अनुक्रम
अर्थव्यवस्था की तीन मुख्य केन्द्रीय समस्याएं
- क्या और कितनी मात्रा में उत्पादन करे ?
- उत्पादन कैसे करे ?
- उत्पादन किसके लिये करें ?
ये किसी अर्थव्यवस्था की मुख्य समस्याओं से भिन्न होती है । मुख्य समस्याएं तो मौसम, भौगोलिक स्थिति मानवीय संसाधनो की उपलब्धता, रस्मों, अभिरूचियों तथा आय के अन्तरों के कारण पैदा होती है ।
प्रो. सेम्युलसन के अनुसार:-‘‘किसी भी अर्थव्यवस्था की तीन आधारभूत समस्याएं परस्पर निर्भर होती है । किन वस्तुओं का उत्पादन हो’’ कैसे उत्पादित की जाए ? किन के लिये उत्पादित की जाए ? विभिन्न व्यक्तियों और परिवारों में सकल राश्ट्रीय उत्पादन का विभाजन किस प्रकार हों ?’’
- क्या और कितनी मात्रा में उत्पादन करे ?
- उत्पादन कैसे करे ?
- उत्पादन किसके लिये करें ?
ये किसी अर्थव्यवस्था की मुख्य समस्याओं से भिन्न होती है । मुख्य समस्याएं तो मौसम, भौगोलिक स्थिति मानवीय संसाधनो की उपलब्धता, रस्मों, अभिरूचियों तथा आय के अन्तरों के कारण पैदा होती है ।
प्रो. सेम्युलसन के अनुसार:-‘‘किसी भी अर्थव्यवस्था की तीन आधारभूत समस्याएं परस्पर निर्भर होती है । किन वस्तुओं का उत्पादन हो’’ कैसे उत्पादित की जाए ? किन के लिये उत्पादित की जाए ? विभिन्न व्यक्तियों और परिवारों में सकल राश्ट्रीय उत्पादन का विभाजन किस प्रकार हों ?’’
1. क्या और कितनी मात्रा में उत्पादन करें ?
अर्थव्यवस्था में उपलब्ध साधन दुर्लभ है प्रत्येक अर्थव्यवस्था के पास वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन के लिये सीमित साधन है। आवश्यकताएं असीमित है । सीमित साधनो से सभी वस्तुओं का उत्पादन नहीं हो सकता। अत: ये समस्या उत्पन्न होती है कि वस्तु की कितनी मात्रा का उत्पादन करें। अर्थव्यवस्था को संसाधनों के आबंटन की समस्या का सामना करना पड़ता है। अर्थव्यवस्था के सीमित साधनों के कारण यह निर्णय लेना पड़ता है कि वह शस्त्र बनाये, होटल बनाये, मकान बनाये, गेहूॅ उगाये या तिलहन । क्या उत्पादन हो निर्णय लेने के बाद अर्थव्यवस्था को यह निर्णय लेना पड़ता है कि वह उनकी कितनी मात्रा में उत्पादन करें । दूसरे शब्दों में, उपभोक्ता वस्तुओं व सेवाओं और उत्पादक वस्तुओं व सेवाओं के किस संयोग को उत्पादन के लिये चुना जाय। उत्पादित की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के संयोग की प्रकृति लोगो की प्राथमिकता पर निर्भर करती है।
2. उत्पादन कैसे करें ?
दूसरी मूलभूत समस्या का संबंध उत्पादन की व्यवस्था से है अर्थात् कौन किन संसाधनों व किस प्रौद्योगिकियों का प्रयोग कर उत्पादन कार्य को संपन्न करेंगा। किसी भी वस्तु का कई विधियों से उत्पादन संभव है। उत्पादन तकनीक का चयन करते समय सावधानी रखनी पड़ती है। उत्पादन तकनीक से तात्पर्य विभिन्न संसाधनों के उस अनुपात से है,जिसमें उनका उपयोग वस्तु के उत्पादन के लिये किया जाता है। जैसे श्रम एवं पूंजी का विभिन्न अनुपातों में प्रयोग करके वस्तु का उत्पादन किया जाता है। यदि पूंजी की तुलना में श्रम का अधिक उपयोग करे तो श्रम गहन तकनीक या प्रणाली होगी। यदि पूंजी का अधिक उपयोग कर श्रम की मात्रा कम हो तो पूंजी गहन तकनीक होगी। जैसे खेती के लिये ट्रेक्टर आदि मशीनों की मांग हो तो पूंजी गहन तकनीक होगी। यदि खेती के लिए हल, कृषक आदि का प्रयोग करते है तो श्रम गहन तकनीक है। उत्पादन की तकनीक के चयन में यह समस्या उत्पन्न होने का कारण श्रम एवं पूंजी दोनो सीमित मात्रा में है।
3. किसके लिये उत्पादन करें ?
तीसरी मूलभूत समस्या उत्पादन किसके लिये किया जाये, अर्थव्यवस्था में उत्पादित राष्ट्रीय आय के विभाजन से जुड़ी है। क्या एवं कैसे प्रश्नों के उत्तर बाद उत्पादन प्रक्रिया शुरू हो जाती है। अर्थव्यवस्था में किसी भी व्यक्ति को सब कुछ प्राप्त नहीं हो सकता, जिसकी उसे आवश्यकता होती है। ऐसा इसीलिए होता है, क्योंकि अर्थव्यवस्था में जो कुछ भी उत्पादित किया जाता है, वह प्रत्येक की आवश्यकता को पूरा करने के लिये पर्याप्त नही होता है । अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन, उत्पादन के चारो साधनों (श्रम,भूमि,पूंजी,उद्यम) के स्वामियों के संयुक्त प्रयत्नों के परिणामस्वरूप होता है। अत: कुल उत्पादन को इन उत्पादन साधनो के स्वामियों में बॉटना होता है। उत्पादन के साधनों को उत्पादन सेवाओं के बदले में लगान, मजदूरी, ब्याज, व लाभ के रूप में आय प्राप्त होती है। इस आय से वे वस्तुएं व सेवाएं खरीदते है। इनमें से प्रत्येक कितनी वस्तु व सेवाएं खरीद सकता है, यह प्रत्येक की आय पर निर्भर करता है। अत: यह समस्या आय के वितरण की समस्या है। यह समस्या की दुर्लभता से उत्पन्न होती है।
अर्थव्यवस्था की मूलभूत समस्याएं
1. संसाधनों की दुर्लभता
1. असीमित आवश्यकताएं- मानवीय आवश्यकताएं असीमित होती है तथा समय के साथ-साथ बढ़ती जाती है । यह वृद्धि ज्ञान में परिवर्तन में आय में परिवर्तन आदि के कारण होती है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि करने का प्रयत्न करता है।
2. संसाधनों की दुर्लभता
अर्थशास्त्र के संदर्भ में संसाधनों की दुर्लभता का अर्थ सीमित साधन है। हम अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिये जो वस्तु व सेवाएं खरीदते है, वे अर्थव्यवस्था में उत्पादित होती है। इनका उत्पादन करने के लिये विभिन्न प्रकार के संसाधनों की आवश्यकता होती है, जैसे मानवीय संसाधन, प्राकृतिक संसाधन और मनुष्य द्वारा निर्मित संसाधन अर्थात् पूंजी । इन संसाधनों को भूमि, श्रम, पूंजी एवं उद्यम के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। किसी भी अर्थव्यवस्था में ये संसाधन असीमित मात्रा में उपलब्ध नहीं होते। ये संसाधन असीमित मात्रा में उपलब्ध नहीं होते है। ये सीमित संसाधन है। इन संसाधनों की पूर्ति इनकी मांग की तुलना में कम होती है अर्थात् ये संसाधन दुर्लभ होते है। जब किसी संसाधन की मांग उसकी पूर्ति से अधिक हो तो उसे दुर्लभ संसाधन कहते है। अर्थव्यवस्था में संसाधनों की दुर्लभता होती है ।
3. संसाधनों का वैकल्पिक प्रयोग
जब किसी संसाधन का उपयोग विभिन्न वस्तुओं और सेवाओ के उत्पादन के लिये किया जाता है तो उसे संसाधनो के वैकल्पिक उपयोग कहते है । जब किसी संसाधन का उपयोग किसी वस्तु या सेवा के उत्पादन के लिये किया जाता है, तो वह अन्य वस्तु या सेवा उत्पादन के लिये उपलब्ध नहीं रहता है । इससे संसाधनों के उपयोग में चयन की समस्या उत्पन्न होती है । जैसे कोई श्रमिक खेत में काम कर रहा है, तो वह कारखाने में कार्य नहीं कर सकता। यदि किसी भूमि पर उद्योग है तो वह कृषि कार्य संभव नहीं होता है ।
4. आर्थिक समस्या
अर्थव्यवस्था अपने सीमित संसाधनों से वस्तु एवं सेवाओं के विभिन्न समूहों का उत्पादन कर सकती है। लेकिन संसाधनों की दुर्लभता के कारण उसको चयन करना होता है कि वह विभिन्न समूहों में किस समहू का उत्पादन कर।ें इसे आथिर्क समस्या कहा जाता है आर्थिक समस्या अर्थात चयन की समस्या का सामना उपभोक्ता और उत्पादकों को ही करना पडत़ा है चयन की समस्या का संबध उत्पादन की तकनीक से भी हातेा है जसे किसी वस्तु का उत्पादन करने अधिक श्रम का उपयोग किया जाय या अधिक पूंजी का। श्रम व पूंजी का अनुपात क्या होना चाहिये। श्रम तकनीक का उपयोग या पूंजी तकनीक का उपयोग करना चाहिये ये भी समस्या है। संसाधन दुर्लभ होते है। अत: प्रत्येक अर्थव्यवस्था इनका सर्वोतम उपयोग करने का प्रयत्न करती है। इसे संसाधनों की किफायत करना भी कहते है। संसाधनों को उनके अनुकूलतम उपभोग अर्थात् संभव उपयोग से है। संसाधनों को संयोग भी अनूकूल होना चाहिये।