अनुक्रम
कराकरोपण अर्थव्यवस्था के समस्त मुख्य भागों को प्रभावित करता है। कार्य करने की क्षमता एवं इच्छा पर करारोपण का प्रभाव करारोपण की प्रकृति के आधार पर पड़ता है जो उसी दिशा में उत्पादन को प्रभावित करता है। बचत करने की क्षमता तथा इच्छा का उत्पादन से सीधा सम्बन्ध है। इसके साथ उत्पादन के संसाधनों द्वारा भी उत्पादन किसी न किसी दिशा में प्रभावित होता है। बचत तथा उत्पादन के संसाधन भी करारोपण से प्रभावित होते हैं। उत्पादन की तकनीकी भी किसी देश की कर प्रणाली से प्रभावित हुए नहीं रह सकती है। करारोपण देश में उत्पादन की वृद्धि को आकार तथा स्वरूप के संदर्भ में प्रभावित करता है। उच्च दर से लगाये गये करों का उत्पादन तथा वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। करों में छूट तथा निम्न दरें अनुकूल दिशा में प्रभावित करती है।
करारोपण के प्रभाव
वर्तमान में करारोपण का महत्व अर्थव्यवस्थाओं के लिए और अधिक बढ़ जाता है कि करारोपण के द्वारा अर्थव्यवस्था को किसी भी दिशा में प्रभावित करने में सहायता मिलती है। एक निश्चित समयावधि में अर्थव्यवस्था की रोजगार, विकास एवं वृद्धि, सामाजिक न्याय, आर्थिक-समानता आदि की स्थिति के बाद करारोपण के द्वारा इन महत्वपूर्ण आयामों में जो परिवर्तन पैदा होता है उसे आप करारोपण के प्रभावों के रूप में देख सकते हैं। प्राय: आपने देखा होगा कि आर्थिक व्यवस्थाओं में परिवर्तन से न केवल देश की अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है अपितु सामाजिक व राजनैतिक व्यवस्थाओं में भी बदलाव देखा जा सकता है लेकिन प्रस्तुत इकाई में मुख्यरूप से आर्थिक चरों पर पड़ने वाले करारोपण के प्रभावों का ही अध्ययन किया गया है।
करारोपण के प्रभावों के सम्बन्ध में प्रो0 लर्नर ने अपने विचार निम्न रूप में व्यक्त किये, ‘‘कर सम्बन्धी नीति बनाते समय उद्देश्य केवल आर्थिक लाभ या आय प्राप्त करना नहीं होना चाहिए वरन अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनाये रखने तथा तेजी व मन्दी को रोकना चाहिए। कर प्रणाली का उद्देश्य आर्थिक स्थिरता को बनाये रखना होना चाहिए।’’
इस प्रकार यह कहना न्याय संगत होगा कि करारोपण के प्रभावों को किसी विशेष आयाम के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है। करारोपण के माध्यम से अर्थव्यवस्था के सभी महत्वपूर्ण चरों या आयामों में परिवर्तन किया जाता है जिन्हें सामूहिक रूप से करारोपण के प्रभावों के रूप में रखा जा सकता है।
1. करारोपण का उत्पादन पर प्रभाव
उत्पादन किसी भी अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है जिस पर करारोपण के प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। करारोपण का उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभावों की विवेचना निम्नवत रूप में की जा सकती है
2. करारोपण का वृद्धि पर प्रभाव
प्रस्तुत खण्ड के अन्तर्गत करारोपण का वृद्धि पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया गया है जो वृद्धि के आकार एवं स्वरूप को निम्नवत प्रभावित करता है।
करारोपण का वितरण एवं संसाधनों के आवंटन पर प्रभाव
1. करारोपण का वितरण पर प्रभाव
करारोपण द्वारा किसी भी देश में वितरण पर प्रभावों को देखा जा सकता है। अर्थव्यवस्थाओं की प्रकृति के अनुसार कुछ देशों में करारोपण का आय के वितरण पर स्वत: प्रभाव पड़ता है तो कहीं पर इस वितरण पर प्रभाव डालने के लिए करारोपण की नीति तैयार की जाती है। जिन देशों में आय की वितरणात्मक समस्या कम पायी जाती है वहाँ पर करारोपण के वितरण पर बहुत कम ही प्रभाव पाया जाता है और इन प्रभावों पर ध्यान भी नहीं दिया जाता है। किन्तु अधिकांश देश पिछड़े तथा विकासशील देशों की श्रेणी में आतेहैं जहाँ पर वितरण की समस्या को मुख्य समस्या के रूप में देखा जा रहा है और आम जनता पर इसका दुष्प्रभाव पड़ा है। इस समस्या को हल करने के लिए सरकाकर को करारोपण का सहारा लेना होता है जिसके प्रभाव करारोपण के आकार, प्रकृति द्वारा निर्धारित होते हैं। इसके साथ इस वितरण की समस्या को कम करने की आवश्यकता का स्तर भी करारोपण के प्रभावों को निश्चित करता है।
आपको यहाँ पर यह समझना अत्यन्त आवश्यक होगा कि सरकार के सामने केवल आय की वितरणात्मक समस्या को दूर करना ही विकास के लिए आवश्यक नहीं है बल्कि इस वितरण को कम करने के दुष्प्रभाव, बचत की क्षमता, इच्छा तथा निवेश का स्तर एवं दिशा आदि अलग-अलग रूपों में भी पाये जाते हैं। अत: सरकार को इस प्रकारक की राजकोशीय नीति का सहारा लेना होता है कि देश में विरतणीय समस्याओं को भी कम किया जा सके तथा इसका धनी वर्ग पर बचत तथा निवेश के संदर्भ में प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़े। देश में करारोपण का ढाँचा वितरण को अलग-अलग रूपों में प्रभावित करता है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि करारोपण का आय के वितरण पर अनुकूल तथा प्रतिकूल दोनों ही दिशाओं में प्रभाव पड़ता है जो अर्थव्यवस्था की स्थिति तथा आवश्यकताओं द्वारा निर्धारित होता है।
करों के प्रकारों के सम्बन्ध में आप समझेंगे कि प्रगतिशील कर आय की वितरणीय असमानताओं को कम करने में सहायक होता है जबकि अधोगामी या प्रतिगामी करों का विरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है जो एक अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक होता है। इस प्रकार प्रगतिशील करारोपण द्वारा धनी वर्ग से धन का प्रवाह निर्धन तथा गरीब वर्ग की ओर हो जाता है। इसी प्रकार परोक्ष करों की अपेक्षा प्रत्यक्ष करों का वितरण पर अधिक अनुकूल प्रभाव पड़ता है। परोक्ष करों का वितरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है कयोंकि अन्तत: करारोपण का भार निम्न वर्ग तथा मध्यम वर्ग पर ही पड़ता है तथा धनी वर्ग इस प्रभाव से अलग रह जाता है। इसी प्रकार सबसे अच्छा कर आय कर है जो वितरण पर सबसे अधिक अनुकूल प्रभाव डालता है।
इसी क्रम में सम्पत्ति कर का भी वितरण पर अनुकूल प्रभावों को देखा जा सकता है। धनी तथा अधिक सम्पत्ति के मालिकों से कर की वसूली करके निर्धनों के सामाजिक कल्याण पर व्यय किया जा सकता है तथा निर्धनों की स्थिति में सुधार करने का प्रयास किया जा सकेगा। यहाँ पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि देश में पूँजी निवेश के लिये धनी वर्ग द्वारा ही बचतें काम आती हैं इसीलिए करारोपण से धनी वर्ग की उस राशि का ही प्रवाह निर्धनों की ओर किया जाना चाहिए जो देश के लिए निवेश या पूँजी के लिए सुरक्षित नहीं किया जा सकता है।
2. करारोपण का संसाधनों के आवंटन पर प्रभाव
उत्पादन कार्य में संसाधनों का आवंटन इस प्रकार से करने की समस्या पैदा होती है कि संसाधनों का कुशलतम रूप में प्रयोग हो तथा उत्पादन अधिकतम हो सके। इसके साथ सामाजिक लाभ में भी वृद्धि हो सके। देश में उत्पादन के स्वरूप, उपयोगिता तथा आकार के चलते संसाधनों के पुन: आवंटन की आवश्यकता पायी जाती है। इसी तथ्य के साथ करारोपण का सहारा लेकर इस समस्या को हल करने का प्रयास किया जाता है। करकारोपण का संसाधनों के आवंटन पर पड़ने वाले प्रभाव अनुकूल तथा प्रतिकूल दोनों ही रूपों में हो सकते हैं जो कर तथा उत्पादन की प्रकृति पर निर्भर करता है। समाज के लिए हानिकारक वस्तुओं के उत्पादन पर अत्यधिक कर लगाकर इसकी कीमत बढ़ाने से उपभोग में कमी होगी जिससे इसके उत्पादन में लगे साधनों का स्थानान्तरण अधिक उपभोग वाली वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन की ओर होगा जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी तथा सामाजिक कल्याण भी बढ़ेगा। इस प्रकार करारोपण द्वारा जीवन के लिए घातक वस्तुओं के उत्पादन से श्रम व पूँजी व अन्य संसाधनों को हटाकर उपयोगी वस्तुओं के उत्पादन में लगाया जाता है जो करारोपण का आवंटन पर अनुकूल प्रभाव कहा जायेगा जिससे अर्थव्यवस्था एवं सरकार दोनों को लाभ होगा।
इसके साथ यह भी पाया गया है कि सकरार कर राजस्व को अधिक मात्रा में जुटाने के लिए आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन एवं बिक्री कर अधिक कर लगाती है जिससे इन वस्तुओं की मांग कम होती है तथा समाज में उपभोग भी घटता है या निर्धन वर्ग को हानि होती है तो ऐसे उद्योगों से संसाधनों का स्थानान्तरण नुकसानदाय उद्योगों की ओर होने लगता है जो राष्ट्रीय हित के लिए घातक ही कहा जायेगा। इसके साथ देश में संसाधनों का आवंटन कुशलता के साथ नहीं हो पाता है तथा साधरों की आय की घटना प्रारम्भ हो जाती है और करारोपण का सहारा पुन: आवंटनात्मक कुशलता पैदा करने के लिए किया जाता है।
अत्यधिक करारोपण द्वारा उत्पादन के संसाधनों का प्रवाह अपने देश से विदेशों की ओर भी होने लगता है जो देश के लिए नुकसानदायक सिद्ध होता है और देश में पूँजी की कमी पैदा होती है जो आर्थिक विकास को अवरूद्ध करती है। सरकार विदेशी पूँजी को आकर्षित करने के लिए एक सफल करारोपण की नीति का सहारा लेती है तथा इसका क्रियान्वयन बड़ी सावधानीपूर्वक करती है। कभी-कभी करारोपण की ऊँची दर उपभोग को कुछ समय के लिये रोक देती है तथा उसको भविष्य के लिए सुरक्षित किया जाता है। ऐसी स्थिति में संसाधनों का आवंटन वर्तमान समय से भविष्य के उत्पादन के लिए किया जाता है।
3. करारोपण के प्रभाव एवं भारतीय अर्थव्यवस्था
करारोपण का उत्पादन, वृद्धि पर प्रभावों का अध्ययन करने के बाद आपने करारोपण का वितरण एवं संसाधनों के आवंटन पर प्रभावों का भी अध्ययन किया। प्रस्तुत बिन्दु के अन्तर्गत आप करारोपणके अलग अलग क्षेत्रों में पड़ने वाले प्रभावों के समग्र रूप से परिचित होंगे तथा भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ इन समग्र प्रभावों की प्रासंगिकता से भलीभांति परिचित हो सकेंगे।
इस तथ्य से आप शायद परिचित होंगे कि भारत में बहुकर प्रणाली का प्रचलन है। इसके साथ कुछ मदों पर केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से करारोपण का संयुक्त दबाव भी पाया जाता है। भारतीय कर प्रणाली पर राजनैतिक प्रभावों की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती है। इसके साथ भारत में यह तथ्य अत्यन्त परिवर्तनकारी एवं विचारणीय है कि विशाल भारत में राजनैतिक एकता एवं समरूपता का पाया जाना अत्यन्त कठिन है। करों के आरोपण के सम्बन्ध में त्रिस्तरीय व्यवस्था राजनैतिक रूप में विद्यमान है – केन्द्र सरकार की कर प्रणाली, राज्य सरकारों की कर प्रणाली तथा स्थानीय सरकारों/संस्थाओं की कर-प्रणाली।
भारत में करारोपण की प्रासंगिकता को प्रभावी बनाने के लिए समय-समय पर अनेक कमेटियों तथा मण्डलों का गठन किया गया लेकिन भारतीय कर प्रणाली सम्बन्धी गहन तथा विस्तृत नीतियों के चलते इन प्रभावों को एक दिशीय रूप नहीं दिया जा सका है। आपको विदित हो कि भारतीय अर्थव्यवस्था विकासशील होने के साथ-साथ मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेशतायें रहती हैं जो करारोपण के प्रभावों को बहुदिशीय बना देती हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था में कुछ ऐसी चुनौतियाँ हैं जो करारोपण के प्रभावों तथा सरकार की नीतियों में सामन्जस्य स्थापित होने में बाधक बन जाती हैं। आइये इन तथ्यों पर गहनता से विचार करें।
- विकास की तीव्र दर एवं आय की वितरणीय असमानताओं को दूर करना
- निजीकरण की प्रक्रिया एवं सामाजिक कल्याण
- आर्थिक स्थिरता एवं निजी क्षेत्र में लाभ की दर
- अन्तर्राष्ट्रीय साख एवं गरीबी-बेरोजगारी की समस्या
- कर राजस्व एवं राजनैतिक लाभ की प्राप्ति
- विभिन्न राज्यों तथा केन्द्र के मध्य अच्छे सम्बन्धों की कमी।
ऊपर दिये गये छ: बिन्दुओं पर गहराई से विचार दिया जाय तो भारतीय अर्थव्यवस्था वर्तमान कर प्रणाली तथा उसके प्रभावों के मध्य आपसी तालमेल न बना पाने की स्थिति में है और आये दिन सरकारों के सामने कर तथा मौद्रिक तथा राजकोशीय नीतियों के मध्य सामन्जस्य स्थापित करने के प्रयास किये जाते रहते हैं। ऊपर दिये गये तथ्यों के मध्य सामंजस्य स्थापित करने के लिये ही करारोपण प्रणाली को एक उपकरण के रूप में अपनाया जाता है। जहाँ तक अर्थव्यवस्था में तीव्र आर्थिक विकास की दर के लिये पूँजी का संकेन्द्रण तथा आय की वितरणीय असमानताओं को दूर करने के लिये पूंजी का प्रसरण के लिये प्रयास किये जाते हैं जिसके लिये करारोपण के प्रभावों के बंटवारे की अत्यन्त आवश्यकता महसूस की जाती है। करारोपण के एक दिशीय प्रभावों से इस कठिनाई को दूर नहीं किया जा सकता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने सबसे बड़ी समस्या अर्थव्यवस्था के स्वरूप को परिवर्तित करने से सम्बन्धित है। तीव्र आर्थिक विकास की गति को आखिरकार कब तक प्राप्त किया जाता रहेगा। सामाजिक कल्याण की लागत पर आर्थिक विकास की बात करके करारोपण के प्रभावों के औचित्य को न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता। राजनैतिक दृष्टिकोण से करारोपण के प्रभावों के औचित्य को राजनेताओं तथा उद्योगपतियों के पक्ष में बनाये रखना करारोपण के अलग-अलग प्रभावों को धूमिल किया जाता है। अर्थव्यवस्था पर करारोपण के प्रभाव केवल इसके आकार पर ही निर्भर नहीं करता बल्कि करारोपण के ढाँचे तथा संरचनात्मक व्यवस्था की भी महत्वपूर्ण भूमिका पायी जाती है। एक करोरोपण की मद वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग की लोच को परिवर्तित करती है वही दूसरी मद क्रेताओं की रूचि तथा मांग के निर्धारकों को परिवर्तित करती है।
आपको ध्यान देने की आवश्यकता है कि वर्तमान में राजकोशीय नीति विकास, रोजगार तथा अर्थव्यवस्था नियंत्रण के साथ राजनैतिक नियंत्रण की भी उपकरण बन गयी है। करों में छूट तथा उदारपन की प्रवृत्ति तथा राजकोशीय घाटे की समस्या जैसा विरोधाभास करारोपण के प्रभावों को सीमित करता है। भारत में आर्थिक विषमता करारोपण के प्रभावों के आंकलन के लिए एक महत्वपूर्ण पैमाना बन गया है। अर्थव्यवस्था में करारोपण के प्रभावों की मद सम्बन्धी पर्याप्त जानकारी प्रापत किये बिना रोजकोशीय नीति के प्रभावों की अपेक्षा करना सरल कार्य नहीं है।
भारत जैसी अर्थव्यवस्था में कई प्रकार की नम्यताओं का अभाव पाया जाता है। कई क्षेत्रों में एकाधिकारात्मक अनियमिततायें भी पायी जाती हैं। ऐसी स्थिति में मंदी तथा मुद्रा-स्फीति जैसी परिस्थितियाँ एक साथ अस्तित्व में पायी जाती हैं। इसके समाधान के लिए केवल करों में कमी या वृद्धि करके काम नहीं चलाया जा सकता है। इसके लिए करारोपण प्रणाली में समय-समय पर आवश्यकतानुसार संशोधन की आवश्यकता पायी जाती है। कई बार सरकारों के कड़े उपायों को भी अपनाना होता है। कड़े उपायों को यदि प्रारम्भ से ही अपनाया जाय तो शायद राजकोशीय नीति के प्रभावों से सम्बन्धित अनेक प्रकार की समस्याओं का समाधान भी सम्भव हो सकता है।
केन्द्र सरकार तथा केन्द्रीय बैंक की राजकोशीय नीति सम्बन्धी उपायों पर भले ही अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा प्रदान की जा सकती है किन्तु करारोपण व्यवस्था में राज्य सरकारों के हस्तक्षेप से भी करारोपण के प्रभावों में विरोधाभास की स्थिति पैदा हो जाती है। केन्द्र तथा विभिन्न राज्यों में अलग-अलग राजनैतिक दलों की सरकारों के अस्तित्व के कारण करारोपण के प्रभावों में समग्रता को नहीं देखा जा सकता। आपको यहाँ ध्यान देना आवश्यक है कि भारत में सभी राजनैतिक दलों के आर्थिक व सामाजिक लक्ष्यों में समरूपता का पाया जाना आवश्यक नहीं है। जिसके आधार पर कर प्रणाली एवं करारोपा के प्रभाव दोनों को अलग-अलग दिशाओं में देखा गया है।
करारोपण सम्बन्धी नीति निर्धारित करते समय सरकार द्वारा यह अपेक्षा की जाती है कि करारोपण के बाद एक विशेष क्षेत्र में यथास्थिति बनी रहे तथा एक दूसरे क्षेत्र में वांछित परिवर्तन परिलक्षित हो। लेकिन भले ही एक क्षेत्र में करारोपण के प्रभाव न हो लेकिन दूसरे क्षेत्र में परिलक्षित करारोपण के प्रभावों का भी प्रथम क्षेत्र में परोक्ष रूप से प्रभावों को देखा जाता है जिन्हें व्यक्तियों की जिज्ञासाओं, भावनाओं तथा मानसिकताओं के आधार पर और अधिक फैलाया जा सकता है। इस प्रकार करारोपण की प्रणाली के द्वारा सरकार द्वारा यह आशा करना अधिक औचित्यपूर्ण नहीं कहा जा सकता कि करारोपण का प्रभाव केवल वांछित क्षेत्र तक ही सीमित रह पायेगा। सरकार को कर प्रणाली का प्रयोग एक नीतिशास्त्र के रूप में करने की आवश्यकता पायी जाती है।
भारत में प्रत्यक्ष तथा परोक्ष दोनों प्रकार की कर-प्रणाली को अपनाया गया है। प्रत्यक्ष करों के प्रभावों से बचने के लिये परोक्ष करारोपण के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिये हमेशा व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास किये जाते रहे हैं। भारतीय अर्थव्यवस्था अनेक प्रकार की नैतिकता सम्बन्धी समस्याओं से भी भरी है जो करारोपण के प्रभावों को प्रभावहीन करन में महतवपूर्ण सिद्ध होती है। सरकार के कड़े नियम व उपाय करारोपण के प्रभावों को वांछित दिशा की ओर ले जाने में सहायता करते हैं।
जहाँ तक भारतीय अर्थव्यवस्था तथा करारोपण के प्रभावों के अन्तर्सम्बन्ध के सही दिशा में क्रियाशील होने का सवाल है, भारतीय अर्थव्यवस्था में करवंचना तथा कर-चोरी जैसी समस्या भी करारोपण के प्रभावों को उद्देश्यपूर्ण होने से रोकती है। सामाजिक लाभ वाली करारोपण प्रणाली को नागरिक स्वार्थ की पूर्ति के लिए प्रयोग करना चाहता है। भारतीय कर प्रणाली का लचीलापन इस करवंचना तथा कर की चोरी को प्रेरित करता है क्योंकि कर प्रणाली में होने वाले परिवर्तन व्यक्ति तथा संस्थानों एवं उद्यमों की भावी तथा वर्तमान नीतियों को अलग-अलग दिशाओं में मोड़ देने लगते हैं तथा सरकार की करारोपण व्यवस्था तथा करारोपण के प्रभावों को सीमित भी किया जाता है।
