विटामिन (vitamin) भोजन के वे अवयव (कार्बनिक यौगिक) हैं जिनकी सभी जीवों को अल्प मात्रा में आवश्यकता होती है। यह शरीर द्वारा पर्याप्त मात्रा में स्वयं उत्पन्न नहीं किए जा सकते बल्कि भोजन के रूप में इन्हें लेना आवश्यक होता हैं।
विटामिन की खोज हॉपकिन्स (Frederick Hopkins) द्वारा की गई थी जिन्होने इसे ‘आवश्यक कारक’ की संज्ञा प्रदान की। ‘विटामिन’ नामकरण फन्क (Casimir Funk) द्वारा किया गया।
शरीर में विटामिन के उपयोग
- विटामिन जैव रासायनिक क्रियाओं पर नियंत्रण रखते हैं।
- विटामिन उपापचयी (Metabolic) नियंत्रक होते है।
- इन्हें एंजाइम का सहकारक कहा जाता है — विटामिन उत्तकों में एंजाइम के निर्माण में सहायक होते हैं जो कोशिकाओं और उत्तकों में पोषक तत्त्वों को परिवर्तीत करते हैं।
- विटामिन रक्षात्मक खाद्य हैं अर्थात् यह रोगों से सुरक्षा में सहायक हैं।
- विटामिन द्वारा शरीर को ऊर्जा प्राप्त नहीं होती और यह गर्म करने पर शिघ्र नष्ट हो जाते हैं।
विटामिन का विभाजन — विलयता के आधार पर
विलेयता के आधार पर विटामिन्स को दो श्रेणी में रखा जाता है, यथा— जल में घुलनशील विटामिन तथा वसा में घुलनशील विटामिन।
जल में घूलनशील
- विटामिन B
- विटामिन C
जल में घूलनशील विटामिन:
- यह विटामिन जल में घूलनशील होते हैं तथा मूत्र द्वारा उत्सर्जित कर दिए जाते हैं।
- शरीर में इनकी अधिकता से विषाक्तता (Toxicity) नहीं होती।
वसा विलेय
- विटामिन A
- विटामिन D
- विटामिन K
वसा में घूलनशील विटामिन:
- यह शरीर से मूत्र द्वारा उत्सर्जित नहीं होते अपितु इनका संचयन शरीर (लीवर) में होता है।
- विटामिन ‘ए’ तथा ‘डी’ की अधिकता से शरीर में विषाक्तता हो सकती है।
विटामिन ‘ए’
- यह वसा में घूलनशील विटामिन है।
- विटामिन ‘ए’ का अन्य नाम ‘रेटिनोल (Retinol – C20H30O)’ है।
- इसका रासायनिक नाम ‘एक्ज़ेरोफाइटोल (Axerophytol)’ है।
- यह बीटा—केरोटिन (Beta-Carotene) का एक प्रकार है। बीटा—केरोटीन को विटामिन ‘ए’ का पूर्वगामी भी कहा जाता है। वर्णक—केरोटीन (Beta-Carotene) का संश्लेषण यकृत (Liver) व आंत्रिय श्लेष्मा (Internal Mucosa) में होता है।
- इसे संक्रमण रोधी कहा जाता है – Anti Infection Vitamin.
- यह रोडोप्सीन (Rhodopsin) के निर्माण में सहायक है जो कि एक दृश्य वर्णक (Visual Pigment) है। इसकी कमी से ही रतौंधी अथवा निशांधता (Night Blindness) रोग होता है।
- विटामिन ‘ए’ से होने वाला अन्य रोग ‘शुष्क नेत्र (Xeropthalmia)’ है।
नोट: वर्णांधता (Colour Blindness) का विटामिन ‘ए’ से कोई लेना—देना नहीं है। यह एक अनुवांशिक रोग है।
- सामान्य व्यस्क हेतु इसकी आवश्यक मात्रा 3000—4000 आई.यू. (1 आई. यु. = 1 अन्तरराष्ट्रीय युनिट = 0.3 माईक्रोग्राम रेटिनोल के बराबर) है।
- भारत सरकार के टीकाकरण अभियान — इंद्रधनुष में विटामिन ‘ए’ का टीका दिया जाता है।
- गर्भ के दौरान खास अत्याधिक विटामिन ‘ए’, पेट में पलते बच्चे को नुकसान पहुँचा सकता है।
उपयोगिता:
- त्वचा को स्वस्थ रखना
- रोग प्रतिरोधकता बढाना
- अस्थियों में वृद्धि
- दृष्टि वर्णक निर्माण
- दांतों के इनेमल निर्माण में सहायक
कमी से होने वाले रोग:
- रतौंधी (Night Blindness) – इसमें रोगी को कम प्रकाश में दिखाई नहीं देता।
- त्वचा रोग
- ज़िरोप्थेलमियां (Xeropthalmia) – इस रोग में आॅंख की कॉर्निया (Cornea) तथा कंजक्टरइवा (Conjunctiva) में किरेटिनाइजेशन (Keratinization) अथवा शल्की भवन होने लगता है जिससे आॅंखें सूखने व सूजने लगती है।
स्त्रोत:
- दूध और दूध से उत्पादित खाद्य पदार्थ
- हरी— पीली सब्जी (गाजर, टमाटर, पत्तागोभी आदि)
- पीले या नारंगी रंग के फल
- मांस (यकृत)
- लाल गेहूॅं
- कोर्नफ्लेकस — लाल मक्के की चोकर आदि
विटामिन ‘बी’ कॉम्पलेक्स
- यह जल में घूलनशील विटामिनों का समूह है।
- यह विटामिन नाइट्रोजनयुक्त होते है।
- यह मेटॉबालिज्म दर को बढ़ाते है।
- यह खाने में मौजूद पोषण को ऊर्जा में परिवर्तित करते है।
- यह ब्रेन, स्पाइनल कोर्ड और नसों के कुछ तत्वों की रचना में भी सहायक होते है।
- यह रेड बल्ड सेल के निर्माण में सहायक है।
- यह हड्डियों और ऊतकों के लिए आवश्यक है।
विटामिन ‘बी—1’
- विटामिन ‘बी—1’ का अन्य नाम ‘थायमिन (Thiamine)’ है।
- विटामिन ‘बी—1’ कार्बोहाइड्रेट के उपापचय में सहएंजाइम के रूप में कार्य करता है।
- विटामिन ‘बी—1’ तंत्रिका तंत्र और ह्रदय को सुचारु रखता है।
- व्यस्कों में विटामिन ‘बी—1’ की प्रतिदिन आवश्यकता 1—2 मिलीग्राम अथवा 900 यू.आई. है।
- विटामिन ‘बी—1’ की कमी से बेरी-बेरी रोग हो जाता है अतः इसे बेरी-बेरी विटामिन भी कहते है।
- विटामिन ‘बी—1’ की कमी हो जाने पर शरीर कार्बोहाइड्रेटस तथा फास्फोरस का संपूर्ण प्रयोग कर पाने मे समर्थ नही हो पता जिससे एक विषैला एसिड जमा होकर रक्त मे मिल जाता है और तंत्रिका तंत्र को प्रभवित करता है।
- विटामिन ‘बी—1’ मानव रक्त के तरल भाग मे प्रोटीन को यथाचित मात्रा मे संतुलित रखता है।
उपयोग:
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- भूख बढ़ाना
- पेशियों को स्वस्थ रखना
- तंत्रिका तंत्र को स्वस्थ रखना
- सहएंजाइम टी.पी.पी. [Thiamine pyrophosphate (TPP or ThPP)] का निर्माण
कमी से होने वाले रोग:
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- बेरी—बेरी (Beriberi): इस रोग में मांसपेशियो को जहा भी छुआ जाए वहां दर्द होता है और स्पर्श शुन्यता का आभास होता है।
- पॉलिन्यूराइटिस (Polyneuritis): यह रोग मस्तिष्क के दोनों हिस्सों में परीधीय नसों (पेरिफेरल न्यरोपेथी) को समान रूप से क्षतिग्रस्त करता है जिससे — कमजोरी आती है, सुई चुभने जैसे दर्द का अहसास होता है, सुन्नपन आता है और तीव्र जलन वाला दर्द होता है।
स्त्रोत:
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- हरी सब्जियां
- कच्चे सेम व मटर बीज फलियां
- आलू
- गेहूॅं
- यीस्ट
- यकृत
- अंडे
- दूध और दूध से उत्पादित खाद्य पदार्थ
विटामिन ‘बी—2’
- विटामिन ‘बी—2’ का अन्य नाम ‘राइबोफ्लोविन (Riboflavin)’ है
- विटामिन ‘बी—2’ का रासायनिक नाम ‘लैक्टोफ्लेविन (Lactoflavin – C17H20N4O6)’ है।
- विटामिन ‘बी—2’ शरीर की कोशिकीय प्रक्रियाओं के लिए अत्यंत आवश्यक होता है। इसकी कमी से होंठ और मुह सूखने लगते है।
- विटामिन ‘बी—2’ को विटामिन ‘जी’ भी कहा जाता है जो कि वर्तमान में इसका अप्रचलित नाम है।
- विटामिन ‘बी—2’ हमें प्रति 2000 किलो कैलोरी मान पर 1.7 ग्राम मात्रा में प्राप्त होता है जो कि हमारी दैनिक आवश्यकता है।
- विटामिन ‘बी—2’ पॉलिश चावल में अनुपस्थित होता है।
- विटामिन ‘बी—2’ जीवाणुओं की उपस्थिति में बनता है।
उपयोग:
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- शरीर वृद्धि के लिए
- त्वचा स्वास्थ्य
- पेशी स्वास्थ्य
- एमीनो अम्लों के उपापचय में
- एफ.ए.डी. (FAD) सह—एंजाइम
अभाव से होने वाले रोग:
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- चिलोसिस (Chilosis) — होंठ फटना
- गलोसिटिस (Glossitis) — जीभ सूजना
- डर्मेटाइटिस (Dermatitis) — त्वचा रोग
स्त्रोत:
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- सोयाबीन
- अखरोट
- पालक
- काजू
- दही
- मशरूम
- अंडे
- एस्परैगस
- बादाम
- केले