ऋण पत्र क्या है ? ऋण पत्र कितने प्रकार के होते हैं ?

ऋण पत्र से कम्पनी दीर्घकालीन ऋण प्राप्त करती है इसमें कम्पनी निवेशको को एक निश्चित प्रतिशत पर ब्याज देती है चाहे कम्पनी को लाभ हो या नहीं। जब कम्पनी को पूंजी की आवश्यकता होती है तब कम्पनी ऋण पत्र जारी करके पूंजी प्राप्त करती है या हम कह सकते हैं कि ऋणदाता कम्पनी को ऋण देता है और कम्पनी उस ऋण की एक रसीद ऋण पत्र के रूप में प्रदान करता है ऋणदाता को कम्पनी मे प्रबंध या मताधिकार नहीं होता। उदाहरण एक कम्पनी में एक लाख रूपये की आवश्यकता है जो 100 रू0 प्रत्येक वाले 1000 इकाइयों में विभाजित है। धनदाता इच्छानुसार कितनी भी संख्या में इकाइयों का क्रय कर सकता है। इसके पश्चात कम्पनी ऋणदाता द्वारा क्रय की गयी इकाइयों का प्रमाण पत्र जारी करती है। अतः ऋणपत्र कम्पनी के ऋणग्रस्त होने का प्रमाण है, जो कम्पनी द्वारा जारी किया जाता है जो कम्पनी की समानों पर प्रभावित/अप्रभावित होती है तथ्यों की दृष्टि से ऋण पत्र की कोई विधिक परिभाषा नहीं है। 

ऋण पत्र की परिभाषा

न्यायाधीश चिट्ठी के अनुसार ऋण पत्र  का आशय एक दस्तावेज से है जो या तो एक ऋण की उत्पत्ति बताता है या उसे स्वीकार करता है, और कोई भी दस्तावेज़ जो इन दोनों शर्तों को पूरा करता है वह एक ऋणपत्र है ।

ऋण पत्र से लाभ

  1. ऋण पत्र सुरक्षित ऋण है 
  2. समता अंशधारी एवं पूर्वाधिकारी अंशधारी से पहले ऋण पत्रधारियों को कम्पनी समापन की दशा में भुगतान किया जाता है। 
  3. लाभ-हो या हानि ऋणदाताओं को दबाव दिया जाता है। 
  4. ऋण पत्रधारी प्रबंध पर हस्तक्षेप नहीं करते। 
  5. ऋण पत्रो पर दिया गया दबाव कम्पनी व्यय मानती है। 

ऋण पत्र की सीमायें

  1. ऋण कंपनी के पास स्थाई सम्पित्त्ा नहीं होती ऋण पत्र का निर्वचन नही  कर सकती। 
  2. ऋण पत्र कम्पनी के उधार लेने की क्षमता को कम कर देता है।

ऋण पत्र के प्रकार

संयुक्त स्कंध कम्पनी में ऋणपत्रों के प्रमुख प्रकार निम्न हैः-
1. सामान्य ऋण पत्र: इन्हें नग्न ऋणपत्र भी कहा जाता है। इस प्रकार के ऋणपत्र बिना प्रतिभूति के जारी किये जाते हैं। कम्पनी में समापन के समय ऐसे ऋण पत्रधारी असुरक्षित लेनदार माने जाते हैं। इसलिये यह ऋण पत्र आज-कल लोकप्रिय नहीं हैं।


2. शोधनीय  एवं अशोधनीय ऋण पत्र-ऋण पत्र जिनकी धन वापसी एक निश्चित तिथी पर होती है शोधनीय ऋण पत्र है और समापन की दशा में निम्न ऋण पत्रों का करती है अशोधनीय ऋण पत्र है।

3. परिवर्तनीय या अपरिवर्तित ऋण पत्र-जिन ऋण पत्रों को समता अंश में बदलने का अधिकार दिया जाता है पर परिवर्तनीय ऋण पत्र है और जिन ऋण पत्रों को समता अंश में परिवर्तन करने का अधिकार नहीं दिया वह अपरिवर्तनीय ऋण पत्र है।
4. सुरक्षित या असुरक्षित ऋण पत्र-सुरक्षित ऋण पत्रों को कम्पनी अपनी सम्पित्त के प्रभार के रूप में निर्गमित करती है असुरक्षित ऋण पत्र जो सम्पित्त के बिना प्रभार पर केवल भुगतान वापसी की शर्त पर निर्गमित करती है।
5. पंजीकृत एवं वाहक ऋण पत्र-जब ऋण पत्र धारियों को ऋण पत्र नियोजन करते समय पंजीकृत करके ऋण पत्र देती है वह पंजीकृत ऋण पत्र है जो ऋण पत्र सुपुदर्गी मात्र से हस्तान्तरित किया जा सकता है वह वाहक ऋण पत्र है।
6. बन्धक ऋणपत्र: ऐसे ऋण पत्र जो कम्पनी की स्थायी सम्पत्तियों जैसे प्लाण्ट, मशीनरी, भूमि व भवन द्वारा सुरक्षित होते हैं, बन्धक ऋणपत्र कहलाते हैं। यह दो प्रकार के होते हैं-
  1. प्रथम बन्धक ऋणपत्रधारी को कम्पनी की सम्पत्ति पर दावा करने का प्रथम अधिकार होता है।
  2. द्वितीय बन्धक ऋणपत्रधारियों का कम्पनी की सम्पत्ति पर द्वितीयाधिकार होता है।
7. मोचनीय ऋण पत्र: इन ऋणपत्रों की राशि का दुबारा भुगतान निर्दिष्ट समय के बाद होता है। इन ऋणपत्रों का निकासी इस शर्त के साथ होता है कि कम्पनी निश्चित तिथि पर उसका दुबारा भुगतान कर देगी। वर्तमान समय में यह ऋण पत्र प्रचलित है।
8. अविमोचनीय ऋण पत्र (अविच्छिन्न ऋणपत्र): ऐसे ऋणपत्रों पर राशि का दुबारा भुगतान विशिष्ट घटना में घटित होने पर की जाती है।
9. चल ऋणपत्र: इस प्रकार के ऋण पत्र कम्पनी की सभी सम्पत्तियों पर चल प्रभार द्वारा सुरक्षित रहते हैं। इन सम्पत्तियों में विनिमय विपत्र, स्टाक तथा पुस्तकीय ऋण आते हैं। यह कम्पनी के अन्य लेनदारों के असफल होने पर ऋणपत्रधारी के पक्ष में प्रभार उत्पन्न करते हैं।
10. संयंत्र प्रन्यास ऋणपत्र: यह ऋण पत्र विशेष उद्देश्यों के लिये जारी किये जाते हैं। ऐसे ऋणपत्रों को व्यवसाय के संचालन ले किए किसी संयंत्र को खरीदने के लिए धन की व्यवस्था करने के लिये किया जाता है।
10. आय ऋण पत्र: इस प्रकार के ऋणपत्रों के धारक चालू वर्ष के लाभ में से निश्चित दर पर ब्याज प्राप्ति के अधिकारी होते हैं। यदि कम्पनी के लाभ नहीं होता है तो उसे कोई ब्याज प्राप्त नहीं होगा। इसलिये यह ऋणपत्र आजकल प्रचलित नहीं है।
11. विधिक ऋण पत्र: जहां कम्पनी की सम्पत्ति का स्वामित्व संविदा द्वारा धनदाता को ऋण की सुरक्षा में हस्तान्तरित किया जाता है, को विधिक ऋण पत्र कहा जाता है।

ऋणपत्र की विशेषताएं

ऋणपत्र से निम्न परिलक्षित होती है-
  1. यह धारक के लिये प्रमाण पत्र में शर्त रखी धनराशि के लिए कम्पनी के ऋणी होने की स्वीकार पत्र है। यह ऋण पत्र की मुख्य विशेषता है।
  2. यह कम्पनी की समान मुद्रा के अन्तर्गत प्रमाण पत्र के रूप में जारी की जाती है।
  3. इसमें उल्लिखित मूल राशि एक निश्चित तिथि पर भुगतान की जाती है। लेकिन यह आवश्यक नहीं है क्योंकि कम्पनी लगातार या अशोधनीय ऋणपत्रों को जारी कर सकती है जो कम्पनी के समाप्ति या अन्य घटना में घटित होने पर ही भुगतान योग्य होते हैं (धारा 120)
  4. इसमें ब्याज के भुगतान का प्रावधान तब तक होता है जब तक कि मूलराशि को वापस न कर दिया जाय। यह आवश्यक नहीं है क्योंकि हो सकता है कि ब्याज का भुगतान किसी निश्चित घटना के घटने पर ही हो। 
  5. यह ऋणपत्रों की श्रृंखला में जारी किये जाते हैं। एक व्यक्ति को एक ऋणपत्र जारी किये जा सकता है।
  6. यह कम्पनी की कुछ सम्पत्तियों के प्रभार द्वारा सुरक्षित होते हैं। ऋण पत्रों की कम्पनी की सम्पत्ति पर बिना प्रभार के भी जारी किया जा सकता है।
  7. ऋणपत्रधारी को कम्पनी की किसी सभा में मत देने का अधिकार नहीं है। (धारा 117)

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