या करते हैं और फिर दूसरों को बताते हैं । 

      अध्ययन के अनुसार ज्यादातर लोग जानकारी इसी प्रकार प्राप्त करते हैं। यह धारणा आगे चलकर रूपांतरित तथा फिर से संकलित होकर बहु-चरणीय संचार प्रवाह (Multistep Flow) में बदली, जिसमें एक माध्यम से दूसरे माध्यम तक कई रिले बिन्दु हैं । जैसा कि पहले समझा गया था उससे यह कहीं अधिक जटिल जनसंचार प्रक्रिया है । यानी मीडिया सूचना व जानकारी ‘ओनिनियन लीडर’ से सीधी नहीं, बल्कि कई माध्यमों से होती हुई आम लोगों तक पहुंचती है ।

      जनसंचार की विशेषताएं

      एक साथ एक बहुत बड़े मिश्रित जनसमूह को सन्देश पहुंचाना जनसंचार कहलाता है । जनसंचार की विभिन्न विशेषताएं जो इस प्रकार है:-

      1. जनसंचार में सन्देश का निर्माण करने वाला एक व्यक्ति न होकर एक समूह व संगठन होता है । जैसे एक समाचार का निर्माण सम्पादक, सहसम्पादक प्रिंटर, फोटोग्राफर आदि मिलकर करते हैं ।
      2. जनसंचार में सन्देश की विषय वस्तु का चयन व विवेचन आम प्रापक को ध्यान में रखकर किया जाता है ।
      3. जनसंचार में प्रापक समरूप न होकर मिश्रित है । यानि वे विभिन्न सामाजिक वर्ग के हैं उनकी संस्कृति, भाषा, रूचि आदि भिन्न हैं ।
      4. जनसंचार में प्रापक अपेक्षाकृत गुमनाम है । संचारक सामान्यत: विशिष्ट व्यक्ति को जिससे वह संप्रेषण कर रहा है नहीं जानता, हालांकि उसे सामान्य प्रापक की विशेषताओं के बारे में जानकारी होती है ।
      5. प्रापक शारीरिक तौर पर संचारक से पृथक हैं । वह दूरी दिक्काल तथा समय के संदर्भ में भौतिक है ।

      जनसंचार के विशिष्ट संघटक तत्व 

      1. सम्प्रेषक – समाज के उपयोगी सूचना के सम्प्रेषण में सम्प्रेषक की मुख्य भूमिका होती है । सम्प्रेषक के आधार पर एक ही सूचना की प्रस्तुति में अन्तर आ जाता है परन्तु इससे सूचना के प्रभाव में अन्तर क्यों आ जाता है? सूचना को अच्छी प्रकार तैयार करने, प्रेषित करने, अच्छी तरह लेखन करने तथा अच्छी तरह व्यक्त करने के कारणों से ही किसी सूचना के प्रभाव में अन्तर आ जाता है । संचार में तो सम्प्रेषक के व्यक्तित्व का महत्व है जैसे प्राचीनकाल में देवर्षि नारद, भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन में गांधी जी अमेरिका में कैनेडी आदि का चमत्कारिक व्यक्तित्व भी सम्प्रेषण में सहायक था किन्तु यह वैयक्तिक संचार का ही जरूरी तत्व है । जनसंचार में निवैयक्तिक संचार (impersonal communication) होता है । जिसमें संचारगत गुणों का अधिक महत्व है ।

      2. चयनित सूचना – व्यक्ति व संस्थाएं विभिन्न सूचनाएं ग्रहण करती हैं । परन्तु ये उनका ही सम्प्रेषण करते हैं जो सूचना श्रोता या समाज के लिए महत्वपूर्ण हो । प्रेषण के लिए केवल उन्हीं सूचनाओं का चयन होता है । सूचना का चयन करते समय सामाजिक महत्त्व, नवीनता, श्रोतासमूह का भी ध्यान रखा जाता है ।

      3. संदेश – सूचनाओं के मिश्रण को सन्देश कहा जाता है । इसे संवाद भी कहते हैं । संचार प्रक्रिया व संचार की शुरूवात सन्देश से ही होती है । एक सन्देश में अर्थ, भाषा, सन्दर्भ, स्वरूप आदि महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं । छोटी-छोटी सूचनाओं से ही सन्देश का निर्माण होता है । जिसे सम्प्रेषक एक सूत्र से बांध कर सन्देश बनाता है । यह सन्देश सम्प्रेषक के मस्तिष्क की उपज होता है और उसी का ही सम्प्रेषण होता है । सन्देश में अर्थ निहित होता है । जनसंचार में प्रत्येक चरण का मूलाधार संदेश है । संचार स्वयं सन्देश पर निर्भर है । अत: स्पष्ट है कि जनसंचार का समूचा अस्तित्व सन्देश में निहित है । सन्देश विभिन्न क्षेत्र सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि से जुड़ा हो सकता है । किन्तु महत्वपूर्ण यह है कि सन्देश का मुख्य तत्व जनोपयोगी हो ।
      4. संचार साधन – संचार साधनों का प्रयोग सन्देश को भेजने व प्राप्त करने के लिए किया जाता है । संचार के प्रमुख संचार साधन रेडियो, टी.वी., समाचारपत्र और पत्रिकाएं आदि हैं । समाचार पत्र व पत्रिकाएं प्रिंट मीडिया में आते हैं व रेडियो व टी.वी इलैक्ट्रॉनिक मीडिया में आते हैं ।

      सूचना प्रवाह में एक या अधिक संचार साधनों का प्रयोग किया जाता है । प्राप्तकर्त्ता द्वारा सूचना प्राप्त होने पर वह उसकी प्रतिपुष्टि व अपनी प्रतिक्रिया विभिन्न मार्गों से करता है । विलबर श्रेम के अनुसार हर संचार मार्ग की अपनी प्रवृति होती है जिसे अन्य संचार माध्यमों से सम्पादित नहीं किया जा सकता ।

      जनसंचार अन्तरव्यक्ति का अन्तर्निहित संभाग है क्योंकि प्रिंट या इलैक्ट्रानिक मीडिया स्त्रोत और श्रोता को जोड़ते हैं । इस तरह संचार मार्ग संचार प्रवाह में पूरक की भूमिका भी निभाते हैं । आज आधुनिक युग में तकनीकी विकास होने के कारण सन्देश मौखिक से प्रिंट, इलैक्ट्रानिक व उपग्रह मार्ग द्वारा विश्व संचार बन गया है ।

      5. श्रोतावर्ग – श्रोतावर्ग से अभिप्राय: संचार माध्यमों से सूचना प्राप्त करने वाले लोगों से है । जनसंचार माध्यमों के विकास से श्रोतावर्ग के आकार में अतिशय अभिवृद्धि हुई है ।
      6. फीडबैक – फीडबैक व प्रतिपुष्टि वह प्रक्रिया है । जिसके द्वारा सूचना पाने वाला श्रोता अपनी प्रतिक्रिया प्रकट करता है । अन्तरव्यक्ति संचार में तो ऑंख, मुस्कराहट, व्यवहार या हाव भाव द्वारा प्रतिपुष्टि व्यक्त की जाती है जबकि जनसंचार माध्यमों फीडबैक एक जटिल प्रक्रिया है । माध्यमों द्वारा प्रेषित सूचना श्रोताओं की प्रतिक्रिया, सूचना प्रेषण में दोष आदि का पता फीडबैक से ही चल पाता है । विभिन्न अनुसंधान सर्वेक्षण की सहायता से प्रतिक्रिया आदि का पता तो चल जाता है पर इसमें अधिक समय लग जाता है । फीडबैक का एक लाभ यह है कि जनसंचार माध्यम अपने कार्यक्रमों में सुधार कर लेते हैं । श्रोताओं से पत्र, साक्षात्कार, परिचर्चा आदि के माध्यम से यह सम्भव है ।
      7.शोर – जनसंचार में शोर की संभावनाएं अधिक हैं जो माध्यम में ही नहीं जनसंचार प्रक्रिया के किसी भी बिन्दु पर प्रविष्ट हो सकती है । उदाहरण के लिए टी.वी. व रेडियो में वायु विद्युत क्षोभ, बेकार छपा समाचारपत्र, फिल्म का घिसा पिटा प्रिंट, पढ़ते सुनते समय घर या बाहर से शोर आदि का आना । ये सब रूकावटें हैं जिनसे सन्देश प्रदूषित होता है तथा प्रापक तक नहीं पहुंच पाता । यदि संदेश विकृत अवस्था में पहुंच भी जाता है तो प्रापक की समझ में नहीं आता । अत: सारा संचार प्रयास विफल हो जाता है ।

      जनसंचार माध्यम का कार्य एवं महत्व 

      सभी जन माध्यम विभिन्न रूप से समाज के लिए काम करते हैं । यह देश के संपूर्ण विकास में एक निश्चित भूमिका अदा करते हैं । इसके कई महत्वपूर्ण कार्य हैं जो इस प्रकार है:-

      1. समाचार तथा सूचना या जानकारी – जनमाध्यम का उपयोग सामयिक तथा महत्वपूर्ण तथ्यों को प्रचारित व प्रसारित करने के लिए किया जाता है जिसका हमारे दैनिक जीवन के लिए महत्व हो ।
      2. विश्लेषण तथा प्रतिपादन – मीडिया घटना का मूल्यांकन उचित परिप्रेक्ष्य में रखकर हमें देता है ।
      3. शिक्षा – शैक्षिक क्रिया सम्पन्न करने के लिए मीडिया का उपयोग किया जाता है । जैसे – समाजीकरण, सामान्य-शिक्षा, क्लास रूप प्रशिक्षण आदि । मीडिया पैतृक समाज की सांस्कृतिक परम्परा को सुदृढ़, रूपांतरित तथा प्रतिस्थापित करने का काम करता है ।
      4. प्रत्यायन तथा जनसंपर्क – मीडिया जन प्रत्यायन तथा प्रोपेगैंडा के उपकरण की तरह कार्य करता है । सरकार, व्यवसाय, निगम तथा व्यक्ति जन माध्यम के द्वारा अपने संबंधों को स्थापित या रूपांतरित करने का प्रयत्न करते हैं । 
      5. सेल्स तथा जनसंपर्क – आर्थिक व्यवस्था में मार्केटिंग तथा वितरण प्रक्रिया में मीडिया का उपयोग किया जाता है । विज्ञापन जनता को नए प्रोडक्ट की जानकारी देते हैं, उनके मूल्यों के बारे में विश्वास उत्पन्न करते हैं तथा उनको खरीदने के लिए राजी कराते हैं ।
      6. मनोरंजन – मीडिया लोगों का फुरसत के समय मनोरंजन भी करता है । इस पलायनवादी उपयोग के साथ मीडिया मनोरंजन करते हुए लोगों को सूचना देने, विश्लेषण करने, राजी करने, शिक्षित करने तथा बेचने का काम भी करता है ।

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