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कानून का शासन कानून की अवधारणा पर आधारित है। कानून सम्प्रभु का आदेश होता है जो सभी को मान्य होता है, क्येांकि वह सामाजिक न्याय की भावना पर आधारित होता है। इसी कारण सभी लोग कानून की आज्ञा का पालन करते हैं। जिस राजनीतिक समाज में कानून को उचित महत्व दिया जाता है। वहीं पर कानून के शासन की स्थापना हो जाती है। कानून के शासन का अर्थ है – किसी देश में कानून ही सर्वोच्च है और कानून के ऊपर कोई नहीं है। इसका अर्थ यह भी है कि सरकार की समस्त शक्तियां कानून द्वारा सीमित हैं और जनता पर कानून का शासन है न कि किसी स्वेच्छापूर्ण इच्छा का।
कानून के शासन की परिभाषा
- वेड़ और फिलिप्स ने कानून के शासन को परिभाषित करते हुए कहा है-”सरकार की शक्तियों का प्रयोग कानून की मर्यादा के अनुसार होता है, न कि शासक की स्वेच्छाचारी इच्छा के कारण, कानून का शासन कहलाता है।”
- लार्ड ह्यूवर्ट ऑफ बरी के अनुसार-”कानून के शासन का अर्थ है केवल निरंकुशता के स्थान पर कानून की श्रेष्ठता तथा सर्वोच्चता।” साधारण रूप में कानून के शासन का अर्थ होता है-संवैधानिक सरकार जो अपनी शक्ति का प्रयोग स्वेच्छाचारिता के स्थान पर कानून के अनुसार करती है।
कानून के शासन की उत्पत्ति
कानून के शासन के बीच अप्रत्यक्ष रूप से हमें प्लेटो और अरस्तु के समय से ही मिलते हैं। लॉक ने भी सरकार को प्रतिनिधि रूप में सीमित करने की वकालत की थी। लेकिन एक व्यवस्थित विचार के रूप में इस सिद्धान्त का सर्वप्रथम प्रयोग डॉयसी ने ही किया है। डॉयसी इंग्लैण्ड का निवासी था। वही इसका प्रमाणित व्याचखकार है। 1689 में इंग्लैण्ड की संसद ने ‘बिल ऑफ राइट्स’ (Bill of Rights) पास किया। इसके परिणामस्वरूप इंग्लैण्ड में संसदीय सर्वोच्चता तथा कानून के शासन की सर्वोच्चता का जन्म हुआ। इस प्रकार एक व्यवस्थित सिद्धान्त के रूप में यह इंग्लैण्ड की ही देन है। धीरे-धीरे वहां पर इस सिद्धान्त को महत्व प्राप्त होने लगा। बिना संविधान के भी इंग्लैण्ड में कानून के शासन को अन्य देशों की तुलना में आज भी एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, जिसे ब्रिटिश सरकार की आधारशिला माना जाता है।
कानून के शासन की विशेषताएं
- कानून का शासन कानून की सर्वोच्चता के सिद्धान्त पर आधारित है। इसमें कानून को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है, क्योंकि कानून को सर्वोच्चता प्राप्त होती है।
- कानून का शासन सामाजिक न्याय की स्थापना करता है।
- कानून का शासन राजनीतिक समानता की स्थापना भी करता है।
- कानून का शासन नागरिक अधिकारों व स्वतंत्रताओं की रक्षा करता है।
- कानून का शासन सरकार की निरंकुशता को रोकता है तथा संविधानिक सरकार की स्थापना करता है।
- कानून का शासन राजनीतिक व्यवस्था में सुव्यवस्था बनाए रखता है।
- कानून का शासन प्रशासन में नौकरशाही की स्वेच्छाचारिता रोकता है।
- कानून का शासन राजनीतिक विकास का मार्ग प्रशस्त करता है।
- कानून का शासन संविधानिक आदर्शों व मूल्यों की रक्षा करता है और इनकी प्राप्ति में सरकार की सहायता करता है।
- कानून का शासन न्याय प्रणाली को चुस्त-दूरुस्त बनाता है व न्यायपालिका की कार्यक्षमता में वृद्धि करता है।
कानून के शासन की आलोचना
डॉयसी ने जिस समय 1885 में अपनी पुस्तक ‘The Law and the Constitution’ में कानून के शासन की व्याख्या की थी, उस समय इंग्लैण्ड में व्यक्तिवाद का बहुत अधिक प्रभाव था। व्यक्तिवाद के अनुसार राज्य के प्राथमिक कार्य कानून को लागू करना, शांति की स्थापना करना, प्रतिरक्षा तथा विदेशी सम्बन्ध स्थापित करना है। डॉयसी स्वयं व्यक्तिवादी था। उसका विचार था कि स्वेच्छाचारी शक्तियां या निरंकुश शासन व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर कुठाराघात कर सकता है। इसी कारण उसने कानून के शासन का सिद्धान्त दिया ताकि व्यक्ति की स्वतन्त्र की रक्षा की जा सके। लेकिन आज कानून के शासन का अर्थ डॉयसी की व्याख्या से आगे निकल चुका है। यद्यपि कानून का शासन इंग्लैण्ड में आज भी प्रचलित है, लेकिन वह अपना प्राचीन रूप खो चुका है।
कानून के शासन की सीमाएं
आज बदलते विश्व परिवेश व राष्ट्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप कानून के शासन का अर्थ भी बदल गया है। आज कानून के शासन को चुनौती देने वाली व्यवस्थाएं जन्म ले चुकी हैं। डॉयसी ने कानून के शासन के सिद्धान्त का प्रतिपादन करते समय इन सीमाओं पर ध्यान ही नहीं दिया था। इसी कारण आज कानून के शासन का डॉयसी द्वारा बताया गया अर्थ कुछ अप्रासंगिक सा होने लगा है। इसके कुछ अपवाद या सीमाएं हैं :-
प्रदत्त व्यवस्थापन
डॉयसी ने कानून का अर्थ साधारण रूप में लिया था। उसकी दृष्टि से कानून से अभिप्राय संसदीय कानूनों से था। आज सरकार के इतने कार्य बढ़ गए हैं कि सभी के लिए पूर्ण कानून बनाना असम्भव है। विधायिका के पास कार्यभार की अधिकता के कारण आज कुछ मामलों में कानून को विस्तृत व व्यापक रूप कार्यपालिका ही देती है। जो कानून पहले संसद बनाती थी, आज कार्यपालिका बनाती है। यही व्यवस्था प्रदत्त व्यवस्थापन कहलाती है। इस प्रकार कानून संसद के हाथों से निकलकर कार्यपालिका के पास आ चुका है।
प्रशासकीय न्याय व कानून
प्रशासकीय न्याय कानून के शासन का विरोधी है, परन्तु आज प्रत्येक देश में प्रशासकीय कानून किसी न किसी रूप में विद्यमान है। आज इंग्लैण्ड में भी सभी विभागों को अपने कर्मचारियों के मामलों में निर्णय लेने का अधिकार है और न्याय करने का भी अधिकार प्राप्त है। इन निर्णयों के विरुद्ध किसी न्यायालय में अपील नहीं की जा सकती। आज किसी विभाग को अपने कर्मचारियों के विरुद्ध कार्यवाही करने व सजा देने की पूरी छूट है। इसके लिए उसे किसी के सामने पूरी जानकारी देने की आवश्यकता नहीं है। उदाहरण के लिए गृह विभाग को किसी व्यक्ति को पासपोर्ट जारी करने या न करने के मामले में किसी के सामने स्पष्टीकरण देने की जरूरत नहीं है। इस प्रकार प्रशासकीय कानून व न्याय की उत्पत्ति से कानून के शाासन का परम्परागत अर्थ अनुपयुक्त हो चुका है।
विशेषाधिकार व उन्मुक्तियां
आज अनेक देशों में राजनीतिक प्रतिविधियों व कर्मचारियों को विशेषाधिकार व उन्मुक्तियां प्राप्त हैं। आज ब्रिटेन के राजा या रानी को कुछ विशेषाधिकार व उन्मुक्तियां प्राप्त हैं। उस पर कानून की सीमाएं नहीं लगाई जा सकती हैं। इंग्लैण्ड में 1893 और 1939 ‘Public Authorities Act’ के अनुसार किसी कर्मचारी पर 6 महीने के बाद 6 महीने पहले किए गए अपराध के लिए कोई मुकद्दमा नहीं चलाया जा सकता। विदेशों में भेजे जाने वाले राजदूतों व विदेश विभाग के कर्मचारियों को भी कुछ विशेषाधिकार व उन्मुक्तियां प्राप्त हैं। अपने गलत कार्यों के लिए विशेषाधिकार प्राप्त व्यक्तियों पर मुकद्दमा विशेष परिस्थितियों में ही चलाया जा सकता है।
सैनिक कानून
आज अनेक देशों में सैनिक व्यवस्था को पूर्णतया: स्वतन्त्र दर्जा दिया गया है। सेना के अपने न्यायालय व बोर्ड होते हैं जो सैनिकों द्वारा किए गए अपराधों की जांच करते हैं व सजा देते हैं। सैनिक न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध किसी तरह की अपील साधारण न्यायालयों में या कहीं भी नहीं की जा सकती हैं। भारत में सैनिक न्यायालयों को अलग व स्वतन्त्र दर्जा प्राप्त है। इस तरह के प्रावधान पाकिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका, अमेरिका आदि देशों में भी है। इस व्यवस्था ने कानून के शासन के सिद्धान्त को अप्रासंगिक बना दिया है। सैनिकों पर सेवा के दौरान सैनिक कानून लागू होते हैं, साधारण कानून नहीं। इन कानूनों को संविदा कानून कहा जाता है।
मौलिक अधिकार
इंग्लैण्ड के कानून के शासन के अपवाद
इंग्लैण्ड में कानून के शासन का सिद्धान्त ट्रेड यूनियन तथा सामाजिक संस्थाओं के मामले में लागू नहीं होता। 1906 के ‘Trade Dispute Act’ के अनुसार यदि कोई मजदूर संघ व अन्य सामाजिक संघ अपने सदस्यो ंको हानि पहुंचाता है तो उसके विरुद्ध न्यायालय में नहीं जाया जा सकता। ये संस्थाएं कानून से ऊपर हैं। इंग्लैण्ड में ‘Trade Board Act’ तथा ‘Public Health Act’ के मामलों में भी न्यायिक प्रक्रिया प्रशासकीय है। वहां न्यायधीशों व राजदूतों को भी सामान्य कानून से छूट है। राजा को कुछ विशेषाधिकार व उन्मुक्तियां प्राप्त हैं। राजा पर मुकद्दमा साधारण न्यायालय में नहीं चलाया जा सकता है। 1936 के ‘Public Order Acजश् के तहत पुलिस को देश में शांति बनाए रखने के लिए सार्वजनिक जलूस को रोकने का पूर्ण अधिकार है। लॉर्ड चैम्बरलेन को फिल्मों व नाटकों को सैंसर करने का अधिकार है। उसके निर्णय के विरुद्ध किसी न्यायालय में अपील नहीं की जा सकती। इसी तरह आज इंग्लैण्ड में अनेक परिवर्तनों ने कानून के शासन का अर्थ सीमित कर दिया है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि डॉयसी ने यह कभी अनुभव नहीं किया कि इंग्लैण्ड व अन्य देशों में एक ऐसा वर्ग भी होता है जिसे विशेषाधिकार और उन्मुक्तियां प्राप्त होती हैं। विदेशी मामलों में कानून का शासन कार्य नहीं कर सकता है। आज इंग्लैण्ड में इतने प्रशासकीय व राजनीतिक परिवर्तन हो चुके हैं जिन्होंने कानून के शासन का परम्परागत अर्थ सीमित कर दिया है। आज इंग्लैण्ड में प्रशासकीय न्याय व कानून का विकास हो चुका है। प्रदत्त व्यवस्थापन की व्यवस्था ने इस सिद्धान्त का कार्यक्षेत्र सीमित कर दिया है। लेकिन यह कहना सर्वथा गलत है कि इंग्लैण्ड में कानून का शासन नहीं है। आज कानून के शासन का सिद्धान्त कम या आंशिक रूप से विश्व के अन्य सभ्य देशों में कार्य कर रहा है।