गुरु रामदास जी की जीवनी

चौथे गुरु की गद्दी पर आसीन गुरु रामदास जी का जन्म लाहौर के चूनियाँ मंडी के निवासी श्री हरिदास सोढ़ी के घर विक्रमी संवत् 1591 में हुआ था | इनका नाम जेठा था | घर की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण बालक जेठा को निरंतर गरीबी से जूझना पड़ा | गुरु रामदास जी के आदर्शमय व्यक्तित्व तथा प्रेममय मधुर वाणी ने सिखों को दृढ़ निष्ठा, प्रेम और सहयोग का पाठ पढ़ाया | उनके गुणों से आकृष्ट होकर गुरु अमरदास ने अपनी पुत्री भानी का विवाह उनके साथ कर दिया | गुरु रामदास जी के आगे की गुरु परम्परा एक परिवार में ही रही | गुरु रामदास जी के तीन पुत्र थे – पृथ्वीचंद, महादेव और अर्जुनदेव | उन्होंने अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों को बनाए रखा और संगत तथा पंगत की प्रथा को बराबर संरक्षण दिया अपने सबसे छोटे पुत्र अर्जुन को उन्होंने गुरु-गद्दी सौंपकर शरीर त्याग दिया | बड़े भाईयों के होते छोटे भाई को गुरु-गद्दी मिलने से उनमें असंतोष की भावना बलवती होती गयी |

‘गुरुग्रंथ साहिब’ में उनके 679 पद और श्लोक हैं, जिनमें भावुकता और प्रेम का अविराम निर्झर बहता है | उनकी वाणी प्रभु-प्रेम, नम्रता तथा दास भाव से ओत-प्रोत है | उनके द्वारा रचित ‘आसा’ एवं ‘सही’ रागों में उनकी, कविता और राग के संबंधों को समझने की कोमलता, सूक्ष्मता और विवेक का परिचय मिलता है | इनकी प्रत्येक रचना में नैतिक जीवन, | सांस्कृतिक तथा पारस्परिक मानवीय व्यवहार के संबंध में संकेत मिलता है | उत्तम शब्द- विन्यास, सरल शैली तथा स्वाभाविक अलंकार योजनाओं ने उनकी रचनाओं को विशिष्ट बना दिया है |

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