अनुक्रम
अतिसार रोग के लक्षण
- बहुत तेजी से पानी की तरह पतला मल बार-बार आना।
- पेट में दर्द व मरोड़ होना।
- शारीरिक कमजोरी
- वमन
- बुखार
अतिसार रोग के कारण
- अतिसार दूषित भोजन तथा पानी से होता है।
- मेल-बेमेल आहार करने से अतिसार (दस्त) हो जाते है।
- कन्फेनशरी एवं डिब्बाबंद वस्तुओ का अधिक मात्रा में सेवन करने से यह रोग होता है।
- एक बार खा लेने के पश्चात् फिर से भोजन ग्रहण करने से यह रोग हो जाता है।
- अतिसार (दस्त) होने का एक कारण मल का वेग रोकना भी है।
- आयुर्वेद कहता है कि धातुओं और त्रिदोनो का कुपित हेना अतिसार का कारण हैं।
- यदि कोई व्यक्ति समयाभाव या अन्य किसी कारणवश जल्दी-जल्दी में भोजन करना अतिसार पैदा करता है।
- रूखी, अत्यधिक चिकनी और गर्म खाद्य पदार्थो के सेवन से भी यह रोग हो जाता है।
- कुछ व्यक्तियो में प्रात: काल उठते ही भोजन कर लेने ही आदत के कारण वे अक्सर अतिसार से ग्रसित रहते है।
- बिना भूख के खाते रहना भी एक वजह है, अतिसार रोग की।
- भोजन का समय निश्चित ना होना।
- शरीर में विषाक्त पदार्थो का बढ़ जाना।
- हाई पावर वाले एंटीबॉयोटिक और अन्य दवाइयों से भी अतिसार हो जाता है।
- यदि यकृत अपने कार्यो को सुचारू रूप से ना कर पा रहा हो तो भी यह रोग हो जाता है।
- कुछ व्यक्तियो में एपेंडिसाइटिस के कारण भी यह रोग हो जाता है।
- संक्रमण भी अतिसार का एक प्रमुख कारण है। संक्रमित भोजन करना तथा मुहँ, गले, दाँत में कोई संक्रमण हो जाए तो यह संक्रमण आँतो तक पहुँचकर अतिसार उत्पन्न कर देता है।
- पेट में कीड़े होने से भी कुछ लोगो को अतिसार हो जाता है।
- मांस-मछली और नशीले पदार्थो का अत्यधिक एवं अनियमित सेवन भी अतिसार का एक कारण है।
तीव्र अतिसार के कारण
पाचन-संस्थान में संक्रमण वैक्टीरिया अथवा पैरासाइट द्वारा संदूषित खाना व पानी खाद्य जनित कारण खाद्य एलर्जी या भोजन सम्बन्धी खराब आदतें जैसे-अत्यधिक भोजन कर लेना। बार-बार खाना आदि कुपोषण क्वाषियोकर, मरास्मस, विटामिन ए व विटामिन बी समूह की कमी। अन्य संक्रमण हैजा, टायफाइड आदि दवायों व अन्य रसायनों द्वारा आर्सेनिक, सीसा, मरकरी द्वारा मानसिक कारण तनाव, डर, चिन्ता, अस्थिरता आदि
- सोडियम क्लोराइड नमक 3.5 ग्राम
- सोडियम बाइकार्बोनेट 2.5 ग्राम
- पोटेषियम क्लोराइड 1.5 ग्राम
- ग्लूकोज 20 ग्राम
उक्त चार लवणों को पीने के साफ 1 लीटर पानी में घोलें। इस घोल को ओरल रीहाडे्रषन सौल्यूशन (ओ0आर0टी0) कहते हैं। यह घोल रोगी को प्रत्येक दस्त के बाद एक गिलास देना चाहिए। सरकार द्वारा प्रत्येक प्राथमिक चिकित्सालय में अतिसार के उपचार के रूप में ओ0आर0एस0 के लवणों का मिश्रण ( विष्व स्वास्थ्य संगठन की विधि के अनुसार) उपलब्ध होता है।
- पर्याप्त मात्रा में ओ0आर0एस0 को पीने के साफ पानी में घोलकर दें।
- नारियल पानी
- जौ का पानी
- दाल व अनाज का पानी
- छाछ, मट्ठा
- हल्की चाय
अतिसार के घरेलू उपचार
अतिसार एक ऐसा रोग है जिसके उपचार हेतु कभी भी दवाइयों का उपयोग नहीं करना चाहिए। इस रोग के उपचार हेतु वैकल्पिक चिकित्सा सर्वोतम विधा है।
- 12 ग्राम आक की जड़ की छाल तथा 12 ग्राम कालीमिर्च को बारीक पीस ले। छोटी-छोटी चने के दाने बराबर गोलिया बना ले। दिन में 3 बार इन गोलियों का अर्क सौंफ के साथ सेवन करे।
- समान मात्रा में आम की गुठली की गिरी का चूर्ण, जामुन की गुठली का चूर्ण और भुनी हुई हरड़ को मिलाये। दिन में 2-3 बार 3-5 ग्राम की मात्रा में सेवन करे।
- इमली के बीज भाड़ में भूनकर उसमें गरम पानी डाले कुछ घण्टो के पश्चात् बकला निकाल कर गीला-गीला ही कूटकर छलनी में छानकर सुखा ले। इसमें शक्कर के साथ 6 ग्राम की मात्रा में दिन में 4 बार खाये।
- 4 भाग कुटज छाल और एक भाग छोटी इलायची को पीसकर कूट ले और इसकी 1 ग्राम मात्रा सुबह शाम जल या मट्ठे के साथ ग्रहण करे।
- हल्दी को बारीक पीसकर छान ले और आग पर भून लें और हल्दी के बराबर काला नमक मिलाये। इसके प्रयोग से अतिसार के दस्त रूक जाते है।
- अमरूद की पत्तियों को उबालकर पीना चाहिए।
- 70 ग्राम दही में 4 ग्राम खसखस को पीसकर मिलाकर दिन में 2-3 बार सेवन करे।
- नीम की पत्तियों को पानी में मिलाकर पीयें।
- बेलगिरी, धनिया, मिश्री बराबर मात्रा में पीसकर गोलियाँ बना ले और दिन में 3 बार चूसे।
- बेल का मुरब्बा सुबह, “ााम 10 ग्राम की मात्रा में सेवन करना चाहिए।
- प्रात:काल ईसबगोल 3 ग्राम की मात्रा में सेवन करना चाहिए।
अतिसार में देने योग्य भोज्य पदार्थ
- अतिसार में जल एवं खनिज लवणों की अत्यधिक कमी हो जाती है। अत: कुछ समयान्तराल में थोड़ी-थोड़ी मात्रा में रोगी को ओ. आर. एस. का घोल बनाकर पिलाना चाहिए।
- अतिसार में सुपाच्य आहार ही लेना चाहिए, पूर्ण आहार ना लें। अतिसार में ऐसे भोज्य पदार्थो का सेवन करना चाहिए, जो शरीर में खनिज लवणों एवं जल का सन्तुलन बनाये रखे।
- पहले कुछ दिनो तक मट्ठा या नींबू पानी+शहद ही लेना चाहिए। नींबू पानी में हल्का-सा नमक भी डाला जा सकता है।
- तत्पश्चात् कुछ दिनो के बाद और रोगी की भूख और इच्छा के अनुसार सब्जियों का रस अथवा फलों का रस दिया जा सकता है।
- सब्जियों में गाजर, तोराई, लौकी, टिण्डा आदि सुपाच्य सब्जियों को मिलाकर बनाया गया सूप लिया जा सकता है। सभी सब्जियाँ उपलब्ध ना होने पर किसी भी एक प्रकार की सब्जी का सूप बनाना चाहिए।
- फलो में केले के सेवन ऊर्जा एवं खनिज लवणों की कमी को दूर करता है। सेब को उबालकर खिलाना भी लाभकारी है। इसके अतिरिक्त अनानास और बेल भी इस रोग के लिए लाभकारी है। फलो में अनार, संतरा और मौसमी का रस भी उत्तम है।
- रोगी को छाछ के साथ किशमिश देना, पीने के लिए नारियल पानी एवं छेने का पानी भी लाभकारी है।
- दालों में मूंग और मसूर का पानी, साबूदाना, दही और दलिया भी उपयोगी है।
वर्जित भोज्य पदार्थ – साबूत अनाज, दालें, पत्तेदार सब्जियां, सूखे फल, मेवे, पापड़ चटनी, अचार, मिठाई, सब्जियों का सलाद, बीन्स आदि।
सन्दर्भ –
- जिन्दल राकेश। (2005). प्राकृतिक आर्युविज्ञान, आरोग्य सेवा प्रकाशन, मोदीनगर, उत्तर प्रदेश।
- नीरज, नागेन्द्र कुमार। (2013). असाध्य रोगों की सरल चिकित्सा, शीतल प्रेस, जयपुर।
- नीरज, नागेन्द्र कुमार। (2013). पेट के रोगों की सरल चिकित्सा, शीतल प्रेस, जयपुर।
- डा. सक्सेना, ओ. पी.। (2008). वृहद् आयुर्वेदिक चिक्त्सिा, हिन्दी सेवा सदन, हालनगंज, मथुरा।