अनुक्रम
कर विवर्तन क्या है?
कर विवर्तन के सिद्धांत
सामान्य रूप से कर विवर्तन को दो सिद्धान्तों के आधार पर समभव बनाया गया है।
कर विवर्तन के प्रकार
कर विवर्तन के प्रकारों के बारे में आप अच्छी तरह से अध्ययन कर सकेंगे :-
- अग्रग्रामी कर-विवर्तन
- पश्चगामी कर-विवर्तन
- अग्रोन्मुखी कर-विवर्तन
1. अग्रगामी कर-विवर्तन – अग्रगामी कर-विवर्तन से हमारा तात्पर्य सामान्य रूप से उस प्रक्रिया से है जिसके अन्तर्गत कर देने वाला व्यक्ति या संस्था कर का भार आगे वाले सम्बन्धित व्यक्ति पर टालने में सफल हो जाता है। उदाहरण के लिए आप बिक्री कर को लीजिए – माना सरकार द्वारा बिक्री कर लगा दिया गया तब उस कर को अदा तो वस्तु का विक्रेता करेगा लेकिन कर की धनराशि को वह अपनी जेब से नहीं करेगा। इस धनराशि के बराबर वह वस्तु की कीमत बढ़ा देगा तथा उसे क्रेता से बसूल लेगा जिसे सामान्य रूप से उस वस्तु का उपभोक्ता ही कहा जायेगा। इस प्रकार इस प्रकार के कर विवर्तन में विक्रेता करके भार को वस्तु की कीमत बढ़ाकर वस्तु के उपभोक्ता पर टाल दिया जाता है तथा इस करभार को उपभोक्ता आगे और नहीं टाल सकता। इस प्रकार अग्रगामी कर विवर्तन में कराघात विक्रेता पर तथा करापात वस्तु के उपभोक्ता पर पड़ता है।
विभिन्न बाजारों में कर विवर्तन
प्रस्तुत उपखण्ड के अन्तर्गत आप अर्थव्यवस्था के अन्तर्गत विद्यमान विभिन्न बाजारों में कर-विवर्तन से सम्बन्धित विभिन्न पक्षों का अध्ययन कर सकेंगे। यहाँ पर हम सामान्य रूप से पूर्ण प्रतियोगी बाजार, एकाधिकार बाजार तथा अपूर्ण प्रतियोगी बाजार के अन्तर्गत व्यक्ति या संस्थाओं द्वारा किये जाने वाले कर-भार के विवर्तन की आलोचनात्मक व्याख्या करेंगे।
1. पूर्ण प्रतियोगी बाजार में कर-विवर्तन : जहाँ तक कर-विवर्तन की व्याख्या का सवाल है तब हम पूर्ण प्रतियोगी बाजार में यह जाँच पायेंगे कि कर का विवर्तन इस किस प्रकार तथा किस सीमा तक किया जा सकता है। जैसा कि आप जानते होंगे कि पूर्ण प्रतियोगी बाजार में समरूप वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है तथा विक्रेता एवं क्रेताओं की संख्या अधिक पायी जाती है। इसके साथ सबसे अधिक महत्वपूर्ण तथ्य पूर्ण प्रतियोगिता में यह पाया जाता है कि क्रेताओं को बाजार की पूर्ण जानकारी पायी जाती है तथा वस्तुओं की कीमतें समान बसूली जाती हैं। पूर्ण प्रतियोगिता बाजार के अन्तर्गत क्रेता तथा विक्रेताओं का यह पूर्ण प्रयास होता है कि विक्रेता पर पड़ने वाले कराघात को क्रेता पर अधिकतम सीमा तक डाला जाय तथा क्रेता का पूर्ण प्रयास यह रहता है कि उस पर थोपा जाने वाला कर का भार विक्रेता तक ही सीमित रहे अर्थात् इस बाजार में क्रेता तथा विक्रेता कर के भार को कम से कम सहन करने का प्रयास करते हैं। लेकिन कर के विवर्तन बाजार की मांग की लोच तथा पूत्रि की लोच पर निर्भर करता है।
- लोचदार कीमत लोच एवं कर विवर्तन : लोचदार कीमत लोच की स्थिति में कर के भार के एक भाग को विक्रेता स्वयं सहन करता है तथा एक भाग को क्रेताओं पर टालने में सफल हो जाता है। लोचदार कीमत लोच की स्थिति में वस्तु की मांग में एकतरफा परिवर्तन सम्भव नहीं होता है। इसीलिये कर का विवर्तन एक निश्चित सीमा तक ही सम्भव होता है।
- अधिक लोचदार कीमत लोच एवं कर-विवर्तन : इस स्थिति में कीमत में वृद्धि की अपेक्षा वस्तुओं की मांग मात्रा में आनुपातिक रूप से अधिक कमी आ जाती है। कर-विवर्तन के लिए ऐसी स्थिति विक्रेताओं के अनुकूल नहीं पायी जाती है। बाजार की इस स्थिति में कर का विवर्तन उपभोक्ताओं पर बहुत कम ही किया जा सकता है। कर का भार विक्रेताओं को ही वहन करना होता है।
- पूर्ण लोचदार कीमत लोच तथा कर विवर्तन : कीमतों में बहुत कम या मामूली सी वृद्धि होने पर वस्तु की मांग में अत्यधिक गिरावट आ जाती है। तब कर का विवर्तन उपभोक्ताओं पर किया जाना सम्भव नहीं होता है। उपभोक्ता कर के भार को अपने ऊपर टालने से रोकने में सफल हो जाते हैं।
- बेलोचदार मांग तथा कीमत परिवर्तन : पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत बेलोचदार मांग वाली वस्तुओं की स्थिति में कर के भार का उपभोक्ताओं पर अत्यधिक सीमा तक टाला जा सकता है। उपभोक्ता कर के भार को सहन करने के लिए तैयार हो जाता है।
- पूर्ण बेलोचदार मांग तथा कर-विवर्तन : पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत यह वह स्थिति होती है जिसमें कीमतों में कर भार के परिणमस्वरूप कीमत वृद्धि का वस्तुओं की मांग मात्रा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। परिणामस्वरूप कर विवर्तन के प्रयासों की स्थित में विक्रेता पूर्ण रूप से सफल हो जाता है और कर के विवर्तित भार को उपभोक्ताओं को ही सहन करना होता है।
पूर्ति की लोच एवं कर विवर्तन
वस्तुओं की मांग की कीमत लोच के कर विवर्तन पर पड़ने वाले प्रभावों को समझने के बाद आप वस्तुओं की पूर्ति लोच के कर विवर्तन पर के आकार एवं दिशा पर पड़ने वाले प्रभावों को भलीभांति समझ सकेंगे। आपको ध्यान देना होगा कि अल्पकाल में पूर्ति की लोच बेलोचदार तथा दीर्घकाल में पूर्ति लोचदार स्थिति में पायी जाती है। क्योंकि दीर्घकाल में मांग की स्थिति के अनुसार पूर्ति में पर्याप्त तथा मांग के अनुसार परिवर्तन किया जा सकता है। इस प्रकार पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत कर के भार का विवर्तन समयानुसार कम या अधिक सीमा तक किया जा सकता है। यदि वस्तु की पूर्ति लोचदार या पूर्ण लोचदार है तब कर के भार का विवर्तन उपभोक्ताओं की ओर आसानी से किया जा सकता है तथा उपभोक्ता कर के नवीन भार को सहन करने में समर्थ होगा।
इसके विपरीत यदि पूर्ति की लोच बेलोचदार श्रेणी की है तब कर का भार उपभोक्ताओं की ओर विवर्तित नहीं किया जा सकता है तथा कर का नवीन भार की विक्रेताओं द्वारा ही वहन किया जायेगा।
कर विवर्तन के सम्बन्ध में डॉल्टन ने स्पष्ट किया है कि, ‘‘विक्रेता पूर्ति को कम करके कर के भार को क्रेताओं पर ढकेलने का प्रयत्न करता है और क्रेता इसकी मांग कम करके विक्रेताओं पर विवर्तित करने का प्रयत्न करता है। इन दोनों की सफलता इनकी सापेक्षित शक्तियों पर निर्भर करती है।’’
इस प्रकार मांग-पूर्ति की लोच सम्बन्धी शक्तियाँ कर विवर्तन को पूर्ण रूप से प्रभावित करने का कार्य करती है। मांग तथा पूर्ति की लोच समबन्धी विचार धारा के सम्बन्ध में डाल्टन का यह कथन अत्यन्त ही महत्वपूर्ण सिद्ध होता है – ‘‘किसी भी वस्तु पर लगाये गये कर का प्रत्यक्ष दायित्व भार विक्रेताओंके मध्य लगायी गयी वस्तु की मांग व पूर्ति की लचक के अनुपात पर निर्भर रहता है।’’
अपूर्ण प्रतियोगी बाजार में कर विवर्तन
आपको यह स्पष्ट करना अत्यन्त आवश्यक है कि पूर्ण प्रतियोगी बाजार तथा एकाधिकार बाजार को प्राय: काल्पनिक स्थितियाँ माना जाता है। व्यवहार में अपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति ही पायी जाती है जो पूर्ण प्रतियोगिता तथा कएाधिकार के बीच की स्थिति होती है। अपूर्ण प्रतियोगी बाजार में वस्तु की कीमत, रंग एवं आकार (स्वरूप) तथा गुणवत्ता में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। अत: ऐसी स्थिति में कर का विवर्तन बाजार के निम्नलिखित तत्वों पर निर्भर करता है।
एकाधिकारी प्रतियोगी बाजार में उत्पादन की पूर्ति एवं कीमत सम्बन्धी नीतियों के कारण कर का विवर्तन अत्यन्त निम्न सीमा तक ही किया जाना सम्भव होता है। इसके साथ कर विवर्तन की सीमा एवं दिशा उत्पादकों के संयुक्त व्यवहार तथा उनकी नीतियों पर निर्भर करता है। फिर भी एक बड़ी सीमा तक उपभोक्ता कर भार से दूर रहने की स्थिति में रहता है। क्योंकि अपूर्ण प्रतियोगी बाजार में उपभोक्ताओं के पास निकट की स्थानान्तरण वस्तुयें आसानी से पायी जाती है। वस्तुओं की गुणवत्ता तथा उत्पादकों का व्यवहार तथा विक्रय रणनीति कर-विवर्तन करने में सहायक होती हैं।
एकाधिकार के अन्तर्गत कर विवर्तन
जैसा कि आपने पूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत वस्तुओं की मांग तथा पूर्ति की लोचों के आधार पर कर विवर्तन का अध्ययन किया। ठीक इसी प्रकार एकाधिकार के अन्तर्गत वस्तु की मांग तथा पूर्ति की लोच के आधार पर कर का विवर्तन किया जाता है। एकाधिकार के अन्तर्गत वस्तु का केवल एक ही उत्पादक तथा विक्रेता होता है इसीलिये ऐसी स्थिति में कर का विवर्तन अत्यधिक मात्रा में किया जा सकता है। इसके साथ एकाधिकार पूर्ति का निर्धारक भी होता है। इसलिये इस आधार पर भी कर का विवर्तन उपभोक्ताओं के ऊपर आसानी से किया जा सकता है।
एकाधिकारी बाजार में कर का विवर्तन कितना होगा यह कर की प्रवृत्ति पर निर्भर करता है। यदि कर एकमुश्त रूप में लगाया जाता है तो उत्पादक इस कर को स्थायी लागत के साथ समयोजित कर लिया जाता है तथा वस्तु की सीमान्त लागत में वृद्धि नहीं होती है। ऐसी स्थिति में करों के भार को विवर्तित नहीं किया जायेगा। कर विवर्तन से विक्रेता या एकाधिकार के लाभ में कमी आ जाती है। अत: कर की राशि का भुगतान एकाधिकारी द्वारा स्वयं किया जाता है।
इसके साथ एकाधिकार के अन्तर्गत कर मात्रा में आधार पर आरोपित किया जाता है तो उत्पादन की बिक्री की मात्रा के आधार पर कर की राशि घटती तथा बढ़ती रहती है। इस स्थिति में कर का विवर्तन उपभोक्ताओं की ओर होने लगता है। मात्रा के अनुसार कर लगने से वस्तु की सीमान्त लागत बढ़ती है जिससे पूर्ववत मूल्यों पर वस्तुएँ बेचने से उसके लाभ की मात्रा घट जाती है। इसीलिये वह वस्तुओं की कीमत में वृद्धि करके कर का विवर्तन किया जाता है।
एकाधिकारी बाजार में मात्रा के आधार पर करारोपण तथा कर विवर्तन के सम्बन्ध में टेलर का यह कथन अत्यधिक सार्थक सिद्ध होता है – ‘‘दूसरे वर्ग के करों (वे कर जिनकी कुल मात्रा उत्पादन या विक्रय की मात्रा के अनुसार बदलती है परन्तु प्रति इकाई प्रमुख लागत में स्थायी वृद्धि होती है) को सामान्यत: आगे की ओर विवर्तित किया जा सकता है। क्योंकि सम्पूर्ण तालिका में एक ही दर से सीमान्त लागत बढ़ जाती है, जिससे सीमान्त लागत, लाभ व सीमान्त का नया सन्तुलन स्थापित होता है।’’
महत्वपूर्ण करों की स्थिति में कर विवर्तन
करापात एवं कर विवत्रन से सम्बन्धित विभिन्न महत्वपूर्ण तथ्यों का अध्ययन करने के बाद अब आप समझ सकेंगे कि कुछ महत्वपूर्ण करों की स्थिति में कर विवर्तन के द्वारा करापात की क्या स्थिति होती है। यहाँ पर कुछ महत्वपूर्ण करों के सम्बन्ध में कर विवर्तन एवं करापात की विवेचना करेंगे।